21 January 2020

WISDOM ------ प्रकृति किसी के भी अहंकार को बर्दाश्त नहीं करती

     ' पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है --- बुरे  दिनों  की  चपेट  में  आने  से  पहले  आदमी  अहंकारी  हो   चुका   होता  है  l  उद्धत  मनुष्यों  की   दुर्मति  ही  उनकी  दुर्गति  कराती  है   l  मनीषियों  का  कहना  है  कि   अहंकार  मनुष्यों  को  गिराता   है  l   उसे  उद्दंड  और  परपीड़क  बनाता  है  l   अपने  साथियों  को  पीछे  धकेलने ,  किसी   के अनुग्रह  की  चर्चा  न  करने  ,  दूसरे  के  प्रयासों  को   हड़प  जाने  के  लिए  अहंकार  ही  प्रेरित  करता  है   ताकि  जिस  श्रेय  की  स्वयं  कीमत  नहीं  चुकाई  गई   उसका  भी  लाभ  उठा  लिया  जाये  l
  अहंकारी  लोग  आमतौर  से  कृतध्न  होते  हैं   और  अपनी  विशेषताओं   और  सफलताओं  का  का  उल्लेख  बढ़ - चढ़  कर  करते  हैं  l   इनमे  नम्रता , विनयशीलता  का  अभाव  होता  है   और  अन्यों  को  छोटा  दिखाने, पिछड़ों   का  तिरस्कार - उपहास  करने     की  प्रवृति  बढ़ती  जाती  है   l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'जब  अहंकार  बढ़ने  लगता  है   तो  व्यक्ति  की  संवेदनशीलता , सरलता , सरसता  जैसे  सद्गुणों  का  ह्रास   होने  लगता  है  l   इस  कारण  ऐसा  व्यक्ति  दूसरों  की  नज़रों  में  निरंतर  गिरता  जाता  है  , घृणास्पद  बनता  है  ,  शत्रुओं  की  संख्या  बढ़ाता  है   और  अन्तत:  घाटे  में  रहता  है  l  आत्मसम्मान  की  रक्षा  करनी  हो  तो  अहंकार  से  बचना  ही  चाहिए  l