4 July 2013

MORAL WISDOM

'मन को स्वच्छ ,निर्विकार ,निर्मल बनाना ईश्वर भक्ति का प्रधान प्रतिफल है | मन की मलिनता जिस मात्रा में घटती जाती है ,उसी अनुपात में विवेकशीलता ,दूरदर्शिता बढ़ती जाती है | इस निर्मल बुद्धि को ही ऋतंभरा प्रज्ञा ,भूमा आदि नामों से प्रशंसित किया गया है | '
                     आचार्य उपकौशल को अपनी पुत्री के लिये योग्य वर की खोज थी | उनके गुरुकुल में कई विद्वान्
           ब्रह्मचारी थे ,किंतु वे कन्यादान के लिये ऐसे सत्पात्र की खोज में थे जो विकट से विकट परिस्थितियों में भी आत्मा को प्रताड़ित न करे ,सन्मार्ग से विचलित न हो | परीक्षा के लिये उन्होंने सब ब्रह्मचारियों को गुप्त रूप से आभूषण लाने को कहा ,जिसे माता -पिता क्या ,कोई न जाने |
      सब छात्र चोरी से कुछ न कुछ आभूषण लेकर लौटे ,आचार्य ने सारे आभूषण संभालकर रख लिये | अंत में वाराणसी के राजकुमार ब्रह्मदत्त खाली हाथ लौटे | आचार्य ने उनसे पूछा -"क्या तुम्हे एकांत नहीं मिला ?"
ब्रह्मदत्त ने उत्तर दिया -"निर्जनता तो उपलब्ध हुई पर मेरी आत्मा और परमात्मा तो देखते ही थे ,चोरी को ।"
       बस आचार्य को सत्पात्र मिल गया ,जिसकी उन्हें खोज थी |
 ईश्वर को सर्वत्र विद्दमान देखने वाला कभी अनुचित कार्य नहीं कर सकता | 

LEADER

'अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र ,नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है | वह न कभी धोखा देता है ,न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है | पग -पग पर मनुष्य को सजग एवं सचेत बनाता हुआ सही मार्ग पर चलने का प्रयत्न किया करता है | अपने अंत:करण पर विश्वास करके चलने वाले व्यक्ति न कभी पथ भ्रष्ट होते हैं और न किसी आपति में पड़ते हैं | '

     याज्ञवल्क्य राजा जनक की सभा में विराजमान थे | जनक ने पूछा -"प्रकाश का स्रोत क्या है और यदि वह न मिले तो किसका आश्रय लिया जाये ?"
   याज्ञवल्क्य ने कहा -"सूर्य प्रमुख है ,वह न हो तो चंद्रमा ,चंद्रमा न हो तो दीपक ,दीपक न हो तो विद्वानों से पूछकर प्रकाश प्राप्त करें | "
   जनक ने पूछा -"कोई बताने वाला भी न दीखे तब ?    याज्ञवल्क्य ने कहा -"तब अपने अंत:विवेक के आधार पर मार्ग अपनायें | सांसारिक प्रकाश न मिलने पर आत्म ज्योति ही यथार्थता बताती है | "