24 October 2013

WISDOM

धर्म  का  सार  है --संवेदना  और  अध्यात्म  का  सार  है --व्यक्तित्व  का  परिष्कार
आध्यात्मिक  जीवन  के  लिये  कर्मकांड  उतने  महत्वपूर्ण  नहीं ,जितना  कि  महत्वपूर्ण  है-संवेदना  का  परिष्कार  | जिनकी  संवेदना  परिष्कृत  होती  है , वे  सुख  भोगने   में  नहीं  , औरों  को  सुख  पहुँचाने  में  विश्वास  करते  हैं  | ऐसे  व्यक्ति  अपने  दु:खों  का  रोना  नहीं  रोते  , बल्कि  दूसरों  के  दु:खों  को  दूर  करने  का  महापराक्रम  करते  हैं  |

गायत्री महामंत्र

' वेद  मंत्रों  में  दैवीय  शक्तियां  विद्दमान  हैं  | इनमे  वह  वैज्ञानिक  प्रक्रिया  सन्निहित  है , जिसके  उच्चारण  मात्र  से  मनुष्य  के  शरीर  और  मन  में  विशेष  प्रकार  के  स्पंदन  होते  हैं  और  उनसे  अभीष्ट  लाभ  होने  का  पथ  प्रशस्त  होने  लगता  है  | '
           गायत्री  महामंत्र  में  परमेश्वर  का  सत्य , प्रकृति  के  तत्व  एवं  उनके  संयोग  से  होने  वाली  स्रष्टि  संरचना  का  संपूर्ण  विज्ञान  सूत्र  रूप  में  गुंथा  हुआ  है  |इस  अद्भुत  महामंत्र  में  न  केवल  स्रष्टिविज्ञान , ब्रह्मांडविज्ञान  है , बल्कि  आत्म  विज्ञान , साधना  विज्ञान  भी  है  |
   गायत्री  मंत्र  के  जप  से  चेतना  निर्मल  होती  है  , लेकिन  जिस  प्रकार  अकेला  बीज  बोना  सार्थक  नहीं  हो  सकता , फसल  प्राप्त  करने  के  लिये  बीज , भूमि , खाद-पानी , इन  तीन  चीजों  की  जरुरत  होती  है , उसी  प्रकार  गायत्री  मंत्र  की  सफलता  के  लिये  मंत्र  जप  के  साथ  तीन  बातों  को  सम्मिलित  करना  अनिवार्य  है ---1. उच्चस्तरीय  द्रष्टिकोण   2 . अटूट  श्रद्धा-विश्वास  3 . परिष्कृत  व्यक्तित्व
   ऋतंभरा  प्रज्ञा  का  ही  नाम  गायत्री  है  |  गायत्री  की  कृपा  और  अनुग्रह  हमें  केवल  माला  घुमाने  से  नहीं  मिल  सकता    , यह  कृपा  तो  उसी  को  मिलेगी  जो  इन  तीन  बातों  को  समन्वित  कर  उपासना  करेगा  |