1 July 2022

WISDOM

   कहते  हैं   जो  महाभारत  में  है  वही  इस  धरती  पर  है   l   महाभारत  में  सब  कुछ  बुरा  नहीं  था  ,  उसमें  युधिष्ठिर  जैसे  सत्यवादी ,  अर्जुन  जैसा  तपस्वी  और  धर्नुधर  जिसे  उर्वशी  भी  अपने  पथ  से  विचलित  नहीं  कर   सकी ,  महादानी  और  महावीर  कर्ण  ,  दृढ प्रतिज्ञ  भीष्म  ,  गुरु  द्रोणाचार्य  आदि  अनेक  ऐसे  पात्र  थे   जो   महान  गुणों  से  संपन्न  थे   l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- अच्छाई  की  राह  बहुत  कठिन  है  ,  पानी  को  ऊपर  चढ़ाने  के  लिए  बहुत  प्रयत्न  करना  पड़ता  है   लेकिन  पानी  का  नीचे  गिरना  बहुत  आसान  है  , बुराई  की  राह  बहुत  सरल  है ,  इस  राह  पर  तुरत  लाभ  भी  मिलता  है   l  "    महाकाव्य  से  सही  दिशा  लेने  वाले  बहुत  कम  हैं   ,  उन्हें  ढूँढना  बहुत  मुश्किल  है   लेकिन  दुर्योधन  और  शकुनि  की  तरह  षड्यंत्र  और  छल - कपट  करने  वाले ,  शल्य  की  तरह   किसी  के  आत्मविश्वास  को  डिगाने  वाले ,   सब  मिलकर  अभिमन्यु  को   मारने  वाले   और   बालक  को  मारकर  ऐसा  जश्न   मनाना    जैसे  कोई  भारी  किला  जीत  लिया  हो   ,  नारी  का  अपमान  करने  वाले  --- ऐसे  लोगों  से  संसार  भरा  पड़ा  है   l     महर्षि  वेदव्यास  जी   ने  महाभारत  इसलिए  नहीं  लिखी  थी  कि  संसार  उससे  अत्याचार  , अन्याय , षड्यंत्र  रचना  सीखे    उन्होंने  तो   संसार  को  यह  समझाने  का  प्रयास  किया   कि  अधर्म  और  अन्याय  का   परिणाम  कितना  कष्टकारी  होता  है  ,  कौरव  वंश  का  ही  अंत  हो  गया   l    मनुष्य  के  भीतर  देवता  और  असुर  दोनों  हैं   l   आज  हमने  भौतिक  प्रगति  तो   बहुत  की  ,  विज्ञानं  ने  हमें  हर  तरह  की  सुविधाएँ    दीं  लेकिन  मनुष्य  की  चेतना  का  विकास  नहीं  हुआ   l  चेतना  के  स्तर  पर  मनुष्य  आज  भी  पशु  और  कहीं -कहीं   तो   नर   पिशाच  है  l   इसलिए  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  अपने  लेखन   में  इसी  बात  पर  जोर  दिया  है   कि  मनुष्य  के  विचारों  का  परिष्कार  ,  उसकी  चेतना  का  परिष्कृत  होना  जरुरी  है  ,  तभी  आचरण  अच्छा  होगा  ,  तनाव  समाप्त  होगा ,  सुख -शांति  होगी   l  सन्मार्ग  पर  चलने  का  प्रयास  मनुष्य  को  स्वयं  करना  होगा   l  जब  तक  मनुष्य  स्वयं  नहीं  सुधरना  चाहे  उसे  भगवान  भी  नहीं  सुधार  सकते  l   दुर्योधन  को  समझाने  तो  भगवान  कृष्ण  स्वयं  गए   लेकिन  उसने  उनकी  कोई  सलाह  नहीं  मानी  l  मनुष्य  को  स्वयं  ही  उठाना  होगा  l  

WISDOM ------

     लघु  कथाएं   बहुत  छोटी  होती  है  लेकिन   उनमें  निहित  शिक्षा  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाती  है  l  -------  एक  शेर  ने  कुछ  सियारों  के   सहयोग  से   बारहसिंगा  मारा  l  मांस  के  बंटवारे   का  निपटारा  सिंह  को  ही  करना  था   l  उसने  शिकार  के  टुकड़े  किए   और  कहा  --- " एक  टुकड़ा  राजवंश  का   कर   l     दूसरा  टुकड़ा  अधिक  पुरुषार्थ  करने  से  मेरा   l    और  तीसरा  स्वयंवर  जैसा  है ,  उसे  पाने  के  लिए   प्रतिद्वंदिता   में  जो  आना  चाहे  ,  वो  संघर्ष  के  लिए  तैयार  हो   l  सियार  चुपचाप  खिसक  गए   l  सिंह  ने  पूरा  बारहसिंगा  खा  डाला   l  "   शिक्षा  यही  है   कि  धूर्त  के  साथ  सहयोग  भी  हितकारी  नहीं  होता  ,  जहाँ  तक  हो  उससे  बचना  ही  चाहिए   l   

WISDOM ------

   श्रीमद भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं  --- प्रत्येक  व्यक्ति  में  सतोगुण , रजोगुण  और   तमोगुण   होता  है  ,  जब  एक  गुण  बढ़ता  है  तब  शेष  दो  गौण   हो  जाते  हैं  l ----  जैसे  जब  व्यक्ति  क्रोध  करता  है  तो  उसका  मन  का  सुख -शांति  सब  चले  जाते  हैं  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- मनुष्य  का  मन  भिखारी  की  तरह  है  , सदा  कुछ  मांगता  ही  रहता  है   l  जितना  कुछ  पाने  की  लालसा , लोभ  बढ़ता  है  -- उतना  ही  मनुष्य   उसे   -भिन्न - भिन्न   तरीकों  से  पाने  का  प्रयत्न  करता  है   l   इनसे  भी  जब   मन  की  सारी  कामनाएं  पूर्ण  नहीं  हो  पातीं  तो  वह   बहुत  अशांत  और  तनावग्रस्त  हो  जाता  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ---यदि  व्यक्ति  में  लोभ , लालसा , महत्वाकांक्षा   नियंत्रण  से  बाहर  हो  जाये  तो  व्यक्ति     पूर्णतया    विक्षिप्त  हो  जायेगा  l   पुराण  में  महाराज  ययाति  की  कथा  है  ,  उन्होंने  सौ  वर्ष  का  जीवन  जी  लिया  तब   यमराज    उन्हें  लेने  आ  गए   l  ययाति  उनके  आगे  गिडगिडाने  लगे  कि कि  अभी  मेरी  लालसाएं  पूरी  नहीं  हुई  हैं  ,  कृपया  उन्हें  पूरा  करने  के  लिए  एक  मौका  और  दें   l  यमदूत  बोले ---यदि  तुम्हारा  कोई  पुत्र  तुम्हे  अपनी  आयु   दे  दे  ,  तो  तुम  उसकी  आयु  का  भोग   कर  लेना   l  '  सबने  तो  मना  कर  दिया  ,  एक  पुत्र  को  दया  आ  गई  ,  उसने  अपनी  आयु  दान  दे  दी  l  वह  स्वयं  बूढ़ा  हो  गया   और  ययाति  भोग -विलास  में  मगन  हो  गए  l  यह  अवधि  समाप्त  होने  पर  फिर  यमदूत  आए ,  ययाति    फिर   उनसे  दीनता पूर्वक  विनती  करने  लगे  ,  पुन:  किसी  ने  अपनी  आयु  दे  दी   l  ऐसा  हजार  वर्षों  तक  होता  रहा    किन्तु  ययाति  का  मन  नहीं  भरा    और  अंत  में  वे  विक्षिप्त  जैसे  हो  गए   l    इस  कथा  से  यही  शिक्षा  है --- हम  अपनी  इच्छाओं , कामना ,  लोभ  , लालसा  पर  नियंत्रण  रखें   क्योंकि  ये  कभी  तृप्त  नहीं  होतीं   l