कहते हैं जो महाभारत में है वही इस धरती पर है l महाभारत में सब कुछ बुरा नहीं था , उसमें युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी , अर्जुन जैसा तपस्वी और धर्नुधर जिसे उर्वशी भी अपने पथ से विचलित नहीं कर सकी , महादानी और महावीर कर्ण , दृढ प्रतिज्ञ भीष्म , गुरु द्रोणाचार्य आदि अनेक ऐसे पात्र थे जो महान गुणों से संपन्न थे l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- अच्छाई की राह बहुत कठिन है , पानी को ऊपर चढ़ाने के लिए बहुत प्रयत्न करना पड़ता है लेकिन पानी का नीचे गिरना बहुत आसान है , बुराई की राह बहुत सरल है , इस राह पर तुरत लाभ भी मिलता है l " महाकाव्य से सही दिशा लेने वाले बहुत कम हैं , उन्हें ढूँढना बहुत मुश्किल है लेकिन दुर्योधन और शकुनि की तरह षड्यंत्र और छल - कपट करने वाले , शल्य की तरह किसी के आत्मविश्वास को डिगाने वाले , सब मिलकर अभिमन्यु को मारने वाले और बालक को मारकर ऐसा जश्न मनाना जैसे कोई भारी किला जीत लिया हो , नारी का अपमान करने वाले --- ऐसे लोगों से संसार भरा पड़ा है l महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत इसलिए नहीं लिखी थी कि संसार उससे अत्याचार , अन्याय , षड्यंत्र रचना सीखे उन्होंने तो संसार को यह समझाने का प्रयास किया कि अधर्म और अन्याय का परिणाम कितना कष्टकारी होता है , कौरव वंश का ही अंत हो गया l मनुष्य के भीतर देवता और असुर दोनों हैं l आज हमने भौतिक प्रगति तो बहुत की , विज्ञानं ने हमें हर तरह की सुविधाएँ दीं लेकिन मनुष्य की चेतना का विकास नहीं हुआ l चेतना के स्तर पर मनुष्य आज भी पशु और कहीं -कहीं तो नर पिशाच है l इसलिए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने लेखन में इसी बात पर जोर दिया है कि मनुष्य के विचारों का परिष्कार , उसकी चेतना का परिष्कृत होना जरुरी है , तभी आचरण अच्छा होगा , तनाव समाप्त होगा , सुख -शांति होगी l सन्मार्ग पर चलने का प्रयास मनुष्य को स्वयं करना होगा l जब तक मनुष्य स्वयं नहीं सुधरना चाहे उसे भगवान भी नहीं सुधार सकते l दुर्योधन को समझाने तो भगवान कृष्ण स्वयं गए लेकिन उसने उनकी कोई सलाह नहीं मानी l मनुष्य को स्वयं ही उठाना होगा l
1 July 2022
WISDOM ------
लघु कथाएं बहुत छोटी होती है लेकिन उनमें निहित शिक्षा हमें जीवन जीने की कला सिखाती है l ------- एक शेर ने कुछ सियारों के सहयोग से बारहसिंगा मारा l मांस के बंटवारे का निपटारा सिंह को ही करना था l उसने शिकार के टुकड़े किए और कहा --- " एक टुकड़ा राजवंश का कर l दूसरा टुकड़ा अधिक पुरुषार्थ करने से मेरा l और तीसरा स्वयंवर जैसा है , उसे पाने के लिए प्रतिद्वंदिता में जो आना चाहे , वो संघर्ष के लिए तैयार हो l सियार चुपचाप खिसक गए l सिंह ने पूरा बारहसिंगा खा डाला l " शिक्षा यही है कि धूर्त के साथ सहयोग भी हितकारी नहीं होता , जहाँ तक हो उससे बचना ही चाहिए l
WISDOM ------
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- प्रत्येक व्यक्ति में सतोगुण , रजोगुण और तमोगुण होता है , जब एक गुण बढ़ता है तब शेष दो गौण हो जाते हैं l ---- जैसे जब व्यक्ति क्रोध करता है तो उसका मन का सुख -शांति सब चले जाते हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- मनुष्य का मन भिखारी की तरह है , सदा कुछ मांगता ही रहता है l जितना कुछ पाने की लालसा , लोभ बढ़ता है -- उतना ही मनुष्य उसे -भिन्न - भिन्न तरीकों से पाने का प्रयत्न करता है l इनसे भी जब मन की सारी कामनाएं पूर्ण नहीं हो पातीं तो वह बहुत अशांत और तनावग्रस्त हो जाता है l आचार्य श्री कहते हैं ---यदि व्यक्ति में लोभ , लालसा , महत्वाकांक्षा नियंत्रण से बाहर हो जाये तो व्यक्ति पूर्णतया विक्षिप्त हो जायेगा l पुराण में महाराज ययाति की कथा है , उन्होंने सौ वर्ष का जीवन जी लिया तब यमराज उन्हें लेने आ गए l ययाति उनके आगे गिडगिडाने लगे कि कि अभी मेरी लालसाएं पूरी नहीं हुई हैं , कृपया उन्हें पूरा करने के लिए एक मौका और दें l यमदूत बोले ---यदि तुम्हारा कोई पुत्र तुम्हे अपनी आयु दे दे , तो तुम उसकी आयु का भोग कर लेना l ' सबने तो मना कर दिया , एक पुत्र को दया आ गई , उसने अपनी आयु दान दे दी l वह स्वयं बूढ़ा हो गया और ययाति भोग -विलास में मगन हो गए l यह अवधि समाप्त होने पर फिर यमदूत आए , ययाति फिर उनसे दीनता पूर्वक विनती करने लगे , पुन: किसी ने अपनी आयु दे दी l ऐसा हजार वर्षों तक होता रहा किन्तु ययाति का मन नहीं भरा और अंत में वे विक्षिप्त जैसे हो गए l इस कथा से यही शिक्षा है --- हम अपनी इच्छाओं , कामना , लोभ , लालसा पर नियंत्रण रखें क्योंकि ये कभी तृप्त नहीं होतीं l