8 August 2022

WISDOM ------

   अनमोल  मोती ------  एक  रात  भयंकर  तूफान  आया   l  सैकड़ों  विशालकाय  वृक्ष  धराशायी  हो  गए   l  अनेक  किशोर  वृक्ष  भी  थे  ,  जो  बच  तो  गए  ,  पर  बुरी  तरह  सकपकाए  खड़े  थे   l  प्रात:काल  आया  ,  सूर्य  ने  अपनी  रश्मियाँ   धरती  पर  फेंकी   l  डरे  हुए  पौधों  को  देखकर   किरणों  ने  पूछा ---- " बालकों  !  तुम  इतना  सहमे  हुए  क्यों  हो  ? "   किशोर  पौधों  ने  कहा ---- " देवियों  !  ये  देखो  हमारे  कितने   पुरखे  धराशायी  पड़े  हैं  l  रात  के  तूफ़ान  ने   उन्हें  उखाड़  फेंका   l  न  जाने  कब   यही  स्थिति  हमारी  भी  आ  जाये   l  "  किरणें  हँसी  और  बोलीं ---- "  वत्स  ! आओ  और  इधर  देखो  ---- ये  वृक्ष  तूफान  के  कारण  नहीं  ,  जड़ें  खोखली  हो  जाने  के  कारण  गिरे  ,  तुम  अपनी  जड़ें  मजबूत  रखना  ,  तूफान  तुम्हारा  कुछ  नहीं  बिगाड़  पाएंगे   l  "   

WISDOM -----

     गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने   रामचरितमानस  में  लिखा  है ----- ' परहित  सरिस  धर्म  नहिं  भाई  l  पर  पीड़ा  सम  नहिं  अधमाई   l l '  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  भी  यही  कहा  कि  दूसरों  की  पीड़ा  निवारण  करना  l   उनको  पतन  के  मार्ग  से  सन्मार्ग  पर  लाना  ही  धर्म  है  l   "              धर्म  की  कितनी  सरल  व्याख्या  है   लेकिन  आज  समाज  ने  अपने  स्वार्थ  के  लिए   धर्म  का  भी  इस्तेमाल  कर  लिया ,  धर्म  को  जटिल  बना  दिया   l   आज  मनुष्य  स्वयं  के  सुख  से  ज्यादा  दूसरों  के  दुःख  के  लिए  ,  उन्हें  तरह -तरह  से  उत्पीड़ित  करने ,  तनाव  देने    को  लालायित  है   l  यदि  संसार  में  सुख न-शांति  चाहिए  तो  धर्म  के  सही  अर्थ  को  समझना  होगा  l --------- ---------  पंढरपुर  के  विट्ठल  मंदिर  में  भक्तों  की  लम्बी  कतार  लगी  थी  l   लोग  स्तुति -प्रणाम  करते  , भेंट  चढ़ाते  l  लक्ष्मी जी  भगवान  से  बोलीं ---- "  इतने  भक्त  इतनी  उमंग  से   आ -जा  रहे  हैं  ,  आप  हैं  कि  नीचे  द्रष्टि  किए   उदास  खड़े  हैं l  "   भगवान  बोले ----- " देवि  !  मैंने  पंक्ति  के  अंत  तक   द्रष्टि  डालकर  देख  लिया  l  सभी  अपने -अपने  स्वार्थ  के  लिए  आए  हैं   l  मेरे  लिए  कोई  नहीं  आया  है   l  मुझे  कोई  नहीं  चाहता  ,  सब  मुझसे  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करना  चाहते  हैं  l  "  यह  सुनकर  लक्ष्मी जी  बहुत  उदास  हो   गईं  ,  उन्होंने  कहा ----- " क्या   ऐसा  कोई  नहीं  है  ,  जो  हमारे  लिए  हमारे  पास  आए   ?  "  भगवान  बोले  ---- "  तुकाराम  है  ,  पर  वह  बीमार  पड़ा  है  ,  यहाँ  तक  चलकर  आ  नहीं  सकता  l  चारपाई  पर  दर्शन  के  लिए   व्याकुल  पड़ा  है   l  "    लक्ष्मी जी  की  उदासी  हटी  ,  वे  बोलीं  ---- "  तो  चलिए  ,  हम  ही  उसे  दर्शन  दे  आएं   l  "   मंदिर  में  दर्शनार्थियों   की  भीड़   टूटी  पड़  रही  थी    और  भगवान   अपने  सच्चे  भक्त  तुकाराम  के  पलंग  के  सामने  खड़े  थे   l