28 September 2017

शहीद भगतसिंह ---- जिन्होंने आत्म बलिदान कर के क्रान्तिकारियों के कार्यों के पीछे जो गम्भीर विचारधारा और उच्च आदर्श था -- उसे संसार के सामने रखा

 ' नित्यप्रति  हजारों  मनुष्य  तरह - तरह  से  अकाल  मृत्यु  के  मुँह  में  चले  जाते  हैं  ,  पर  जो  भगतसिंह  की  तरह   दूसरों  के  लिए  जीवन  अर्पण  कर  देते  हैं   वही  इस  नश्वर  जगत  में  अमर  हो  जाते  हैं   l '  ऐसे  निर्भीक  और  कर्तव्यपरायण  युवकों  पर  भारतमाता  जितना  गर्व  करे  कम  है  l   
  उन्होंने   जीवन  के  अन्तिम  समय  तक  अन्याय  के  विरुद्ध  संघर्ष  किया  l ` 
            असेम्बली  बम  केस  में  अपने  कार्य  का  औचित्य  सिद्ध  करते  हुए   उन्होंने  कहा  था --- ' क्रान्ति  का  वास्तविक  मार्ग  मेहनत  पेशा  लोगों  को  जागृत  तथा   संगठित  करना  है  l  थोड़े  से  युवक  आतंकवादी  कार्य  कर  के   इस  महान  उद्देश्य  को  पूरा  नहीं  कर  सकते  l  यह  मेरा  दृढ़  विश्वास  है  कि  हमको  बमों  और  पिस्तौलों  से  लाभ  नहीं  होगा  l   ' ------
 उन्होंने  कहा ---- " समाज  में  सभी  के  लिए  अनाज  पैदा  करने  वाले   किसानों  के  परिवार  भूखों  मरते  हैं  ,  सारे  संसार  को  सूत  जुटाने  वाला   बुनकर  अपना  और  अपने  बच्चों  का  तन  ढकने  के  लिए  पर्याप्त  कपड़ा  नहीं  पाता  है  ,  शानदार  महल  खड़ा  करने  वाले  लुहार , बढ़ई,  कारीगर   झोंपड़ी  में  ही  बसर  करते   और  मर  जाते  हैं   और  दूसरी  तरफ  पूंजीपति  ,  शोषक  अपनी  सनक  पर  करोड़ों  रुपया  बहा  देते  हैं   l  l  समाज  में  एक  ऐसी  व्यवस्था  की  स्थापना  की  जाये   जिसमे  मजदूर  वर्ग  के  प्रभुत्व  को  मान्यता  दी  जाये   जिसके  फलस्वरूप  पूंजीवाद  के  बन्धनों ,  दुःखों   तथा  युद्धों  से  मानवता  का  उद्धार  हो  सके   l  "
     ' मृत्यु '  मानवमात्र  को  आतंकित  कर  देती  है   लेकिन  भगतसिंह  को  अंतिम  क्षण  तक   मृत्यु   की   भयंकरता    का  तनिक  भी  भय  नहीं  हुआ  l   मृत्यु  के  दिन  उनने  अपने  भाई  को  पत्र में  यह  अमर  वाक्य  लिखे  थे ----- "  एक  दीपक  की  लौ    की    तरह  मैं  सुबह  होने  से   पहले  ही  खत्म  हो  जाऊंगा  l  यह  मुट्ठी  भर  खाक  अगर  नष्ट  हो  जाये   तो  इससे    क्या  हानि   होगी  ? "  
  भगतसिंह  का   आत्मबलिदान   इतना  प्रभावशाली  सिद्ध  हुआ  कि  सर्वत्र  उनका  नाम  गूंजने  लगा  l   महात्मा  गाँधी  ने  कहा ---  "  हमारे  मस्तक  भगतसिंह  की  बहादुरी  और  बलिदान  के  समक्ष  झुक  जाते  हैं  l "