लघु कथा --- एक गोताखोर बहुत दिनों से असफल रह रहा था l घोर परिश्रम करने पर भी कुछ हाथ न लगा l पेट भरने के लाले पड़ गए l कोई रास्ता सूझता न था l एक दिन किनारे बैठकर उसने देवता की बहुत प्रार्थना की --- "आप सहारा न देंगे तो मैं जीवित कैसे रहूँगा ? " देवता को दया आ गई , उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया l अब उसने फिर डुबकी लगाईं तो एक पोटली हाथ लगी , खोलकर देखा तो उसमें छोटे -छोटे पत्थर भरे थे l दुर्भाग्य को उसने कोसा और देवता को निष्ठुर बताया l वह एक -एक कर के पत्थर के टुकड़ों को पानी में फेंकने लगा और सोचने लगा कि अब वह गोताखोरी छोड़कर मछली पकड़ेगा , इसमें लाभ है l इन्हीं विचारों के बीच जब उसने अंतिम टुकड़े को ध्यान से देखा , तो वह बहुमूल्य नीलम था l देवता के अनुग्रह से मिली इतनी राशि उसने अपने हाथों गंवाई , इसका उसे बहुत दुःख हो रहा था l तभी देवता प्रकट हुए और बोले --- " अकेले तुम ही इस दुनिया में प्रमादी नहीं हो , अन्य लोग भी इस रत्न राशि से बढ़कर बहुमूल्य जीवन संपदा को इसी प्रकार बरबाद करते हैं l जाओ जो बचा है उसे बेचकर कम चलाओ l बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर मिलता है , होश में रहकर जीवन जियो l "