पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने वाडमय ' प्रेरणाप्रद द्रष्टान्त ' में लघु -कथाओं के माध्यम से हमें जीवन जीने की शिक्षा दी है l ----- एक राजा ने अपने राजकुमार को एक दूरदर्शी और विद्वान् आचार्य के पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा l एक दिन आचार्य ने राजकुमार से पूछा ---' तुम अपने जीवन में क्या बनना चाहते हो ? यह बताओ तब तुम्हारा शिक्षा क्रम ठीक बनेगा l राजकुमार ने उत्तर दिया --- ' वीर योद्धा l ' आचार्य ने समझाया कि इन दोनों शब्दों में अंतर है l योद्धा बनने के लिए शस्त्र कला का अभ्यास करो , घुड़सवारी सीखो किन्तु यदि वीर बनना हो तो नम्र बनो और सबसे मित्रवत व्यवहार करने की आदत डालो l जो वीर है वो कभी किसी की पीठ पर वार नहीं करता , कमजोर पर अत्याचार नहीं करता l सबसे मित्रता करने की बात राजकुमार को जंची नहीं और वह असंतुष्ट होकर अपने महल वापस आ गया l पिता ने लौटने का कारण पूछा तो उसने मन की बात बता दी , सबसे मित्रता बरतना भी कोई नीति है l राजा ने उस समय तो अपने पुत्र से कुछ नहीं कहा l कुछ दिन बाद राजा अपने पुत्र के साथ जंगल में वन -विहार को गया l चलते चलते शाम हो गई , राजा को ठोकर लगी तो बहुमूल्य अंगूठी में जड़ा बेशकीमती हीरा उस पथरीली रेत में गिर गया l अँधेरा होने लगा , जंगल पार करना था l राजकुमार ने जहाँ हीरा गिरा था वहां की सारी रेत अपनी पगड़ी खोलकर उसमे बाँध ली l और भयानक जंगल को जल्दी पार करने को कहा l राजा ने पूछा --- 'हीरा तो छोटा सा था , उसके लिए इतनी सारी रेत समेटने की क्या जरुरत ? राजकुमार ने कहा --- जब हीरा अलग से नहीं मिला तो यही उपाय था कि उस जगह की सारी रेत समेट ली जाये और घर पहुंचकर सुविधानुसार हीरा ढूँढ लिया जाये l राजा ने पूछा --- फिर आचार्य जी का यह कहना कैसे गलत हो गया कि सबसे मित्रता का अभ्यास करो l मित्रता का दायरा बड़ा होने से ही उसमें से हीरे जैसे विश्वासपात्र मित्र ढूंढना संभव होगा l राजकुमार का समाधान हो गया और वह फिर से उन विद्वान् गुरु के आश्रम में पढ़ने चला गया l इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमारा मनुष्य जीवन भी हीरे के समान अनमोल है उसे व्यर्थ न गंवाए l यदि इस सफ़र में कभी गिर भी गए तो हिम्मत न हारें , पुन: उठें , संभलें और जीवन को सार्थक करें और मित्र हमेशा जाँच -परखकर ही बनाएँ l