28 March 2024

WISDOM -------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने    अपने  वाडमय ' प्रेरणाप्रद  द्रष्टान्त '  में  लघु -कथाओं  के  माध्यम  से  हमें  जीवन  जीने  की  शिक्षा  दी  है  l  ----- एक  राजा  ने  अपने  राजकुमार  को  एक  दूरदर्शी  और  विद्वान्  आचार्य  के  पास  शिक्षा  प्राप्त  करने  के  लिए  भेजा   l  एक  दिन  आचार्य  ने  राजकुमार  से  पूछा  ---' तुम  अपने  जीवन  में  क्या  बनना  चाहते  हो  ?  यह  बताओ  तब  तुम्हारा  शिक्षा  क्रम   ठीक  बनेगा  l  राजकुमार  ने  उत्तर  दिया  --- ' वीर  योद्धा  l '  आचार्य  ने  समझाया  कि  इन  दोनों  शब्दों  में  अंतर  है  l  योद्धा  बनने  के  लिए   शस्त्र  कला  का  अभ्यास  करो  , घुड़सवारी  सीखो   किन्तु  यदि   वीर  बनना  हो  तो   नम्र  बनो  और  सबसे  मित्रवत  व्यवहार  करने  की  आदत  डालो  l  जो   वीर  है  वो  कभी  किसी  की  पीठ  पर  वार  नहीं  करता  , कमजोर   पर  अत्याचार  नहीं  करता  l     सबसे  मित्रता  करने  की  बात  राजकुमार  को  जंची  नहीं   और  वह  असंतुष्ट  होकर   अपने  महल  वापस  आ  गया  l  पिता  ने  लौटने  का  कारण  पूछा   तो  उसने   मन  की  बात  बता  दी  , सबसे  मित्रता  बरतना  भी  कोई   नीति  है  l   राजा  ने  उस  समय  तो  अपने  पुत्र  से  कुछ  नहीं  कहा  l   कुछ  दिन  बाद  राजा  अपने  पुत्र  के  साथ  जंगल  में  वन -विहार  को  गया  l  चलते चलते  शाम  हो  गई  , राजा  को  ठोकर  लगी   तो  बहुमूल्य  अंगूठी  में  जड़ा    बेशकीमती  हीरा   उस  पथरीली  रेत   में  गिर  गया  l  अँधेरा  होने  लगा  , जंगल  पार  करना  था  l  राजकुमार  ने  जहाँ  हीरा  गिरा  था  वहां  की   सारी  रेत  अपनी  पगड़ी  खोलकर  उसमे  बाँध  ली  l और  भयानक  जंगल  को  जल्दी  पार  करने  को  कहा  l   राजा  ने  पूछा  --- 'हीरा  तो  छोटा  सा  था  , उसके  लिए  इतनी  सारी  रेत   समेटने  की  क्या  जरुरत  ?   राजकुमार  ने  कहा --- जब  हीरा  अलग  से  नहीं  मिला   तो  यही  उपाय  था  कि  उस  जगह  की  सारी  रेत   समेट  ली  जाये  और  घर  पहुंचकर  सुविधानुसार  हीरा  ढूँढ  लिया  जाये  l  राजा  ने  पूछा  --- फिर   आचार्य जी   का  यह  कहना  कैसे  गलत  हो  गया   कि  सबसे  मित्रता  का  अभ्यास  करो  l  मित्रता  का  दायरा  बड़ा  होने  से  ही   उसमें  से   हीरे  जैसे   विश्वासपात्र  मित्र  ढूंढना  संभव  होगा  l   राजकुमार  का  समाधान  हो  गया   और  वह  फिर  से  उन  विद्वान्  गुरु  के  आश्रम  में  पढ़ने  चला  गया  l  इस  कथा  से  हमें  यही  शिक्षा  मिलती  है  कि  हमारा  मनुष्य  जीवन  भी  हीरे  के  समान  अनमोल  है   उसे   व्यर्थ  न  गंवाए  l  यदि  इस  सफ़र  में  कभी  गिर  भी  गए  तो  हिम्मत  न  हारें , पुन:  उठें  , संभलें  और  जीवन  को  सार्थक  करें   और  मित्र  हमेशा   जाँच -परखकर  ही  बनाएँ  l