30 September 2018

WISDOM ------ पराधीन सपनेहु सुख नाहीं

     श्रीरामचरितमानस  की  इन  पंक्तियों  से  अंग्रेज  सबसे  ज्यादा  भयभीत  थे   l   रामचरितमानस  कोई  सामान्य  ग्रन्थ  नहीं  है ,  यह  दिव्य  और  अद्भुत  ग्रन्थ  है   l  इसका  जनमानस  पर  व्यापक  प्रभाव  था   किन्तु  ब्रिटिश  साम्राज्यवाद  को  इससे   षड्यंत्र  की गंध  आ  रही  थी   l  तुलसी  बाबा  की  ये  पंक्तियाँ --- 'पराधीन   सपनेहु  सुख  नाहीं  '    और  ' नहिं  दरिद्र  सम  दुःख  जग  माहीं  '      भारत  के  स्वाधीनता  संग्राम  में  आग  में  घी  डालने  का  काम  करती   थीं   l   उत्तर  भारत में    रामलीला  का  उपयोग    राष्ट्रीय  चेतना  जगाने  के  लिए  होता  था   l 
       रामचरितमानस  आज  भी  जनमानस  में  उतनी  ही  लोकप्रिय  है   l    भगवान   राम  का  नाम  लोगों  की    जबान  पर  हैं    और  समाज  को  जाग्रत  करने  वाली  वे  पंक्तियाँ  उसमे  हैं   लेकिन  अब  लोगों  ने  उनसे  प्रेरणा  लेना  बंद  कर  दिया  l   कहने  को  देश  आजाद  है   लेकिन  लोग  अपने  विकारों  के  अपनी  कमजोरियों  के  गुलाम  हैं    l  इसलिए  सब  तरफ  अशांति  है  l   अब  कोई  विदेशी    यहाँ  आकर  दुष्कर्म ,  हत्या ,  लूटपाट  जैसे  अपराध  नहीं  करता   l  ये  सारे  घ्रणित  कार्य  अब  देश  के  ही  लोग   कर  लेते  हैं  और   समाज  में  रौब  से  रहते  हैं   l  यह  पराधीनता  समाज  को    आदिम युग   की  ओर  ले  जा  रही   है   l  मनुष्य  अब  पशु  से  भी  बदतर   राक्षस  बन  रहा  है  l
  अब  सबसे  जरुरी  है  कि  लोग  भगवान  राम  को  अपने  ह्रदय  में   बैठाएं   l  

29 September 2018

WISDOM ------ दो जगह मन नहीं लग सकता , जीवन को एक उद्देश्य के साथ जियें ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  कहते  हैं  कि मनुष्य  के  जीवन  का  लक्ष्य  एक  ही  हो  सकता  है  , दो  दिशाओं  में  निर्धारित  नहीं  हो  सकता  है  l  यदि  हमारे  जीवन  का  लक्ष्य  अपनी  सब  इच्छाएं  पूरी  करना  और  ऐशोआराम  के  साधन  जुटाना  है   तब --- पूजा -पाठ , सेवा  और  लोक कल्याण  के  कार्य  मात्र  दिखावा   हो  जायेंगे  l  जो  जीवन  को  एक  उद्देश्य  के  साथ  जीते  हैं ,  वे  इसे  संवारते  हैं   और  मानवीय  जीवन  की  गौरव - गरिमा  के  साथ  न्याय  कर  पाते  हैं  l  
  
 एक  बार  नारदजी  धरती  पर  भ्रमण  कर  रहे  थे  ,  उनकी  भेंट  साधुओं  की  एक  जमात  से  हो  गई  l  उन्होंने नारदजी  को  घेर  लिया  और  बोले -----" स्वर्ग  में  तुम    अकेले  ही  मौज  करते  हो l  हम  सबके  लिए  वैसे  ही  राजसी  ठाठ  जुटाओ , नहीं  तो  नारद बाबा  चिमटे  से  मार - मार  कर  तुम्हारा  भूसा  बना  देंगे   नारदजी  घबरा  कर  भगवान  के  पास  आये  और  उन्हें  सारी   घटना  सुनाई    l  यह  सुन  कर  भगवान  को  बहुत  क्रोध  आया   l  भगवान  ने  कहा कि  उस  साधु  मंडली  से  कहना  कि --- " त्यागी  और  परमार्थी  का  वेश  बनाकर   ऐसी  प्रवंचना  असह्य  है  l  समाज  में  लोगों  की  भावनाओं  को  छलोगे ,  धर्म  के  नाम  पर  आडम्बर  और  छल - कपट  करोगे  तो  नरक  में  अनंत  काल  तक  पड़े  रहोगे  l " 

28 September 2018

WISDOM----- सभी समस्याओं का एकमात्र हल है ---- संवेदना

 धर्म  और  जाति  के  नाम  पर  होने  वाले   झगडे    इस  बात  को  स्पष्ट  करते  हैं  कि  मनुष्य  अभी  भी  असभ्य  है   या   लालच , स्वार्थ  और  दूसरों  पर  हुकूमत  चलाने  का  नशा   सिर   पर  इतना  हावी  हो  गया  है  कि  सोचने - समझने  की  शक्ति  समाप्त  हो  गई   l  अंग्रेजों  ने  हिन्दू , मुसलमान  दोनों  को  ही  अपना  गुलाम  बनाया ,  हुकूमत  की   l  अब  दुर्बुद्धि  ऐसी  है  कि  अंग्रेजों  को  आदर्श  मानते  हैं   और  आपस  में  लड़ते  हैं  l    प्रत्येक  व्यक्ति  अपने  घर - परिवार  और  बच्चों  की  सुरक्षा  चाहता  है  ,  लड़ना  कोई  नहीं  चाहता  l  लेकिन  फिर  भी   झगड़े  होते  हैं ,  समाज  को  अशांत  करने  वाली  घटनाएँ  होती   हैं   l  इससे  ऐसा  प्रतीत  होता  है  कि  यह  सब  करना ,  अपराधिक  कार्य  करना  भी  रोजगार  का  साधन  बन  गया  है  l 
समाज  में  एक  बहुत  बड़ा  वर्ग  ऐसा  है   जो  शराफत  का  नकाब  ओढ़कर  स्वयं  को  बहुत  सभ्य  और  सुसंस्कृत  दिखाना  चाहता  है   लेकिन  अपने  भीतर  की  कालिमा ,  ईर्ष्या , द्वेष , स्वार्थ , लालच  के  कारण  वह  ऐसे   गैरकानूनी  रोजगार  का  निर्माण  कर  देता  है   l 

27 September 2018

WISDOM ------

   इस  संसार  में  हर  व्यक्ति  की  अपनी  भूमिका  होती  है   l  बुद्धिमता  तो  यही  है  कि  काम  पूरा  होते  ही  उससे  विदा  ले  लेनी  चाहिए l    काम   के  बाद  एक  पल  भी  ठहरना  अच्छा  नहीं  है  l 
   विवेकानन्द  कहते  थे  --- " माँ  का  काम  करने  के  बाद  मैं  यहाँ  एक  पल  भी  ठहरना  नहीं  चाहता  l  "  उनका  काम  पूरा  होते  ही   वे  इस  धरती  से  विदा  हो  गए  l  

26 September 2018

WISDOM ---- श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- ' मैं दमन करने वालों का दंड हूँ ' या दमन करने की शक्ति हूँ l

 ' यदि  अन्याय , अनीति , अत्याचार , अनाचार , दुराचार , शोषण , भ्रष्टाचार  का  दमन  किया  जाता  है   तो  दमन  ईश्वरीय  विभूति  के  रूप  में  अलंकृत  होता  है  l  जो  इसे  करने  का  साहस  दिखाते  हैं  , दंड  उसके  हाथों  में   ईश्वरीय  शक्ति  के  रूप  में  शोभित  होता  है  l  '
  मनुष्य  का   अनियंत्रित  और  असंतुलित  आचरण  व्यापक  विनाश  का  कारण  बनता  है  l  अत:  स्रष्टि  का  संतुलन  बनाये  रखने  के  लिए    भगवान  ने  दंड  विधान  की   व्यवस्था  प्रदान   की  है   l   उचित  दंड  न  हो  तो   अनीति  एवं  अनाचरण   अपने  चरम  पर  पहुँच  जायेंगे   l  इसलिए  दंड  को  ईश्वरीय  विभूति  कहा  गया  है   l  

25 September 2018

WISDOM ------

श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  अपना  परिचय  देते  हुए कहते  हैं  कि  को  ---- ' मैं  काल  हूँ  l '  मनुष्य  एक  निश्चित  समय  व  स्थान  पर  जो  कर्म  करता  है  , कभी  न  कभी  उसका  परिणाम  अवश्य  प्रस्तुत  होता  है   l  व्यक्तिगत  जीवन  में  यदि  कर्म  अशुभ  है   तो  काल  रोग , शोक , पीड़ा  व  पतन  बनकर  प्रकट  होता  है   l   यदि  सामूहिक  जीवन  में  अशुभ  कर्म  होता  है  तो  काल  प्राकृतिक  आपदाओं ,  युद्ध  का  रूप  लेकर  आता  है   l
  महाभारत  के  महायुद्ध  में   कुरुक्षेत्र  में  परमेश्वर  स्वयं  दंड  लेकर  प्रकट  हुए   l  वे  अर्जुन  से  कहते हैं  --- तुम  इन  प्रतिपक्षी   योद्धाओं  को  मारो  या  न  मारो  ,  पर  ये  मरेंगे  अवश्य  l  इन्हें  मारने  का  माध्यम  तुम  बनो  या  फिर  कोई और  , इनका  मरना  सुनिश्चित  है   क्योंकि  व्यक्ति  अथवा  समूह  को  कोई  घटनाक्रम  नहीं  मारते,  उसे  मारते  हैं  उसके   कर्म   l 
         भीष्म  एवं  द्रोंण  अपने  व्यक्तिगत   जीवन  में  भले  ही  अच्छे  हों  ,  पर  दुर्योधन  के  अनगिनत  दुष्कर्मों  के   साथ  उनकी  मौन  स्वीकृति  ने    उन्हें  दंड  का  भागीदार  बना  दिया  है   l  यही  स्थिति  अन्यों  की  है   l  कर्मों  का  परिणाम    काल  तय  करता  है   l 

24 September 2018

WISDOM ----- मनुष्य अपनी कमजोरियों के कारण आपस में लड़ता है , धर्म और जाति के कारण नहीं

 इस  संसार  में  एक  ही  धर्म  के  लोगों  के  बीच  भयानक  उपद्रव , हिंसा  एवं  युद्धों  का  लम्बा  इतिहास  रहा  है  l  महाभारत  में   दोनों  पक्ष  के  योद्धा  एक  ही  धर्म  को  मानने  वाले  थे  और  एक  ही  परिवार  के  थे  l   अनेक  यूरोपियन  युद्धों  में   दोनों  पक्ष  के  लोग  ईसाई  थे  l   शिया  और  सुन्नी  आपस  में  लड़ते  हैं  l   इसे  इकाई  स्तर  पर  देखें  तो  एक  ही  परिवार  में  भाई - भाई  में  सम्पति  के  लिए  झगड़ा  होता  है  ,  मुकदमेबाजी  और  हत्या  तक  हो  जाती  है  l  विभिन्न  निजी  और  सरकारी  संस्थानों  में  देखें  तो  एक  ही  धर्म  के  लोग   होंगे ,  तब  भी  कोई  किसी  का  हक़   छीनेगा,  किसी  को  उत्पीडित  करेंगे  ,  षड्यंत्र  रचकर  मुसीबत  में  डालेंगे  l  किसी  परिवार  में  कोई  महिला   के  पति  की  आकस्मिक  मृत्यु  हो  जाये  तो  उसी  के  घर  के  सदस्य   जो  उसी  जाति  व  धर्म  के  हैं   उसकी  सम्पति  हड़प  लेंगे ,  उसे  अति  का  कष्ट  देंगे   l 
            मनुष्य  की  दूसरों  पर  हुकूमत  चलाने  की ,  उन्हें  नीचा  दिखाने  की  प्रवृति  शुरू  से  रही  है   क्योंकि  इससे  उनके  अहंकार   का    पोषण   होता  है  l   इसी   कारण समाज  में  दंगे  और  अशांति  होती  है   l

23 September 2018

WISDOM ------ जीवन को समृद्ध, निष्कलंक एवं पूर्ण बनाने के लिए व्यक्ति को आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर होना चाहिए

  प्राय:  यह  देखने  में  आता  है  कि  समाज  के  कतिपय  गणमान्य  एवं  धनी  कहे  जाने  वाले  व्यक्ति  भी   परावलम्बन  के  शिकार  होते  हैं   I बड़े - बड़े  सेठ  अपने  मुनीमों  के  वश  में  इसलिए  रहते  हैं   क्योंकि  उनमे  कार्य कुशलता  और  वह  वाकपटुता  नहीं  होती   जिसकी  आज  के  व्यापार  जगत  में  आवश्यकता  है  I  इसी  तरह  शासन  में  ,  अनेक  बड़ी  संस्थाओं  में   कई  उच्च अधिकारी   स्वयं  निर्णय  लेने  की  असमर्थता  के   कारण   और   आधुनिक  तकनीक  का  ज्ञान  न  होने  के   कारण  वे  अपने  आधीन  कर्मचारियों   के  आश्रित   रहते  हैं  I  इससे  उनकी  स्वतंत्र  सत्ता   हमेशा  खतरे  में  पड़ी  रहती  है  I
  परावलम्बी  व्यक्ति  के  पास  न  अपना  विवेक  होता  है  और  न  अपनी बुद्धि    इसलिए  किसी  भी  आपातकालीन  स्थिति में   स्वयं  निर्णय  लेने  की  क्षमता  उनमे  नहीं  होती  l  जब  आत्म  निर्णय  का  गुण  नष्ट  हो  जाता  है  तो  पराधीन  व्यक्ति   दीन - हीन  दिखाई  देने  लगता  है  l  महारानी  कैकेई  का  उदाहरण  है  कि  महारानी  होते  हुए  भी   दासी  मंथरा  की  कुबुद्धि  का  सहारा  लिया  l  विवेक  और  चातुर्य  के  अभाव   के  कारण  ही   महारानी  कैकेई  को  कितना  दारुण  दुःख  सहन  करना  पड़ा  l   ऐसा  सामाजिक   परावलम्बन  स्वयं  उस  व्यक्ति  के  लिए   और  सम्पूर्ण  समाज  के  लिए  घातक  होता  है   l

22 September 2018

WISDOM ----- अनीति का प्रतिकार मानवीय गरिमा है

  जब  समाज  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है  तब  अत्याचार  और  अन्याय  छूत  की  बीमारी  की  तरह  फैलने  लगता  है  I   समस्या  तब  विकट  हो  जाती  है  जब  समर्थ  लोग  गिरोह बद्ध  होकर  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  करने  में  कहीं  कोई  कसर  नहीं  रहने  देते    और  पीड़ित   कोई  प्रतिरोध  नहीं  करते  I
    ईश्वर  का  , प्रकृति  का  आक्रोश  तब  उभरता  है  जब  अनाचारी  अपनी  दुष्टता  से  बाज  नहीं  आते  और  सताए  जाने  वाले  कायरता , भीरुता  अपनाकर  टकराने  के  लिए  कटिबद्ध  नहीं  होते  I
  संसार  में  अनाचार  का  अस्तित्व  तो  है  ,  पर  उसके  साथ  ही  यह  भी  विधान  है  कि  सताए  जाने  वाले   बिना   हार - जीत  का  विचार  किये   प्रतिकार  के  लिए  , प्रतिशोध  के  लिए  तैयार  तो   रहें   I  दया , क्षमा  आदि  के  नाम  पर   अनीति  को  बढ़ावा  देते  चलना   सदा  से  अवांछनीय  माना  जाता  रहा  है   I  अनीति  के  प्रतिकार  को  मानवीय  गरिमा  के  साथ  जोड़ा  जाता  रहा  है   I  
  वर्तमान   युग   में   अनीति  और   अत्याचार  से   निपटने  के  लिए    संगठित  होकर   विवेकपूर्ण   ढंग  से   कार्य  करने  की   आवश्यकता  है    I

21 September 2018

WISDOM -----

 अर्नाल्ड  टायनबी  लिखते  हैं ---- "हमारे  कर्म  हमारे  लिए  एक  नैतिक  स्तर  का  बैंक   अकाउन्ट  बनाते  हैं   जिसमे  क्रैडिट  व   डैबिट  का  संतुलन  चलता  रहता  है  I हर  कर्म  के  साथ  ताजी  एंट्री  होती  रहती  है   व  दोनों  खाते  हर  बार  रिन्यू  होते  रहते  हैं  I "  वे  लिखते  हैं  कि---- " बड़ी निराली  व्यवस्था  भारतीय  ऋषियों  की  यह  है   जिसमे  व्यक्ति   गणितीय  सिद्धांत  के  अनुसार   शुभ  कर्म  करते  हुए   अपने  लिए  देवत्व  का  शुभ   मार्ग  चुन  सकता  है   l  "
 एक  स्वचालित  ' कर्म  पुरुषार्थ ' का  चक्र  सतत  चल  रहा  है  I

20 September 2018

WISDOM ---- सच्चा लोकसेवी अपने सिद्धांतों और मर्यादा पर दृढ़ रहता है

  महात्मा  गाँधी  के  जीवन  में  ऐसे  कई   प्रसंग  आये  ,  जब  उन्हें  अपने  सिद्धांतों  की  रक्षा  के  लिए  द्रढ़ता  बरतने  की  आवश्यकता  हुई   l  परन्तु   गांधीजी  बिना  किसी  प्रकार  की   कटुता  व्यक्त  किये  ,  अपने  सिद्धांतों  पर  दृढ़  रहे   l---- उनके  विदेशी  मित्रों  ने  एक  बार  प्रीतिभोज  का  आयोजन  किया   l  उस  समय  गांधीजी  विदेश  में  पढ़  रहे  थे  l  भोज  में  मांस  भी  पकाया  गया   और  परोसा  जाने लगा  ,  तो  उन्होंने  मना करते  हुए  कहा   कि  मैं  इसका  इस्तेमाल  नहीं  करता   l  मित्रों  ने  समझाया  कि  इसमें  क्या  नुकसान  है   I डाक्टर   लोग  तो  इसे  स्वास्थ्य  वर्धक   बताते  हैं  l  गांधीजी  ने  कहा --- " परन्तु  यह  मेरा  व्रत  है  कि  मैं  कभी मांसाहार  नहीं  करूँगा  I "
  मित्र  वाद विवाद  पर  उतर आये   और  तर्क  देने  लगे  l  बहुत  संभव  था  कि  गाँधीजी    भी  वाद विवाद  करने  लगते  I  मित्रों  ने  यह  कहकर  तर्क युद्ध  छेड़ने  का  प्रयास  किया  कि  उस  व्रत  की  क्या  उपयोगिता  जिससे  लाभदायक  कार्यों  को  न  किया  जा  सके  I  तो  गांधीजी  ने  यह  कहकर  विवाद  को  एक  ही   वाक्य  में  समाप्त  कर  दिया  किया  कि----- " इस  समय  मैं  व्रत  की  आवश्यकता , उपयोगिता  का  बखान  नहीं  कर  रहा  हूँ ,  बल्कि  मेरे  लिए   अपनी  माँ  को  दिया  गया  वह  वचन  ही  काफी  है  ,  जिसमे  मैंने  मांस  न  खाने  और  शराब  न  छूने  का  संकल्प  लिया  था   l " 
  गांधीजी  के  मित्र  वहीँ  चुप  रह  गए  I  वहां  सिद्धांत  रक्षा  भी  हो  गई  और  कटुता  भी  उत्पन्न  न  हुई   I

WISDOM ---- करुणा के साथ संकल्प जुड़ना चाहिए

  दुःखियों  को  देखकर  आंसू  बहाने  वाले  तो  ढेरों  हैं  ,  दुःख  को  मिटाने  का ,  समस्या  के  समाधान  का  संकल्प  जरुरी  है   l
 समाज  में  जब  भी  कोई  ह्रदय - विदारक  घटना  घटती  है  ,  अनेक  लोग  --सामान्य  से  लेकर  अनेक  प्रतिष्ठित  लोग  सहानुभूति  जताने ,  आंसू  बहाने पहुँच  जाते  हैं  I जुलूस  निकालते  हैं ,  नारेबाजी  करते  हैं  लेकिन  दुष्टता  को  मिटाने  का  ,  पापियों  के  अंत  का  संकल्प  कोई  नहीं  लेता  I  इस  कारण  दुःखद  घटनाओं  की  पुनरावृति  होती  है   I
 श्री रामचरितमानस  में  एक   प्रकरण  है ,  ऋषियों  की अस्थियों  के  समूह  को  देखकर   भगवान  राम  व्याकुल  हो  गए  l  अरण्यकाण्ड  में  गोस्वामीजी  लिखते  हैं  -----
      अस्थि  समूह  देख  रघुराया  I  पूछी  मुनिन्ह   लागि  अति   दाया  I I
      निसिचर  निकर  सकल  मुनि  खाए  I  सुनि  रघुबीर  नयन  जल  छाए   II
 रघुनाथजी  की  आँखों  में  यह  द्रश्य  देखकर   आंसू  आ  गए  l  वे  द्रवित  हो  उठे   और  तुरंत  उन्होंने  घोषणा  की ----
  निसिचर  हीन   करऊँ  महि  भुज  उठाइ  पन  कीन्ह
 सकल  मुनिन्ह  के  आश्रमहिं  जाइ  जाइ  सुख  दीन्ह  I
    सारी  धरती  को   राक्षसों  से  विहीन  करने  की   उनने  भुजा  उठाकर   प्रण  के  साथ  घोषणा  की  l
  भगवान  राम  की  सच्ची  भक्ति  यही  है  कि  करुणा , दया  को  दिखाकर  ,  सबको  प्रभावित  करके   नहीं  रह  जाना  चाहिए  I   करुणा  संकल्प  के  साथ   जुड़नी  चाहिए   और  फिर  सक्रियता  में  बदलनी  चाहिए  , तभी  उसकी  सार्थकता  है   I

18 September 2018

WISDOM -------

  महर्षि  दयानन्द   फर्रुखाबाद  में  रुके  हुए  थे   ल  एक  व्यक्ति  दाल- चावल  बना  कर  लाया  I  वह  गृहस्थ  था  और  मजदूरी  कर  के  परिवार  का  पालन - पोषण  करता  था   I  स्वामीजी  ने  उसके  हाथ  का  अन्न  जो  वह  बड़ी  श्रद्धा  से  लाया  था  ,  ग्रहण  किया   I  ब्राह्मणों  को  बुरा  लगा   l  वे  बोले  आप  संन्यस्त  हैं  I  इस  हीन  कुल  के  व्यक्ति  के  हाथ   का  भोजन  लेकर  आप  भ्रष्ट  हो  गए   l  स्वामीजी  बोले  ---- " कैसे ,  क्या  अन्न  दूषित  था  ? "  ब्राह्मण  बोले  --- " हाँ ,  आपको  लेना  नहीं  चाहिए  था  I "
  स्वामीजी  बोले ----- " अन्न  दो  प्रकार  से  दूषित  होता  है  -- एक  तो  वह  जो   दूसरों  को  कष्ट  देकर    शोषण  द्वारा  प्राप्त   किया  जाता  है   इ  और  दूसरा  वह  ,  जहाँ  कोई  अभक्ष्य  पदार्थ  उसमे  गिर  जाता  है   इस  व्यक्ति  का  अन्न  तो  दोनों  ही  श्रेणी  में  नहीं  आता  ल इसका  अन्न  परिश्रम  की  कमाई  का  है  ,  फिर  दूषित  कैसे  हुआ  ,  मैं  भ्रष्ट  कैसे  हो  गया   ?  आप  सबका  मन  मलिन  है  ,  इसी  से  आप  दूसरों  की  की  चीजें  मलिन  मानते  हैं   I  मैं  जाति  जन्म  से नहीं ,   कर्म  से  मानता  हूँ  I  भेदभाव  त्याग  कर  सबके  लिए  जीना  सीखना  चाहिए   I

16 September 2018

WISDOM ------ सम्पति का सदुपयोग जरुरी है

' आवश्यकता  से  ज्यादा   एकत्रित  सम्पदा   स्वयं  के  लिए  और  परिवार  के  लिए   पतन  का  कारण  बनती  है   I  '      आज    के  समय  में   भोग - विलास  का  जीवन   जीना  और  उसके  लिए  हर  तरह  के  अनैतिक  प्रयासों  में   निरत  रहना  ही   लोगों  की  मानसिकता  है  I इस  कारण  जीवन  मूल्य  तो  गिरते  ही  हैं  ,  शोषण ,  लूट - खसोट ,   ,  अपराध ,  आर्थिक  विषमता ,  आतंक ,  अपराध ,  लाइलाज  बीमारियाँ    आदि   समस्याएं  उत्पन्न  हो  जाती  हैं 
      एक  शिष्य  ने  गुरु  से  पूछा  ----  "  सम्पति  का  सदुपयोग  न  करने  पर  क्या   होता    है  I "
  गुरु  ने  उत्तर दिया --- वत्स  !  तुमने  रेशम  का  कीड़ा  देखा  है  ?  एक  रेशम  का  कीड़ा  रेशम  इकट्ठी  कर  के  भारी - भरकम  हो  जाता  है   और  अपने  ही  बनाये  जाल  में  जकड़कर  मर  जाता  है  I  उसके  पास  की  जमा  पूंजी   दूसरों  का  जी  ललचाती  है   और  वे  लालची  उसके  ही  जीवन  का  नाश  करते  हैं   I
             धन  का  सदुपयोग  न  करने  वाले  सम्पतिवान   भी  उस  रेशम  के  कीड़े  की  तरह  हैं  ,  जो  स्वयं  तो   आवश्यकता  से  अधिक  सम्पति  का  उपयोग  कर  नहीं  पाते,  परन्तु  इसके  कारण  मात्र  लालचियों  और  दुष्टों  के  भरण - पोषण  का  माध्यम  बनते  हैं   I

15 September 2018

WISDOM ----- बड़े आदमी बढ़ रहे हैं , लेकिन महामानव अब नहीं मिलते

 अब  ऐसे  व्यक्तियों  को  ढूंढ  पाना  बहुत  मुश्किल  है  , जिन्हें  सच्चे  अर्थों  में  मनुष्य  कहा  जा  सके   I  अपराध  तो  अपराध  है  चाहे  छोटा  हो  या बड़ा  I   जो  जितना  ज्ञानवान  है  वो  इस  ढंग  से  अपराध  करेगा
  कि  वह   बच   जाये ,  उसका  कहीं  नाम  भी  न  आये   और  उसके  किये  अपराध  में    सोची   समझी  योजना  के  अनुसार   दूसरा  फंस  जाये   l अब  अपराध   एक  शानदार   कृत्य ,  एक  फैशन     बन  गया  है  ,  इसे  कर  के  अब  कोई  लज्जित  नहीं  होता  ,  बल्कि  अपनी  चतुरता  की  प्रशंसा    पाने  की  आशा  करता  है   और  जो  इसमें  सम्मिलित  नहीं  होता  वह  बुद्धू  और  त्यागने  योग्य  है   l  इसी  वजह  से   समाज  में  अनेक  कठिनाइयाँ  और  समस्याएं  बढ़  गईं  हैं   I  

14 September 2018

WISDOM ------

 मनुष्य  के  व्यक्तित्व  की  पहचान  उसके  ऊँचे  उद्देश्यों एवं  धार्मिक  मूल्यों  के  प्रति  निष्ठां  से  होती  है    प्रतिकूल  परिस्थितियों  में   सच्चे  आदर्शों    के  प्रति  अडिग  निष्ठा  दिखाने  का  साहस  विरले  ही   कर  पाते  है    l   महात्मा  गाँधी  ने     स्वतंत्रता  आंदोलन   में  मूल्यों  को  जीवित  रखा  I  आजादी  के  बाद      अहिंसा और  अपरिग्रह   का  जो  मूल्य  अपनाया   उसे  अंत  तक  जीवित  रखा   l

13 September 2018

WISDOM- --- भजन - उपासना भावनाओं से करें

 भजन - जप - उपासना  का   लाभ  और  आनंद  उन्ही  को   मिलता    है   जो  उसे  अपने  अन्दर  आत्मसात  करते  हैं  ,  ह्रदय  की गहराई  के  साथ  करते  हैं  l  शब्द  कुछ  भी  हों  , लेकिन  यदि  भावनाएं  पवित्र  हैं , सच्ची  हैं   तो  उसका  लाभ  व  आनंद  अवश्य  मिलता  है   l 
   एक  प्रसंग  है ----  एक  बार  गुरु  गोविन्द सिंह  के  शिष्यों  ने   उनसे   पूछा  ---- "  हम  प्रतिदिन    भगवान  का  भजन करते  हैं  , पर  हमें  कोई लाभ  नहीं  होता   " l     गुरु  गोविन्द सिंह  जी  बोले --- "  इस  प्रश्न  का  उत्तर  मैं  कुछ  समय  बाद  दूंगा  l 
  कुछ  दिनों  बाद  उन्होंने  अपने  शिष्यों  को  बुलाकर  कहा ---- " तुम  सभी मिलकर  एक  बड़े  मटके  में  ताड़ी  भरकर  लाओ  और  फिर  उससे  कुल्ला   कर    के  मटका  खाली  कर  दो  l  "   शिष्यों  ने  आज्ञानुसार  वैसा  ही  किया l    पहले   मटके  में  ताड़ी  भरकर  लाये   फिर  उससे  कुल्ला  कर  के  पूरा  मटका  खाली  कर  दिया   और  गुरु  के  पास  पहुंचे   l 
  गुरु  ने  पूछा ---  " क्या  तुमने पूरी   ताड़ी  समाप्त  कर  दी   ? "    शिष्यों  ने  कहा  --- आपकी   आज्ञा  नुसार    हमने  ताड़ी  से  कुल्ला  कर  के  पूरा  मटका  खाली   कर  दिया   l "
  अब  गुरूजी  ने कहा ---- "  "  इतनी  ताड़ी  थी  तुम  लोगों  को  नशा  नहीं  हुआ   l  "
 शिष्यों  को  आश्चर्य  हुआ  ,  वे   बोले  --- "  गुरुदेव  !   हमने  ताड़ी  से  केवल  कुल्ला किया  ,  उसको  गले  से  नीचे   नहीं  उतारा,   तो  नशा  कैसे  होगा   ?  " 
गुरु  गोविन्द सिंह  ने  उनकी  इस  बात से    उनके  प्रश्न  का  उत्तर  देते  हुए  कहा   ---"  शिष्यों  !  तुमने  भगवान  का   भजन  तो  किया  लेकिन   ऊपर - ऊपर  से  ,  उसे  गले  से  नीचे  नहीं   उतारा  l  जब  तक  भगवद  भजन  के  साथ  तुम्हारा  मन  नहीं  जुड़ेगा  ,  तब  तक  तुम्हे  कोई  लाभ  नहीं  होगा  l  "

12 September 2018

WISDOM ---- जो पूर्णतया निस्स्वार्थ है वही सच्चा प्रजापालक हो सकता है

   एक  प्रसंग  है ----  राजा  अश्विनी दत्त  को  अपने  महल ,  धन - सम्पति  व  रानी  से  अत्यंत  मोह  था  l  उसका  यह  मोह  शनै; - शनै:  बढ़ता  ही  जा  रहा  था   और  इस  कारण  उन्होंने  राज कार्य  पर  ध्यान  देना  बंद  कर  दिया  था  l  यह  देखकर  प्रधानमंत्री  बहुत  परेशान  हुए   और  वे  अपनी  चिंता  कुलगुरु  संत  नागानंद  के  समक्ष  रखने  पहुंचे   l  मंत्री  के  अनुरोध  पर   कुलगुरु  राजा  से  मिलने  राजमहल  आये   l    राजा  ने  उनका  भव्य  स्वागत   किया  l  उन्हें  अनेक  उपहार  भी  भेंट  किये  l 
             प्रत्युतर  में   कुलगुरु  ने   राजा  को  एक  कमल  का पुष्प  भेंट  किया   और  कहा  ---- "  राजन  !  तुम्हारा  उपहार  कमल  की  पंखुड़ियों  के  भीतर  है  l  "  राजा  ने  कमल  कि  पंखुड़ियाँ   हटाईं  तो  उन्हें  वहां  एक  भौंरा   मरा   दिखाई  पड़ा  l  राजा  कुलगुरु  के   इस  उपहार  का   अर्थ  समझ  नहीं  पाए  l  उनकी  उत्सुकता  को  भांपकर   कुलगुरु  बोले ---- "  राजन  !  यह  साधारण  भौंरा  नहीं  है  ,  यह  राजभौंरा   है   l   राजभौंरे  में  इतना  सामर्थ्य  होता  है   कि  वह  चाहे  तो  कठोर  लकड़ी  को  छेदकर   निकल  जाये  ,  परन्तु  वही  भौंरा   कमल   पर  आसक्त  हो  जाता  है   तो  उसकी  पंखड़ियों   के  मध्य  फंसकर   अपनी  जान  गँवा  बैठता  है   l  "    राजा  को  कुलगुरु  का  कथन  समझ  में  आ  गया   और  वह  मोह  छोड़कर  प्रजापालन - कर्तव्य   में  जुट  गए  l 

11 September 2018

WISDOM ----- भारतीय संस्कृति का सम्बन्ध संवेदना से है , इस कारण यह 'आध्यात्मिक संस्कृति ' है

   प्रसिद्ध  कवि  इकबाल  ने  कहा  है ---- यूनान , मिस्र  और  रोमा ,  सब  मिट  गए  जहाँ  से  l 
                                                          अब  तक  मगर  है  बाकी,  नाम - ओ--निशाँ  हमारा   l l 
                                                           कुछ  बात  है  कि  हस्ती  मिटती  नहीं  हमारी   l 
                                                            सदियों  रहा   है  दुश्मन , दौर - ए - जहाँ  हमारा  l l 
  भारतीय  संस्कृति  को  मिटाने  के  लिए  बहुतों  ने  प्रयत्न  किये ,  षड्यंत्र  किये   परन्तु  इसे  मिटाया  जा  सकना  संभव  नहीं      क्योंकि     भारतीय  संस्कृति  का आधार    आध्यात्मिक  है  l  इसकी  नींव  ऋषियों  की  तपस्या  की  ऊर्जा  से   रखी  गई  है   l   यही  कारण  है  कि   भारत  के  गुलाम  होने  पर  भी   स्वामी  विवेकानंद   अमेरिका  में  भारतीय  संस्कृति  का  डंका  बजा  सके   l 
 स्वामी  विवेकानंद  कहा  करते  थे ---- आदर्श  को  पकड़ने  के  लिए   एक  सहस्त्र  बार  आगे  बढ़ो   और  यदि  फिर  भी   असफल  हो  जाओ   तो  एक  बार  नया  प्रयास  अवश्य  करो  l  इस  आधार  पर  सफलता  सहज  ही  निश्चित  हो  जाती  है   l  

10 September 2018

WISDOM ---- धर्म का मर्म है ----- अन्याय का प्रतिकार , अनीति का विरोध और आतंक का उन्मूलन

 ऋषियों  ने  ,  आचार्य  ने  कहा  है ---- कर्तव्य  ही  धर्म  है ,  यही  सच्चा  कर्मयोग  है  ,  लेकिन  यह  विवेकपूर्ण  होना  चाहिए   l 
  महाभारत काल  में   भीष्म  पितामह   की  धर्म  पर  गहरी  आस्था  थी ,  वे  समर्थ  और  शक्तिशाली  योद्धा  थे   लेकिन    धर्माचरण   करने  वाले  भीष्म   ने    अत्याचार  करने  वाले ,  पांडवों  के  विरुद्ध  हमेश  षड्यंत्र  रचने  वाले  दुर्योधन  का ,    अधर्म  का  साथ  दिया ,  द्रोपदी  के   चीर   हरण  पर  मूक  दर्शक बन  सिर  झुकाए  बैठे  रहे  l   अधर्म  का  साथ  देकर   न  तो  दुर्योधन  की  रक्षा  कर  सके  और  न  स्वयं  की   l 
         इसी  तरह   कुलगुरु  कृपाचार्य  थे   l  कुलगुरु  का  कर्तव्य  होता  है  --- कुल  में  धर्म  की  प्रतिष्ठा   l  कुल   के   सभी  व्यक्ति  धर्म  का  आचरण  करें ,  शुभ  कर्म  करें  l  लेकिन  धर्म  के  जानकार  होते  हुए  भी  वे    कौरवों  के    अधर्म आचरण   के    मौन  साक्षी  रहे  ,  उनका  साथ  त्यागने  की  हिम्मत  नहीं   जुटा   सके   l 
   इसी  तरह  कर्ण  महान  योद्धा  और  महादानी  था   लेकिन  उसने  भी   मित्र  मोह  में      अधर्म  का  आचरण  करने  वाले  दुर्योधन  का  साथ  दिया   l  महारानी  द्रोपदी  के  चीर - हरण  जैसी  दुर्भाग्य पूर्ण  घटना   को  भी  रोकने  का  प्रयास  उसकी  वीरता  ने  नहीं  किया  ,  वह  भी  अधर्म  के  साथ  खड़ा  रहा   l 
  इन  सभी  महारथियों  का  अत्याचार  व  अन्याय  के  सामने  प्रतिक्रिया विहीन  रहना ,  उन्हें  अधर्म  की  कसौटी  पर  खड़ा  कर  देता  है   l 
  सामान्य  अर्थ  में  पूजा - पाठ ,  कर्मकांड  करने  को  धर्म  कहा  जाता  है   लेकिन  यह  करने   की   और  धर्म  की  सार्थकता   पीड़ा  और  पतन   निवारण  करना ,  सदभाव,  सद्विचार   और  सत्कर्म  करना  है  ,  अत्याचार  और  अन्याय  से  कमजोर  की  रक्षा  करना  है   l   

9 September 2018

WISDOM ----- सुख बाहरी त्याग में नहीं , यह एक आन्तरिक स्थिति है l

 यदि  व्यक्ति  अपने  अन्तस्  को  संवार  ले   तो  किसी  भी  स्थिति  में  सुख  प्राप्त  कर  सकता  है  ,  चाहे  वह  सुविधाओं  में  रहे   अथवा  असुविधा  व  अभावों  में   वह  हर  हालत में  आनंद  की  अनुभूति  कर  सकता  है   l 

8 September 2018

WISDOM ---- इतिहास से हम शिक्षा लें

  भारतीयों  की  आपसी  फूट,  विद्वेष  और  राजनीतिक  बिखराव  के  कारण  यहाँ   विदेशी  आक्रमण  हुए   और   विदेशी  अपनी  वीरता  के  कारण  नहीं   बल्कि   हमारी  आपसी  फूट  के  कारण  सफल  हुए  l  यह  देश  का  दुर्भाग्य  रहा  कि  कई  गद्दार  भी  हुए  जिन्होंने  आक्रमणकारियों  का  साथ  दिया   और  देश  युगों  तक  गुलाम  रहा  l   15 अगस्त  1947  को  देश  आजाद  हुआ  लेकिन  अंग्रेजों  की  फूट  डालो  की   नीति   के  कारण  देश  केवल  राजनीतिक  तौर  पर  ही  नहीं  बंटा  बल्कि   सामाजिक  तौर  पर  भी  बंट  गया   l  जातीय ,  क्षेत्रीय ,   सांप्रदायिक   दीवारें  खड़ी  हो   गईं  जो    भौतिक  और  वैज्ञानिक  प्रगति  के  साथ  बढ़ती   जा  रहीं  हैं  l   स्वार्थ  और  लालच  के  कारण  संवेदना  का  स्रोत  सूख  गया  है  ,  महाभारत जैसी  स्थिति  निर्मित  हो  रही  है   l   विवेक  और  सद्बुद्धि  की  जरुरत  है  l  

7 September 2018

WISDOM ------- आलस्य से बढ़कर अधिक घातक और समीपवर्ती कोई दूसरा नहीं ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आलस्य  मनुष्य  की  सबसे  ज्यादा  घातक  वृति  है  l  आलसी  व्यक्ति  के  अन्दर  कुछ  करने  की  प्रेरणा  नहीं  होती  ,  कुछ  काम  करने  का  उत्साह  नहीं  होता  l  आलस  मन  का  एक  स्वभाव    है  जो  दीखता  मनुष्य  के  व्यवहार  में  है   l  ऐसे  आलसी  व्यक्ति  समाज  पर  बोझ  होते  हैं  l
 ब्रिटिश  लेखक  और  राजनीतिज्ञ   बेंजामिन  डिजरायली  का  इस  बारे  में  कहना  है  कि --- ' काम  से  हमेशा  ख़ुशी  मिले  , यह  जरुरी  नहीं  ,  पर  यह  तय  है  कि  ख़ुशी  बिना  काम  किये   नहीं  मिल  सकती  l '  इसलिए  जिन्दगी  को  बेहोश  करने  वाले    आलस  के  नशे  का  त्याग  कर   जिन्दगी  की  असली  खुशी  की  तलाश  करनी  चाहिए  और  यह  हमें  बिना  काम  किये  नहीं  मिल  सकती  l  काम  कर  के  ही  हम   जिन्दगी  का  असली  सुकून   प्राप्त  कर  सकते  हैं   l  

WISDOM ------ मानसिक गुलामी से आजादी जरुरी है

  केवल  शारीरिक  द्रष्टि  से  आजाद  होना  पर्याप्त  नहीं  है  l  यदि  कोई  व्यक्ति , समाज  अथवा  देश  अपने  को  गुलाम  बनाने  वाले  की  नीतियों पर  चल  रहा  है ,  उनकी  भाषा ,    उनके  तौर - तरीके  और  उनकी संस्कृति  को  अपना  रहा  है  ,  तो  इसका  अर्थ  है  कि  वह  अभी  तक  गुलाम  है  l 
 अंग्रेजों  ने  भारत  में  '  फूट  डालो  और  राज  करो  '  की  नीति  अपनाई  l   उन्होंने  भारत  की  जिन  रियासतों  अथवा  प्रान्तों  पर  विजय  पाई , वह  उन  पर  खुला  आक्रमण  कर  के  अर्जित  नहीं  की  ,  बल्कि  आपस  में  फूट  डालकर   और  बाद  में  किसी  एक  दल  का  पक्ष  लेकर  अपनी  कुटिल  नीति  के  सहारे  अपनी  जड़ें   जमाई  l   फ्रेडरिक जॉन  शीअर  नामक  एक  अंग्रेज   ने   1835  में  अपने  एक  लेख  ' इंडियन  आर्मी ' में  लिखा  था ---- " हिन्दुस्तानियों  में  राष्ट्राभिमान  तो  है  ,  पर  वे  कभी  एक  नहीं  हो  सकते  l  यही  हमारे  साम्राज्य  की  सामर्थ्य  है   l "
 अंग्रेजों  की  भेद  नीति  यानि  की  संगठन  को  विघटन  में  बदलने  की  कुटिल  नीतितीव्र  गति  से  चलती  गई  और  उसी  गति  से  उनका  साम्राज्य  भी  बढ़ता  गया  l   भारत  में  1857  में  हुए  स्वतंत्रता  संग्राम   से  ब्रिटिश  राज  कैसे  बच     गया  ,  इसकी  मीमांसा  सर  जॉन  सीली ने  इस  प्रकार की  है  ----"एक  जाति  के  खिलाफ  दूसरी  जाति  को  लड़ाकर  ही  बहुतांश  में  यह  गदर  मिटाया  गया  l "  जॉन  सीली  ने   अपने  एक  ग्रन्थ  'द  एक्सपैंशन  ऑफ  इंग्लैंड '  में  व्यक्त  किये  l  उन्होंने  आगे  लिखा  है ---- " जब  तक  यहाँ  के  लोग   सरकार  की  आलोचना  करने  और  उसके खिलाफ  बगावत  करने   के  आदी  नहीं  हो  जाते  ,  तब  तक  इंगलैंड  में  बैठकर  मजे  से  हिंदुस्तान  पर  हुकूमत की  जा  सकती  है   लेकिन  यदि  यहाँ  के  लोगों  में  संघर्ष  करने  की  भावना  पैदा  हो  गई  ,  उन्हें  संगठित  होकर  रहना  और संगठित  रहकर  काम  करना  आ  गया   तो उसके  आगे  हमें  अपने  प्रभुत्व  के  कायम  रहने  की  आशा   बिलकुल  छोड़  देनी  चाहिए  l  "
                          जब  तक  जागरूकता  न  हो  पुरानी   आदतें  छूटती नहीं  है   l   युगों  तक  भारतीय  आपस  में   लड़ते  रहे  ,  बिना  जागरूकता  के  आपस  में  लड़ने  की  यह  आदत  कैसे  छूटे   ?

5 September 2018

WISDOM -----

 नवयुवकों  को  स्वार्थ  एवं  ईर्ष्या  से  बचे  रहने  की  सलाह  देते  हुए  स्वामी  विवेकानंद  कहते  हैं ----- "  केवल  वही  व्यक्ति  सब  की  अपेक्षा  उत्तम  रूप  से कार्य  करता  है  ,  जो  पूर्णतया  निस्स्वार्थी  है ,  जिसे  न  तो  धन  की  लालसा  है  ,  न  कीर्ति  की   और  न  एनी  किसी   वस्तु  की  l  मनुष्य  जब  ऐसा  करने  में  समर्थ  हो  जाता  है   तब  वह  भी  एक  बुद्ध  स्तर  का  बन  जाता  है   और  उसके  भीतर  एक  ऐसी  शक्ति  प्रकट  होती  है  ,  जो  संसार  की  अवस्था  को  सम्पूर्ण  रूप  से  परिवर्तित  कर  सकती  है   l  "
  स्वामीजी  कहते  हैं ---- लेकिन  इसके  लिए  तुम   पहले  से  ही  बड़ी - बड़ी  योजनायें  न  बनाओ  ,  धीरे - धीरे  कार्य  प्रारम्भ  करो  ,  जिस  जमीन  पर  खड़े  हो  ,  उसे  अच्छी  तरह  से  पकड़  कर   क्रमशः  ऊँचे  चढ़ने  का  प्रयत्न  करो   l  एकाएक  मंजिल  को  पाने  का  प्रयास  मत  करो   l  '
 उन्होंने कहा --- " यदि  भारत  का  भविष्य  उज्ज्वल  करना  है   तो  इसके  लिए  आवश्यकता  है  संगठन  की ,  शक्ति  संग्रह  की  और  बिखरी  हुई  इच्छा  शक्ति  को  एकत्र  कर  उसमे  समन्वय  लाने  की  l  इसलिए  तुम  सब   एक  मत ,  एक  विचार  के  बन  जाओ  l  '

4 September 2018

WISDOM ----- मन को सशक्त बनाकर प्रतिकूलताओं में भी हम अपना अस्तित्व बनाये रख सकते हैं और स्वस्थ बने रह सकते हैं

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   लिखा  है     ---- " मन  मुख्य   है     और  शरीर  गौण  l  मन   की    समझदारी  से  ही  शरीर  की  अस्त व्यस्तता  दूर  हो  सकती  है  l     शरीर  के  परिपुष्ट  होने  से   मनोविकार  दूर   नहीं  किये  जा  सकते  l  शरीर की  सामर्थ्य  तुच्छ  है  ,   मन की  महान   l   मन  का  शासन शरीर  पर  ही  नहीं ,  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  पर  है  l  "
पुस्तकीय  ज्ञान ,  भाषण ,  सेमिनार  आदि   की  अपनी  उपयोगिता  है   लेकिन   यह  बहिरंग  की  शिक्षा  है  ,  इससे मन  की  शक्ति  को  नहीं  बढाया  जा  सकता   l  भगवान  गीता  में  कहते  हैं  कि  अपने  मनोबल  को  बढ़ाने के  लिए  मनुष्य  को  स्वयं  ही  प्रयास  करना  होगा  l  अपनी  आदतों , कामना , वासना ,  ईर्ष्या , द्वेष  आदि  विकार ,  जो  मनुष्य  को  पतन  की  और  ले  जाते  हैं  ,  इन्ही  विकारों  से  स्वयं  को  बचाना  होगा  l  
         जिनका  भोगवादी  चिंतन  हैं  वे  कहते  हैं ---- परिस्थितियां  ठीक  कर  दो ,  मन  स्वत:  ही  ठीक  हो  जायेगा  l  यदि  ऐसा  होता  तो  वे  देश  जहाँ  सारी  भौतिक  सुख  सुविधाएँ  हैं  ,  अनुकूल  वातावरण  है ,  स्वच्छता  है ,  वहां  लोगों  का  मन  इतना  अशांत  क्यों  है  ?  इतने  मनोरोग ,  डिप्रेशन  के  रोगी  क्यों  बढ़  रहे  हैं   ?      चाहे  कितने  भी  अनुकूल  साधन  हमें  जुटाकर  दे  दो  ,  लेकिन  यदि   हमारी  मन:  स्थिति  कमजोर  है   तो  इनसे  कुछ  भी  लाभ  न  होगा  l    ये  सब  सुख सुविधाएँ  कमजोर  मन: स्थिति  के  लोगों  को  अपयश  और  वासनात्मक  जीवन  की  और  धकेल  देंगी   l 
 हमारा  मन  ही  हमारा  मित्र  है  ,  अपने  आपको  नीचे  नहीं  गिरने  देना  चाहिए  l  

3 September 2018

WISDOM ---- ईश्वर हमारे सामने हों तब भी मनुष्य अपने अज्ञान के कारण उन्हें पहचान नहीं पाता

 मनुष्य  देह  धारण  कर   ईश्वर  धरती  पर  आते  हैं  लेकिन  मनुष्य   अपने  स्वार्थ ,  अहंकार  और  अपने  ही  संसार  में  इस  तरह  डूबा  रहता  है  कि  वह  उन्हें  पहचान  नहीं  पाता  l   बड़ी - बड़ी  अवतारी  लीलाएं  करने  के  बाद  भी  लोग   भगवान  श्रीकृष्ण  को    समझ  नहीं  पाए   l  दुर्योधन  हो  ,  शिशुपाल  हो  या  धृतराष्ट्र   सभी  उन्हें  मनुष्य  भाव   में  ही  मानते  रहे   l  किसी  ने  उन्हें   यादव पुत्र  कहा ,  किसी  ने  ग्वाला ,  किसी  ने  मायाजाल  फ़ैलाने  वाला  कहा  l   दुर्योधन  ने  तो  संधि  के  लिए  गए   श्रीकृष्ण  के  लिए  सारा  जाल  ही  बुन  दिया  था  कि  यहीं  इस  ग्वाले  के  बेटे  को  खत्म  कर  दिया  जाये  l  भगवान  ने  जब   अपना   विराट   रूप  दिखाया ---  ' हाँ   दुर्योधन  बाँध  मुझे ,  जंजीर  बढ़ा  कर  साध  मुझे
                            यह  देख गगन  मुझमे  लय  है ,  यह  देख  पवन  मुझमे  लय ----------
 विराट  रूप  को  भी  अहंकारी  दुर्योधन  ने  मायाजाल  कहा   l  बाद  में  जब   थोड़ा  होश  आया   तो  कहता  है --- जानामि  धर्म  न  च  मे  प्रवृति  ,  जानामि  अधर्म  न  च  मे  निवृति  l
 दुर्योधन ने  कहा --- मैं  धर्म  को  जानता  हूँ  किन्तु  उस   ओर  मेरी  प्रवृति  नहीं  है  ,  मैं  अधर्म  को  भी  जानता  हूँ  पर  उससे  मैं  मुक्त  नहीं  हो  पा  रहा  हूँ l l 

  अज्ञानी  ऐसा  ही  होता  है    l 

2 September 2018

WISDOM ----- संत कबीर --- मानव - मात्र एक समान

  dchj  dk /keZ çpkj vkpj.k “kqf)] yksd dY;k.k] lkEçnkf;d ln~Hkko rFkk nq’ço`fr mUewyu ij voyfEcr Fkk A vuq;kf;;ksa us mudh thoup;kZ ns[kh A jkr dks diM+k cquuk] lcsjs ls çpkj&lRlax esa tqV tkuk] Hktu os dc djrs gksaxs \ Hktu fd;s fcuk lar dSls \
dchj diM+k cqurs&cqurs jkeuke jVrs Fks] yksxksa ij mUgksus ;FkkFkZrkoknh O;aX; dlrs gq, dgk &   ^ dchj eu fueZy Hk;k tSls xaxk uhj A
          ihNS yxs gfj fQjSa dgr dchj dchj 
          dchj ekyk u tiksa ftºok dgks u jke
          lqfeju esjk gfj djsa eSa ikÅ foJke  AA
dchj lPps ijekFkhZ Fks A os vius lq[k&nq%[k] gkfu&ykHk dh ijokg u djds euq’; ek= ds fy, LokHkkfod /kkfeZd fl)kUrksa dk çpkj djrs jgs A dchj fn[kkoVh /keZ&deZ] iwtk&ikB vkSj deZdkaM ds fojks/kh Fks] yksxksa dks lPpfj=rk rFkk uSfrdrk dk mins”k nsrs Fks A        etgc
vkSj tkfr ds uke ij foHkkftr lekt dks os çse dk ikB i<+kus dh dksf”k”k djrs jgs lHkh er ,oa iaFkksa ds chp leUo; LFkkfir djus dk vk/kkj mUgksus çse dks gh cuk;k A muds Loj Fks &
         iksFkh if<+&if<+ tx eqvk] iafMr Hk;k u dks; A
         <kbZ vk[kj çse dk] i<+s lks iafMr gks;  A
  कबीर  की  ख्याति  चारों  ओर  सिद्ध पुरुष की थी ] एक शिष्य ने पूछा --- आप जब साधारण थे तब कपड़ा बुनना ठीक था ] पर अब आप एक सिद्ध पुरुष हैं ] निर्वाह की कमी नहीं फिर कपड़ा क्यों बुनते हैं \ कबीर ने सरल भाव से कहा --- पहले मैं पेट पालने के लिए बुनता था ] पर अब मैं जन समाज में समाए भगवान का तन ढकने और अपना मनोयोग साधने के लिए बुनता हूँ   
 
 
  

1 September 2018

WISDOM ----- चाणक्य और कूटनीति

  चाणक्य  का  नाम  कूटनीति  के  लिए  विश्व विख्यात  है  l   एक  बार  एक  राजा  उनसे  मिलने  पहुंचे  और   राजनीति  से  संबंधित  प्रश्न  करने  लगे  l  उन्होंने  पूछा ---- " कोई  राज्य कैसे  अपराजित   रह  सकता
 है  ?"  चाणक्य  ने  उत्तर  दिया  ---- " चरित्र  बल  से  l  यदि  शासन  करने  वाले  का   चरित्र  श्रेष्ठ  होगा   तो  उसकी  कही  गई   बातों  का  प्रभाव  पड़ेगा  ,  अन्यथा   राजपाट  की  लिप्सा  वाले  लोग   उसके  आसपास   जम  जायेंगे  और  कुराज  प्रारंभ  हो  जायेगा   l  " 
  राजा  ने  आगे  पूछा ---- "  शासन   सँभालने  वाले  में   क्या  गुण  होने  चाहिएं  ? "
 चाणक्य  बोले  ---- " उनमे  आपस  में   मतभेद   नहीं  होना   चाहिए   और  यदि  हो ,  तो  दीखना  नहीं  चाहिए  l  उनमे  प्रजा  के  दुःख - दरद  का  भान ,  मित्र - शत्रु  का  बोध   और  राष्ट्रीयता  की   भावना  होनी  चाहिए   l   यही  गुण  किसी  भी  शासन  को  स्थायित्व  प्रदान  करते  हैं   l