पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----' मनुष्य के असंतोष का कारण ईर्ष्या है l यह मानवीय स्वभाव की विकृति है , ईर्ष्यालु व्यक्ति को दूसरे की तरक्की रास नहीं आती l " महाभारत ' ईर्ष्या का ही दुष्परिणाम था l दुर्योधन के मन में बचपन से ही पांडवों के प्रति ईर्ष्या का बीज था , वह पांडवों की योग्यता , उनकी ख़ुशी से जलता था l उसे तो हस्तिनापुर का बना - बनाया राज्य मिला , पांडवों को खांडव वन का क्षेत्र मिला , जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से इंद्रप्रस्थ बनाया l वहां का वैभव देखकर दुर्योधन जल भुन गया और शकुनि के साथ मिलकर छल - कपट , षड्यंत्र से पांडवों को वन में भेज दिया उनके हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें सुई की नोक बराबर भूमि देने से मना कर दिया l ईर्ष्या - द्वेष जैसी मानसिक विकृतियों से ग्रस्त व्यक्ति हर युग में रहे हैं l इन्हे सुधारा नहीं जा सकता क्योंकि इन्हे जो मिला है उसकी उन्हें कद्र नहीं होती और दूसरे को थोड़ी सी ख़ुशी भी मिल जाये वो उनसे सहन नहीं होती l लगभग हर व्यक्ति का अपने जीवन काल में ऐसे ईर्ष्यालु लोगों से पाला पड़ता है , ऐसे लोगों द्वारा समय - समय पर किए जाने वाले आघातों के बीच कैसे तनाव रहित रहा जाये इसके लिए ' जीवन जीने की कला ' का ज्ञान जरुरी है l