ऋषि का कहना है ---- अनीति का प्रतिकार करने के लिए जब अहिंसा समर्थ न हो तो हिंसा भी अपनाई जा सकती है l अन्याय के विरुद्ध क्रुद्ध होना मानवता का चिन्ह है l यदि अन्याय को सहन करते रहा जायेगा तो इससे अनीति बढ़ेगी और इस सुन्दर संसार में अशान्ति उत्पन्न होगी l स्वार्थ और अन्याय के लिए आक्रमण वर्जित है लेकिन आत्मरक्षा और अनाचार की रोकथाम के लिए हिंसा अपनानी पड़े तो उसे अनुचित नहीं माना जा सकता l आवश्यकता पड़ने पर कांटे से काँटा निकालना , विष से विष मारने की नीति उचित कही जाती है l
सज्जनता और दुष्टता की अति कहीं भी नहीं होनी चाहिए l
सज्जनता और दुष्टता की अति कहीं भी नहीं होनी चाहिए l