मनुष्य के अहंकार और दूसरों पर अपनी हुकूमत जताने की चरम सीमा ' युद्ध ' है l अपनी शक्ति की धाक जमाने के लिए ही युद्ध होता है l रामायण और महाभारत काल में जो अस्त्र - शस्त्र थे उन्हें मन्त्रों से सिद्ध किया जाता था l अनेक अस्त्रों के साथ यह शर्त जुड़ी थी कि किसी निर्दोष पर उनका प्रयोग न किया जाये , यदि कोई ऐसा करता है तो वह अस्त्र पलटकर प्रयोग करने वाले के ही प्राण ले लेगा l किसी भी युद्ध में निर्दोष प्राणियों , बच्चों , महिलाओं की हत्या करना और पर्यावरण को प्रदूषित करने को सहमति नहीं दी गई है l जिसने ऐसा किया उसे स्वयं भगवान ने दंड दिया l महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले ही भगवान श्रीकृष्ण ने प्रतिज्ञा की थी कि वे युद्ध में अस्त्र - शस्त्र नहीं उठाएंगे l जब युद्ध समाप्त हो गया तब रात्रि के समय जब सब शिविर में सो रहे थे तब द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने शिविर में आग लगा दी और द्रोपदी के अबोध पांच पुत्र जो निद्रा में थे उनका वध कर दिया l इतना ही नहीं उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर लक्ष्य कर के ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जिससे पांडवों का वंश ही समाप्त हो जाये l भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की लेकिन अश्वत्थामा के इस दुष्कृत्य को क्षमा नहीं किया l अश्वत्थामा के मस्तक पर मणि चमकती थी , भगवान ने भीम से कहा -- इसकी यह मणि निकाल दो l जिससे उस स्थान पर कभी न ठीक होने वाला घाव हो गया l इस घाव को लेकर जिससे मवाद रिसता था , अश्वत्थामा न जाने कितने वर्षों से भटक रहा है l यह प्रसंग उन लोगों को जागरूक करने के लिए है जो युद्ध हो या कोई अन्य परिस्थिति हो बच्चों को सताते हैं , अमानुषिक व्यवहार करते हैं l और अनेक सब जानकर भी अनजान बने रहते हैं l हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है l प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है l