21 December 2017

WISDOM ------ तृष्णा का अंत नहीं होता

    आचार्य  शंकर  एक  गाँव  में   शिव  मंदिर  में  ठहरे  थे  l  उस  गाँव  के  एक  वृद्ध  सज्जन  उनसे  मिले  आये  l   आचार्य  ने   उनकी   ओर  देखा  --- झुकी  हुई  कमर ,  दंतविहीन  मुख ,  शरीर  भी  अति   कमजोर ,  फिर  भी  उन्होंने  अपने  कांपते   हाथों  में  एक   पुस्तक   पकड़ी  हुई  थी   l  उसने  कहा --- ' आचार्य  1  आप  परम  विद्वान  हैं  , मुझे  व्याकरण  का  ज्ञान  दें  l "  आचार्य  ने  कहा --- ' " इस  आयु  में   सीखने  की  इच्छा  प्रशंसनीय  है  l   परन्तु  यदि  आपको  ज्ञान  पाना  है  ---- '  वह  वृद्ध  कहने  लगा ---- "  मैं  व्याकरण  सीखूंगा , फिर  शास्त्रों  का  अध्ययन  करूँगा  l  पंडित ,  फिर  महा पंडित  बनूँगा  l    शास्त्रार्थ  में  विजेता  होने  पर  मेरा  सम्मान  होगा  l  लोग  मुझे  तर्क शिरोमणि ,  ज्ञानी वृद्ध ,  महा महोपाध्याय   कहेंगे  l '
   इस   कमजोर ,  कांपते  हुए  वृद्ध  की  मनोदशा  पर  आचार्य  को  करुणा  हो  आई  ,  साथ  ही  उनमे  रोष  भी  उभरा  l   उन्होंने  कहा --- "  इतनी  आयु  होने  पर  भी  तुम्हारी   महत्वाकांक्षा ,  तृष्णा  न  छूटी  l  ज्ञान  शब्दों  में  नहीं  ,  अहंकार  के  पोषण  में  नहीं   बल्कि  अहंकार  के  विनाश  में  है  l  काल  ने  तुम्हारी  आयु  को  समाप्त  कर  दिया ,  अब  मरण  समीप  आने  पर   यह  व्याकरण  काम  नहीं  आएगा   l  अब  तुम   गोविन्द  का  भजन  करो  l  भक्ति  से  ही  अहंकार  का  विनाश  होगा  l  "