31 January 2024

WISDOM -----

      पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  नियमितता  ही  जीवन  है  l   सूर्य  एक  नियमितता  लिए  हुए   उदय  एवं  अस्त  होता  है  l   पृथ्वी  , चंद्रमा  गृह , तारे   सभी  निश्चित  गति  से   सुसंचालित  हैं  l कीड़े -मकोड़ों  और  पक्षियों  में   यह  विशेषता  पाई  जाती  है  कि   वे  अपने  भीतर  की  किसी  अज्ञात  घड़ी  के  मार्गदर्शन  से   अपनी  गतिविधियाँ  व्यवस्थित   रखते  हैं   l  मुर्गा  समय  पर  बांग  देता  है  , चमगादड़  रात  को  ही  उड़ता  है  l "    प्रकृति   के  नियम  इतने  अटल  हैं   कि  वे  किसी  देवता , और  ईश्वर  के  लिए  भी  नहीं  बदलते  l    दीपावली  के  संबंध  में  कथा  है ----  जब  14 वर्ष  की  अवधि  समाप्त  कर   भगवान  राम  वन  से  अयोध्या  लौटे   थे  , तब  उस  दिन  अमावस्या  की  रात्रि  थी  l  भरत  ने  सूर्य  से  प्रार्थना  की  कि  मेरे  भाई   14  वर्ष  बाद  घर  आ  रहे  हैं  ,  तुम  रात्रि  में  प्रकाश  कर  दो   l  पर  सूर्य  नियम  से  बंधे  थे  , उन्होंने  मना  कर  दिया  कि  मैं  नियम  के विरुद्ध  कुछ  नहीं  कर  सकता  l   फिर  उन्होंने  चंद्रमा  से  प्रार्थना  की  कि  तुम  ही   प्रकाशित  हो  जाओ  ,  पर  चंद्रमा  भी  विवश  थे  l  प्रकृति  के  नियम  को  बदलने  का  साहस  उनमें  भी  नहीं  था  , इस  विवशता  पर  उनकी  आँखों   में  आँसू  आ  गए  l  आँसू  गिरने  से  मिटटी  गीली  हो  गई  l  गीली  मिटटी  ने  कहा --- " भरत  , रो  मत  , गीली  मिटटी  के  दीपक  बना   और  घी  के  दीप  जलाकर  भाई  राम  का  स्वागत  कर   l '  और  कहते  हैं   उन  दीपों  के  प्रकाश  को  देखकर   आकाश  के  सूर्य  और  चन्द्र  भी  लज्जित  हो  गए  l    मनुष्य  भी  यदि  प्रकृति  के  नियमों  के  अनुसार  चले  तो  अपने  जीवन  को  प्रकाशित  करने  की  अपार  संभावनाएं  हैं  l 

30 January 2024

WISDOM -----

   तुलसीदास जी  ने  कहा  है --- कर्म प्रधान  विश्व  करि  राखा  l  जो  जस   करहि   सो  तस  फल  चाखा  l                पंडित  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' बोओ  और  काटो  '  का  सिद्धांत  सारी  प्रकृति  में  देखने  को  मिलता  है  l  बबूल  का   बीज   बोकर  कोई  आम  नहीं  खा  सकता  l '    यह  कर्म फल  कभी  तो  तुरंत   इसी  जन्म  में  मिल  जाता  है  ,  परन्तु   कभी  ऐसा  होता  है  कि  दुष्ट  कर्म  करने  वाले   तो  सुखी  और  संपन्न  दिखाई  देते  हैं   तथा  त्यागी -तपस्वी  दुःखी  होते  हैं   तो  विश्वास  डगमगा  जाता  है  l  मनुष्य  सोचता  है  कि    जब  दुष्ट  व्यक्ति  आराम  का  जीवन  जीते  हैं   और  सज्जन  कष्ट  पा  रहे  हैं  तो  फिर  त्याग -तपस्या  का  जीवन  क्यों  जिएं  ?  यह  भावना  मनुष्य  को  उद्दंड  और  नास्तिक  बना  देती  है  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- यदि  झूठ  बोलते  ही  मनुष्य  की  जीभ  कटकर   गिर  जाती  ,  चोरी  करते  ही  हाथ  कट  जाते   तो  प्रत्येक  व्यक्ति  दुष्कर्म  करने  से  डरता  l  परन्तु  जब  कर्मों  का  फल  दूसरे  किसी  जन्म  में  मिलता  है  तो  मनुष्य  आस्थाहीन  हो  जाता  है  l  लेकिन  यह  निश्चित  है  ---- ईश्वर  के  घर  देर  है  , अंधेर  नहीं  l  ----- एक  स्त्री  नि:संतान  थी  l  किसी  तांत्रिक  ने  उसे  बताया  कि   यदि  वह  किसी  बच्चे  की  बली  दे  देगी   तो  उसके  संतान  होगी  l  उसने  दूर  गाँव  के  एक  गरीब  बच्चे  को  मरवाकर  गड़वा  दिया    और  ईश्वर  की  लीला  ऐसी  कि  उसके  दो  सुन्दर  लड़के  हुए  ,  बहुत  होनहार  थे  l  उस  स्त्री  के  क्रम  का  जिन्हें  पता  था  ,  वे  सब   यही  कहते  कि  देखो  इस   औरत  ने  कितना  नीच  कर्म  किया   और  भगवान  ने  इसको  सजा  देने  के  बदले   दो -दो  बेटे  दिए  l  ईश्वर  के  यहाँ  अंधेर  है  !  बच्चे  बड़े  हुए , बहुत  सुन्दर , पढ़ने   में  होशियार  ,  लेकिन  एक  दिन  दोनों  नदी  में  नहा    रहे  थे  ,  अचानक  एक  का  पैर  फिसला  ,  दूसरा  उसे  बचाने  के  लिए   आगे  बढ़ा   तो  वह  भी  संभल  नहीं  सका   और  दोनों  नदी  में  डूब  गए  l  अब  वह  स्त्री  रो -रोकर  सबसे  यही  कह  रही  थी   कि  भगवान  ने  मेरे  पाप  की  सजा  मुझे  दे  दी  l  ईश्वर  के  यहाँ  देर  है , अंधेर  नहीं  l  

29 January 2024

WISDOM

   यह  संसार  कर्मफल  विधान  से  चल  रहा  है  l  मनुष्य  जैसे  कर्म  करता  है , वैसा  ही  फल  उसे  मिलता  है  l  यह  ईश्वर  निश्चित  करते  हैं  कि  हमें  हमारे  द्वारा  किए  गए  अच्छे -बुरे  कर्मों  का  फल  इसी  जन्म  में  मिलेगा   या  अगले  किसी  जन्म  में  !  काल  की  गति  को  कोई  नहीं   जानता  l  इस  संसार  में  हमारे  जितने  भी  रिश्ते -नाते  हैं  , जिनके  मोह  में  हम  फँसे  हैं  ,  वे  हमारे  ही  कर्म  हैं  जो  विभिन्न  रिश्तों , सहकर्मी , मित्र   आदि  विभिन्न  रूपों  में  हमारे  सामने  हैं  l   जो  किसी  न  किसी  तरह  से   अपना  कर्ज  वसूलने  आए  हैं    या  अपना  कर्ज  चुकाने  आए  हैं  l  यदि  हम  जीवन  में  मिलने  वाले  सुख -दुःख  , अपने  और  परायों  से  मिलने  वाले  कष्ट , पीड़ा ,  आनंद   आदि  विभिन्न   अनुभूतियों  को  इस  ' ऋण  व्यवस्था  '  की  द्रष्टि  से  देखें , समझे  तो  मन  विचलित  नहीं  होगा  , तनाव  नहीं  होगा  , जीवन  यात्रा  सरल  हो  जाएगी   l   आचार्य श्री  का  कहना  है --- 'इस  संसार  में  यही  लेन -देन  चलता  है   l  कभी  कोई  पिता  बनकर  अयोग्य  पुत्र  का  कर्ज  चुकाता  है  ,  कभी  कोई  सुयोग्य  पुत्र  पिता  का  कर्ज  चुकता  है  l  यह  कर्ज  केवल  मनुष्य  रूप  में  ही  नहीं  ,  कभी -कभी  पशु -पक्षी  बनकर , बैल , कुत्ता   बनकर  भी  कर्ज  चुकाना   पड़ता  है  l    एक  कथा  है  ------ एक  राजा  के  संतान  तो  होती  थी  , परन्तु   एक -दो   साल  की  होकर  मर  जाती  थी  l  जब  उसके  पांचवें  पुत्र  का  जन्म  हुआ  तो  ज्योतिषी  को  बुलाकर  उसकी  जन्मपत्री  दिखाई  l   ज्योतिषी   ने  कहा ---- " महाराज  !  अब  तक  आपके  जो  पुत्र  हुए  हैं  , वे  सब   आपसे  अपना  कर्ज  वसूलने  आए  थे  ,  और  साल  दो  साल  में  अपना  कर्ज   लेकर  चले  गए  ,  किन्तु  आपका  यह  पुत्र   अपना  कर्ज  चुकाने  आया  है  ,  इसलिए  आप  इसे  कोई  कार्य  न  करने  दें  , जिससे  यह  अपना  कर्ज  न  चुका  सके   तो  यह  आपके  साथ  तब  तक  रहेगा  ,  जब  तक  कर्ज  न  चुका  दे  l  यह  सुनकर  राजा   अपने  पुत्र  पर  दिल  खोलकर   पैसा  खर्च  करने  लगा  , जिससे  वह  और  अधिक  कर्जदार  हो  जाये  l  जब  वह  पंद्रह  वर्ष  का  हुआ   तो  राज कर्मचारियों   के  साथ  रथ  पर  बैठकर  घूमने  जा  रहा  था   तो  उसने  देखा   रास्ते  में  एक  व्यक्ति  बेहोश  पड़ा  है  , उसने  रथ   रोककर    उस  व्यक्ति  को  उठाया   और  रथ  पर  बैठाकर  उसे   उसके  घर  पहुँचाया    l  वह  एक  सेठ  का  बेटा  था  , सेठ  बहुत  खुश  हुआ  और  उसने  राजकुमार  के  गले  में  मोतियों  की  माला  पहना  दी  l  राजकुमार  ने  बहुत  मना  किया  लेकिन  सेठ  ने  कहा  -- " तुमने  जो  उपकार  किया  है  उसका  बदला  तो  मैं  नहीं  चुका  सकता  , तुम  इसे  स्वीकार  कर  लो  l "  महल  आकर  राजकुमार  ने  वह  माला  अपनी  माँ  को  दी  और   खाना  खाकर  सोया  तो  सोता  ही  रह  गया  l  घर  में  हाहाकार  मच  गया  l  ज्योतिषी  को  बुलाया   और  कहा --- "  तुम्हारी  विद्या  तो  झूठी  हो  गई  मैंने  तो  इससे  कोई  धन  नहीं  लिया  l "  तब  तक  रानी  ने  वह  मोतियों  की  माला  लाकर  दी   और  बताया  कि  यह  उसे  किसी  सेठ  ने  दी  थी  l  ज्योतिषी  ने  कहा  --- "  देखिए  महाराज  !  ज्योतिष  विद्या   झूठी  नहीं  है  l  इसे  आपका  कर्ज  तो  चुकाना  ही  था  ,  साथ  ही  उस  सेठ  से  कर्ज  लेना  भी  था  l   सेठ  से  अपना  कर्ज  लेकर   तथा  आपसे  कर्जमुक्त  होकर  वह  चला  गया  l "  राजा  को  यह  अटल  सत्य  समझ  में  आ  गया   कि  जब  तक  कर्म  बंधन  है  तभी  तक  साथ  है  l  जैसे  ही  कर्मबंधन  समाप्त  हुआ  फिर  कोई  एक  पल  भी  नहीं  रुकता  l  

28 January 2024

WISDOM ------

   लघु  कथा  के  माध्यम  से  यह   बताया  गया  है   कि  लोभ , मोह  और  अहंकार  से  ग्रस्त  व्यक्ति  कैसे  चक्रव्यूह  में  फंसा  रहता  है  , कभी  मुक्त  नहीं  हो  पाता  l ----- 1 .  मोह ----  मोह  कभी  छूटता  नहीं , मृत्यु  के  बाद  शरीर  से  मोह  बना  रहता  है  l  कभी -कभी  किसी को  गहरा  आघात  पहुँचता  है , कोई  चोट  ह्रदय  पर  पहुँचती  है  तो उसका  मोह   छूट  जाता  है  -----  राजा  भर्तहरी  को  किसी  साधु  ने  अमरफल  दिया  l  राजा  को  अपनी  रानी  से  बहुत  प्रेम  था   सो  उन्होंने  वह  फल  अपनी  रानी  को  दे  दिया  l  रानी  एक  साधु  को  चाहती  थी   इसलिए  उसने  वह  फल  साधु  को  दे  दिया  l  साधु  ने  उस  फल  को  एक  नर्तकी  को  दे  दिया  l  नर्तकी  ने  सोचा  कि  वह  इस  फल  का  क्या  करेगी  , उसने  वह  फल  राजा  को  दे  दिया  l  राजा  को  जब  सब  बात  का  पता  चला  तो  उसे  बहुत  ग्लानि  हुई   और  उसने  राजपाट  छोड़कर  संन्यास  ले  लिया  l                                                                    2 . अहंकार ---- अहंकार  के  वशीभूत  होकर  कार्य  करने  वालों  को   अपने  कर्म  का  फल  मिलता  है ---- एक  कथावाचक  पंडितजी  बहुत  अच्छी  कथा  कहते  थे   l  गाँव  के  सभी  लोग  कथा  सुनने  आते  थे  l  एक  व्यक्ति   श्यामलाल   बहुत  सरल  स्वभाव  का  था   और  कार्य  में  व्यस्त  रहने  के  कारण  कथा  सुनने  नहीं  आता  था  l  लोगों  ने  पंडितजी  से  शिकायत  की  कि  श्यामलाल  बहुत  घमंडी  है  कथा  सुनने  नहीं  आता  है  l    एक  दिन  श्यामलाल  पंडित जी  को  निमंत्रण  देने  गया   तो  पंडित जी  ने  क्रोध  करते  हुए  कहा ----" मैं  चल  सकता  हूँ  ,  यदि  तुम  मेरी  डोली  को  कंधे  पर  उठाकर  ले  चलो  l "  श्यामलाल  ने  कहा ---- " यह  तो  मेरा  सौभाग्य  होगा  l "  और  वह   उनकी  डोली   अपने  कंधे  पर  उठाकर  ले  आया   और  उन्हें  भोजन  कराया  l  दोनों की  मृत्यु  हुई  तो  श्यामलाल  तो   अगले  जन्म  में  राजा  बना   और  पंडितजी   हाथी  बने  l   एक  दिन  हाथी को  अपने  पूर्व  कंम  की   याद  आ  गई  कि  वह  तो  पंडित  था   l  अब  वह  बिगाड़  गया   और  राजा  को  बैठने  नहीं  दिया  l  राजा  के  यहाँ  एक  सिद्ध  ज्योतिषी   संयोग  से  आए  , उन्होंने  राजा  की  बात  सुनी  l  वे  हाथी  के पास  गए   और  बोले ---- " मूर्ख  ,  पहला  जन्म  तो  अहंकार   में  बिगाड़  लिया   l  अब  क्या  चाहता  है  ?  इस  जन्म  को  भी  बरबाद  करेगा  l   हाथी    को  समझ  आ  गया   < वह  अहंकार  छोड़कर  अपने  काम  पर  लग  गया  l 

26 January 2024

WISDOM -----

  हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीने  की  शिक्षा  देते  हैं  l  इनके  विभिन्न  प्रसंग  हमें  बताते  हैं   कि   मनुष्य   की  मानसिक  कमजोरियां ,  उसके  भीतर  छिपी  हुई  बुराइयाँ   उसे  गुलाम   बनाती    हैं  l  ईर्ष्या , द्वेष , लालच , कामना , वासना , अति  महत्वाकांक्षा  , अहंकार  --- ये  सब  ऐसी  बुराइयाँ  हैं   जो  व्यक्ति  को  गुलाम   बनने    पर  विवश  कर  देती  हैं ,  व्यक्ति  कितना  ही  धन -संपन्न  हो  ,  कितने  ही  ऊँचे  पद  पर  हो  ,  इन  बुराइयों  की  वजह  से  उसे  कहीं  न  कहीं  अपने  स्वाभिमान  को  खोना  पड़ता  है  l  रावण   प्रकांड   पंडित   था  ,  उसके  पास  सोने  की  लंका  थी  , काल  तक  को  उसने  बंदी  बना  लिया  था   लेकिन   महत्वाकांक्षा , अहंकार  और  सीताजी  को  पाने  की  तीव्र  लालसा  के  कारण  कटोरा  लेकर , वेश  बदलकर   भिखारी  बन  गया  , और  छुपते -छुपाते   चला  , कहीं  कोई  देख  न  ले  l   दुर्योधन  के  पास  भी  सब  कुछ  था   लेकिन  ईर्ष्या  और  अति  महत्वाकांक्षा  ने  उसे  षड्यंत्रकारी  बना  दिया  ,  उसकी  दुष्प्रवृत्तियों  ने  उसकी  बुद्धि  हर  ली  l  अपनी  पतिव्रता  माँ  की  पवित्र   ऊर्जा   से  अपने  शरीर  को  फौलाद  बनाने  के  लिए  निर्वस्त्र  चल  दिया  l  यह  सब  प्रसंग  इस  बात  का  संकेत  करते  हैं  कि    जब  ये  मानसिक  कमजोरियां  व्यक्ति  पर  बुरी  तरह  हावी  हो    जाती  हैं   तब  व्यक्ति  स्वयं  ही  अपनी  असलियत  संसार  को  बता  देता  है  l  रावण  अनेक  गुणों  से  संपन्न  था   लेकिन  उसने   सीता -हरण  कर  के  अपनी  राक्षसी  प्रवृत्ति  पर  स्वयं  ही  मोहर  लगा  दी  ,  संसार  उसे  राक्षसराज  रावण  कहता  है  l  इसी  तरह  दुर्योधन   कुशल  प्रशासक  था , प्रजा  के  हित  का  बहुत  ध्यान  रखता  था   लेकिन  सारा  जीवन  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  कर  के   और  हर  तरीके  से  उन्हें  कष्ट  देकर ,  अत्याचार , अन्याय  करने     के  कारण    सुयोधन   के  बजाय    षड्यंत्रकारी   दुर्योधन  कहलाया   l      हमारे  पुराणों  की  विभिन्न  कथाएं  इस  बात  को  भी  बताती  हैं   कि  ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , महत्वाकांक्षा  ---- आदि  बुराइयाँ  थोड़ी -बहुत  तो  सभी  में  होती  हैं  ,  इनसे  कोई  भी  नहीं  बचा  है   लेकिन  इनकी  ' अति '  सम्पूर्ण  समाज  के  लिए  घातक  होती  है  l  क्योंकि   इनसे    जुड़ी  इच्छाएं    एक  व्यक्ति  स्वयं  में   अकेले  ही  पूरी  नहीं  कर  सकता   , इसके  लिए  उसे   अन्य  लोगों  की  आवश्यकता  पड़ती  है   और  इच्छाओं  की  तीव्रता  के   साथ   समूह  बढ़ता  जाता  है   और  इच्छाओं  में  बाधा  आने  पर  गुणात्मक  दर  से  अपराध  भी  बढ़ता  जाता  है  l  आज  जब  वैश्वीकरण  का  युग  है  , संचार  के  साधनों  की  इतनी  प्रगति  हो  गई  है   तो  इन  इच्छाओं  का  और  इनसे  जुड़े  अपराधों  का   भी  वैश्वीकरण  हो  गया  है   इसलिए  संसार  में  इतना  तनाव ,  छिना -झपटी , युद्ध , अशांति  है  l  इसलिए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी   कहते  हैं   कि  मनुष्य  की  चेतना  परिष्कृत  हो ,  विचारों   में  सुधार  हो  ,  सब  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें   तभी  धन  और  शक्ति  का  सदुपयोग  होगा   और  संसार में  सुख -शांति  होगी  l  

25 January 2024

WISDOM -----

   तपस्वी  को  तप  करने  का  मूलमंत्र  देते  हुए  गुरु  बोले  ---- " तप  में  सफलता  अभीष्ट  हो  इसके  लिए  आहार  का  संयम  सबसे  जरुरी  है  l यदि  स्वाद  की  इन्द्रिय  ढीली    छूट   जाती  है   तो  बाकि  सभी  इन्द्रिय  बेलगाम  हो  जाती  हैं  l   इसी  पर  सबसे  पहले  विजय  प्राप्त  करो   l  "  एक  कथा  है  ---- एक  राजा  जंगल  में  शिकार  करने  गया  l  रात्रि  हो  जाने  से  वहां  एक  आश्रम  में   विश्राम  करने  के  लिए  रुक  गया  l    आश्रम  वासियों  ने  राजा  की  बहुत  सेवा  की  l  राजा  ने  प्रसन्न  होकर   वहां  आश्रम  में  एक  वैद्य  को  नियुक्त  कर  दिया   जिससे  उन्हें   चिकित्सा  के  लिए  इतनी  दूर  शहर  में  आने  की  परेशानी   न  हो  l   कुछ  समय  गुजरा  , वैद्य  के  पास  कोई  भी  इलाज  के  लिए  नहीं  आया  l  वह  वैद्य  राजा  के  पास  गया  और  बोला  ---- " महाराज  मैं  यहाँ  निष्क्रिय  जीवन   ही  व्यतीत  कर  रहा  हूँ   l  आश्रम  में  मेरा  कोई  उपयोग  नहीं  है  l "  राजा  को  आश्चर्य  हुआ   कि  आश्रम  में  कोई  बीमार  नहीं  पड़ता  l  इस  संबंध  में  जब  राजा  ने  आचार्य  से  पूछा   तो  आचार्य  बोले  ----- "राजन  !  यहाँ  प्रत्येक  आश्रमवासी  को  सुबह  से  शाम  तक   श्रम  करना  पड़ता  है  l  जब  तक  भूख  परेशान  नहीं  करतीं  ,  कोई  भी   भोजन  नहीं  करता  है  l  जब  कुछ   भूख  शेष  रह  जाती  है   तो  वे  भोजन  बंद  कर  देते  हैं  l  इस  प्राकृतिक  और  स्वच्छ  वातावरण  में   सबको  पवित्र  वायु  और  प्रकाश  मिलता  है  l  यही  इनके  आरोग्य  का   मूल  कारण  है  l "    राजा  को  भी  अपने  लिए   आरोग्य  का  मन्त्र  मिल  गया   l  

24 January 2024

WISDOM ----

   महाराज  जीमकेतु  धार्मिक  प्रवृत्ति  के  शासक  थे  l  दुर्भाग्यवश  उनके  मन  में    उनकी  अकूत  संपत्ति  का  अहंकार  पैदा  हो  गया  l  ऋषि  दत्तात्रेय  को  उनके  ऊपर  दया  आ  गई   और  उन्होंने  उन्हें  सत्य  का  मार्ग  दिखाने  का  निश्चय  किया  l  वे  एक  पागल  का  वेश  धारण  कर   राजा  के  महल  पहुंचे   और  उनके  सिंहासन  पर  जाकर  बैठ  गए  l  राजा  जीमकेतु  दरबार  में  पहुंचे  तो  एक  पागल  को  सिंहासन  पर   बैठा  देखकर  क्रोधित  हो  उठे   और  बोले  ---- "   तू  कौन  है  ?   हमारे  राजदरबार  में  आने  का  तेरा  साहस  कैसे  हुआ  ? "  दत्तात्रेय  बोले  --- "  बंधु   ! क्रोधित  क्यों  होते   हो  ?  यह  तो  धर्मशाला  है  l  इसमें  तुम  भी  ठहरो   और  मैं  भी  ठहरूंगा  l  "  राजा  बोले  --- " अरे , तू  अँधा  है  क्या  ?  यह  धर्मशाला  नहीं   राजमहल  है  l "  ऋषि  दत्तात्रेय  ने  कहा --- '  क्या  तुम  इसमें  अनंत  काल  से  रहते  चले  आ  रहे  हो  ? "  राजा  ने  कहा ---- " नहीं  ,  मैं  पिछले  तीस  वर्षों  से  यहाँ  का  राजा  हूँ  l "  दत्तात्रेय  ने  पूछा  ---- " तुमसे  पहले  कौन  यहाँ  का  राजा  था  ? "  राजा  बोले ---- " मुझसे  पहले  मेरे  पिता   यहाँ  के  राजा  थे  l "  दत्तात्रेय  ने  पूछा  --- " और  उनसे  पहले  कौन  यहाँ  का  राजा  था  ? "  राजा  बोले  --- " तब  मेरे  दादा -परदादा  यहाँ  राज्य  करते  थे  l "  ऋषि  दत्तात्रेय  बोले  --- "जहाँ  कोई  आकर   थोड़े  समय   ठहरकर  चला  जाता  है  ,  तो  वह  धर्मशाला   ही  कहलाती  है  l  उसे  अपनी  पुश्तैनी  जागीर  समझ  लेना    मूर्खता  के  सिवा   और  कुछ  भी  नहीं  है  l " l   यह  सुनकर  राजा  का  अहंकार   तुरंत  ही   विगलित  हो  गया  l 

22 January 2024

WISDOM-------

  ' जाकी   रही  भावना  जैसी  , प्रभु  मूरत  देखी  तिन  तैसी  l '  जिसकी  जैसी  भावना  होती  है  वह  प्रभु  को  उसी  रूप  में  देखता  है  l    हम  ईश्वर  से  उनके  प्रेम  की ,   आशीर्वाद  की  कामना  करते  हैं   l  सूरदास जी  ने   भगवन  के  बाल रूप  को  चाहा , भगवान  उन्हें  उसी  रूप  में  मिले , उनका  जीवन  सफल  हो  गया  l  मीरा  के  ' गिरधर  गोपाल  थे  , एक  अनोखा  बंधन  था  l   अर्जुन  ने  भगवान  को  सखा  रूप  में  देखा  ,  भगवान  ने  उनके  जीवन  रूपी  रथ  की  डोर  संभाल  ली  l  l  रामकृष्ण परमहंस जी  ने  उन्हें  माँ  के  रूप  में  देखा  , उन्हें  माँ  का  स्नेह  मिला  l   अधिकांश  लोग  ईश्वर  को  ' माँ  '  के  रूप  में  देखते  हैं  ,  देवी  के  विभिन्न  रूपों  की  उपासना  करते  हैं  l  इस  संबंध  के  बारे  में  ऋषियों  ने  कहा  भी  है   कि  ' पिता  न्याय  करते  हैं ,  जो  गलती  की  है  उसकी  सजा  देते  हैं  लेकिन  माँ   दुलार  करती  हैं  ,  अपने  भक्त  को  संरक्षण  देती  हैं ,  उसे   उसकी  गलतियों  को  सुधारने  का  अवसर  भी  देती  हैं  l  इसलिए  जीवन  में  सफलता  के  लिए  पिता  और  माता  दोनों  की  जरुरत  है  l           शिव -शक्ति  , राधा -कृष्ण  -- दोनों  ही  ऊर्जा  के  संतुलन  होने  से  जीवन  पूर्ण  होता  है  l   ईश्वर  ने  सबको   चुनाव  की  स्वतंत्रता  दी  है ,  वे  उन्हें  किसी  भी  रूप  में  पूज  सकते  हैं  , किसी  भी  भाषा  में   उन्हें  पुकार  सकते  हैं  l  अब  जिस  रूप  में  उन्हें  पुकारोगे  , वे  उसी  रूप  में  आयेंगे   जैसे  कंस   कृष्ण जी  को   इसी  रूप  में  याद  करता  था  कि  उनका  जन्म  उसे  मारने  के  लिए  हुआ  है   तो  जो  कृष्ण  गोकुल  में  सबके  प्रिय  थे , उन्होंने  मथुरा  आकर  कंस  का  वध  कर  दिया  l   इसलिए  हमारी  संस्कृति  में   ईश्वर  को  माँ  के  रूप  में  देखा  जाता  है  जैसे  धरती माँ , प्रकृति  माँ   ---- इससे  हमें  संरक्षण  मिलता  है   और  बाहर  व  भीतर  संतुलन  स्थापित  होता  है  l  कई  लोग  ईश्वर  को  उनके  उग्र  रूप  में  याद  करते  हैं  ,  देवी  के  रूप  में  नहीं  पूजते  l  ईश्वर  के  नारी  रूप  का   , नारी  शक्ति  का  उन्हें  ध्यान  ही  नहीं  होता  l  इससे  भगवन  को  कोई  फरक  नहीं  पड़ता  ,  ईश्वर  तो  सर्व  समर्थ  हैं  ,  उन्होंने  तो  मनुष्य  को  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है    लेकिन   जो  उग्र  रूप  का  ध्यान  करते  हैं  उनके  स्वभाव  में  उग्रता , कठोरता , अहंकार  , असहिष्णुता   आ  जाती  है  , फिर  उनके  कर्म  व  व्यवहार  भी  वैसा  ही  कठोर  हो  जाता  है  l  कर्मों  के  अनुसार  परिणाम  भी  तय  हो  जाता  है    जबकि  देवी  रूप  को  मानने  से  स्वभाव  में  करुणा , दयालुता , स्नेह , ममता  जैसे  गुण  आ  जाते  हैं   l  इसलिए  हमारे  ऋषियों  ने  शिव  और  शक्ति   दोनों   को  बराबर  महत्त्व  दिया  है  l  जहाँ  आवश्यक  हो  वहां  कठोर  रहो  , जहाँ  आवश्यक  हो  वहां  करुणा , और  प्रेम स्नेह  का  व्यवहार  करो  l  यह  संसार  पुरुष  प्रधान  है   लेकिन  ईश्वर  के  दरबार   में  सब  बराबर  है   और  सम्पूर्ण  ब्रह्माण्ड  के  लिए  ही   दोनों  ही   ऊर्जा   की  आवश्यकता  है  l  

21 January 2024

WISDOM ------

    पं . श्रीराम  शर्मा जी  के  विचार ----- " मन  की  वृत्तियों  का  स्वार्थ  प्रधान  हो  जाना ही  पाप  है   l  आपत्तियों  का  कारण  अधर्म  है  l --- जब  मनुष्य  के  मन  में  सद्वृत्तियाँ  रहती  हैं  , तो  उनकी  सुगंध  से  दिव्यलोक  भरा -पूरा  रहता  है   और  जैसे  यज्ञ   की  सुगंध  से   अच्छी  वर्षा , अच्छी  अन्नोत्पत्ति  होती  है  , वैसे  ही  जनता  की  सद्भावनाओं  के  फलस्वरूप  ईश्वरीय  कृपा  की  , सुख -शांति  की  वर्षा  होती  है  l  यदि  लोगों  के  ह्रदय  छल , कपट , द्वेष , पाखंड   आदि  दुर्भावों  से  भरे  रहें  ,  तो  उससे  अद्रश्य लोक   एक  प्रकार  से  आध्यात्मिक  दुर्गन्ध  से  भर  जाते  हैं  l  जैसे  वायु  के  दूषित  , दुर्गंधित   होने  से  हैजा  आदि  बीमारियाँ  फैलती  हैं  ,  वैसे  ही  पाप वृत्तियों  के  कारण   सूक्ष्म  लोकों  का  वातावरण  गन्दा  हो  जाने  से   युद्ध  , महामारी , दरिद्रता , अर्थ संकट , दैवी  प्रकोप  आदि  उपद्रवों  का  आविर्भाव  होता  है   l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- " यदि  मनुष्य  की  भावनाएं  परिष्कृत  हो  जाएँ   तो  '  मारो  और  मरो  '  की  रट  लगाने  वाला  मनुष्य  ' जियो  और  जीने  दो  '   की  सोच  सकता  है   और  तभी  लग   पाएगा  उसकी  कुत्सित   एवं  कलुषित  लालसाओं  पर  अंकुश  ,  जो  प्रकृति  को  कुपित  एवं  क्षुब्ध  किए  हैं    l   भावनाओं  का  परिष्कार   भक्ति  के  बिना  संभव  नहीं  है   l  भक्ति  के  बिना   शक्ति  के  सदुपयोग  की  कोई  संभावना  नहीं  है  l  भक्ति  न  हो  तो   बुद्धि  विवेकरहित  होती  है   और  बल  निरंकुश  व  दिशाहीन   l  भक्ति  के  बिना  सृजनात्मक   सरंजाम  भी  संहारक  हो  जाते  हैं  l  "  

19 January 2024

WISDOM ------

  लघु -कथा --- लालच  बुरी   बला '----- बात  उन  दिनों  की  है  जब  बैंक  नहीं  थे  लोग  अपना  धन  या  तो  गड्ढे  खोदकर  रखते  थे  या  किसी  विश्वासपात्र  के  पास   रखना  उचित  समझते  थे  l  एक  सेठजी  थे  , बड़ी  ईमानदारी  से  उन्होंने  धन  कमाया   l  उनके  कोई  संतान  नहीं  थी  l  सेठजी  की  वृद्धावस्था  आ  गई  l  बहुत  सोचकर  उन्होंने  निश्चय  किया  कि  इतनी  संपदा  है  तो  इसका  सदुपयोग  यही  होगा  कि  गाँव  में   एक  तालाब  बनवा  दिया  जाये   जिससे  गाँव  के  पानी  का  संकट  दूर  हो  जायेगा   और  व्यापार  अपने  रिश्तेदारों   को  सौंप  दिया  जाये  l  वह  सेठ   बड़ा  ईश्वर  भक्त  था  l  धन  सुरक्षित  रहे  इसके  लिए  उसने  दो  बड़े -बड़े  घड़े  मंगवाए  और   उनमें    बहुमूल्य  हीरे -जवाहरात  ,  सोना चांदी  रत्न   आदि  सब  भर  दिए  l  एक  बहुत  गहरा  गड्ढा  खुदवाया   विधि -विधान  से  पूजा  की   और  नाग  देवता  को  आमंत्रित  किया   l  दोनों  घड़े  उस  गड्ढे  में  रखवा  दिए   और  नाग  देवता  आकर  उन  घड़ों  की  रक्षा  करने  लगे  l  पूजा  के  बाद  सेठ  ने  उन  नागदेवता  से  निवेदन  किया  कि   तालाब  निर्माण  के  लिए  जितने  धन  की  आवश्यकता  होगी  तब  हम   रस्सी  से  बांधकर  तराजू  उस  गड्ढे  में  डालेंगे   तब  आप  आवश्यक  मुद्रा  उस  तराजू  में  देना   और  जब  व्यापार  से  लाभ  होगा  तब  उतनी  ही  मुद्रा  हम  वापस  कर  देंगे   ताकि  भविष्य  में  तालाब  की  मरम्मत  आदि  कार्यों  के  लिए  कभी  धन  की  कमी  नहीं  रहेगी  l  सेठ  ने  यह  भी  कहा  कि  मेरे  न  रहने  पर  आप  अमुक  व्यक्ति  को   आवश्यक  धन  अवश्य  देना  ताकि  काम   अधूरा  न  रहे  l  सेठ  अब  बहुत  निश्चिन्त  था  , तालाब  निर्माण  के  लिए  जितने  धन  की  आवश्यकता  होती   वह  गड्ढे  में  तराजू  डालकर  प्रार्थना  करता   तब  नाग  देवता    वह  धन  राशि   उस  तराजू  में  रख  देते  l  व्यापार  से  लाभ  होने  पर  सेठ  तोलकर  उतनी  ही  राशि  वापस  कर  देता  l   कुछ  समय  बाद  सेठ  की  मृत्यु  हो  गई  l  जिस  व्यक्ति  को  सेठ  ने  नामित  किया  था  , उसके  मन  में  शुरू  से  ही  लालच  था  , वह  इसी  फिराक  में  था  कि  इस  अपार  संपदा  पर  कैसे  कब्ज़ा  करे  l  उसे  स्वयं  पर  भी  संदेह  था  कि  कहीं  उसके  मन  के  इस  लालच  को  नाग देवता  समझ  जाएँ   और  तराजू  खाली  लौटा  दें  l  इसलिए  पहली  बार  में  ही  ज्यादा  से  ज्यादा  धन  मांग  लिया  जाये l    उसने   सेठ  के  जाने  के  बाद  ईश्वर  की  बहुत  पूजा  प्रार्थना   की    और  फिर  उस  कुएं  के  बराबर  बने  उस  गड्ढे  के  निकट  जाकर  नाग  देवता  से  निवेदन  किया  कि  अब  सेठ  तो  नहीं  रहे   ,  मैं  इस  तालाब  को  इस  बार  पूर्ण  करा  दूंगा  ,  आप  इस  तराजू  में  भरकर   धन  दें  l  उसने  बहुत  ज्यादा  धन  मांग  लिया  l  नाग देवता  विवश  थे  उन्होंने   सोना -चांदी  बहुमूल्य  धातु  से  भरकर    तराजू  दे  दिया  l  इतनी  सारी  बहुमूल्य  संपदा  लेकर वह  व्यक्ति  रातों -रात  गाँव  छोड़कर  भाग  गया  l  रिश्तेदारों  को  भी  लालच  आ  गया  , उन्होंने  भी  व्यापार  से  लाभ  का  एक  हिस्सा  उन  घड़ों  में  भरने  के  लिए  नहीं  दिया  l  नाग देवता  से  छल  करने  का  नतीजा  उन  सब  को  भुगतना  पड़ा  l  धन  की  कमी  के  कारण  वह   तालाब   कभी  पूरा  नहीं  हो  पाया  l  बाद  में  लोगों  ने  कोशिश  भी  की  कि  वह  घड़े  मिल  जाएँ  ,  लेकिन  लक्ष्मी  चल  होती  हैं  न  तो  घड़े  मिले  और  न  ही  नाग  देवता  l   सेठ  की  मेहनत  और  ईमानदारी  की  कमाई  थी   इसलिए  उस  अधूरे   तालाब  में  भी  इतना  जल  था   कि  गाँव  वालों  के  जल  का  संकट  दूर  हुआ  l  

18 January 2024

WISDOM ------

   लोभ , भय  और  अहंकार   --- मनुष्य  की  ये  तीन  बुराइयाँ  ऐसी  हैं   जिनकी  वजह  से   परिवार  से  लेकर  संसार  में  उथल -पुथल    दिखाई  देती  है  l  लोभ  या  लालच  के  कारण  ही  व्यक्ति    संसार  में  धन -वैभव , पद -प्रतिष्ठा   और  सभी  सांसारिक  सुखों  को  पाने  के  लिए   जी -तोड़  प्रयास  करता  है   l  कलियुग  में  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   , इस  कारण    मनुष्यों   के  सभी  प्रयासों  में  सत्यता  नहीं  होती  , छल -कपट , धोखा , षड्यंत्र   ----- नकारात्मकता  होती  है  l  जो  लोग  इस  युग  में  भी  सच्चाई  और  ईमानदारी  से  जीवन  व्यतीत  करते  हैं  ,  वे  निर्भय  होते  हैं   l  ऐसे  लोग  ईश्वर विश्वास  पर  अपना  जीवन  जीते  हैं  ,  उन्हें  किसी  का  भी  भय  नहीं  होता  l  लेकिन  जो   जितना  वैभव -संपन्न  है ,  ऊँचे  पद  पर  है   वह  उतना  ही  अधिक  भयभीत  है ,  उसे  उतनी  ही  अधिक  सुरक्षा  की  जरुरत  है  l   लोभ  के  साथ  ही  मोह  पैदा  हो  जाता  है   फिर  उसके  खोने  का  भय  सताता  है  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " भविष्य  की  चिंता , , अतीत  में  हो  चुकी  भूलें  ,  उसे  परेशान  करती  हैं  ,  भयभीत  और  असुरक्षित  रखती  हैं  l  "    इन  सबसे  ऊपर  है  अहंकार  l  अहंकारी  स्वयं  को  ही  सर्वश्रेष्ठ  समझता  है  , चाहता  है  सब  उसके  सामने  नत -मस्तक  हों  l    ये  सब  मानसिक  कमजोरियां  हैं   जिनके  वशीभूत  होकर  व्यक्ति  गलत  काम  करता  है  ,  ये  गलतियाँ  ही  उसे  भयभीत  करती  हैं  l  संसार  से  चाहे  वह  इन  गलतियों  को  छुपा  ले   लेकिन  मनुष्य  का  मन  एक  दर्पण  है ,  उसका  मन  , उसकी  आत्मा   उसके  भले =बुरे  कर्मों  को  उसे  बार -बार  दिखाती  है  l  जिस  मन  के  वशीभूत  होकर  वह  गलत  कार्य  करता  है , उस  मन  से  वह  भाग  नहीं  सकता   l  उसका  मन  ही  उसे  कचोटता  है  l  इसी  कारण  वह  भयभीत  रहता  है  और  आत्महीनता  से  घिर  जाता  है  l   इसलिए  हमारे  ऋषियों  ने  जीवन  में  संतुलन  पर  जोर  दिया  है  l  संसार  के  सुखों  का  भी  आनंद  लो  , इसके   साथ   सच्चे  अध्यात्म  को  जीवन  में  अपनाकर  उन  सुखों  की  मर्यादा  भी  निर्धारित  करो   l  तभी  मन  की  शांति  मिलेगी  l 

16 January 2024

WISDOM -----

     इस  संसार  में  भिन्न -भिन्न  मनोवृत्ति  के  लोग  हैं   l सबकी  आदतें , जीवन  जीने का  तरीका  , विचार   भिन्न  हैं  l  ईश्वर  के  प्रति  लोगों  के  विचारों  में  भिन्नता  है  ,  कोई  आस्तिक  है  , कोई  धर्मांध  हैं  l  ऋषियों  का  वचन  है   कि  ईश्वर  का  निवास  हम  सबके  ह्रदय  में  है  ,  अपने  मन  को  निर्मल  बनाओ  , सन्मार्ग  पर  चलो   तो  उसी  ह्रदय  में  भगवान  के  दर्शन  होंगे  और   और  मन  में  बसे  ईश्वर  से  बातचीत  का  सुन्दर  अवसर  भी  मिलेगा  l  लेकिन  मनुष्य  ने    ईर्ष्या , द्वेष , लालच , तृष्णा , महत्वाकांक्षा , कामना , वासना  आदि  बुराइयों  से  अपने   भीतर  इतनी  गंदगी  जमा  कर  ली  है   कि  उसे  अपने  ह्रदय  में  बैठे  ईश्वर  की    अनुभूति  ही  नहीं  हो  पाती  है  l  कलियुग  की  सबसे  अच्छी  बात  यह  है  कि  ईश्वर  कहीं  भी , किसी  भी  धर्म  में  प्रत्यक्ष  दिखाई  नहीं  देते   फिर  भी  लोग  उनके  नाम  पर  लड़ते  रहते  हैं  l   कभी  विभिन्न  धर्म  आपस  में  लड़ते  हैं  , कभी  एक  ही  धर्म  के  आपस  में  लड़ते  हैं  l  यह  भी  अच्छी  बात  है  कि  लोग  आपस  में  ही  लड़ते  हैं  , भगवान  तटस्थ ,  ऊपर  से  सब  देखते  हैं  l  द्वापर  युग  में  तो   हालात  बहुत  बुरे  थे  , लोग  प्रत्यक्ष  रूप  से  भगवान  से  लड़ते   थे   l  भगवान  श्रीकृष्ण  सामने   खड़े  थे  और  शिशुपाल  ने  उन्हें  सौ  गलियाँ   दीं  l   भगवान  श्रीकृष्ण  दुर्योधन  को  समझाने  गए  कि   जिद्द  नहीं  करो , पांडवों  को  केवल  पांच  गाँव  दे  दो   l  तो  समझना  तो  दूर   उसने  सैनिकों  को  आज्ञा   दी  कि  इन्हें  बंदी  बना  लो  l  अहंकार  इतना  सिर  चढ़  गया  कि  भगवान  को   बंदी  बनाने  चला  l  रावण  तो  इतना  अहंकारी  था  कि  उसने  भगवान  राम  की  पत्नी  माँ  सीता  का  ही  हरण  किया  l  ऐसे  ही  पुराणों  में  अनेक  उदाहरण  हैं   , भस्मासुर , हिरण्यकश्यप   आदि  अनेक  असुरों  ने  स्वयं  को  भगवान  मान  लिया  ,  उन्हें  ईश्वर  की  सत्ता  का  कोई  डर  नहीं  था  l  कलियुग  में  भी  अनेक  धर्म  के  प्रवर्तकों  को  बहुत  कष्ट  दिए  गए  , अति  का  सताया  गया  l     लेकिन  अब   परिस्थितियों    में  काफी  सुधार  हुआ  है  l   आपस  में  ही  लड़ -भिड़कर  शांत  हो  जाते  हैं   l    एक  बात   प्रत्येक  युग  में  समान  है ---   ईश्वर  चाहें  प्रत्यक्ष  हो या  अप्रत्यक्ष  हों   वे  केवल  एक  सीमा  तक  ही  सहन  करते  हैं   l  जब  भी  अति  हो  जाती  है   तब  शिवजी  का  तृतीय  नेत्र  खुल  जाता  है ,  सुदर्शन  चक्र  पीछा  नहीं  छोड़ता  ,  विभिन्न  रूपों  में  दैवीय  प्रकोपों  का  सामना  करना  पड़ता  है  , सामूहिक  दंड  मिलता  है  l  इसलिए  हमें  ' अति ' से  बचना  चाहिए  l   मनुष्य  शरीर  होने  के  नाते  गलतियाँ  सभी  से  होती  हैं  ,  लेकिन  हम  संकल्प  लें   और  उन  गलतियों  को  बार -बार  नहीं  दोहराएँ  l  ईश्वर  के  दरबार  में  छल -कपट  नहीं  चलता  , वे  हम  सब  के  ह्रदय  में  बैठे  हैं , हम  क्या  कर  रहे  हैं , क्या  सोच  रहे  हैं , हमारी  भावना  क्या  है  , सब  पर  उनकी  नजर  है  l 

14 January 2024

WISDOM -----

  कहते  हैं  ---इतिहास  अपने  को  दोहराता  है  l  इतिहास  से  हमें  शिक्षा  लेनी  चाहिए  l   और  उन  घटनाओं  को  नहीं  दोहराया  जाना  चाहिए   जिनसे  सम्पूर्ण  राष्ट्र  के  अस्तित्व  पर  संकट  आ  जाये  l  प्रकृति  का  नियम  है  कि  समय  का  चक्र  घूमता  है  --सुख -दुःख , अच्छा -बुरा   आता -जाता  रहता  है  l  एक  पैटर्न  बार -बार  दोहराया  जाता  रहता  है  , ऐसा  व्यक्ति  के  जीवन  में  भी  होता  है  और राष्ट्र  के  जीवन  में  भी  l  ईश्वर  ने  हमें  चुनाव  की  स्वतंत्रता  दी  है , ईश्वर  हम  पर  कुछ  थोपते  नहीं  हैं   , वे  हमें  विवेक  अनुसार  मार्ग  चुनने  की  स्वतंत्रता  देते  हैं  l  यदि  हम  जागरूक  हैं  और  समझ  जाएँ  कि  हमारी  किन  गलतियों  की  वजह  से  हम   ऐसे  चक्रव्यूह  में  फंसे  हैं  , जहाँ  कष्ट  ही  कष्ट  है , गुलामी  है , अंधकार  है   तो  हम  उन  गलतियों  को  सुधार  कर , अपनी  शक्ति  जगाकर , अपने  आत्मविश्वास  को  जगाकर  उस  चक्रव्यूह  से  बाहर  निकल  सकते  हैं    जैसे  ---- यदि  हम  अपने  इतिहास  पर  द्रष्टि  डालें  तो  प्राचीन  काल  में  भारत  एक  सोने  की  चिड़िया  था   l  धीरे -धीरे  लोग  स्वयं  के  प्रति  लापरवाह  हो  गए   और  अनेक  बुराइयों  से  घिरते  गए  ,  सबसे  बड़ी  बुराई  थी  ' आपसी   फूट '  l   हम  आपस  में  ही  लड़ते  रहे  और  अपने  लालच  और  महत्वाकांक्षा  के  कारण   दुश्मनों  का , विदेशी  आक्रमणकारियों  का  साथ  दे  दिया    और  युगों  तक  देश  गुलाम  हो  गया   l   चाहें  परिवार  हो  या  राष्ट्र  हो  जब  अपने  में  कमजोरी  होती  ही   तभी  गैर  उसका  फायदा  उठाता  है , तोड़-फोड़  मचाता  है ,  राष्ट्र  हो  या  परिवार  हो   , उसको  अपना  गुलाम  बनाने  की  भरपूर  कोशिश  करता  है  l   दो  बिल्लियों  की  लड़ाई  में  पूरी  रोटी  बन्दर  खा  गया  ,  दोनों  बिल्लियाँ   बेचारी  !    अब  ये  चुनाव  हमें  करना  है  --- आजादी  चाहिए   या  गुलामी   के  अंधकार  में  रहना  पसंद  है  l   जिन्हें  लोगों  को  गुलाम  बनाने  की  आदत  है  , वे  हर  वक्त  गहरी  निगाह   लगा  कर  बैठे  हैं , उन्हें  तो  मौके  की  तलाश  है  l  विचारशीलों  का  यही  कहना  है --भूतकाल  से  शिक्षा  लें , वर्तमान  को  संभाले  , तभी  आगे  एक  सुन्दर  भविष्य  होगा  l  

13 January 2024

WISDOM ------

 संसार  में  जितनी  भी  क्रांतियाँ  हुईं हैं ,    उनके  मूल  में  कारण  ' आर्थिक '  था   l  किसी  का  शोषण  होता  है  और  कोई  शोषण  करता  है  ,  दोनों  के  बीच  अपने  अस्तित्व  के  लिए   झगड़ा  होता  है  l  अत्याचार  और  अन्याय  कई  तरह  से  होता  है  l  अत्याचारी  सामने  हो  तो  उससे  निपटा  जा  सकता  है   लेकिन  कलियुग  का  एक  बड़ा  लक्षण  कायरता  है   l   लोग  समाज  में  अपनी  छवि  को  साफ़ -सुथरी  बनाये  रखने  के  लिए  छिपकर  पीठ  पर  वार  करते  हैं  l  इससे  उनकी  मानसिक  विकृति  को  पोषण  मिल  जाता  है  l   यह  स्थिति  परिवारों  से  लेकर  समूचे  संसार  में  है  l  धर्म , जाति  के  आधार  पर  होने  वाले  विवाद , दंगे ,  युद्ध , हत्याकांड   यह  सब  मनुष्य  की  मानसिक  विकृति  को  ही  बताते  हैं  l  विज्ञानं  ने  मनुष्य  को  सब   भौतिक  सुविधाएँ  प्रदान  की  हैं   लेकिन  विज्ञानं  के  पास  कोई  ऐसा  यंत्र  नहीं  है  जो  मनुष्य  में  सद्बुद्धि  को  , विवेक  को  जाग्रत  कर  सके  ,  मनुष्य  की  चेतना   का  परिष्कार  कर  सके  l  चेतना  ही  तो  परिष्कृत  नहीं  है  , इसीलिए  युगों  से  इतने  युद्ध , मारकाट  , दंगे , फसाद  चले  आ  रहे  हैं  l   करुणा  और  सहानुभूति  जैसे  शब्द  खो  गए ,  यूज  एंड  थ्रो  की  स्थिति  आ  गई  , स्वार्थ  सर्वोपरि  है  l  ऐसी  स्थिति  से  बचने  का  एक  ही  उपाय  है --- स्वयं  को  सशक्त  बनाये   , शारीरिक  और  मानसिक  दोनों  तरह  से  l  कौरवों  ने  पांडवों  पर  बहुत  अत्याचार  किए  , उन्हें  लाक्षाग्रह  में  जिन्दा  जलाने  का  षड्यंत्र  रचा ,  वे  जागरूक  थे  इसलिए  बच  गए    और  अपनी  शक्ति  को  बढ़ाने  में  लग  गए   l  महाभारत  के  युद्ध  में  विजयी  हुए  l  

12 January 2024

WISDOM ------

 जब -जब  होता  नाश  धर्म  का   और  पाप  बढ़  जाता  है  ,  तब  लेते  अवतार  प्रभु  यह  विश्व  शांति  पाता  है  l    कलियुग  की  परिस्थितियां  कुछ  ऐसी  हैं  कि  सम्पूर्ण  संसार  में  अशांति  है  l  बेवजह  के  युद्ध , तनाव , दंगे  , मनमुटाव  ---- असुरता  हावी  है   l  इस  संसार  में  आदिकाल  से  ही  देवासुर  संग्राम  ,  अँधेरे  और  उजाले  का  संघर्ष  रहा  है  l  प्राचीन  काल  में  और  इस  कलियुग  में  अंतर  केवल  इतना  है   कि  पहले  असुर  सामने  थे  , असुर  के  रूप  में  उनकी  पहचान  थी  ,  रावण  गर्व  से  स्वयं  को  राक्षसराज  रावण  कहता  था  l   अति  आवश्यक  होने  पर  ही  वे  अपना  वेश  बदलते  थे   जैसे  रावण ,     सीता  हरण   के  लिए   कटोरा  लेकर  भिखारी  बन  गया  l   रावण  के  कहने  पर  मारीच  ने  भी  अपना  रूप  बदला  l  रावण  की  बहन  भी  वेश  बदलकर   राम , लक्ष्मण  को  लुभाने  गई   तो  अपनी  नाक  कटा  आई  l   द्वापरयुग  में  भी  स्पष्ट  था   कि  दुर्योधन  आदि  कौरव  षड्यंत्रकारी  हैं  , अधर्म  के  मार्ग  पर  हैं   l  ऐसे  में  ईश्वर  के  लिए  भी  सरल  था  कि  राक्षसों  को ,   अत्याचार , अन्याय  करने  वाले  षड्यंत्रकारियों   का  अंत  करना  है  l  लेकिन  कलियुग  की  समस्या  बड़ी  जटिल  है  , अधिकांश  लोग  मुखौटा  लगायें  हैं  ,  जो  जैसा  दीखता  है  वो  वास्तव  में  वैसा  है  नहीं  l  सामान्य  व्यक्ति  के  लिए  तो   लोगों  की  असलियत  को  जानना  समझना   बहुत  कठिन  है  ,  केवल  ईश्वर  को  ही  पता  है  कि  कौन  देवता  है  और  कौन  असुर  है  l    देवता  तो  बहुत  ही  कम  हैं  , सन्मार्ग  पर  चलने  वाले  उपेक्षित  हैं  l  सम्पूर्ण  संसार  में  असुरता  ही  हावी  है  , इसलिए  ईश्वर  के  सामने  सबसे  बड़ा  संकट  यह  है  कि  यदि  सब  असुरों   का  अंत  कर  दें  तो  देवता  तो  इतने  कम  हैं  , फिर  ये  संसार  कौन  चलाएगा  ?  इसलिए  ईश्वरीय  न्याय  की  गति  बहुत  धीमी  होती  है  l  भगवान  को  यह  संसार  सबसे  ज्यादा  प्रिय  है  ,   वे  नहीं  चाहते  कि  असुरता  के  बोझ  से   इस  धरती  का  अंत  हो  जाये  ,  इसलिए  भगवान  सबको  सुधरने  का  मौका  देते  हैं  ,  कई  मौके  देते  हैं  कि  अब  तो  सुधर  जाओ  , सन्मार्ग  पर  चलो  l    इसमें  कई  वर्ष  निकल  जाते  हैं  , इतने  पर  भी  जब  वे  असुर  नहीं  सुधरते   तब  भगवान  उनका  अंत  करते  हैं  l   

11 January 2024

WISDOM ------

     धरती  की  गोद  में  दो  बीज  पड़े  थे   l  एक  में  से  अंकुर  फूटे   और  वह  ऊपर  की  ओर  बढ़ने  लगा   तो  दूसरा  बीज  बोला  --- " भैया  ! ऊपर  मत  जाना  ,  वहां  भय  है  कि   दूसरे  तुम्हे  पैरों    तले    रौंद  डालेंगे  l "  यह  सुनकर  भी  पहला  बीज  मुस्कराता  हुआ  ऊपर  की  ओर  बढ़  गया  l  सूर्य  का  प्रकाश , हवा  व  पानी    पाकर   अंकुर  पौधे  में  बदल  गया  l  धीरे -धीरे  वह  पूर्ण  विकसित  वृक्ष  बना  और  संसार  से  विदा  होते  समय  अपने  जैसे  असंख्य  बीज  छोड़कर   आत्मसंतोष  अनुभव  करता  रहा  l , दूसरा  बीज  जहाँ  का  तहां  रह  गया  ,  सड़  गया  l  जीवन  में  प्रगति  वही  कर  पाते  हैं  ,  जो  चुनौतियों  से  लड़ने  का  जज्बा  रखते  हैं  ,  दूसरे  तो  पलायनवादी  ही  कहलाते  हैं  l  

9 January 2024

WISDOM -----

     स्वाभिमान ------ मुंशी  प्रेमचंद  को  एक  दिन  उनके  प्रान्त  के  गवर्नर  सर  हेली  का  सन्देश  मिला   l  उसे  पढ़कर  वह  थोड़े  चिंतित  हो  गए   क्योंकि  उस  सन्देश  में  लिखा  था  ----- " आपकी  बढ़ती  हुई  लोकप्रियता  को  देखते  हुए   सरकार   आपको  राय  साहब  ख़िताब  देना  चाहती है  l "    जब  उनकी  पत्नी  को  इसके  बारे  में   पता  चला  तो  वह  बहुत  प्रसन्न  हुईं   और   उन्होंने  चहकते  हुए   पूछा  ---- " ख़िताब  के  साथ  कुछ  और  भी  देंगे   l "  हाँ  कुछ  और  भी  देंगे  l  उन्होंने  बुझी  आवाज  में  कहा   तो  आप   इतने  दुःखी   और  परेशान  क्यों  हैं  l  यह  तो  ख़ुशी  की  बात  है  ,  पत्नी  ने  आश्चर्य  से  कहा  l    प्रेमचंद  ने  अपनी  पत्नी  से  कहा ---- "  मैं  यह  सम्मान  स्वीकार  नहीं  कर  सकता  क्योंकि   अब  तक  मैंने  जनता  के  लिए   लिखा  है   लेकिन  राय  साहब  बनने  के  बाद   मुझे  सरकार  के  लिए  लिखना  पड़ेगा   और  मुझे   यह  स्वीकार  नहीं  है  l  इसके  बाद   उन्होंने    राय  साहब  को  सन्देश  भिजवाया  कि  मैं  जनता  की   राय साहबी   तो  ले  सकता  हूँ  लेकिन  सरकार  की  नहीं   l "    प्रेमचंद  का  उत्तर  पढ़कर  गवर्नर  हेली  स्तब्ध   रह   गए   लेकिन  मन ही  मन  उन्होंने  उनके  स्वाभिमान  की  प्रशंसा  की  l  बाद  में  प्रेमचंद  जब  उन्हें  किसी  आयोजन  में  मिले   तो  गवर्नर   हेली  ने  सर   झुकाकर   उनके  स्वाभिमान   का  सम्मान  किया  l  

8 January 2024

WISDOM ------

 हमारे  धर्म ग्रन्थ  हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं  l  आज  संसार  में  इतना  पाप , अत्याचार  क्यों  बढ़  रहा  है  ?  इसका  सबसे  बड़ा  कारण  है   कि  व्यक्ति  बड़े -बड़े  अपराध  करता  है , मर्यादाहीन  और  अनैतिक  आचरण  करता  है   और  शक्तिशाली  लोगों  का  आश्रय  पाकर  दंड  से  बच  जाता  है  l  कभी  आत्म समर्पण  कर  दिया  जैसे  डाकुओं  ने  समर्पण  किया  था  , कभी  परिवार  में  इज्जत  बचाए  रखने  के  लिए   लोग  मुंह  बंद  करा  देते  हैं ,  कभी  समाज  अपने  फायदे  और  बड़े  लाभ  के  लिए  अपराधियों  की  शरण  लेते  हैं  ----- ऐसे  अनेक  तर्क  हैं  जिनकी  वजह  से  संसार  में  क्षमा  की  बड़ी  व्यवस्था  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' क्षमा  मिल  जाएगी  '   इससे  अनेक  लोग  अपराध   करने  की  दिशा  में  प्रेरित  होते  हैं  l ' बड़े  की  आड़  में  अनेक  लोग   जिनकी  व्यक्तिगत  कोई  मजबूती  नहीं  है  , वे  भी  अपराध  करने  लगते  हैं  l  संचार  के  साधनों  का  इतना  विस्तार  हो  जाने  से  अपराध  का  भी  वैश्वीकरण  हो  गया  है  l  धर्मग्रन्थ  हमें  शिक्षा  तो  देते  हैं  लेकिन  उन  शिक्षा  के  अनुसार  आचरण  करने  वाला  चाहिए  l    रामायण  में  प्रसंग  है  --जब  राम -रावण  युद्ध  समाप्त  हो  गया   तब  माँ  सीता  से  पूछा  गया  कि  अशोक  वाटिका  में  जिन  राक्षसियों  ने  उन्हें  डराया -धमकाया  उन्हें  क्या  सजा  दी  जाये   ?   तब  सीताजी  ने  कहा  --- ये  तो  रावण  के  आदेश  पर  यह  सब  कर  रहीं  थीं  ,  उन्हें   व्यक्तिगत  रूप  से  कोई  दुश्मनी  नहीं  थी  ,  इसलिए  इन्हें  क्षमा  कर  दो  l   लेकिन  माता  सीता  ने  रावण  को  उसके  मर्यादाहीन  आचरण  के  कारण  कभी  क्षमा  नहीं  किया  ,  उसकी  ओर  आँख  उठाकर  भी  नहीं  देखा  l  इसलिए  रावण  का  अंत  हुआ  l   महाभारत  में   द्रोपदी  ने  दुर्योधन , दु: शासन  को  क्षमा  नहीं  किया   l  स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  ने   कंस  को  क्षमा  नहीं  किया  उसका  वध  किया  l  अश्वत्थामा  को  उसके  जघन्य  अपराध  के  लिए   उसे   दंड  दिया   , भीम  से  कहा  --इसके  मस्तक  की  मणि  निकाल  लो  ,  इस  घाव  को  लिए  यह  युगों  तक   भटकेगा  l  जब    कानून  का  भय  होगा , कठोर  दंड  होगा , समाज  और  परिवार  अपराधियों  को  बहिष्कृत  करेंगे    तभी  संसार  में  शांति होगी  l  

7 January 2024

WISDOM -----

   मनुष्य  एक  बुद्धिमान  प्राणी  है  ,  लेकिन  इतनी  बुद्धि  के  बावजूद   वह  निरंतर  समस्याओं  और  मुसीबतों  से  घिरा  हुआ  है  l  संसार  में  कोई  भी  मनुष्य  ऐसा  नहीं  है  जिसके  जीवन  में  समस्याएं  न  हो  l  प्रत्येक  व्यक्ति  की  समस्या  का  रूप  अलग -अलग  है  l  जो  साहस , धैर्य  और  बुद्धि -विवेक  के  साथ  इन  समस्याओं  का  सामना  करते  हैं   , वे  जिन्दगी  की  जंग  को  जीत  जाते  हैं  l  सामाजिक  प्राणी  होने  के  नाते  कुछ  समस्याएं  हमारी  अपनी  होती  हैं  ,   संघर्ष  कर  के  ,मेहनत  कर  के  और  संतुलित  जीवन  जी  कर  इन  समस्याओं   का  हल  संभव  है  l  लेकिन  अनेक  मुसीबतें  ऐसी  होती  हैं  जो  लोग  अपनी  ईर्ष्या , द्वेष , लालच , प्रतियोगिता   आदि  नकारात्मक  स्वभाव  के  कारण  दूसरों  को  तंग  कर   उनके  जीवन  में  तनाव  देते  हैं , उनका  सुख -चैन  छीनने  की  भरपूर  कोशिश  करते  हैं    और  बाद  में  अपने  उन  गलत  कर्मों  का  परिणाम   प्राप्त  होने  पर   मुसीबतों  से  घिर  जाते  हैं   l  सामाजिक  प्राणी  होने  के  नाते  हमारा  सामना  विभिन्न  प्रवृतियों  के  लोगों  से  होता  है   , कोई  ईर्ष्यालु  है , कोई  लालची , कोई  हमसे  प्रतियोगिता  करता  है  , कोई  बिना  वजह  हमारा  अहित  चाहता  है  , कहीं  अहं  का  टकराव  है  ---- ऐसे  ही  लोगों  के  बीच  रहकर  हम  अपने  मन  को  कैसे  शांत  रखें , कैसे  तनाव  रहित  जीवन  जियें  ,  इसी  का  ज्ञान  जीवन  जीने  की  कला  है   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  --- 'हम  संसार  को  नहीं  बदल  सकते  ,  हम  अपने  मन  को  साध  लें ,  अपनी  सोच  बदल  लें  तभी  हम  शांति  से  रह सकते  हैं   जैसे  कोई  हमारी  बहुत  निंदा  करता  है , झूठी  अफवाहें फैलाता  है  , गासिप  करता  है  ,  तो  उसे  उसका  काम  करने  दो ,  उससे  उलझने  का , विवाद  करने  का  कोई  फायदा  नहीं  है  l  हमें  यह  देखना  है  कि  हम  अपनी  आत्मा  में , अपने  ईश्वर  की  निगाह  में   सही  हैं   तो   किसी  के  अफवाह  फ़ैलाने  से  कुछ  नहीं  बिगड़ने  वाला , सच  सामने  अवश्य  आएगा  l    इसी  तरह   यदि  कोई  आपकी  बहुत  प्रशंसा  करता  है   तो  अपनी  प्रशंसा  सुनकर   मन  को  विचलित  न  करें   l  इतनी  प्रशंसा  के  पीछे  कोई  न  कोई  स्वार्थ  अवश्य  छुपा  है ,  यह  संसार  गणित  से  चलता  है  l  

6 January 2024

WISDOM -----

   ' रात  गँवाई  सोय  के , दिवस  गँवायो  खाय ,  मीरा  जनम  अनमोल  था  ,  कौड़ी  बदले  जाय  l   '  बड़े  पुण्यों  के  बाद  मानव  शरीर  मिलता  है  ,  लेकिन  मनुष्य  अपनी  नासमझी  के  कारण  अपना  पूरा  जीवन  छल , कपट , षड्यंत्र ,  दूसरों  को  नीचा  दिखाना , लोगों  का  हक  छीनना , दूसरों  को  कष्ट  देकर   आनंदित  होना   और  कभी  समाप्त  न  होने  वाली  तृष्णा , कामना , लालच ------ आदि  नकारात्मकता  में  ही  व्यतीत  कर  देता  है  l  हमें  गिनती  की  श्वास  मिली  हैं  लेकिन  इस  नकारात्मकता  से   उबरें  , तभी  इस  जीवन  का  सदुपयोग  हो  सके  l  इन  सबके  ऊपर  एक  सबसे  बड़ी  गलत  आदत  है  --' आलस  '  और  आलसी ,   कर्महीन     व्यक्ति  की  भगवान  भी  मदद  नहीं   करते  l  एक  कथा  है ------  बरसात  के  दिन  समीप  थे  l  पत्नी  ने  पति  से  कहा --- अब  चहत  पर  मिटटी  डालकर  प्लास्टिक  शीट  से  ढक  देना  चाहिए   नहीं  तो  कमरे  में  पानी  भरेगा  l  दीर्घसूत्री  महा आलसी   पति  ने  कहा  --- "  ऐसी  क्या  जल्दी  है  , कर  लेंगे  l  इसमें  कितना  समय  लगता  है  l "  पत्नी  बेचारी  चुप  हो  गई  l  आकाश  में   बादल   घिरने  लगे  l  पत्नी  बोली ---- "देखिए , अब  तो  बरसात  सिर  पर  आ  गई  l  अब  तो  कुछ  करिए  l "   ऊँघते  हुए  पतिदेव  बोले ---- " कोई  रात  में  ये   बादल    बरसने  वाले  नहीं  हैं  l  ये  तो  रोज  ही  आते -जाते   बादल  हैं  l "   दिन  निकल  गया  l  एक -दो  दिन  बाद  आंधी  आई  ,  साथ  लाइ  काले  बादल  l  देखते -देखते  आकाश  काला  हो  गया  l  तेज  बरसात  आरम्भ  हो  गई  l  घनघोर  वर्षा  रात  भर  होती  रही  l  अगले  दिन  मकान  धराशायी    हो  गया  l  पति  महोदय  रोने  लगे  ---- " अब  इन  बच्चों  का , हमारा  क्या  होगा  ! "  इस  पर  पत्नी  ने  उत्तर  दिया  ---- "  वही  होगा  जो  शेखचिल्लियों  के  बच्चों  का  होता  आया  है  l  "    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " आलस्यवश  काम  को  बाद  के  लिए  छोड़ना   एक  ऐसा  दुर्गुण  है  ,  जो  जीवन  को  बरबाद  करता  है  l  जो  जीवन  से  प्यार  करते  हैं  , उन्हें  आलस्य  में  समय  नहीं  गँवाना  चाहिए  l "

4 January 2024

WISDOM -----

   आज  संसार  में  जितनी  भी  समस्याएं  हैं , प्रमुख  रूप  से   डिप्रेशन  है ,  लड़ाई  झगडे  हैं ,   उनके  पीछे  किसी  न  किसी  का  अहंकार  अवश्य  है  l  कृषि , उद्योग , शिक्षा , चिकित्सा , राजनीति  , छोटी -बड़ी  संस्थाएं  , यहाँ  तक  कि  परिवारों  में  भी   अधिकांश  समस्याएं  किसी  न  किसी  व्यक्ति  के  अहंकार  के  कारण  हैं  l  कोई  उच्च  पद  पर  बैठा  व्यक्ति , धन -वैभव  संपन्न  व्यक्ति  अहंकार  करे   तो  फिर  भी  बात  समझ  में  आती   है  लेकिन   किसी  छोटी  संस्था  में , ,  छोटे  से  परिवार  में  एक  व्यक्ति   अहंकारी  हो  और  स्वयं   को    सर्वश्रेष्ठ  समझ  कर   सब  को  अपने  कंट्रोल  में  रखना  चाहे ,  अपनी  हुकूमत  चलाने  के  लिए  सबका  जीना  मुश्किल  कर  दे   तो  यह  उस  अहंकारी  की  मानसिक  विकृति  है  l   विकृति  इस  लिए  भी  क्योंकि  पीड़ित  व्यक्ति  उनसे  अपना  पीछा  छुड़ा  ले  ,  लेकिन  अहंकारी  अपनी  हुकूमत  के  लिए  उसका  पीछा  नहीं  छोड़ता  l  परिवार  में  , संस्थाओं  में  हिंसा , उत्पीड़न  इसी  विकृति  का   दुष्परिणाम  है  l   अहंकार  की  यह  बीमारी  कोई  नई  नहीं  है  , इतिहास  उनके  कारनामों  से  भरा  पड़ा  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " अहंकार  से  प्रेरित  बुद्धि  हमेशा  ही  कुटिल  और  कलुषित  होती  है  l  वह  कभी  सर्वहित  की  नहीं  सोचता  ,  उसकी  सोच  में  सदा  ही  क्षुद्रता  और  स्वार्थ  हावी  रहते  हैं  l  असुरों  की  चेतना  सदा  ही  अपने  अहंकार  के  कारण   स्रष्टि  में  बाधा   उत्पन्न  करती  है    इसलिए  श्रीभगवान  ही  विविध  रूप  धारण  कर  के   उसका  विनाश  करते  हैं  l "   श्रीदुर्गासप्तशती  में  कथा  है  -----  जब  दो  भयंकर  असुर  मधु  और  कैटभ   ने  संसार  में  आतंक  मचाया , देवताओं  को  पीड़ित  किया   फिर  अपने  बल  के  अहंकार  में  ब्रह्माजी  का  वध  करने  को  तैयार  हो  गए   तब  भगवान  श्रीहरि  ने  उन  दोनों  के  साथ  पांच  हजार  वर्षों  तक  युद्ध  किया  l   मधु -कैटभ   अपने  अहंकार  में  इतने  उन्मत  हो  गए    कि  वे  वरदाता  भगवान  विष्णु   से  कहने  लगे ---- " हम  तुम्हारी  वीरता  से  बहुत   संतुष्ट  हैं  l  तुम  हम  लोगों  से  कोई  वर  मांगो  l "  यह  अहंकार  की  चरम  सीमा  थी  कि  वरदाता   को   वरदान  देने  का  साहस  करने  लगे  l    अहंकार  हमेशा   अपना  ही  विनाश  करता  है  l   श्रीभगवान  बोले ---- " प्रसन्न  हो  तो  इतना  ही  वर  दो   कि  अब  मेरे  ही  हाथ  से  मारे  जाओ  l "   भगवान  ने  उन  दोनों  के   मस्तक    अपनी  जांघ  पर  रखकर   चक्र  से  काट  डाले  l    अहंकार  की  कोई  सीमा रेखा  नहीं  है   इसलिए  प्रकृति  स्वयं  उसके  विनाश  सरंजाम  जुटा  देती  है  l  आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- " यदि  किसी  को  अपने  अहंकार  का  , इसके  उपद्रव  का  ज्ञान  हो  जाये  ,  तब  वह  स्वयं    ही  इस  अज्ञान  के  अंधकार  में  नहीं  रहना  चाहता    और  ईश्वर  से  इस   अहंकार  के  विनाश  की  कामना  करने  लगता  है  l "

3 January 2024

WISDOM ---

 आज  संसार  में  परिस्थितियां  इतनी  विकट   हैं  कि  अनेक  प्रश्न  उत्पन्न  होते  हैं   जैसे  ---किसी  के  पास  सारे  सुख -वैभव  हैं , सम्पन्नता  है  फिर  आत्महत्या  क्यों  की  ?  उच्च  स्तर  का  रहन -सहन , अच्छा  भोजन  आदि  सब  उपलब्ध  है  फिर  बीमारियों  से  क्यों  घिरे  हो  ?   जो  देश  बहुत  अमीर  हैं , विकास  के  चरम  पर  हैं  वहां  लोगों  में  इतना  तनाव  क्यों  हैं   कि  जब -तब  लोगों  को  गोली  से  भून  डाला  ?  समस्या  का  समाधान  युद्ध  में  खोजते  हैं   ?   जीवन  इतना  असंतुलित  है  कि   किसी  भी  समस्या  का  कोई   हल  खोजें  भी  तो  वह  सुलझने  के  बजाय  और  उलझ   जाती  है   ?  इन  सबका  कारण  एक  ही  है ----- पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " संसार  में  जितने  भी  ज्ञान , कला  और  कौशल  हैं  ,  उनमें  सर्वोपरि  स्थान  ' जीवन  जीने  की  कला  का  '  का  है   l                यदि  जीवन  जीने  की  कला  का  ज्ञान  ही  न  हो  तो   व्यक्ति  सारी  जानकारी  प्राप्त  कर  लेने  के  बाद  भी   दीन , दुःखी   और  पतित  जीवन  जीता   ही  देखा  जाता  है  l  जिसे  यह  कला  आती  है  ,  उसे  हर  घड़ी , हर  परिस्थिति  में   केवल  आनंद , उल्लास   और  संतोष  का  सुख  मिलता  रहता  है   l "  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- " दुःख  इस  बात  का  है   कि  बुद्धिमान  समझा  जाने  वाला   मानव  प्राणी   जीवन  विद्या  की  उपयोगिता   और  आवश्यकता  को   न  तो  अनुभव  कर  रहा  है   और  न  ही   उसके  लिए  कोई  प्रयत्न  ही  इस  दिशा  में   चल  रहे  हैं  l  अनेक  विषयों  की  शिक्षा  देने  के  लिए   अनेक  विद्यालय  मौजूद  हैं  ,  पर  जीवन  जीने  की  कला  सिखाने  वाला   एक  भी  विद्यालय  कहीं  न  हो  ,  यह  कितने  आश्चर्य  और  खेद  का  विषय  है  l  

2 January 2024

WISDOM ----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  का  मन  एक  चोर  है , उसे  बाहरी  दबाव  से  एक  सीमित  मात्रा  में  ही  काबू  में  रखा  जा  सकता  है  l  आत्म  सुधार  तो  ह्रदय  परिवर्तन  से  ही  संभव  है   और  उसे  स्वयं  ही  संयम  साधना  के  आधार  पर  करना  होता  है  l  "      यदि  हम  केवल  सामाजिक  बुराइयों  को  ही  देखें  तो  उन्हें  दूर  करने  के  लिए  कितने  नियम  कानून  बन  गए  हैं   लेकिन  फिर  भी  कोई  सतयुगी  वातावरण  नहीं  है  l  नियम  कानून  से  बहुत  सीमित  मात्रा  में  ही  नियंत्रण  संभव  है  ,  चेतना  परिष्कृत  न  होने  से   शराफत  का  आवरण  ओढ़  कर   व्यक्ति  गलत  काम  छुपकर  करने  लगता  है  l                                                                       संत  एकनाथ  के  साथ  एक  चोर  भी  तीर्थयात्रा  पर  चल  पड़ा  l  साथ  लेने  से  पूर्व  संत  ने  उसे  चोरी  न  करने  की  प्रतिज्ञा  करवाई  l  यात्रा  मंडली  को  नित्य  ही  एक  परेशानी  का  सामना  करना  पड़ता  l  रात  को  रखा  गया  सामान  कहीं  से  कहीं  चला  जाता  l  नियत  स्थान  पर  न  पाकर  सभी  हैरान  होते   और  जैसे -तैसे  ढूंढ  कर  लाते  l  नित्य  की  इस  परेशानी  से  तंग  आकर   इस  स्थिति  के  कारण  की  खोज  शुरू  हुई  l  रात  को  जागकर   इस  उलट -पुलट  की  वजह  ढूँढने  का  जिम्मा  एक  चतुर  यात्री  ने  उठाया  l  खुराफाती  पकड़ा  गया  l  सवेरे  उसे  संत  एकनाथ  के  सम्मुख  पेश  किया  गया  l  पूछने  पर  उसने  वास्तविकता  कही  l  चोरी  करने  की  उसकी  आदत  मजबूत  हो  गई  है   लेकिन  यात्रा  काल  में  चोरी  न  करने  की  कसम  निभानी  पड़  रही  है  ,  पर  उसका  मन  नहीं  मानता   तो  तूंबा -पलटी  (इधर  का  उधर  सामान  रख  आने  )  से  उसका  मन  बहल  जाता  है  l  इससे  कम  में  काम  चल  नहीं  सकता   इसलिए  वह  यह  खुराफात  करने  लगा  l