केवल कानून बना देने से समाज में फैली विकृतियों को दूर नहीं जा सकता , इसके लिए समाज का जागरूक होना जरुरी है l कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर भी है l असुरता सदैव देवत्व पर आक्रमण करती है , दुष्टता अच्छाई को मिटाने के लिए षडयंत्र रचती है l जागरूक रहकर ही उन षडयंत्रों से बचा जा सकता है --- यही महाभारत का शिक्षण है l
महाभारत -- जाति और सम्प्रदाय के आधार पर युद्ध नहीं था , यह तो अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए महाभारत था l
दुर्योधन ने पांडवों को अपने रास्ते से हटाने के लिए सदैव षडयंत्र रचे l पांडव जब जागरूक रहे तो उन षडयंत्रों से बच गए जैसे दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षाग्रह में महारानी कुंती समेत जला देने की योजना बनाई l पांडव सचेत थे , समय रहते उन्होंने वहां सुरंग बना ली और बच निकले l इस जागरूकता में जरा सी चूक से उन्हें जो हानि हुई उसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी l
जब महाभारत समाप्त हो गया , दुर्योधन भी पराजित हो गया तब पांचों पांडव महल में निश्चिन्त होकर सो गए l इस हार से बौखलाए ' गुरु - पुत्र ' अश्वत्थामा ने अर्द्ध रात्रि में सोते हुए पांचों पांडवों का वध करने का निश्चय किया , अपनी बौखलाहट में उसने पांडवों के पांच सुकोमल पुत्रों का वध कर दिया और अभी तक माथे पर कलंक लिए भटक रहा है l
यह कथा हमें सिखाती है कि राक्षसी प्रवृतियां रात्रि में जब चारों और सन्नाटा होता है तब क्रियाशील होती हैं lऐसी पाशविक प्रवृतियों का जाति या धर्म से कोई लेना - देना नहीं होता , यह तो व्यक्ति के भीतर बैठा दानव है जो अपने अनुकूल परिस्थितियां पाकर पाप और अधर्म करता है l
आज के समय में भी यदि राक्षसी - प्रवृतियों से समाज को बचना है तो जागरूक रहना होगा l समाज में कोई भी ऐसा स्थान न रहे जहाँ रात्रि को अँधेरा और सन्नाटा हो जिसमे दुष्टता को पांव पसारने का मौका मिले l जागते रहो !
महाभारत -- जाति और सम्प्रदाय के आधार पर युद्ध नहीं था , यह तो अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए महाभारत था l
दुर्योधन ने पांडवों को अपने रास्ते से हटाने के लिए सदैव षडयंत्र रचे l पांडव जब जागरूक रहे तो उन षडयंत्रों से बच गए जैसे दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षाग्रह में महारानी कुंती समेत जला देने की योजना बनाई l पांडव सचेत थे , समय रहते उन्होंने वहां सुरंग बना ली और बच निकले l इस जागरूकता में जरा सी चूक से उन्हें जो हानि हुई उसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी l
जब महाभारत समाप्त हो गया , दुर्योधन भी पराजित हो गया तब पांचों पांडव महल में निश्चिन्त होकर सो गए l इस हार से बौखलाए ' गुरु - पुत्र ' अश्वत्थामा ने अर्द्ध रात्रि में सोते हुए पांचों पांडवों का वध करने का निश्चय किया , अपनी बौखलाहट में उसने पांडवों के पांच सुकोमल पुत्रों का वध कर दिया और अभी तक माथे पर कलंक लिए भटक रहा है l
यह कथा हमें सिखाती है कि राक्षसी प्रवृतियां रात्रि में जब चारों और सन्नाटा होता है तब क्रियाशील होती हैं lऐसी पाशविक प्रवृतियों का जाति या धर्म से कोई लेना - देना नहीं होता , यह तो व्यक्ति के भीतर बैठा दानव है जो अपने अनुकूल परिस्थितियां पाकर पाप और अधर्म करता है l
आज के समय में भी यदि राक्षसी - प्रवृतियों से समाज को बचना है तो जागरूक रहना होगा l समाज में कोई भी ऐसा स्थान न रहे जहाँ रात्रि को अँधेरा और सन्नाटा हो जिसमे दुष्टता को पांव पसारने का मौका मिले l जागते रहो !