पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय - ' हमारी संस्कृति - इतिहास के कीर्ति स्तम्भ ' में प्रस्तुत प्रसंग का एक अंश ---- बात उन दिनों की है ---- ' जब कलकत्ते में प्लेग का प्रकोप हुआ , समस्त नगर में प्रलय काल का सा दृश्य दिखाई पड़ने लगा l प्राणो के भय से दल के दल व्यक्ति शहर छोड़कर भागने लगे l इससे सरकारी अधिकारियों को यह भय हुआ की यह महामारी कस्बों और गांवों में भी फैल जाएगी l इस विपत्ति से बचने के लिए तत्कालीन गवर्नर लार्ड कर्जन ने आदेश दिया कि कोई व्यक्ति कलकत्ता छोड़कर बाहर न जाये l इसलिए चारों तरफ पुलिस और फौज का पहरा लगा दिया l यह बड़ा भयंकर समय था l एक के बाद एक बड़े नगर प्लेग के प्रहार से वीरान बनते जा रहे थे l कलकत्ता शहर की एक सप्ताह में ही दुर्दशा हो गई थी l स्वामी विवेकानंद ने इस अवसर पर अपने संन्यासी समुदाय को प्लेग पीड़ितों की सहायतार्थ लगा दिया था l
महामारी का प्रकोप अधिक बढ़ते देख महात्मा शिशिर घोष ने गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन इस संबंध में परामर्श किया और फिर अनेक गणमान्य नागरिकों के सहयोग से जिनमे हाईकोर्ट के प्रधान जज श्री द्वारिकानाथ मिश्र और प्रमुख जमींदार यतीन्द्रमोहन ठाकुर भी थे , एक बहुत बड़ी सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया l इस सभा में चम्पटी ठाकुर ने ' हरिनाम संकीर्तन ' द्वारा इस महाविपत्ति से परित्राण पाने के सम्बन्ध में हृदयग्राही भाषण दिया l
सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि कलकत्ते के मैदान में सब धर्मों की सम्मिलित
' ईश्वर प्रार्थना ' और विशाल संकीर्तन का आयोजन किया जाये l
प्रभु जगद्बन्धु की प्रेरणा से डोम जाति के लोग उच्च श्रेणी के कीर्तनकार बन गए थे इसलिए रामबागान के डोमों को ही इस कार्य में अगुआ बनना पड़ा l प्राणों के भय से अन्य उच्च जाति के लोग भी कीर्तन में भाग लेने लगे l उस आपत्तिकाल में ब्राह्मण - शूद्र , हिन्दू , मुसलमान , ईसाई आदि का भेदभाव जाता रहा और काळा - गोरे , ऊंच - नीच सब मिलकर परमपिता की प्रार्थना करने लगे l धर्मतल्ला की बड़ी मस्जिद के कट्टर मुल्लाओं ने भगवान की आरती में भाग लिया l स्वयं लार्ड कर्जन भी इस अवसर पर आये और उन्होंने जूता तथा टोपी उतार कर ईश - प्रार्थना तथा भगवन्नाम - संकीर्तन के प्रति सम्मान का भाव प्रकट किया l इस अवसर पर प्रभु जगद्बन्धु भी वहां थे l उनकी उपस्थिति में असंख्य कंठों से ' हरिध्वनि ' होने लगी , जिससे सारा आकाश गूंज उठा l इस महासंकीर्तन के पश्चात् प्लेग का बढ़ना रुक गया और धीरे - धीरे नगर में शांति हो गई l
आज परिस्थितियां बदल गईं , लेकिन सामूहिक प्रार्थना की शक्ति वही है l हम सब एक माला के मोती हैं इसलिए अपने - अपने घरों में रहते हुए और मन से सबके साथ जैसे धागे में मोती पिरोये होते हैं , ईश्वर की प्रार्थना करें l ' निर्धारित समय ' पर सामूहिक प्रार्थना , मन्त्र जप आदि से कोरोना भी रोते हुए भाग जायेगा l
महामारी का प्रकोप अधिक बढ़ते देख महात्मा शिशिर घोष ने गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन इस संबंध में परामर्श किया और फिर अनेक गणमान्य नागरिकों के सहयोग से जिनमे हाईकोर्ट के प्रधान जज श्री द्वारिकानाथ मिश्र और प्रमुख जमींदार यतीन्द्रमोहन ठाकुर भी थे , एक बहुत बड़ी सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया l इस सभा में चम्पटी ठाकुर ने ' हरिनाम संकीर्तन ' द्वारा इस महाविपत्ति से परित्राण पाने के सम्बन्ध में हृदयग्राही भाषण दिया l
सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि कलकत्ते के मैदान में सब धर्मों की सम्मिलित
' ईश्वर प्रार्थना ' और विशाल संकीर्तन का आयोजन किया जाये l
प्रभु जगद्बन्धु की प्रेरणा से डोम जाति के लोग उच्च श्रेणी के कीर्तनकार बन गए थे इसलिए रामबागान के डोमों को ही इस कार्य में अगुआ बनना पड़ा l प्राणों के भय से अन्य उच्च जाति के लोग भी कीर्तन में भाग लेने लगे l उस आपत्तिकाल में ब्राह्मण - शूद्र , हिन्दू , मुसलमान , ईसाई आदि का भेदभाव जाता रहा और काळा - गोरे , ऊंच - नीच सब मिलकर परमपिता की प्रार्थना करने लगे l धर्मतल्ला की बड़ी मस्जिद के कट्टर मुल्लाओं ने भगवान की आरती में भाग लिया l स्वयं लार्ड कर्जन भी इस अवसर पर आये और उन्होंने जूता तथा टोपी उतार कर ईश - प्रार्थना तथा भगवन्नाम - संकीर्तन के प्रति सम्मान का भाव प्रकट किया l इस अवसर पर प्रभु जगद्बन्धु भी वहां थे l उनकी उपस्थिति में असंख्य कंठों से ' हरिध्वनि ' होने लगी , जिससे सारा आकाश गूंज उठा l इस महासंकीर्तन के पश्चात् प्लेग का बढ़ना रुक गया और धीरे - धीरे नगर में शांति हो गई l
आज परिस्थितियां बदल गईं , लेकिन सामूहिक प्रार्थना की शक्ति वही है l हम सब एक माला के मोती हैं इसलिए अपने - अपने घरों में रहते हुए और मन से सबके साथ जैसे धागे में मोती पिरोये होते हैं , ईश्वर की प्रार्थना करें l ' निर्धारित समय ' पर सामूहिक प्रार्थना , मन्त्र जप आदि से कोरोना भी रोते हुए भाग जायेगा l