युग बीत गए लेकिन धरती पर से अत्याचार , अन्याय , अधर्म समाप्त ही नहीं होता l इसका कारण यह है कि अत्याचारी कुटिल और दूरदर्शी होता है और उसके अत्याचार , अन्याय का समर्थन करने वाले विभिन्न मजबूरियों से घिरे होते हैं l जब अत्याचारी , अहंकारी का समर्थन करने वाले , उसके गलत कार्यों की सराहना करने वाले असंख्य होंगे तो अत्याचार क्यों खत्म होगा , वह तो और तेजी से बढ़ेगा l कहते हैं जो महाभारत में है , वही इस धरती पर भी है -- महारथी , महादानी कर्ण को सूतपुत्र होने के कारण समाज में हर ओर से तिरस्कार मिला l दुर्योधन ने उसकी योग्यता को , उसके महत्त्व को समझा और उसे अंगदेश का राजा बनाकर उसे अपना ऋणी बना लिया l यह जानते हुए भी कि दुर्योधन षड्यंत्रकारी है , अत्याचारी है , अधर्म पर है , फिर भी उसने आखिरी सांस तक दुर्योधन का साथ दिया क्योंकि एक राजा का सम्मान तो उसे दुर्योधन की वजह से ही मिला था l इसी तरह द्रोणाचार्य , कृपाचार्य को भी राजसुख दुर्योधन की वजह से था , यदि वे उसकी नीतियों का विरोध करते तो उन्हें भी विदुर की भांति शाक -पात पर रहना पड़ता l यह स्थिति हर युग में है l हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी दुकान चलती रहे , उसके परिवार का पालन -पोषण होता रहे , इसलिए वह क्या सही है और क्या गलत है यह देखना ही नहीं चाहता l जो बुद्धिजीवी हैं और जानते हैं कि अन्याय का , अधर्म का साथ देने का अंतिम परिणाम क्या होगा , फिर भी अपनी आत्मा की आवाज को दबाकर वे अत्याचारी , अन्यायी का साथ देते है ,संसार में रहने की मजबूरियों की वजह से l महात्मा विदुर जैसे लोग बहुत कम होते हैं इसलिए यह सिलसिला युगों से चलता आया है और आगे भी चलता रहेगा l यही कर्म बंधन है जिसके कारण मनुष्य विभिन्न योनियों में भटकता रहता है l महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण ने भीष्म पितामह से पूछा ----" अर्जुन से अधिक पराक्रमी होने के बावजूद और यह विश्वास मन में होते हुए भी कि युद्ध में मैं उसे हरा दूंगा , जब भी मैं अर्जुन के समक्ष जाता हूँ , तब -तब पराजय का भाव मेरे मन में आता है l " भीष्म ने कहा ---- " ऐसा इसलिए होता है कर्ण कि तुम जानते हो कि तुम गलत हो , तुम जानते हो कि दुर्योधन बिना वजह पांडवों के विरुद्ध षड्यंत्र रचता है , उसकी अनीति और अधर्म के साथी तुम भी हो , तुम्हारे अन्दर अपराधबोध है l उसी का बोझ तुम्हारे मन पर है l भावनाओं का अवरोध ही तुम्हारी क्षमताओं को रोकता है l तुम विचारशील होने के नाते यह भी जानते हो कि पांडव धर्म पर हैं , उनके साथ अन्याय हो रहा है और तुम अन्याय के पक्ष में खड़े हो l तुम्हारा अंतर्मन तुम्हे बार -बार कचोटता है , कर्ण ! तुम अधर्म के साथ खड़े हो l "