26 April 2024

WISDOM ----

   युग  बीत  गए  लेकिन  धरती  पर  से  अत्याचार , अन्याय , अधर्म  समाप्त  ही  नहीं  होता   l  इसका  कारण  यह  है  कि  अत्याचारी  कुटिल  और  दूरदर्शी  होता  है   और  उसके  अत्याचार , अन्याय  का  समर्थन  करने  वाले   विभिन्न  मजबूरियों  से  घिरे  होते  हैं  l  जब  अत्याचारी , अहंकारी  का  समर्थन  करने  वाले , उसके  गलत  कार्यों  की  सराहना  करने  वाले  असंख्य  होंगे  तो   अत्याचार  क्यों  खत्म  होगा , वह  तो  और  तेजी  से  बढ़ेगा  l    कहते  हैं  जो  महाभारत  में  है , वही  इस  धरती  पर  भी  है  -- महारथी , महादानी  कर्ण  को  सूतपुत्र  होने  के  कारण   समाज  में  हर  ओर  से  तिरस्कार  मिला  l  दुर्योधन  ने  उसकी  योग्यता  को , उसके  महत्त्व  को  समझा   और  उसे  अंगदेश  का  राजा  बनाकर   उसे  अपना  ऋणी बना  लिया  l  यह  जानते  हुए  भी  कि   दुर्योधन   षड्यंत्रकारी  है ,  अत्याचारी  है , अधर्म  पर  है , फिर  भी  उसने  आखिरी  सांस  तक  दुर्योधन  का  साथ  दिया   क्योंकि  एक  राजा  का  सम्मान  तो  उसे  दुर्योधन  की  वजह  से  ही  मिला  था  l  इसी  तरह  द्रोणाचार्य , कृपाचार्य   को  भी  राजसुख   दुर्योधन  की  वजह  से  था  , यदि  वे  उसकी  नीतियों  का  विरोध  करते  तो  उन्हें  भी  विदुर  की  भांति  शाक -पात  पर  रहना  पड़ता  l  यह  स्थिति  हर  युग  में  है  l  हर  व्यक्ति  चाहता  है  कि  उसकी  दुकान  चलती  रहे  , उसके  परिवार  का  पालन -पोषण   होता  रहे  , इसलिए  वह   क्या  सही  है  और  क्या  गलत  है   यह  देखना  ही  नहीं  चाहता  l  जो  बुद्धिजीवी  हैं   और  जानते  हैं  कि  अन्याय  का  , अधर्म  का  साथ  देने  का  अंतिम  परिणाम  क्या  होगा  , फिर  भी  अपनी  आत्मा  की  आवाज  को  दबाकर  वे    अत्याचारी , अन्यायी  का  साथ  देते  है  ,संसार  में  रहने  की  मजबूरियों  की  वजह  से   l  महात्मा  विदुर  जैसे  लोग  बहुत  कम  होते  हैं  इसलिए  यह  सिलसिला  युगों  से  चलता  आया  है  और  आगे  भी  चलता  रहेगा   l  यही  कर्म  बंधन  है  जिसके  कारण  मनुष्य  विभिन्न  योनियों  में  भटकता  रहता  है  l   महाभारत  युद्ध  के  दौरान   कर्ण  ने  भीष्म पितामह  से  पूछा ----"  अर्जुन  से  अधिक  पराक्रमी  होने  के  बावजूद   और  यह  विश्वास  मन  में  होते  हुए  भी   कि  युद्ध  में  मैं  उसे  हरा  दूंगा  ,   जब  भी  मैं  अर्जुन  के  समक्ष  जाता  हूँ  , तब -तब  पराजय  का  भाव   मेरे  मन  में  आता  है  l "  भीष्म  ने  कहा ---- "  ऐसा  इसलिए  होता  है  कर्ण  कि  तुम  जानते  हो  कि  तुम  गलत  हो  ,  तुम  जानते  हो  कि   दुर्योधन  बिना  वजह  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  रचता  है ,  उसकी  अनीति  और  अधर्म  के  साथी  तुम  भी  हो  , तुम्हारे  अन्दर  अपराधबोध  है   l  उसी  का  बोझ  तुम्हारे  मन  पर  है  l  भावनाओं  का  अवरोध  ही   तुम्हारी  क्षमताओं  को  रोकता  है  l  तुम  विचारशील  होने  के  नाते   यह  भी  जानते  हो  कि   पांडव  धर्म  पर  हैं , उनके  साथ  अन्याय  हो  रहा  है   और  तुम  अन्याय  के  पक्ष  में  खड़े  हो  l  तुम्हारा  अंतर्मन  तुम्हे  बार -बार  कचोटता  है   , कर्ण  !  तुम  अधर्म  के  साथ   खड़े  हो  l "