4 October 2018

WISDOM ---- भगवान भी अपने भक्त से प्रेम करते हैं

 इस  संसार  में  न  तो  सामान्य  प्रेम  स्वीकार  है   और  न  ही   भगवान  का  प्रेम  किसी  को  स्वीकार  हो  पाता  है   l  इस  अहंकारी  संसार  ने   कृष्ण  की  दीवानी  मीरा  को  जहर  दे  दिया ,  ईसा  को  सूली  पर  चढ़ा  दिया   क्योंकि  गणित   से   चलने  वाला  संसार   इस  प्रेम  को  समझ  नहीं  पाता  l  लोग  तो  भगवान  को  दीवारों  के  भीतर  कैद  कर  के  रखना  चाहते  हैं   लेकिन  भगवान  कहते  हैं -- मुझे  छल - कपट  पसंद  नहीं  है  ,  ह्रदय  को  सरल  और  पवित्र  बनाओ ,  ईमानदारी  और  विवेकपूर्ण  ढंग  से  कर्तव्य  पालन  करो  , फिर  मैं  स्वयं  तुम्हारा  ध्यान  करूँगा --- इस  सत्य  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है --------
   नारदजी  भगवान  के  परम  भक्त  हैं  , उन्होंने  भगवान  को  ध्यानमग्न  देखकर  लक्ष्मीजी  से   इसका  कारण  पूछा  तो  उन्होंने  कहा --- वे   पृथ्वीवासी    अपने  सबसे  बड़े  भक्त   का  ध्यान  कर  रहे  हैं  l  नारदजी  परेशान हुए  कि  उनसे  बड़ा  भक्त  कौन  है  ?  कहते  हैं   कि  नारदजी  श्री हरि  का  मन  हैं  ,  वे  गाँव  के  बाहरी  रास्ते  से  निकल  रहे  थे  कि  चमड़े  की  तीव्र  दुर्गन्ध ,  पशु चर्म  से  घिरा , मैले - कुचैले  वस्त्र में  चमार  दिखाई  दिया  l वह  पसीने  में  लथपथ  चमड़े  की  सफाई  में  व्यस्त  था  l  नारदजी  समझ  गए ,  यही  विष्णु  का  परम  भक्त  है  l  दूर  खड़े  होकर  वे  उसका  कार्य  देखने  लगे , सोच  रहे  थे  अब  ये  मंदिर  में  या  घर  में  भगवान  का  नाम  स्मरण  करेगा  l
चमड़े  का  ढेर  साफ़  करते - करते  शाम  हो  गई  l  नारदजी  को   बहुत   क्रोध  आ  रहा  था  कि  ऐसा  भी  कोई  भक्त  होता  है  l   उनके  अंत:करण  ने  कहा  , थोड़ी  देर  और  रुक  कर  इसकी  गतिविधि  देखो  l
चमार  तो  ध्यानमग्न  होकर  अपना  काम  कर  रहा  था  l  जब  रात  होने  लगी  तो  उसने  जितना  चमड़ा  साफ  किया  था  उसे  एक  गठरी  में  बाँधा  और  जो  साफ  न  हो  पाया  उसे  एक  ओर  समेट  कर  रखा  l  फिर  एक  मैला  कपडा  लेकर  सिर  से  पैर  तक  अपने  पसीने  को  पोंछकर  घुटने  के  बल  बैठ  गया  और  हाथ  जोड़कर  भाव - विभोर  हो  कहने  लगा --- प्रभो  !  मुझे  क्षमा  करना ,  मैं  बिना पढ़ा - लिखा  चमार  आपकी  पूजा  करने  का  ढंग  भी  नहीं  जनता  l  मेरी  आपसे  यही  प्रार्थना  है  कि  मुझे  कल  भी  ऐसी  सुमति  देना   कि  आज  की  तरह  ही   आपके  द्वारा  दी  गई  जानकारी  को  ईमानदारी  के  साथ  पूर्ण  कर  सकूँ  l  "   नारदजी  ने  देखा  भगवान  विष्णु  उसके  समीप  खड़े  मुस्करा  रहे   हैं  ,  वे  बोले --- " मुनिराज  !  समझ  में  आया  इस  भक्त  की  उपासना  की  श्रेष्ठता  का  रहस्य  ? 
मनुष्य  का  जन्म  कहाँ , किस  कुल  में  होता  है ,  इस  पर  उसका  कोई  वश  नहीं  है  लेकिन  वह  जहाँ  ,  जिस  भी  क्षेत्र  में  है   ईमानदारी   से  कर्तव्यपालन  कर  के  ईश्वर  का  प्रेम  पा  सकता  है  l