22 June 2022

WISDOM -------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' जीवन  का  स्वरुप  कोई  भी  हो , व्यक्तिगत  अथवा  सामूहिक  ,  उसके  साथ  काल , कर्म   और  स्थान  की  निरंतरता  अनिवार्य  रूप  से  जुड़ी  है   l  सभी  को  अपने  कर्मों  के  अनुसार  स्थान  मिला  है ,  साथ  ही  नए  कर्मों  की  स्वतंत्रता  भी  ,  लेकिन  इनके  परिणाम  तो  काल  ही  तय  करता  है   l  कहते  हैं ---- परमेश्वर  ने  स्वयं  इस  युग  में  महाकाल  का  रूप  धारण  किया  है   l  वे  व्यक्ति  को  और  समूह  को  ,  राष्ट्र  और  विश्व  को   उसके  कर्मों  का  उचित  दंड  देकर   नए  युग  का  आरम्भ  करेंगे   l  युग  का  प्रत्यावर्तन  करेंगे   l    श्रीमद् भगवद्गीता  में   भगवान  अपना  परिचय  देते  हुए  कहते  हैं ---- ' मैं  काल  हूँ  l '  उन्होंने  मंदिरों  में ,  विभिन्न   देवस्थानों  में   पूजे  जाने  वाले    किसी  देवी -देवता  के  रूप  में   स्वयं  का  परिचय  नहीं  दिया   l  सीधा - सपाट  कहा ---- ' मैं  काल  हूँ  l '  महाभारत  में  परमेश्वर  काल  रूप  में   कुरुक्षेत्र  में  महायुद्ध  का  दंड   लेकर  प्रकट  हुए  हैं    l  अर्जुन  से  कहते  हैं  --- तुम  इन  प्रतिपक्षी  योद्धाओं  को   मारो  या  न  मारो  ,  पर  ये  मरेंगे  अवश्य   l  इन्हें  मारने  का  माध्यम   तुम  बनो  या  फिर   कोई  और  ,  इनका  मरना  सुनिश्चित  है  ,  क्योंकि  व्यक्ति  अथवा  समूह  को    कोई  परिस्थिति   या  घटनाक्रम  नहीं  मारता    l  उसे  मारता  है  ,  उसका  कर्म   l  भीष्म  और  द्रोणाचार्य  अपने  व्यक्तिगत   जीवन  में  भले  ही  अच्छे  हों  ,  पर  दुर्योधन  के  अनगिनत   दुष्कर्मों  के  साथ   उनकी  मौन  स्वीकृति  ने  उन्हें   दंड  का  भागीदार  बना  दिया    l  यही  स्थिति   अन्य   सभी  की  है  l    जीवन  में  शुभ  और  अशुभ  के  लिए  प्रत्यक्ष  में  जिम्मेदार   कोई  भी  हो  ,  पर  यथार्थ  में   उत्तरदायी  होता  है  कर्म  l   इस  कर्म  के  अनुसार  ही  काल  नियत  समय  और  नियत  स्थान  पर  परिस्थितियों   और  घटनाक्रमों  का  सृजन  कर  देता  है   l  कर्म  जितना  व्यापक  और  तीव्र  होता  है  ,  उसी  के  अनुरूप   काल  भी   अपना  आकार  बढ़ा  लेता  है   l