9 November 2019

WISDOM -----

    कल  , आज  और  कल  के  रूप  में  प्राचीन  महर्षियों  ने   काल  के  तीन  रूपों  को  त्रिकाल  की  संज्ञा  दी  है  l    अतीत  हर  मनुष्य  के  जीवन  का  एक  अभिन्न  अंग  होता  है  l   लोग  अतीत  को  भुला  देते  हैं  ,  लेकिन  अतीत  कभी  व्यक्ति  को  नहीं  भुलाता ,  हर  पल - हर  क्षण  उसके  साथ  जुड़ा  होता  है  l   हमारा  अतीत  ही  यह   निर्धारित  करता  है  कि   हमारा  भविष्य  कैसा  होगा   l   यदि  किसी  को  भी  अपने  भविष्य  की  चिंता  है   तो  उसे  अपने  वर्तमान  को  सुधारना  चाहिए  ,  क्योंकि  बाद  में  वही  अतीत  बन  जायेगा   और  उसके  भविष्य   को  निर्धारित  करने  में   अपनी  अहम्  भूमिका  निभाएगा  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  एक  लेख  में  लिखते  हैं ---- ' हमें  जीवन  में  केवल  वर्तमान  दीखता  है   l   अतीत  अदृश्य  होता  है  l   लेकिन  यह  अतीत  समुद्र  में  डूबे   हुए    उस  असीम   हिमखंड   के  समान   होता  है  ,  जो  अदृश्य  तो  होता  है   लेकिन  किसी  भी  जहाज  से  टकराने  पर  उसे  चूर - चूर  कर  सकता  है   l   अतीत  उसी  तरह  हमारे  जीवन  में   अदृश्य  होते  हुए  भी   अपना  पूरा  प्रभाव  डालता  है  l   हमारे  जीवन  में  अनायास  घटित  होने  वाली   सभी  घटनाओं   का  कारण   अतीत  होता  है   l  आचार्य श्री  का  कहना  है    अतीत  को  बदला  नहीं  जा  सकता  l   यदि  उसे  बदलना  है   तो  उसका  एकमात्र  समाधान  --- वर्तमान  को  सुधारना  है  l   वर्तमान  को  सुधारकर  ही   अतीत  के  दुष्कर्मों  का  प्रायश्चित  संभव  है  ,  उसमे  परिवर्तन  संभव  है   l   अतीत  में  हमने  जो  गड्ढा  खोदा  है  ,  यदि  उसे  वर्तमान  में  नहीं  पाटा  गया   तो  भविष्य  में  उसमे  गिरना  स्वाभाविक  है  l   इसलिए  यह  जरुरी  है  कि   हम  सभी   अपने  जीवन  में  श्रेष्ठ  कर्मों  को  अपनाएं  ,  सन्मार्ग  पर  चलें ,  अतीत  में  जाने - अनजाने  में  हुए  कर्मों  का  प्रायश्चित  करें  ,  तभी  हम  अपने  भविष्य  को  सुन्दर- सुखद    बना  सकेंगे  l  '
     एक  घटना  है ---- एक  व्यक्ति   के  पेट  में   बहुत  दर्द  होता  था  ,  जो  खाता   था  वह  उलटी  कर  देता  था   l   किसी  भी  इलाज  से  उसे  कोई  फायदा  नहीं  हुआ  l  फिर  उसने  किसी  प्रसिद्ध   संत  से  इस  बारे  में  पूछा   l   संत  ने  सूक्ष्म  दृष्टि  से  उसके  अतीत  की  ओर   झाँका  और  ये  पाया  कि   वह  व्यक्ति  अपने  पुराने  जन्म  में  पक्षियों  का  शिकार  करता  था  ,  पक्षियों  को  मारना   ही  उसका  शौक  था  l   इस  दुष्कर्म  का  परिणाम  उसे  इस  जन्म  में  मिल  रहा  है   l   संत  ने  उससे  कहा  कि   यदि  वह  इस  जन्म  में  पक्षियों  की  सेवा  करता  है ,  उन्हें  दाना - पानी  देता  है   तो  इन  शुभ  कर्मों  के  मेल   से  उसका  स्वास्थ्य  सुधर  सकता  है  l   अन्यथा    कोई  भी  उपाय  उसके  पेट दर्द  को  ठीक  नहीं  कर  सकता   l
  हमारा  वर्तमान  ही  वह   माध्यम  है  ,  जिसके  द्वारा  अतीत  के  कर्मों  का  प्रायश्चित   किया  जा  सकता  है   l  जो  बीत   चुका   है ,  उसे  तो  सुधारा  नहीं  जा  सकता  ,  लेकिन  उसके  स्थान  पर  शुभ  कर्म  कर  के    अतीत  में  किये  गए  अशुभ  कर्मों  का  प्रायश्चित  किया  जा  सकता  है  l