1 January 2018

WISDOM ----- अहंकार के मद में स्वयं को झुठलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए

  अहंकार  मूढ़ता  का  पर्याय  है  l   अहंकारी  दूसरों  जैसा  श्रेष्ठ  बनना  नहीं  चाहता  ,    उससे  कई  गुना  श्रेष्ठ  दिखना  चाहता  है  l  अहंकारी   प्रचंड  महत्वकांक्षी  होता  है  ,  लेकिन  यह  महत्वाकांक्षा  कुछ  बनने  की , गढ़ने  की  नहीं ,  बल्कि  केवल  दिखने  की ,  झलकने  की  होती  है   l  अहंकारी  अपने  अलावा   किसी  और  को  बर्दाश्त  नहीं  कर  सकता  l   व्यक्ति  का  अहंकार  ही  उसके  पतन , पराभव  का  कारण   होता  है  l
                  इस   सम्बन्ध  में   एक  कथा  है -----  देवताओं  और  असुरों   के  बीच  घमासान  युद्ध  छिड़ा  l   आरम्भ  में  देवता  हारने   लगे  l   ब्रह्माजी  ने  कारण   खोजा   तो  पाया  की  देवता  आलसी  और  प्रमादी  हो  गए  हैं ,  इसलिए  हार  रहे  हैं  l  अत ;  उन्होंने  भूलोक  से  महान  पराक्रमी  और  संयमी  सम्राट  मुचकुन्द  को  सेनापति  बनाया  l   अब  हारते  हुए  देवता  जीतने  लगे  ,  युद्ध  लंबा   चला  l   फिर  पासा  पलटा  और  देवता  हारने   लगे  l   अब  प्रजापति  ने  देखा  कि   विजय  मिलते  ही  मुचकुन्द  अहंकारी होने  लगा  है  l
  विजय  के  लिए  आवश्यक  गुणों  में  संयम  और  पराक्रम  की  तरह  निरहंकारिता  भी  एक  महत्वपूर्ण  गुण   है  l   वह  घटने  लगी  हो  तो  समझना  चाहिए  कि   पराभव  के  दुर्दिन  आ  गए   l  
    मुचकुन्द  को   भूल  सुधारने   और  नम्रता  का  अभ्यास  करने  को  कहा   और कार्तिकेय  को  अब  सेनापति  बनाया  गया  l   जिनमे  यह  तीनो  ही  विशेषताएं  थीं  ,  इस  कारण   वह  दैत्य  समुदाय  पर  विजय  प्राप्त  करने  में  सफल  हुए  l