31 December 2023

WISDOM ------

  लघु -कथा ---- एक  युवक  ने  स्वप्न  देखा  कि  वह  किसी  बड़े  राज्य  का  राजा  हो  गया  l  स्वप्न  में  मिली  इस  आकस्मिक  विभूति  के  कारण  उसकी  प्रसन्नता  का  ठिकाना  न  रहा  l  प्रात:काल  पिता  ने  काम  पर  चलने  को  कहा  , माँ  ने  बाजार  से  सौदा  लाने  के  लिए  कहा  , लेकिन  युवक  ने  कोई  भी  काम  करने  से मना  कर  दिया   और  कहा --- " मैं  राजा  हूँ  ,  मैं  कोई  काम  कैसे  कर  सकता  हूँ  ? " घरवाले  बड़े  हैरान  थे  ,  आखिर  क्या  किया  जाये  l  तब  उसकी  बहन  ने  एक  युक्ति  निकाली  l  उसने  परिवार  के  सभी  सदस्यों  को  एक -एक  कर  के  भोजन  करा  दिया  , केवल  वे  ख्याली  युवक  महाराज  बैठे  रह  गए  l  शाम  हो  गई  , भूख  से  उसकी  आंते  कुलबुलाने  लगीं  , जब  नहीं  रहा  गया   तो  बहन  से  बोला  ---- " क्यों  मुझे  खाना  नहीं  मिलेगा  क्या  ? "  बहन  मुंह  बनाते  हुए  बोली --- " राजाधिराज  ! रात  आने  दीजिए  , परियां  आकाश  से  उतरेंगी   तो  वही  आपके  उपयुक्त   छत्तीस  व्यंजन  प्रस्तुत  करेंगी  l  हमारा  रुखा - सूखा   भोजन  आपके  राजपद  के   उपयुक्त  नहीं  है  l "  युवक  बोला  --- " नहीं  , मैं  यही  भोजन  कर  लूँगा  l  तुम  यही  भोजन  मेरे  लिए  ले  आओ  l  "  बहन  बोली  --- "  हे  महाराज  !  कहीं  यह  भोजन  कर  आप  क्रोधित  न  हों  उठे   और  यदि  आप  क्रोधित  हो  उठे   तो  खाना  बनाने  वालों  की  खैर  नहीं ,   आप   उन्हें  जेल  में  भर  देंगे  l  इसलिए  अब  आप  स्वप्न  में  ही  भोजन   कीजिए  l "     व्यर्थ  की  कल्पनाओं  में  विचरण  करने  वाले  युवक  ने  अपनी  हार  मानी  और  महसूस   किया  कि  धरती  पर  रहने  वाले  मनुष्य  को   निरर्थक  भौतिक  और  लौकिक  कल्पनाओं  में   डूबे  नहीं  रहना  चाहिए  ,  वरन  जीवन  का  जो  शाश्वत  और  सनातन  सत्य  है  ,  उसे  प्राप्त  करने  का  भी  प्रयत्न  करना  चाहिए  l  उसने  घरवालों  को  वचन  दिया  कि  अब  वह   व्यर्थ  की  कल्पनाओं  में  अपना  समय  बरबाद  नहीं  करेगा   और  अपनी  परिस्थिति  को  स्वीकार  कर  श्रम  और  लगन  से  आगे  बढ़ने  का  निरंतर  प्रयास  करेगा  l  

29 December 2023

WISDOM ------

    यदि  हम  पुनर्जन्म  को  माने  तो  हमारा  वर्तमान  जीवन  पिछले  कई  जन्मों  में  किए  गए  हमारे  कर्मों  का  ही  परिणाम  है  l  जिन  रिश्तों  में  हम  उलझे  हैं  , वे  हमारे   भूतकाल  में  किए  गए  भले -बुरे  कर्मों  का  ही  परिणाम  है  l  भूतकाल  के  हमारे  कर्म  अच्छे  होंगे  तो  उन  रिश्तों  से  हमें  सुख  मिलता  है   लेकिन  यदि  हमने  जाने -अनजाने   अनेक  गलतियाँ  की  होंगी   तो  उन  रिश्तों  के  माध्यम  से  हमें  उनका  हिसाब  चुकाना  पड़ता  है  l        पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- भूतकाल  तो  बीत  गया  , अब  उस  पर  हमारा  कोई  नियंत्रण  नहीं  है  l  हमारे  हाथ  में  केवल  वर्तमान  है  l   वर्तमान  में  सत्कर्म  कर  के  हम   पिछले   पापों  के  बोझ  को  कुछ  हल्का  कर  सकते  हैं    ,  प्रारब्ध  को  टालना  तो   संभव  नहीं  है   लेकिन   सत्कर्म   की  तीव्रता  से  उन  कष्टों  की  चुभन  कम  हो   जाती  है   और  सुनहरे  भविष्य  का  द्वार  खुल  जाता  है  l  आचार्य  श्री  कहते  हैं  ---सत्कर्म  का  कोई  भी  मौका  हाथ  से  जाने  न  दें  l  सत्कर्म  की  पूंजी   बड़ी   मुसीबतों  से  हमारी  रक्षा  करती  है  l  

28 December 2023

WISDOM ----- जिस तरह व्यक्ति अपने कार्यों को बाद में करने के लिए टाल देता है , उसी प्रकार व्यक्ति को अपने गुस्से को भी टालना सीखना चाहिए

  सूफी  फकीर  जुन्नैद   के  जीवन  का  प्रसंग  है  --- जुन्नैद  बहुत  ही  शांत  स्वभाव  के  थे  l  लोग  उनके  पास  अपनी  समस्याओं  के  समाधान  के  लिए  आते  थे  l  उनके  पास  आने  वालों  में   कुछ  तो  बेहद  गुस्से  में  आते   और  कहते  ---- " जिस  शख्स  के  कारण  मैं  गुस्से  में  हूँ  ,  उसे  सबक  सिखाने  का  कोई  नुस्खा  जल्दी  से  बता  दीजिए  , ताकि  आगे  से  वो  मेरे  साथ   वैसी  हरकत  न  कर  सके  l "  जुन्नैद  ने  उसे  शांत  करने  की  बहुत  कोशिश  की  लेकिन  उसका  गुस्सा  कम  नहीं  हुआ  तब  वे  बोले  ---- " मैं  तुम्हे  क्रोध  करने  को  मना  नहीं  करता  हूँ  ,  बल्कि  ये  कहता  हूँ  कि  तुम  आराम  से  गुस्सा  करना  ,  पर  चौबीस  घंटे  बाद करना   l "  अगले  दिन  जब  लोग  उनके  पास  आते   तो  उनका  गुस्सा  शांत   हो  गया  होता   था  l  एक  दिन  जुन्नैद  से  उनके  एक  शिष्य  ने  पूछा  ---- "  आखिर  क्रोध  करने  वाले  इन  लोगों  को   आप  चौबीस  घंटे  का  समय  ही  क्यों  देते  हैं  ? "  जुन्नैद  बोले  ---- " बेटा  !  क्रोध  के   आवेश  में  यदि  तुरंत  जवाब  दिया  जाए   तो  आदमी  बेकाबू  हो  जाता  है  l  वह  दोस्ती , रिश्ते -नाते  भी  भुला  देता  है  l  उस  समय  उसे  कुछ  भी  समझा  पाना  संभव  नहीं  होता  l "  इस  पर  शिष्य  बोला ---- " फिर  चौबीस  घंटे  का  वक्त  ही  क्यों  ?  दो -तीन  दिन  का  समय  क्यों  नहीं  ? "  इसका  जवाब  देते  हुए  जुन्नैद  बोले  ---- " चौबीस   घंटे    तक  कोई  लगातार  गुस्से  में  नहीं  रह  सकता  ,  इस  दौरान  उसे  अपने  आप  अपनी  गलती  का  एहसास  होने  लगता  है  l  वहीँ  दो -तीन  दिन  बाद  वह  और  कामों  में  व्यस्त  हो  जाता  है   और  अपनी  गलती  भूल  जाता  है  l  इसलिए  चौबीस  घंटे  के  अन्दर   कोई  भी  व्यक्ति   यदि  अपने  गुस्से  पर  सोच -विचार  कर  ले  ,  तो  वह  उसे   न  सिर्फ  काबू  कर  सकता  है  ,  बल्कि  दूसरों  को  भी  उनकी  गलती  का  एहसास  करा  सकता  है  l "  इसलिए  क्रोध  आने  पर  हमें  स्वयं  को  समय  देना  चाहिए   और  किसी  का  नुकसान  करने  का  मन  हो  तो   उस  पर  एक  दिन  बाद  पुन:  विचार  करना  चाहिए  l  

12 December 2023

WISDOM -----

 एक  मच्छर  शहद  की  मक्खियों  के  छत्ते  पर  पहुंचा  और  बोला  ---- " वह  बड़ा  संगीतज्ञ   है  l  मक्खियों  के  बच्चों  को  संगीत  सिखाना  चाहता  है  l  बदले  में  थोडा  सा  शहद  लिया  करेगा  l  रानी  मक्खी  तक  समाचार  पहुंचा  , तो  उन्होंने  स्पष्ट  इनकार  कर  दिया   और  कहा ---- "  जिस  प्रकार  संगीत  का  ज्ञाता  बनकर   मच्छर  हमारे  दरवाजे   पर  भीख  मांगने  आया  है  l  उसी  प्रकार  हमारे  बच्चे  भी  परिश्रम  छोड़कर   भीख  मांगने  लगेंगे  l  मैं  नही  चाहती  कि  संस्कारों   के  स्थान  पर  सस्ते  में   कुछ  पाने  का  लालच  भरा  शिक्षण  इन्हें  मिले  l  इन्हें  अपने  आप  ही   सब  कुछ   सीखने  दो  ,  तभी  ये  जीवन  साधना  में  खरे  उतरेंगे  l  

4 December 2023

WISDOM -----

   यक्ष  ने  युधिष्ठिर  से  पूछा  ---- ' इस  संसार  का  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  क्या  है  ? '  युधिष्ठिर  ने  उत्तर  दिया  ---  ' हर  रोज  आँखों  के  सामने  कितने  ही  प्राणियों  को  मृत्यु  के  मुख  में  जाते   देखकर  भी   शेष   मनुष्य  यही  सोचते  हैं  कि  वे  अमर  हैं  , यही  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  है  l   "                                                                                मृत्यु  तो  सब  की  निश्चित  है   लेकिन   सांसारिक  आकर्षण  इतना  तीव्र  है  , कामना , वासना , तृष्णा , स्वाद , भय  , भोग -विलास  , इन  सब  में  मनुष्य  इतना  बंधा  हुआ  है  कि  वह  मृत्यु  को  भुला देता  है  l  एक  महत्वपूर्ण  बात  यह  भी  है   कि  यदि  मृत्यु  को  याद  रखा  जाए  तो  हर  कदम  फूंक -फूंक  कर  रखना  होगा  ,  जो  सबसे  कठिन  कार्य  है  l  इसलिए  मनुष्य   मृत्यु  का  विस्मरण कर  बेहोशी  का  जीवन  जीता  है  l    एक  लघु  कथा   है -------------- एक  पेड़  पर   दो  बाज  रहते  थे  l  एक  दिन  दोनों  शिकार  पकड़कर  लौटे  तो  एक  की   चोंच  में  चूहा  था   और  दूसरे  की  चोंच  में  सांप   और  अभी  जीवित  थे  l    दोनों  बाज  शाम  को  मिल  बैठकर  खाते  थे   l  अपना  शिकार  लेकर  जब  दोनों  पेड़  पर  बैठे  , उस  समय  सांप  और  चूहा  जीवित  थे  l  सांप  स्वयं  तो  मृत्यु  के   मुख  में  था  लेकिन  चूहे  को  देखकर  वह  अपनी  मृत्यु  भूल  गया ,  और  चूहे  को  खाने  के  लिए  उसकी  जीभ  लपलपाने  लगी  l   इधर  चूहा  मृत्यु  शैया  पर  पड़ा  था  , बाज  की  चोंच  से  घायल    अंतिम  साँस  गिन  रहा  था    लेकिन   अपनी  जान  बचाने  के  लिए  बाज  के  ही  पैरों  में   छुपने  की  कोशिश  करने  लगा  l   यही  हाल  मनुष्य  का  है  l 

WISDOM -----

   लघु  कथा ---- खडाऊं  पहन  कर  पंडित जी  मंदिर  की  ओर  चले  l  कदम  बढ़ने  के  साथ  खडाऊं  से  भी  खट -खट  का  स्वर  निकल  रहा  था  l  पंडित जी  को  यह  आवाज  पसंद  न  आई  l  वह  एक  स्थान  पर  खड़े  होकर   खडाऊं  से  पूछने  लगे ----" अच्छा  यह  तो  बताओ  कि  पैरों  के  नीचे  इतनी  दबी  रहने  पर  भी   तुम्हारे  स्वर  में  कोई  अंतर  क्यों  नहीं  आया  ? "   खडाऊं  ने   पैरों  के  नीचे   दबे -दबे  ही   पंडित जी  की  जिज्ञासा  शांत  करते  हुए   कहा ---- "  मैं  तो  जीने  की  इच्छुक  हूँ  पंडित जी  ,  इस  संसार  में  ऐसे  लोगों  की  कमी  नहीं   जो  दूसरों  के  दबाव  में  आकर   अपना  स्वर  मंद  कर  लेते  हैं  ,  उन्हें  तो  जीवित  अवस्था  में  भी  मैं   मरा  हुआ  मानती  हूँ   l "


28 November 2023

WISDOM ------ लघु कथा ---'कुछ तो कर , यों ही मत मर '

   एक  राजा  के  अनेक  शत्रु  हो  गए  l  एक  रात  शत्रुओं  ने  पहरेदारों  को  अपनी  ओर  मिला  लिया   और  महल  में  जाकर  राजा  को  दवा  सुंघाकर   बेहोश  कर  दिया  l  उसके  बाद   उन्होंने  राजा  के  हाथ -पाँव  बांधकर   एक  पहाड़  की  गुफा  में  ले  जाकर  बंद  कर  दिया  l  राजा  को  जब  होश  आया   तो  अपनी  दशा  देखकर   घबरा  उठा  l  उस  अँधेरी  गुफा  में  उसे  कुछ  करते -धरते  न  बना  l  तभी  उसे  अपनी  माता  का  बताया  हुआ  मन्त्र  याद  आ  गया  --- " कुछ  कर , कुछ  कर  l " राजा  की  निराशा  दूर  हुई   और  उसने  पूरी  शक्ति  लगाकर   हाथ -पैर  की  डोरी  तोड़  डाली  l  तभी   अँधेरे  में  उसका  पैर  सांप  पर  पड़  गया   जिसने  उसे  काट  लिया  l  राजा  फिर  घबराया   किन्तु  फिर  तत्काल   ही  उसे  वही  मन्त्र   ' कुछ  कर , कुछ  कर  '  याद  आ  गया  l  उसने  तत्काल  कमर  से  कटार   निकालकर   सांप  के  काटे  स्थान  को  चीर  दिया  l  खून  की  धार  बहने  से  वह  फिर  घबरा  गया  लेकिन  फिर  उसे  माँ  का  मन्त्र  याद  आ  गया --' कुछ  कर , कुछ  कर '  उसने  प्रेरणा  पाकर  अपने  वस्त्र  को  फाड़  कर    घाव  पर  पट्टी  बाँध  ली  l  अब  उसे  उस  गुफा  से  बाहर  निकलने  की  चिंता  सताने  लगी   और  भूख  प्यास  भी  लगी  थी  l  पुन:  माँ  के  मन्त्र  को  याद  कर  वह  उस  अँधेरे  में  आगे  बढ़ता  रहा   और  गुफा  के  द्वार  पर  आ  गया   और  उसके  मुख  पर  लगे  पत्थर  को  धक्का  देने  लगा  l  बहुत  बार  प्रयास  करने  पर   आखिर  वह  पत्थर  लुढ़क  गया   और  राजा  गुफा  से  बाहर निकलकर   अपने  महल  में  वापस  आ  गया  l   इस  कथा  से  हमें  यही  शिक्षा  मिलती  है   कि  कभी  हार  नहीं  मानो ,  बार -बार  गिरते  हो , तो  बार - बार  नए  हौसले  के  साथ  उठो  ,  हिम्मत  नहीं  हारो  l  जीवन  इतना  सरल  नहीं  है ,  इसमें  बड़े -बड़े  तूफान  आते  हैं  ,  उनका  डटकर  सामना  करो   और  जिन्दगी  की  इस  जंग  को  जीत  लो  l  

26 November 2023

WISDOM ------

   लघु कथा ----  विनाश  का  कारण  सांसारिक  आकर्षण  '------ कालिंदी  के  महापंडित  कौत्स   स्नान  कर   प्रात:  वंदना  कर  रहे  थे  l  एक  घड़ियाल  उन्हें  काफी  दूर  से  ताक  रहा  था  ,  किन्तु  कौत्स  ऐसी  ऊँची  शिला  पर  बैठे  थे  कि  घड़ियाल  वहां  तक  पहुँच  नहीं  सकता  था  l  उसने  युक्ति  से  काम  लिया   और  यमुना  की  तलहटी  से   रत्नों  का  ढेर  उठाकर   ऊपर  की  ओर  उछाला  l    अपने  चारों  ओर  मणि -मुक्तक  देखकर  महर्षि  कौत्स  का   लोभ  जाग  उठा   l  उसने   कौत्स  से  कहा --- " आचार्य  !  मैं  त्रिवेणी  का  रास्ता  नहीं   जानता  ,   यदि  आप  मेरी  पीठ  पर  बैठकर  मुझे  त्रिवेणी   का  रास्ता  बता  दें   तो  मैं  इन  तुच्छ  मोतियों  से  बढ़कर  पांच   मुक्ताहार  दे  सकता  हूँ  l  कौत्स  के  हर्ष  का  ठिकाना  न  रहा  l  घड़ियाल  ने  उन्हें  पीठ  पर  बैठाया   l  अभी  वह  बीच  धार  में  पहुंचा  ही  था  कि  उसे  हंसी  आ  गई  l  घड़ियाल  को  हँसते  देख  कौत्स  ने  पूछा --- "  वत्स  ! असमय  आपकी  हँसी  का  क्या  कारण  है  ? "   घड़ियाल  ने  कहा --- " आचार्य  ! आप  जीवन  भर  दूसरों  को  उपदेश  देते  रहे  कि  विनाश  सांसारिक  आकर्षण  के  रूप  में  आता  है  l  मनुष्य  जब  एक  बार  वासनाओं  के  शिकंजे  में  आ  जाता  है   तब  ये  वासनाएं  मनुष्य  को  वहां  ले  जाती  हैं  , जहाँ  सिवाय  विनाश  के   कुछ  नहीं  होता  l  दूसरों  को  उपदेश  देने  के  बावजूद   तुम   यह  तथ्य  न  समझ  सके   और  आज  एक  लालच  ने   तुम्हे  सर्वनाश  के  पास  पहुंचा  दिया  l   यह  कहकर   उसने  कौत्स  को  उछाला  और  एक  ही  क्षण  में  निगल  लिया  l    उपदेश  देना  बहुत  सरल  होता  है  , लेकिन  उसे  आचरण  में   उतारना    बहुत  कठिन   l  

25 November 2023

WISDOM -----

     एक  बार  एक  राजा  ने  मंत्री  से  पूछा ---- "क्या  गृहस्थ  रहकर  ईश्वर  को  प्राप्त  किया  जा  सकता  है  ? " मंत्री  राजा  को  एक  वन  में  ले  गए   और  बोले ---- " महाराज  ! इस  वन  में  एक   प्रसिद्ध    महात्मा  रहते  हैं  l  उनसे  मिलने  के  लिए   कीड़ों -मकोड़ों  से  पांव  बचाकर   चलना  पड़ता  है  l  एक  भी  कीड़े  की  मृत्यु  हो  जाए   तो  वे  शाप  दे  देते  हैं  l "  राजा  ध्यान  पूर्वक  चलते  हुए  महात्मा जी  के  पास  पहुंचे   और  अपना  प्रश्न  पूछा  l   महात्मा जी  ने  प्रत्युत्तर  में  प्रश्न   किया ---- "मेरे  पास  आते  हुए   मार्ग  में  क्या -क्या  देखा  ? "  राजा  बोले ---- " भगवन  !  मैं  तो  आपके  शाप  के  डर  से   कीड़े =मकोड़ों  को  देखता हुआ  आया  हूँ  l  रास्ते  के  किसी  द्रश्य  की  ओर  मेरी  द्रष्टि   ही  नहीं  गई  l "  महात्मा  जी  हँसते  हुए  बोले  ---- " राजन  !  जिस  प्रकार  मेरे  शाप  के  डर  से   तुम  मार्ग  में  बचते  -बचते  आए  हो  ,  उसी  प्रकार  भगवान  के  दंड  के  डर  से   दुष्कर्मों  से  बचते  हुए  चलना  चाहिए  l  इस  प्रकार  सावधानी  से  चलते  हुए   गृहस्थ  रहते  हुए  भी   ईश्वर  को  प्राप्त  किया  जा  सकता  है  l "

23 November 2023

WISDOM ----

   यह  संसार  एक  रंगमंच  है  यहाँ  हम  सभी  अपनी -अपनी  भूमिका  निभाने  आते  हैं  l   ईश्वर  ने  धरती  पर  जन्म  लेकर  हमें  सिखाया  कि   काम  कोई  भी  छोटा -बड़ा  नहीं  होता  ,  हमें  जो  भी  कार्य  मिला  है  ,  जो  भूमिका  हमें  मिली  है   उसे  अहंकार रहित  होकर  समर्पण  भाव  से  निभाएं  l  महाभारत  का  प्रसंग  है  ----  भगवान  श्रीकृष्ण  तो  सर्वशक्तिमान  थे   लेकिन  उन्होंने  स्वयं   महाभारत  युद्ध  में  सारथी  की  भूमिका  चयन  की  थी   और  इस  भूमिका  को  बखूबी  निभाया  l   एक  सारथी  की  तरह  वे   सर्वप्रथम    अर्जुन  को   ससम्मान  रथ  में  चढ़ाते  और  उसके  बाद  स्वयं  आरूढ़  होते    और  अर्जुन  के  आदेश  की  प्रतीक्षा  करते  l  फिर  संध्या  के  समय  जब  युद्ध  बंद  हो  जाता   तब  वे  पहले    उतरकर  फिर  अर्जुन  को  बड़ी  आवभगत  के  साथ  उतारते  l     भगवान  श्रीकृष्ण  अपने  इस  अभिनय   को     सम्पूर्ण  समर्पण  के  साथ   निभा  रहे  थे   l   युद्ध  का  अंतिम  दिन  ,  युद्ध  समाप्त  हुआ  ,  अब  भगवान  कृष्ण  सदा  की  तरह   अर्जुन  से  पहले  नहीं  उतरे   और  अर्जुन  को  संबोधित  करते  हुए  बोले  --"पार्थ  !  आज  तुम  रथ  से   पहले  उतर  जाओ   l  तुम  उतर  जाओगे  तब  मैं  उतरता  हूँ  l  अर्जुन  को   आश्चर्य  हुआ  लेकिन  कहना  मान  कर  वे  पहले  उतर  गए  l  अर्जुन  के  उतरने  के  बाद  भगवान  कृष्ण  धीरे  से  उतरे  और  अर्जुन  के  कंधे  पर  हाथ  रखकर  उन्हें  रथ  से  दूर  ले  गए  , उसके  बाद  एक  भयानक  विस्फोट  के  साथ  रथ  जलकर  ख़ाक  हो  गया  l  अर्जुन  ने  आश्चर्य  से  पूछा  --- " हे  कान्हा  !  आपके  उतरते  ही  पल  भर  में  यह  रथ  भस्मीभूत  हो  गया  , ये  क्या  रहस्य  है   ? "  भगवान  ने  कहा ---- "  हे   पार्थ  !  यह  रथ  तो  पितामह  भीष्म  के  दिव्यास्त्रों   के  प्रहार  से  मृत्यु  का   वरण   कर  चुका  था  , इस  दिव्य  रथ  की  आयु  समाप्त  हो  चुकी  थी  लेकिन   आयु  समाप्ति  के  बाद  भी  इसकी  उपयोगिता  वांछित  थी  इसलिए  यह  मेरे  संकल्प  बल  से  चल  रहा  था  l   भगवान  का  संकल्प  अटूट   और  अटल  होता  है  l  यह  संकल्प  सम्पूर्ण  स्रष्टि  में  जहाँ  भी  लग  जाता  है  वहीँ  अपना  प्रभाव   दिखाता  है   और  संकल्प  के  पूर्ण  होते  ही  यह  शक्ति  पुन:  भगवान  के  पास  चली  जाती  है , उसके  बाद  जो  हुआ  वो  तुमने  देखा  l  अर्जुन  ने  अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथ  में  सौंप  दी  थी  , भगवान  ने  उसे  हर  मुसीबत  से  बचाया  l  यदि  हम  भी  अर्जुन  की  तरह  अपना  कर्तव्यपालन  करते  हुए   अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथ  में  सौंप  दे , स्वयं  को  ईश्वर  के  चरणों  में  समर्पित  करें    तो  जीवन  से  भय  समाप्त  हो  जाये   और  सुख -शांति  से  तनाव रहित  जिन्दगी  जी  सकें  l   

22 November 2023

WISDOM ----

   लघु कथा ----  एक  लड़के  ने   एक  बहुत  धनी  आदमी  को  देखकर  धनवान  बनने  का  निश्चय  किया  l  कई  दिन  तक  वह  कमाई  में  लगा  रहा   और  कुछ  पैसा  कमा  भी  लिया  l  इसी  बीच  उसकी  भेंट  एक  विद्वान्  से  हुई   l  अब  उसने  विद्वान  बनने  का  निश्चय  किया   और  दूसरे  दिन  से   ही  कमाई  धमाई  छोड़कर   पढ़ने  में  लग  गया  l  अभी  अक्षर  अभ्यास   ही  सीख  पाया  था  कि  उसकी  भेंट  एक  संगीतज्ञ  से  हुई  l  उसे  संगीत  में  अधिक  आकर्षण  दिखाई  दिया  , इसलिए  उसने  उस  दिन  से  पढ़ाई  बंद  कर  दी  और  संगीत  सीखना  शुरू  किया  l  काफी  उम्र  बीत  गई  l  न  वह  धनी  हो  सका  न  विद्वान   l  न  संगीत  सीख  पाया   और  न  नेता  बन  सका   l  तब  उसे  बड़ा  दुःख  हुआ  l  एक  दिन  उसकी  एक  महात्मा  से  भेंट  हुई  l  उसने  अपने  दुःख  का  कारण  पूछा  , तब  महात्मा  जी  बोले ---- " बेटा  !  यह   दुनिया  बड़ी  चिकनी  है  ,  जहाँ  जाओगे  कोई -न  कोई  आकर्षण  दिखाई  देगा  l  एक  निश्चय  कर  लो  फिर    पूरे  श्रम  और  लगन  के  साथ   उस लक्ष्य  को  प्राप्त  करने  का  प्रयत्न  करो  , तो  तुम्हारी  उन्नति  अवश्य  हो  जाएगी  l  बार -बार  रूचि  बदलते  रहने  से   कोई  भी  उन्नति  नहीं  कर  सकोगे  l  युवक  समझ  गया   और  अपना  एक  उदेश्य   निश्चित  कर  उसी  का  अभ्यास  करने  लगा  l 

18 November 2023

WISDOM -----

   श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं ---  परमात्मा  विभाग रहित   होने  के  साथ  स्वयं  में  तथा  औरों  में  उपस्थित  है  l  वही  सबका  भरण -पोषण  करने  वाला   और  उत्पन्न  करने  वाला  है  l  सभी  वही  है  ,  वही  बनाता  है , वही  मिटाता  है  , वही  संभालता  है  l  --इस  सत्य  को  स्वीकार  कर  लेने  से  हमारी  सभी  चिंताएं अपने  आप  ही  समाप्त  हो  जाएँगी  l   जीवन  जहाँ  भी  जिस  भी  रूप  में  उपस्थित  है  ,  उसका  भरण -पोषण  करने  वाला  ईश्वर  ही  है  l   गीता  में  कहा  गया  है  ------ सभी  जीवों  के  लिए   परमात्मा    उनके  कर्मानुसार  परिस्थितियां , घटनाक्रम  और  संसाधन   जुटाता  रहता  है  ,  फिर  भले  ही  इस  प्रक्रिया  में   माध्यम  कोई  भी  क्यों  न   उपस्थित  हो   l  जो  इस  सत्य  की  अनुभूति  कर  लेता  है   वह   अनेक  दायित्वों  का  निर्वाह  करते  हुए   अहंकार  से  मुक्त  रहता  है   l    लेकिन  जो  इस  अनुभूति  से  वंचित  रहता  है  ,  वह  स्वयं  को   अनेकों  का  भरण -पोषण  करने  वाला   समझकर   मन -ही-मन  अपनी  अहंता  को  पोषित करता  रहता  है  l                   एक  प्रसंग  है ----  छत्रपति  शिवाजी  महाराज   उन  दिनों  एक  किला  बनवा  रहे  थे  l  उस  किले  के  निर्माण  में  हजारों  मजदूर   व  कारीगर  काम  कर  रहे  थे  l  इस  द्रश्य  को  देखकर  शिवाजी  महाराज  के  मन  में  आया   कि  देखो   मेरे  कारण  कितने  लोगों  का  पालन -पोषण  हो  रहा  है  l  यदि  मैं  न  होता  तो  कितने  लोग   भूखे  मर  जाते  l  जब  शिवाजी  ऐसा  सोच  रहे  थे  उसी  समय  उनके  गुरु  समर्थ  रामदास जी   वहां  भ्रमण  करते  हुए  आ  गए  l  उन्होंने  शिवाजी  से  कहा  कि   वे  वहां  रखे  हुए  एक  बड़े  पत्थर  को  तुडवा  दें  l  गुरु  की  आज्ञा    का  पालन  करते  हुए  शिवाजी  ने  तत्काल  ही   मजदूरों  से  उस  पत्थर  को  तुडवा  दिया  l   उस  बड़े  पत्थर  के  टूटने  पर   सभी  ने  चकित  होकर  देखा  कि   उसके  भीतर  से  कई  मेढ़क   उछालते  हुए  बाहर  आ  गए  l  वे  पत्थर  के  भीतर  भरे  पानी  में  मजे  से  रह  रहे  थे  l  उन्हें  इस  द्रश्य  को  दिखाते  हुए  समर्थ  रामदास जी  ने  कहा  ---- "  शिवा  !  तू  सचमुच  बहुत  महान  है  l  तूने  अनेक  जीवों  के  भरण -पोषण  की  व्यवस्था  बना  रखी  है  l  देख  !  ये  मेढ़क  भी   तेरी  कृपा  से  इस  पत्थर  के  भीतर  सुरक्षित   एवं  सकुशल  थे  l "  अपने  गुरु  के  इस  वचन  से  शिवाजी  महाराज  को  अपनी  भूल  का  एहसास  हो  गया   l  इस  घटना  ने  उन्हें  यह  सिखा  दिया  कि  वे  केवल  माध्यम  हैं  ,  इससे  अधिक  कुछ  भी  नहीं  हैं  l  सब  जीवों  का  भरण -पोषण  करने  वाला  केवल  परमात्मा  ही  है  l  























16 November 2023

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   लिखते  हैं  ----- " पथ  तय  करता  है  कि  जीवन  की  मंजिल  कहाँ  है  l  मंजिल  का  अनुमान  एवं  आकलन   राह  को  देखकर  किया  जा  सकता  है  l  अनीति  एवं  गलत  राह  से   कभी  भी   श्रेष्ठ  मंजिल  की  प्राप्ति  संभव  नहीं  है  l   इस  राह  पर  चलने  के  लिए   कितने  ही  क्यों  न  प्रेरित  करें  ,  परन्तु  अंत  इसका  अत्यंत  भयावह  होता  है  l  "    कौरवों   की  समृद्धि  और  ऐश्वर्य  की  कहानी   पांडवों  के  अधिकार  को  कुचलकर  लिखी  गई  थी   और  उसका  अंत  उससे  कई  गुना   दर्दनाक  था  l  पुत्र  मोह  से  ग्रस्त  धृतराष्ट्र   के  सौ  पुत्रों  में  से   एक  भी  जीवित  नहीं   बचा  l  प्रारम्भ  में  वैभव  के  मद  में  चूर  कौरव  अंत  में  एक  कफ़न  के  लिए  तरस  गए   l  जिनकी  नियत  में  खोट  होता  है  उनका  अंत  कभी  भी  अच्छा  नहीं  होता   l                                   इसके  विपरीत  सन्मार्ग  सदा  श्रेष्ठ  लक्ष्य  की  ओर  पहुंचाता  है   l  सच्चाई  की  राह  पर  अडिग  रहकर   साहस , धैर्य  और  विवेक पूर्वक    अपनी  मंजिल  को  उपलब्ध  किया  है  l    इस  उपलब्धि  का  आनंद  ही  कुछ  और  है  , यहाँ  आत्मा  तृप्त  होती  है    लेकिन  अनीति  और  गलत  राह  पर  चलकर   जो  सफलता  प्राप्त  की  जाती  है  ,  उससे  आत्मा  कभी  तृप्त  नहीं  होती  ,  अंतर्मन  खोखला  ही  रहता  है   क्योंकि  मनुष्य  का  मन  एक  दर्पण  है   जो  उसके  भले -बुरे  कर्मों  को  निरंतर  उसे    दिखाता  है  l  संसार  से  मनुष्य  छिप  सकता  है  , भाग  सकता  है     लेकिन  अपने  मन  से  भाग  नहीं  सकता  l  ऐश्वर्य  और  वैभव  के  भंडार  के  बीच  भी   आँखों  से  नींद  उड़   जाती  है   l  

14 November 2023

WISDOM -----

   महाभारत  चल  रहा  था  l  कर्ण  और  अर्जुन  के  बीच भयंकर  बाण  वर्षा  चल  रही  थी  l  अवसर  पाकर    एक  भयंकर  सर्प  कर्ण  के  तूणीर  में  घुस  गया  l  कर्ण  ने  बाण  निकाला   तो  स्पर्श  कुछ  अनोखा  लगा  l  उसने   सर्प  को   देखा  और  आश्चर्य  से  पूछा  ----- "  तुम  यहाँ  किस  प्रकार  आ  गए  l  सर्प  ने  कहा --- " अर्जुन  ने  एक  बार  खांडव  वन   में  आग  लगा  दी  l  उसमे  मेरी  माता  जल  गई  l  तभी  से  मेरे  मन  में  प्रतिशोध  की  आग  जल  रही  है   l  मैं  इस  ताक  में  था  कि  कोई  अवसर  मिले   और  मैं  अर्जुन  के  प्राण  हरण  करूँ  l  आप  मुझे  तीर  के  स्थान  पर  चला  दें  l  मैं  जाते  ही  अर्जुन  को  डस  लूँगा  l  आपका  शत्रु   भी  मर  जायेगा   और  मेरा  प्रतिशोध  भी  शांत  हो  जायेगा  l "  कर्ण  ने  कहा  ---- "  अनैतिक  उपाय  से  सफलता  पाने  का  मेरा   तनिक  भी  विचार  नहीं  है  l  सर्प  देव    आप    वापस  लौट  जाएँ   l  "  जो  वीर  होते  हैं , जिनमें  'शौर्य  '  होता  है   वे  कभी  अनैतिक   तरीके  से  सफलता  नहीं  चाहते  l  लेकिन  जैसे  जैसे  कलियुग   अपने  चरम  पर  पहुँच  रहा  है  ,  संसार  में  कायरता  बढ़ती  जा  रही  है   l  साम -दाम , दंड -भेद  हर  तरीके  से  लोग   दूसरे  को  धक्का  देकर  आगे  बढ़ना  चाहते  हैं    और  इस  दौड़  में  सबसे  ज्यादा  खतरा   बाहरी  जीव -जंतुओं  से  नहीं  ' आस्तीन  के  साँपों  '  से  है   l  

11 November 2023

WISDOM ----

 पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जीवन  निर्वाह  के  लिए  दूसरों  के  सहारे  रहना  पराधीनता  है  l  इसी  तरह  मन  और  बुद्धि  को  ताला  लगाकर  किसी  बात  को  , किसी  विचार  को   मान  लेना  भी  मानसिक  पराधीनता  है  ,  विचारों  की  गुलामी  है  l  "        विचारों  की  यह  गुलामी   हर  युग  में  रही  है   l  जिसने  अपने  को  इस  गुलामी  से  मुक्त  किया  , वही  स्वतंत्र  है  l     जो   निर्भय  है  ,  विशेष  रूप  से  जिसे  मृत्यु  का  भी  भय  नहीं  है  , वही  आज़ादी  का  आनंद  उठा  सकता  है  l  हमारे  धर्म ग्रन्थ   हमें   जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं  l   रावण  का  आतंक  दसों  दिशाओं  में  था  l  उसने  काल  को  भी  बंदी  बना  लिया  था  l  वह  अत्यंत  शक्तिशाली  और  महान  तांत्रिक  व  मायावी  था  l  उसकी  शक्ति  से  सब  थर -थर  कांपते  थे  , उसकी  हर  बात  को  आँख  बंद  कर  स्वीकार  करते  थे   लेकिन  उसके  भाई  विभीषण  ने  उसे  कई  बार  समझाया  कि  उसकी  राह  गलत  है , वह  शक्ति  का  दुरूपयोग  कर  रहा  है  l   जब  उसने  भरी  सभा  में   रावण  से  कहा   कि  माँ  सीता   साक्षात्  भगवती  हैं  ,  भगवान  राम  से  वैर  नहीं  लो  l  तब  रावण  ने  विभीषण  को  भला -बुरा  कहा  और  लात   मारकर    सभा  से  निकाल  दिया  l  विभीषण  ईश्वर  विश्वासी  था  ,  उसे  विश्वास  था  कि  हमारी  साँसे  ईश्वर  की  दी  हुई  है  ,  रावण  अपनी  ताकत  से  ईश्वर  के  विधान  को  नहीं  बदल  सकता  l   उसने  उसी  पल  सोने  की  लंका  को  त्याग  दिया   और  भगवान  श्रीराम  की  शरण  में  चला  गया  l   ईश्वर  की  शरण  में  जाने  का   क्या  फायदा  हुआ   ?  यह  इस  संसार   अपने  स्वार्थ  और  सिर्फ  अपने  ही  लाभ  को  देखने  वालों  को  समझना  चाहिए   l  भगवान  ने  विभीषण  को  सोने  की  लंका  का  राजा  बना  दिया   और  कहते  हैं   मृत्यु  से  न  डरने  वाले  विभीषण  को  भगवान  ने  अमर  कर  दिया  l  इस  कलियुग  में   विभिन्न  परिवारों  में , संस्थाओं  में  और  समूचे  संसार  में   अपने  धन  और  शक्ति  के  अहंकार  में    हर  शक्तिशाली   अत्याचार  और  अन्याय  करता  है   और  उसे  सही  सिद्ध  करने  के  लिए  विभीषण  को  ' घर  का  भेदी ' कहता  है   लेकिन   सत्य  तो  यह  है  कि  असुर  कुल  में  पैदा  होकर  भी    वह  सन्मार्ग  पर  था ,  अत्याचार  और  अन्याय  के  खिलाफ  खड़े  होने  की  उसमें  हिम्मत  थी  और  साथ  ही  उसे  तरीका  भी  पता  था  l  वह   जानता    था  कि  रावण  से  सीधे  मुकाबला  संभव  नहीं  है   इसलिए  वह  ईश्वर  के  शरणागत  हुआ  ,  अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथों  में  सौंप  दी  l  भगवान  ने  उसकी  नैया  पार  लगा  दी  l  इसी  तरह  अर्जुन  ने  अपने  जीवन  रूपी  रथ  की  बागडोर  भगवान  श्रीकृष्ण  को  सौंप  दी  l  भगवान  ने  उसे  हर  खतरे  से  बचाया   और  पांडव  विजयी  हुए  l  

9 November 2023

WISDOM -----

  पं  . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  के  पतन  का   कारण  उसका  अहंकार  है  l  संयम  से  स्वर्ग   जीते  जाते  हैं   लेकिन   संयमी  और  पराक्रमी  होने  के  साथ    उसे   निरहंकारी  भी  होना  चाहिए  l '     आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' ज्ञानी  जब  अहंकारी  हो  जाता  है  , तब  उसके  अंत: करण  से  करुणा  नष्ट  हो   जाती  है  l  उस  स्थिति  में  वह   औरों  का  मार्गदर्शन  नहीं  कर  सकता  , केवल  मात्र  दंभ  प्रदर्शन  कर  सकता  है  l  जिससे  लोग  प्रकाश  लेने  की  अपेक्षा   पतित  होने  लगते  हैं   l  "  पुराण  की  एक  कथा  है  -----  देवता  और  असुरों  में  घोर  संग्राम  हो  रहा  था  l  असुरों  की  शक्ति  के  आगे  देवता  टिक  नहीं  पा  रहे  थे  l  तब  प्रजापति  ब्रह्मा  ने   मृत्यु  लोक   यानि  इस  पृथ्वी  के  एक  मनुष्य   महाराज   मुचुकुन्द  को  सेनापति  बनाया  , उन्हें  देव  सेना  के  संचालन   का  कार्यभार  सौंपा  l  प्रजापति  ब्रह्मा   का  कहना  था  --- ' संयमी  और  सदाचारी  व्यक्ति   मनुष्य  तो  क्या  , देव , दानव  सभी  को  परस्त  कर  सकता  है  l  देवता   भोग -विलास  और  असंयम  में  डूबकर  अपनी  सामर्थ्य   नष्ट  कर  रहे  हैं   जबकि  महाराज  मुचुकुन्द  ने  मनुष्य  होते  हुए  भी   संयम  और  पराक्रम  में  देवताओं  को  पीछे  छोड़  दिया  है  l '  अत"  प्रजापति  ब्रह्मा  के  आदेशानुसार  महाराज  मुचुकुन्द  सेनापति  थे   l  एक  महीने  तक  देवता  और  असुरों  के  बीच  घनघोर  युद्ध  हुआ  l  मुचुकुन्द  के  पराक्रम  के  आगे  असुरों  की  एक  न  चली  l  सारे  संसार  में  महाराज  मुचुकुन्द  के   शौर्य , संयम , पराक्रम  और  इन्द्रिय  विजय   की  प्रशंसा  के  स्वर  गूंज  रहे  थे   l  अपनी  प्रशंसा  सुनते -सुनते  मुचुकुन्द  के   मन  में  अहंकार  बढ़ने  लगा   , अब  उनके  पराक्रम  में  वो  चमक  नहीं  दिखाई  दे  रही  थी  ,  अब  अहंकारवश   सुरा    और  सुंदरियों  में  उनकी   शक्ति  नष्ट  हो  रही  थी   l   असुरों  का  पलड़ा  फिर  से  भारी  हो  रहा  था  l   प्रजापति  ब्रह्मा  ने  मुचुकुन्द  के  ह्रदय  में  पनपने  वाले  इस  अहंकार  के  विष -बीज  को  देख  लिया  l  उन्होंने  देवराज  इंद्र  को  बुलाकर   सब  समझाया  और  कहा  --- तुम  अतिशीघ्र  स्वामी  कार्तिकेय  को    सैन्य -संचालन  के  लिए  ससम्मान   राजी  कर  लो  l  असुरों  ने   मुचुकुन्द  को  बंदी  बनाकर  पृथ्वी  पर  जा  पटका  , तब  उन्हें  अपनी   भूल  का  पता  चला  l  प्रजापति  ब्रह्मा  उनके  पास  पहुंचे  और  कहा ---- '  तुम्हारी  साधना  अधूरी  रह  गई  , यह  उसी  का  फल  है  l  अब  तुम  फिर  से   शक्ति  की  साधना  करो  लेकिन  ध्यान   रखना   इस  बार  अहंकार  बिलकुल  भी  न  रहे  l '

7 November 2023

लघु -कथा ----- आयु कुल चार वर्ष

   राजा  नौशेरवां  का  ऐसा  स्वभाव  था  कि  जहाँ  से  जो  भी  मिले   , उससे  कुछ  न  कुछ  सीख  लो  l  राजा  नौशेरवां  एक  दिन  वेश  बदल  कर   भ्रमण  को  निकले  l  मार्ग  में  उन्हें  एक  वृद्ध  किसान  मिला  l  किसान  के  बाल  पक  गए  थे  पर  शरीर  में   जवानों  जैसी  चेतनता  विद्यमान  थी  l  इसका  रहस्य  जानने  की  इच्छा  से  राजा  ने  उससे  पूछा  --- "  महोदय  !  आपकी  आयु  कितनी  होगी  ? "  वृद्ध  ने  हँसते  हुए  उत्तर  दिया ---- " कुल  चार  वर्ष  l "    नौशेरवां  ने  सोचा  बूढ़ा  दिल्लगी  कर  रहा  है  ,  पर  सच -सच  पूछने  पर  भी  जब   वृद्ध  ने  अपनी  आयु  चार  वर्ष  ही  बताई    तो  नौशेरवां  को   मन  में  बहुत  क्रोध  आया   कि  उसे  बता  दे  कि  वह  साधारण  व्यक्ति  नहीं  राजा  है  l  नौशेरवां  को  जिज्ञासा  थी  ,  उसने  अपने  मन  पर  नियंत्रण  रखा   और  नम्रता  से  पूछा ---- "  पितामह  !   आपके  बाल  पक  गए , शरीर  में  झुर्रियां  पड़  गईं  , लाठी  लेकर  चलते  हो  , मेरा  अनुमान  है  कि  आप  80  से  कम  के  न  होंगे  ,  और  फिर  भी  अपने  को  चार  वर्ष  का  बताते  हैं  l  ऐसा  क्यों  ?  "    वृद्ध  ने  गंभीर  होकर  कहा ---- "  आप  ठीक  कहते  हैं  , मेरी  आयु  80  वर्ष  है    किन्तु  मैंने  76  वर्ष  धन  कमाने  , ब्याह -शादी  और  बच्चे  पैदा  करने  में  बिताए  l  ऐसा  जीवन  तो  कोई  पशु  भी  जी  सकता  ,  इसलिए  उसे  मैं   मनुष्य  की  जिन्दगी  नहीं  ,  किसी  पशु  की  जिन्दगी  मानता  हूँ   l  इधर  चार  वर्ष  से  मेरा  विवेक  जाग्रत  हुआ  ,  मेरा  मन  ईश्वर  उपासना  , जप , तप , सेवा , सदाचार  , दया , करुणा , उदारता   में  लग  रहा  है   l  इसलिए  मैं  अपने  को  चार  वर्ष  का  ही  मानता  हूँ   l  "  नौशेरवां  वृद्ध  का  उत्तर  सुनकर  बहुत  संतुष्ट  हुए   और  प्रसन्नता  पूर्वक   राजमहल  लौटकर  सादगी  , सेवा  और  सज्जनता   का  जीवन  जीने  लगे  l  

5 November 2023

लघु -कथा --- नया पाने के लिए पुराना छोड़ो

   विन्ध्याचल  पर्वत  पर  दो  चींटियाँ  रहती  थीं  l   एक  उत्तरी  चोटी  पर  और  दूसरी  दक्षिणी  चोटी  पर   l  एक  का  घर  शक्कर  की  खान  में  था ,  और  दूसरी  का  नमक  की  खान  में  l   एक  दिन  शक्कर  की  खान  में  रहने  वाली  चींटी  ने  दूसरी  को  निमंत्रण  दिया  --- "  बहन  !  क्या  इस  नमक  की  खान  में  पड़ी  हो  ,  मेरे  यहाँ  चलो  , वहां  शक्कर  ही  शक्कर  है  l  खाकर  मुँह  मीठा  करो  और  अपना जीवन  सफल  बनाओ  l  "  दूसरी  चींटी  ने  निमंत्रण  स्वीकार  कर  लिया  और  दूसरे  दिन  शक्कर  की  खान  में  जा  पहुंची  l   अपनी  सहेली  को  देख   चींटी   बड़ी  प्रसन्न  हुई  और  उसे  घूम- घूमकर   शक्कर  की  खान  दिखाई  और  कहा  --- यहाँ  किसी  बात  की  कमी  नहीं  है  ,  जी  चाहे  जितनी  शक्कर  खाओ  l  "     चींटी  दिन  भर  इधर -उधर  भागती  फिरी   और  शाम  को   पहली  चींटी  से  यह  कहकर  चली  गई   कि  बहन  तुमने  मुझे  बड़ा  धोखा  दिया  l  यदि  शक्कर  तुम्हारे  पास  नहीं  थी  तो  मुझे  निमंत्रण  ही  क्यों  दिया  l  "    पास   ही  एक  कुटिया  में  एक  संत  और  उनका  शिष्य  निवास  करते  थे  l  शिष्य  ने  पूछा  --- "  गुरुदेव  ! शक्कर  के  पहाड़  पर  घूमने  पर  भी  चींटी  को  शक्कर  का  पता  क्यों  नहीं  चला  ?  "  संत  बोले  ---- " वत्स  !  बात  यह  थी  कि   चींटी  अपने  मुंह  में  नमक  का  टुकड़ा  दाबे  हुए  थी  ,  इसी  से  उसे   शक्कर  की  मिठास  का   आभास  नहीं  हो  पाया  l  इसी  प्रकार  जो  लोग  अपने  पुराने  संस्कार  नहीं  बदलते  ,  आत्म शोधन  द्वारा  अपनी  बुराइयाँ  नहीं  हटाते  ,  परमात्मा  के  समीप  होते  हुए  भी  उनकी  कृपा  से  वंचित  हो  जाते  हैं  l  नया  पाने  के  लिए  पुराने  को   हटाने  का  नियम   अनिवार्य  और  अटल  है  l "

WISDOM -----

   तपस्वी  से  राहगीर  ने  पूछा  ---- " आप  इस  बियावान  में  अकेले  रहते  है  ,  आपको  भय  नहीं  लगता  ? "  तपस्वी  ने  उत्तर  दिया ---- "  नहीं ,  मैं  अकेला  नहीं  हूँ  ,  मेरे  साथ  परम  पिता  परमेश्वर  हैं  ,  माँ  जगन्माता  हैं  l   जो  श्रेष्ठ  विचारों  से  घिरे  हैं ,  अपने  लक्ष्य  के  प्रति  एकाग्र  हैं   और  ईश्वर  के  चिन्तन  में  निमग्न  हैं  ,  वे  भला  कब  और  कैसे  एकाकी  हो  सकते  हैं  ?  उनके  साथ  उनके  प्रभु  परमेश्वर  सदा  ही  रहते  हैं  l "

3 November 2023

WISDOM ------

     कहते  हैं   ' अति '  हर  चीज  की  बुरी  होती  है  l  महत्वाकांक्षा  भी  यदि  अति  की  हो    तो  उसका  दुष्परिणाम   परिवार  को , समाज  को  और  संसार  को  झेलना  पड़ता  है  l  ऐसा  व्यक्ति  जिस  भी  क्षेत्र  में  है   वह  चाहता  है   सब  उसे  प्रणाम  करें ,  उसकी  गरिमा  को  समझें  , उसके  कहे  अनुसार  आचरण  करे  l    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----' महत्त्व  को  जिस -तिस  तरह  हथिया  लेने  की  ललक    ऐसा  विष  है   जो  जिस  क्षेत्र  में  घुसेगा  उसे   विषैला    बना  देगा  l '     सिकंदर , हिटलर   को  विश्व विजयी  होने  का  सम्मान  पाने  की  ललक  थी  , इसके  लिए  लाखों -करोड़ों  को  मारने -काटने  में  उन्हें  कोई  तकलीफ  नहीं  हुई  l  अति  का  महत्त्व  पाने  की  इच्छा  धार्मिक  क्षेत्र  में  व्यक्ति  को  धूर्त  और  पाखंडी  बना  देती  है  l  अपने  भीतर  की  कमजोरियों  को  छिपाकर     -संत  का  वेश  विन्यास  कर  व्यक्ति  लाखों   से  अपनी  पूजा  भक्ति  करा  लेता  है  l  इस  महत्वाकांक्षा  ने  संसार  में  लाखों   गुरु , सैकड़ों  भगवान , अवतार  पैदा  कर  दिए   l  सामाजिक  क्षेत्र  में  महत्त्व  लूटने  की  , सम्मान  पाने  की   चाह    ने  कितने  ही  नकली  समाज सेवी    पैदा    कर  दिए  l    अमीरों  की  गिनती  में   आगे  बढ़ने  की    चाह  में   संसार  में  धन  कमाने  के  कितने  ही  गलत  तरीके  फ़ैल  गए  हैं  l  महत्त्व  पाने  की  इस  ललक  में  व्यक्ति   दोहरा  जीवन  जीता  है  l  अन्दर  से  नीति  , मर्यादा  की  अवहेलना  करते  हुए  बाहर  से   बहुत  मर्यादित  , अनुशासनप्रिय   दिखाने  का  प्रयत्न  करता  है  l  कई  लोग  तो  अपने  चेहरे  पर  इतने  चेहरे  लगा  लेते  हैं  कि  वे  स्वयं  ऐसी  मन;स्थिति  में  पहुँच  जाते  हैं  की  वे   अपना   सच  ही   भूल  जाते  हैं  , मानसिक  रूप  से  बीमार  हो  जाते  हैं  l    पं .  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---' बुराई  बुराई  है   पर  अच्छाई  के  गर्भ  में   बुराई  को  भरण -पोषण  मिलना   और  अधिक  भयंकर  है  l  पाप  को  पाप  समझकर   उससे  बचा  जा  सकता  है  लेकिन  जो  पाप ,    पुण्य  की  आड़  में   किया  जाता  है   उससे  बच  पाना  बहुत  कठिन  है  l   शत्रु  से  बचाव  आसान  है  ,  पर  मित्र  बने  शत्रु  से  बच  पाना  असंभव  है   l "  जागरूक  रहें  और  अति  से  बचें  l 

31 October 2023

WISDOM ----

     कहते हैं  इस  धरती  पर  जब  भी  कोई  प्राणी  जन्म  लेता  है  तो  विधाता   आते  हैं  और  उसके  माथे  पर  उसका  भाग्य  लिख  कर  जाते  हैं  l  इन  भाग्य  की  रेखाओं  को  मिटाना  असंभव  है  l    अब  वह  व्यक्ति  अपने  पुरुषार्थ  से  अपने  भाग्य  को  कितना  संवार  सकता  है  या  अपने  आलस  से  कितना   बिगाड़  सकता  है  ,  यह  एक   अलग  समस्या  है  l  कलियुग  की  समस्या   कुछ  अजीब  ही  है  ----- अब  लोगों  में  ईर्ष्या , द्वेष , लालच  , महत्वाकांक्षा  इस  कदर  बढ़  गया  है   कि  वे  दूसरे  के  भाग्य  को  चुरा  लेना , छीन  लेना  चाहते  हैं  l  तांत्रिक  और  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से  वे  दूसरे  के  सुख  को  छीन  कर  स्वयं  भोगना  चाहते  हैं   l  अपने  धन , शक्ति , अहंकार  और  ज्ञान  के  दुरूपयोग  से  भगवान  को  चुनौती  देते  हैं  l   सर्वशक्तिमान  ईश्वर  के  लेख  को   मिटाने  का  दुस्साहस   करने  का  दुष्परिणाम  यह  होता  है  कि  ऐसे  तांत्रिकों  और  नकारात्मक  शक्तियों  के  साथ  काम  करने  वाले  और  उनका  साथ  देने  वालों  का  जीवन  असहनीय  कष्ट  और   गहन  अंधकार  में  डूबता  जाता  है  l  इसी  सत्य  को  बताने  वाला  एक   प्रसंग  है ----------  महर्षि  वर्ष  तंत्र  विद्या  के  बहुत  बड़े  ज्ञाता  थे  l  उनके  दो  शिष्यों  --व्याडि   और  इन्द्रदत्त  ने  उनसे  निवेदन   और  हठ  किया  वे  यह  गूढ़  विद्या  उन्हें  सिखा  दें  l  महर्षि  ने  उन्हें  बहुत  समझाया  कि   इस  विद्या  के  लिए  अपने  अंत:करण  को  शुद्ध  बनाना  पड़ता  है , सद्गुण  और  सन्मार्ग  पर  चलने  की  साधना  करनी  पड़ती  है  , अन्यथा  दुरूपयोग  की  संभावना  रहती  है  l   लेकिन  दोनों  शिष्यों  के  बहुत  तर्क  और  हठ  करने  पर  महर्षि  ने  सोचा  कि  कहीं  यह  विद्या  लुप्त  न  हो  जाये   और   उन  शिष्यों  के  कहने  पर  कि  वे  इस  विद्या  का  उपयोग  विश्व कल्याण  के  लिए  करेंगे   तब  महर्षि  ने   उन्हें  अनेक  योग , आसन  ,प्राणायाम , हठ  योग , परकाया  प्रवेश , अन्य  लोकों  में  अभिगमन  आदि  अनेक  गूढ़  विद्या  सिखा  दीं  l  दोनों  शिष्य  सब  सीखकर  इनके  बहुत  बड़े   ज्ञानी  बन  गए  l   जब  घर  चलने  का  समय  हुआ   तो  शिष्यों  ने  गुरु  से  कहा कहा  --- 'हम  आपको  गुरु  दक्षिणा    में  क्या  दें  ? '   गुरु  ने  कहा  ---- तुम    देश  , संस्कृति  और  विश्व कल्याण  के  लिए   कार्य  कर   इस  ज्ञान  को  सार्थक  करो  l   लेकिन  शिष्यों  को  तो  अपने  ज्ञान  का  अहंकार  था , उन्होंने  गुरु  से  कोई  भौतिक  वस्तु  मांगने  को  कहा  l  शिष्यों  की  जिद्द  पर  गुरु  ने  कहा ---- "  ठीक  है   तुम  एक  हजार  स्वर्ण  मुद्राएँ  लाकर  दो  , जिनसे  इस  आश्रम  का  जीर्णोद्धार   हो  सके  l "   दोनों  शिष्यों  में  बहुत  अहंकार  था  ,  परिश्रम  और  सही  दिशा   से   धन  कमाने  की  बजाय   वे  कोई  तरकीब  सोचने  लगे  , जिससे  तुरत -फुरत  धन  आ  जाये  l   जिस  दिन  वे  ऐसी  मंत्रणा  कर  रहे  थे  उसी  दिन  मगध  सम्राट  नन्द  की  मृत्यु  हो  गई  l    उन  दोनों  शिष्यों  ने  वररुचि  नामक  व्यक्ति  को  अपना  मित्र  बनाया   और  यह  तय  किया  कि  इन्द्रदत्त   मगध  सम्राट  नन्द  के  शरीर  में  परकाया  प्रवेश  करे  ,  फिर  इन्द्रदत्त  के  शव  की  रक्षा  व्याडि  करे  और  जब  इन्द्रदत्त  की   आत्मा   नन्द  के  शरीर  में  पहुँच  जाये  ,  तब  वररुचि  जाकर  उनसे   एक  हजार  स्वर्ण  मुद्राएँ  मांग  लाए   जिससे  गुरु  दक्षिणा  चुका  दी  जाए   और  अपने  लिए  भी  धन  प्राप्त  हो  जाये  l  सब  व्यवस्था  कर  ली  , फिर  जैसे  ही  इन्द्रदत्त  ने  अपने  शरीर  से  प्राण  निकाल  कर  नन्द  के  शरीर  में  प्रवेश  किया  , मगध  सम्राट  नन्द  जी  उठे   ,  सारी  जनता  चकित  रह  गई  l  इस  रहस्य  को  और  कोई  तो  नहीं  जान  पाया  ,  पर  नन्द  का  मंत्री  शकटारी   बहुत  बुद्धिमान  था  , वह  सारी  स्थिति  समझ  गया  l  उसने  तत्काल  पता  लगाकर   इन्द्रदत्त  के  शव  का   दाह   संस्कार  करा  दिया ,  व्याडि  को  बंदी  बनाकर  कारागृह  में  डाल  दिया  l  अब   इन्द्रदत्त  के  शरीर  का  तो  दाह  हो  चुका  था  इसलिए  इन्द्रदत्त   नन्द  के  शरीर  में  ही  रह रह  गया   और  भोग  वासनाओं  में  डूब  गया   और  चन्द्रगुप्त  के  हाथों  मारा  गया  और   व्याडि   कारागृह  में  यातनाओं  से  मर  गया  l    जो  योग  विद्या  जन  कल्याण  के  उदेश्य  से  सिखाई  गई  थी  वह  अहंकार  के  कारण  अपने  साधकों  को  ही  ले  डूबी  l  ------ ये  गूढ़  विद्या  है  l  व्यक्ति   स्वयं  ऐसा  ज्ञान  प्राप्त  कर  के  या  ऐसी  विद्या  के  जानकार  की  मदद  लेकर    परिवार  , समाज  से  लुक छिपकर   बहुत  अनर्थ  करता  है   लेकिन  अपनी  आत्मा  से  और  ईश्वर  की  निगाह  से  बच  नहीं  पाता   l  काल  के  अनुसार  निर्धारित  समय  पर  वह  अपने  किए  का  घोर  दंड  पाता  है  l  

29 October 2023

WISDOM -----

      एक  जिज्ञासु  ने  एक  विद्वान्  से  पूछा  ------  इस  संसार  में  अब  तक  इतने  महात्मा , साधु -संत  और  अवतार  हो  चुके  हैं  ,  सबने  इस  दुनिया  को  भला  बनाने  का  प्रयास  किया  ,  पर  किसी  के  प्रयत्नों  का  कोई  फल  नहीं  हुआ  l  संसार  जैसे  का  तैसा  पापपूर्ण  अभी  भी  बना  हुआ  है  , इसमें  सदा  ही  बुराइयों  की  भरमार  रहती  है  l '   जिज्ञासु  ने   उस  व्यक्ति  को  एक  कहानी  सुनाई  ----   एक  गरीब  आदमी  ने  किसी  तरह   भूत  को  अपने  वश  में  करने  की  सिद्धि  प्राप्त  कर  ली  l  भूत  सामने  आ  गया  और  बोला ---- महोदय  !   मुझसे  जो  चाहे  काम  करा  लो  लेकिन  मैं  ठाली  न  बैठूँगा  ,  जब  ठाली  रहूँगा  तो  आप  पर  ही  पिल  पडूंगा  l "    अब    गरीब  आदमी   ने  उससे  महल , नौकर , खजाना , सभी  सुख  सुविधाएँ  एक -एक  कर  के  जुटा  लीं  l    हर  कार्य  तुरंत  कर  के  उसके  सामने  खड़ा  हो  जाता  की  अब  और  काम  बताओ    l  वह  व्यक्ति  परेशान  हो  गया   l  एक  तांत्रिक  की  सलाह  पर  उसने   भूत  को  कुत्ते  की  पूंछ  सीधी   करने  का  काम  सौंप  दिया  l  अब  भूत  जितनी  बार  भी  उस  पूंछ  को  सीधी  करता  वह  फिर   टेढ़ी   हो  जाती  l  इस  तरह  उसे  उस   भूत  से  छुटकारा  मिला  l    यह  कथा   सुनाकर   विद्वान्  ने  जिज्ञासु   से  कहा  ---- हमारा  मन  भी  एक  प्रकार  का  भूत  है   जो  हर  समय  संसार  के  सुखों  के  पीछे  भागता  रहता  है  l  परमात्मा  ने  संसार  में  इतनी  बुराइयाँ  इसलिए   छोड़  रखी  हैं    कि  मनुष्य   अपने  मन  को   कुत्ते  की  पूंछ  को  सीधा  करने  यानि  इन  बुराइयों  को  दूर  करने  में  लगाये  l  ये  बुराइयाँ  आत्मउद्धार  का  अभ्यास  करने  के  लिए  हैं  l  निरंतर  अभ्यास  कर  के  मनुष्य  अपने  मन  पर  नियंत्रण  कर  अपने  विकारों  को  दूर  कर  सकता   और  अपनी  चेतना  को  परिष्कृत  कर  सकता  है  l  

WISDOM -----

   लघु  कथा ---- नि :शस्त्रीकरण ------ एक  चिड़ियाघर  के  जानवरों  ने  इकट्ठे  होकर  विचार  किया   कि  नि:शस्त्रीकरण  की  नीति  पर  चलना  चाहिए  l  गेंडे  ने  कहा --- दांत  और  पंजे  सबसे  अधिक  खतरनाक  होते  हैं  , उन  पर  प्रतिबन्ध  लगाया  जाये  ,  सींग  तो  केवल  रक्षा  का  साधन  मात्र  है  l "  भैंसा  और  हिरन  से  लेकर   कांटो  वाली  सेई  तक  ने   गेंडे  की  बात  का  समर्थन  किया  l    शेर  ने  दांतों  और  पंजे  को   खाने  और  चलने  का   साधारण  साधन  बताते  हुए  कहा --- " सींग  ही  निरर्थक  वस्तु  है  ,  सर्व सम्मति  से   सींग  का  प्रयोग  ही  निषिद्ध  करा  जाए  l "  बाघ ,  चीता   और  सियार  से  लेकर  वन बिलाव  ने   इस  तर्क  की  प्रशंसा  की  l  रीछ  की  बारी  आई  ,  तो  उसने  कहा ---- "  सींग  और  दांत , पंजे   यह  सभी  हानिकारक  हैं  l  जरुरत  पड़ने  पर  आलिंगन  करने   के  मित्रतापूर्ण   ढंग  पर    छूट    रखी  जानी  चाहिए  l "  जो  लोग  रीछ  की  आदत  को  जानते  थे   , वे  उसकी  चालाकी  ताड़  गए  और  मन  ही  मन  बहुत  कुढ़े  l     अपने  पक्ष  का  समर्थन  और   प्रतिपक्षी  का  विरोध   करने  के  जोश  में   बहुत  शोर  मचने  लगा  ,  एक  दूसरे  पर  गुर्राने  लगे  ,  यहाँ  तक  कि  टूट  पड़ने  की  बात  सोचने  लगे   l  चिड़ियाघर  के  मालिक  ने  जब  यह  शोर  सुना   तो  उसने  उन  सबको  अपने -अपने  बाड़े  में  खदेड़  दिया   और  कहा ---- " मूर्खों  !  तुम  भलमनसाहत  से  अपनी -अपनी   मर्यादाओं  का  पालन  करो  ,  तो  बिना  नि:शस्त्रीकरण   के  भी  काम  चल  सकता  है  ,  सब  जानवर  शांति  से  रह  सकते  हैं  l  लेकिन  तुम  में  जो  शक्तिशाली  है   वह  भी  अपने  हथियार  को  सुरक्षित  रखकर   दूसरे  पर  प्रतिबन्ध  लगाकर  उसे  अपने  आधीन  करना  चाहता  है  l  l "  क्रोध  में  मालिक  ने  बाड़े  का  दरवाजा  बंद  कर  दिया   l  

28 October 2023

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " प्रतिद्वंदी  को  पछाड़ो  मत   l  अपनी  महानता  का  परिचय  देकर  उसे  क्षुद्र  बनने  दो  l   जीवन  एक  अवसर  है  , जिसे  यदि  गँवा  दिया  जाये  तो  हाथ  से  सब  कुछ  चला  जाता  है   और  यदि  उसका  सही  उपयोग  कर  लिया  जाये    तो  प्रगति  के  चरम  शिखर पर  पहुंचा  जा  सकता  है  l  "    यदि  ईश्वर  की  कृपा  से  किसी  के  पास  सद्बुद्धि  है , विवेक  है    तो  वह  अपने  अपमान  का  बदला  लेने  के  लिए    उससे  विवाद , झगडा , लड़ाई , युद्ध  आदि   करने  में  अपनी    ऊर्जा  को   बर्बाद  नहीं  करता  l  वह  अपना  समय  और  अपनी    ऊर्जा    को  स्वयं  को  ऊँचा  उठाने  में  लगाता  है   जिससे  प्रतिद्वंदी  स्वत:  ही  पराजित  हो  जाता  है  l  ----- एक  प्रसंग  है  -----  मरण  शैया  पर  पड़े  पिता  ने  अपने  पुत्र  बैजू  से  कहा ---- ' संगीत  के  दर्प  में  तानसेन  ने  मेरा  अपमान  किया ,  तू  उससे   बदला  अवश्य  लेना  l  "  अपने  पिता  की  अंतिम  इच्छा  को  पूरा  करने  के  लिए  बैजू  अँधेरी  रात  में   हाथ  में  परशु   लेकर   तानसेन  के  महल  में  पहुंचा  l   उसने  दरवाजे   की  झिरझिरी  से  झांककर  देखा    कि  देवी  सरस्वती  की  प्रतिमा   के  आगे  बैठ  वे  अध्ययन  कर  रहे  थे  l  आशीर्वाद  देती  हुईं  देवी  की  शांत  मुद्रा  की  प्रतिमा  को  देखकर  बैजू   सोचने  लगा  ---- "  ऐसा  प्रतिशोध  किस  काम  का  जिसमे  अपना  पतन  हो  जाये  l  वह  देवी  से  प्रार्थना  करने  लगा  कि  'माँ  मुझे  सद्बुद्धि  दो  l '  अब    वह  वापस  लौट  आया  और  अपनी   संगीत   साधना  के  आधार  पर  प्रतिशोध  लेने  का   विचार  करने  लगा  l   अपनी  वीणा  और  वाद्य  यंत्रों   को  लेकर  वह  दिन -रात  साधना  में  लीन  रहता  ,  उसे  खाने -पीने  की  भी  सुध  नहीं  थी  l   प्रतिशोध  की  भावना  नष्ट  हो  चुकी  थी   बैजू  की  ख्याति  फैलने  लगी  और  अकबर  के  कानों  तक  पहुंची  l  l  अकबर  उसका  संगीत  सुनने  उसकी  झोंपड़ी  में    पहुंचे   और  उसका  संगीत  सुनकर  मन्त्र -मुग्ध  हो  गए  ,  उन्होंने  तानसेन  की  ओर  देखा  ,  तो  तानसेन  ने  अपनी  पराजय  को    स्वीकार  किया   और  कहा  --- " जहाँपनाह  !  मैं  आपको  खुश  करने  के  लिए  गाता  हूँ  और  बैजू  ईश्वर  को  प्रसन्न  करने  के  लिए  गाता  है  l  जो  अंतर  ईश्वर  और  आप  में  है  , वही  अंतर   बैजू  और  मुझ  में  है  l  "    बैजू  का  प्रतिशोध  सकारात्मक  दिशा  में  पूरा  हुआ  , उसकी  अनवरत  साधना   के  कारण  संसार  ने  उसे  बैजू बावरा  के  नाम  से  जाना  l  

27 October 2023

WISDOM ----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " समय  परिवर्तनशील  है  किन्तु  किसी  भी  तरह  के  समय  को  परिवर्तित  करना  हमारे  हाथ  में  नहीं  होगा  ,  यह  परिवर्तन  स्वत:  होता  है  ,  जिसे  हमें  स्वीकार  करना  होता  है   जिस  तरह  हम  रात्रि  को  दिन  में  नहीं  बदल  सकते  ,  लेकिन  विद्युत  के  माध्यम  से   बल्ब  जलाकर  अंधकार  को  दूर  कर  सकते  हैं  ,  उसी  तरह   हम  जीवन  में  दुःख , कष्ट , पीड़ा  , अपयश , उपेक्षा , तिरस्कार   आदि  के  आने  पर   इन्हें  तुरंत  दूर  नहीं  कर  सकते  ,  लेकिन  इन  परिस्थितियों  में   ईश्वर  का  नाम  स्मरण  करते  हुए  और  शुभ  कर्म  ,  तप ( ईमानदारी  से  कर्तव्य पालन  )  कर  के   हम  इनकी  पीड़ा  को  कम  कर  सकते  हैं  और  लाभान्वित  हो  सकते  हैं  l  "  सुख -दुःख  के  चक्र  के  बारे  में  अकबर -बीरबल  का  एक  प्रसंग  है ----- एक  बार  अपने  सभाजनों  के  सामने  सम्राट  अकबर  ने  प्रश्न  किया --- " इस  संसार  में  ऐसा  क्या  है  , जिसको  जान  लेने  के  बाद  सुख  में  दुःख  का  अनुभव  हो    और   दुःख  में  सुख  का  अनुभव  हो  ? "  उनके  इस  प्रश्न  से  सभा  में  सन्नाटा  छ  गया  ,  सभी  की  नजरें  बीरबल  की  ओर  थीं  l   बीरबल  भी  हाजिरजवाब  थे  ,  वे  बोले  ---- " यह  समय  भी  गुजर  जायेगा   l "  बुद्धिमान  बीरबल  के  इस  जवाब  से  अकबर  बहुत  प्रसन्न  हुए  l  समय  गुजर  जाने  की  बात  से   सुखी  व्यक्ति  को  दुःख  का  एहसास   और  दुःखी   व्यक्ति  को  सुख  का  एहसास  होना  स्वाभाविक  है  l   

26 October 2023

WISDOM ---

   सुख -शांति  से  , तनाव रहित  जिन्दगी  जीने  का  एक  तरीका  यह  भी  है  कि   हम  अपने  जीवन  में   जो  भी  कठिनाइयाँ , दुःख , अपमान , संघर्ष  ---किसी  भी  तरह  की  नकारात्मकता  को  झेल  रहे  हैं   , तो  उन  सबके  बीच  कौन  सा  एक  सुख  भी  है  , उसे  ढूंढ  लें  l  हर  कष्ट  में , हर  दुःख  में  कहीं  न  कहीं  एक  छोटा  सा  सुख  अवश्य  छिपा  होता  है  ,  हमें  उसी  को  ढूंढना  है   क्योंकि  वही  एक  आशा  की  किरण  है  जो  हमें  जीवन  जीने  की  हिम्मत  और  प्रेरणा  देती है  l  जब  हर  तरफ  से  नकारात्मकता  ने   हम  पर  आक्रमण  किया  हो  , तब  उसके  बीच  सकारात्मकता  को  खोजना   केवल  ईश्वर  विश्वास  से  ही  संभव  है  l  यदि  हमें  ईश्वर  की  सत्ता  पर  विश्वास  है  तो  उस  सकारात्मकता  को  हम  अपने  अन्दर  महसूस  करते  हैं   और  उस  आंधी -तूफ़ान  के  बीच  भी  अटल  रहते  हैं   हमें  यह  अटल  विश्वास  होता  है  कि   अँधेरा  मिटेगा , सुबह  अवश्य  होगी  l     इसके  पीछे  एक  सत्य  यह  भी  है  कि  हमारी  शांति  देखकर  अन्य  लोग  अवश्य  तनाव  में  आ  जाएंगे   कि   इतनी  मुसीबतों  और   नकारात्मकता  के  बीच  यह  शांत  कैसे  है  ? एक   कथा  है  -----  एक  बार  बाबा  फरीद  रास्ते  से  गुजर  रहे  थे  l  उनके  शिष्य  भी  उनके  साथ  थे  l  शिष्य  उनका  बहुत  आदर , सम्मान  करते  थे  l  रास्ते  पर  चलते  हुए  बाबा  फरीद   के  पाँव  में  अचानक  पत्थर  से  चोट  लग  गई   और  वे  जमीन  पर  गिर  पड़े  l   उनके  पैर  से  खून  निकलने  लगा  l  इससे  उनके  शिष्यों  को  बड़ी  पीड़ा  हुई  l  शिष्यों  ने  कहा  , यह  जरुर  किसी  की  शरारत  है   l  कल  शाम  को  जब  हम  निकले  थे  ,  तब  यह  पत्थर  यहाँ  पर  नहीं  था  l  किसी  ने  जरुर  सोचा  होगा   कि  सुबह  यहाँ  से  निकलेंगे  और  मस्जिद  जाएंगे  , इसलिए  किसी  ने  जानबूझकर  इस  पत्थर  को  यहाँ  पर  रख  दिया  l  शिष्यों  की  इस  बात  पर  बाबा  फरीद  ने  उन्हें  समझाया  कि  तुम  सब  इन  व्यर्थ  की  बातों  में  मत  पड़ो   और  वे  स्वयं  घुटने  टेककर   खुदा  को  धन्यवाद  देने  बैठ  गए  l  अपनी  प्रार्थना  पूरी  करने  के  बाद   उन्होंने  कहा ---- " ऐ  खुदा  !  तेरी  बड़ी  कृपा  है  l  अपराध  तो  मेरे  ऐसे  हैं  कि  आज  मुझे  फाँसी  मिलती  ,  लेकिन  तूने  मुझे    सिर्फ  पत्थर  की  चोट  दी  l  तेरी  करुणा  अपार  है  l " 

25 October 2023

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " बात  परिवार  की  हो , समाज  की  हो  , देश  या  विश्व  की  हो  सब  तरफ  झगड़े  फैल  रहे  हैं  ,  सारा  विष  घुल  रहा  है   जीवन  में  l  इसके  पीछे  केवल  एक  कारण  है   कि  भीषण  रूप  से  छीना -झपटी  मची  हुई  है  ,  आधिपत्य  करने  की  होड़  है  l  "                                           त्रेतायुग  में  भगवान  श्रीराम  अपना  अधिकार  त्यागने  के  लिए  तत्पर  थे   और  भरत  अपना  सुख  त्यागने  के  लिए  तत्पर  थे   तो  कहीं  कोई  झगड़ा  ही  नहीं  था  l  झगड़ा  तो  तब  खड़ा  होता  है  जब  कोई   दुर्योधन  कहता  है  कि  मैं  पांडवों  को  पांच  गाँव  तो  क्या  सुई  की  नोक  बराबर   भी  भूमि  नहीं  दूंगा  l  कलियुग  में   वर्तमान  में  स्थिति  और  भी  भयावह  है  ,  अब  कुछ  देने  की  तो  बात  ही  नहीं  है  ,  अब  तो  केवल  छीनना  है  l  जिसके  पास  थोड़ी  भी  ताकत  है   वह  दूसरों  का  हक  छीनता  है  l  अब  लोग  किसी  को  सुख -शांति  से  जीवन  जीते  नहीं  देख  सकते   l  यदि  किसी  ने  अपनी  मेहनत  से  अपने  को  स्थापित  किया  है  तो  आसुरी  मानसिकता  के  लोग  उसे  मिटाने  की  जी  तोड़  कोशिश    करते  हैं  l  नकारात्मक  शक्तियां  इतनी  प्रबल  हैं   लेकिन  विधाता  के  लेख  पर  उनका   वश  नहीं  है  l  विज्ञानं  और  नकारात्मक  शक्तियों  का  सहारा  लेकर  अब  तो   आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग    विधाता  से  भी  दो -दो  हाथ  करने  को  तैयार  हैं  l      ये  असुर  ऐसे  क्यों  होते  हैं  ?    ऋषियों  का  कहना  है  --- वे  आत्महीनता  की  ग्रंथि  से  ग्रस्त  रहते  हैं  l  वे  अपने  अन्दर  खालीपन  महसूस  करते  हैं  ,  जिसको  वे  बाहर  पूरा  करना  चाहते  हैं  l  -------- कहते  हैं  एक  बार  तैमूरलंग  ने  एक  राज्य  पर  आक्रमण  किया  l  तैमूरलंग  लंगड़ा  था  इसलिए  उसे  तैमूरलंग  कहा  जाता  था  l  जिस  राज्य  पर  उसने  हमला  किया  वहां  का  सुल्तान  काना  था  l  हमले  के  बाद  सुलह  हुई  , समझौता  हुआ   और  उसके  बाद  दोनों  मिल  बैठकर  बातें  कर  रहे  थे  l  इस  अवसर  अनेक  लोगों  को  बुलाया  गया  था  ,  उनमे  कुछ   फकीर , संत महात्मा  भी  थे   l  उस  समय  तैमूर   परिहास  की  मनोदशा  में  था   ,   हँसता  हुआ  सुल्तान  से  बोला  कि  मैं  लंगड़ा   और  तुम  काने  ,  ये  खुदा  को  भी  क्या  हो  गया  है  ?  लंगड़े -कानों  को  सुल्तान  बनाता   रहता  है  l    इतने  लोगों  का  कत्लेआम  हुआ  , विधवाओं  और  अनाथ  बच्चों  और  घायलों  की  चीखें  अभी  तक  वातावरण  में  थीं   , उस  पर   तैमूर    का  परिहास  !  सभा  में  उपस्थित   एक  फकीर  ने  कहा ---- "हुजूर  ! दरअसल  लंगड़े -कानों  को  ही  सल्तनत  की  जरुरत  होती  है  l  वे  आत्महीनता  की  ग्रंथि  से  ग्रस्त  रहते  हैं  l  वे  अपने  अन्दर  कुछ  कमी  महसूस  करते  हैं  ,  जिसको  वे  बाहर  पूरा  करना  चाहते  हैं  l   जो  अपने  में  जितना  ज्यादा  संतुष्ट -संतृप्त  होता  है   वो  बाहर  की  उपलब्धियों  की   तरफ  आँख  उठाकर  भी  नहीं  देखता  है  l   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- सेवा -परोपकार  के  कार्यों  और  निष्काम  कर्म  से  जीवन  का  खालीपन  दूर  होता  है  , यह  आत्मा  की  खुराक  है  इसी  से  आत्मा  को  तृप्ति  और   मन  को  शांति  मिलती  है  l 

24 October 2023

WISDOM -----

    विजय दशमी  का  पर्व  इस  सत्य   की  बार -बार  गवाही  देता  है  कि  हर  अत्याचारी , आततायी  और  कुकर्मी  का  अंत  अवश्य  ही  होता  है  l  रावण  मायावी  था  , तंत्र विद्या  का  ज्ञाता  और  महान  तांत्रिक  था  l  उसने  अपने  अहंकार  और  दंभ  प्रदर्शन  के  लिए  अपनी  शक्तियों  का  दुरूपयोग  किया   इसलिए  उसका  अंत  करने  के  लिए  स्वयं  भगवान  श्रीराम  को  इस  धरती  पर  आना  पड़ा  l   तंत्र  विद्या  का  प्रयोग  आदिकाल  से  ही  इस  संसार  में  हो  रहा  है   और  ये  तांत्रिक   अपने  इष्ट  देवी -देवताओं  से  शक्ति  प्राप्त  कर  इस  विद्या  का  घोर  दुरूपयोग  करते  हैं  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " सामर्थ्य  के  संग  जब  अहंकार  जुड़  जाता  है  , तो  विनाश  होता  है   और  जब  सामर्थ्य  के  संग  संवेदना  जुड़ती  है   तो  विकास  होता  है  l  "                                                 बाबा  गोरखनाथ जी  के  समय  का  प्रसंग  है  -----  उस  समय  तांत्रिक  अपनी  तंत्र  विद्या  का  दुरूपयोग  कर  भोले -भाले  इनसानों  को  भटका  रहे  थे   और  अपनी  तंत्र  विद्या  के  ऐसे  जघन्य  और  वीभत्स  प्रयोग  कर  रहे  थे   जिससे  मानवता  कराह  उठी  थी  l  इस  कारण  मानवीय  और  आध्यात्मिक  मूल्यों  की  रक्षा  के  लिए  बाबा  गोरखनाथ जी  इन   महा भ्रष्ट   तांत्रिकों   को  सबक  सिखा  रहे  थे  l  इन  तांत्रिकों  ने  स्वयं  को  बचाने  के  लिए  अपनी  आराध्या  एवं  इष्ट   माँ  चामुंडा  देवी  की  प्रार्थना  की  l  देवी  चामुंडा  प्रकट  हुईं   और  क्योंकि  तांत्रिक  उनके  भक्त  थे  इसलिए  उनकी  सुरक्षा  एवं  संरक्षण  के  लिए  माँ  चामुंडा  ने  बाबा  गोरखनाथ जी  पर  खड्ग  उठा  लिया  l  गोरखनाथ जी  ने  कहा ---- " माता  !  प्रत्येक  इनसान  अपने  भाग्य  से  प्राप्त  सुख -दुःख  को  भोगता  है   परन्तु  ये  तांत्रिक  अपनी  विद्या  के  बल  पर  लोगों  को  निरर्थक  कष्ट  दे  रहे  हैं  l  यह  न्यायोचित  नहीं  है  और  न  ही  धर्म  है  l  जो  भी  ऐसा  दुष्कर्म  करेगा  उसको  हम  अवश्य  दण्डित  करेंगे  l "  लेकिन  देवी  चामुंडा  अपने  भक्तों  को  दिए  वचन  से   बद्ध  थीं  अत:  उन्होंने   गोरखनाथ जी  के  ऊपर  भीषण  प्रहार  किया  l  बाबा  गोरखनाथ   महान  तपस्वी  थे  और  स्वयं  तंत्र  विद्या  में  पारंगत  थे   और   समाज  में  फैली     तंत्र  की  विकृति  को  दूर  कर   शुद्ध  सात्विक  और  लोकोपयोगी  तंत्र  विद्या  की  स्थापना  करना  चाहते  थे  l  इनके  गुरु  मत्स्येन्द्रनाथ  थे   जो  भगवान  शिव  के  शिष्य  थे  l  चामुंडा  देवी  के  सामने  गोरखनाथ जी  वज्र  के  समान  खड़े  रहे  l  कहते  हैं  दोनों  महान  शक्तियों   में  तीन  वर्षों  तक  युद्ध  चला  l  तीन  वर्ष  के  कड़े  संघर्ष  के  बाद  गोरखनाथ जी  ने  देवी  चामुंडा  को  कीलित  कर  लिया   और  धरती  से  तांत्रिकों  के  उपद्रवों  को  शांत  कर  दिया  l  गोरखनाथ जी  ने  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  देखा  कि   ये  तांत्रिक  फिर  से   अपनी  शक्तियों  को  समेटकर  धरती  पर  उपद्रव  करने  आयेंगे   l                                                      उनका  यह  कथन  सत्य  है  , आज  संसार  के  अधिकांश  देशों  में   तंत्र , ब्लैक मैजिक  आदि  अनेक  तरह  की  नकारात्मक  शक्तियों  का  प्रयोग  होता  है  l  ये  शक्तियां  पीठ  पर  वार  करती  हैं  , समाज  और  कानून  की  पकड़  से  बाहर  होने  के  कारण  इनका  प्रयोग  करने  वाले   समाज  में  शरीफ  ही  बने  रहते  हैं   लेकिन  ईश्वर  की  निगाह  से  कोई  बच  नहीं  सकता  , इनका  अंत  बहुत  बुरा  होता  है  l   बाबा  गोरखनाथ जी  ने  जब  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से   यह  देखा  तो  संसार  को  आश्वासन  दिया   कि  इस  बार  इनको  दण्डित  करने  वाला  देवदूत  आएगा   और  इनका  संहार  करेगा  l  इसी  से  स्रष्टि  में  संतुलन  आएगा  और  सतयुगी  वातावरण  विनिर्मित  होगा   जिसकी  सुगंध  हजारों  वर्षों वर्षों तक  अनुभव  की  जाती  रहेगी  l  

22 October 2023

WISDOM -----

   विधाता  ने  स्रष्टि  की  रचना  की  l पेड़ -पौधे , पशु -पक्षी , वनस्पति  की  रचना  की   l  मनुष्य  की  रचना  करते  समय  उन्होंने  उसे  बुद्धि  दी  l  विधाता  ने  उसे  यह  बुद्धि  इस  विश्वास  पर  दी  कि   वह  ईश्वर  की  बनाई  इस  स्रष्टि  को  और  अधिक  सुन्दर  बनाएगा   l  लेकिन  संसार  के  सुख -भोग  और  विविध  आकर्षणों  ने  मनुष्य  को  स्वार्थी  बना  दिया  l  बुद्धि  होने  के  कारण  मनुष्य  में  अपने  ज्ञान  का  अहंकार  तो  था  ही ,  अब  उस  अहंकार  ने  स्वार्थ  और  महत्वाकांक्षा  से  दोस्ती  कर  ली   इसका  परिणाम  हुआ  कि  मनुष्य  की  बुद्धि ,     दुर्बुद्धि  में  बदल  गई  l  अब  स्थिति  इतनी  विकट   हो  गई  कि  मनुष्य  ही  मनुष्य  से  भयभीत  है  l  अब  जंगली  जानवरों  का  भय  नहीं  है  l  जंगली  जानवरों  से  तो  फिर  भी  सुरक्षा  संभव  है   लेकिन   दुर्बुद्धिग्रस्त  इस  संसार  में  कब  किसका  मास्क  उतर  जाये  , उसका  असली  रूप  सामने  आ  जाये  , कोई  नहीं  जानता  l  कई  बातों  में  जानवर  मनुष्य  से  ज्यादा  समझदार  हैं  l   जानवर  इसलिए  श्रेष्ठ  हैं  क्योंकि  वे  छल -कपट  नहीं  जानते ,  किसी  को  धोखा  नहीं  देते  l  वे    सिर्फ  प्रेम  की  भाषा  जानते  हैं   और  नि;स्वार्थ  प्रेम  के  सामने  अपनी  हिंसक  वृत्ति  भी  छोड़  देते  हैं  l          एक  कथा  है ----- जंगल  में  एक  शिकारी  के  पीछे  बाघ  पड़  गया  l   घबराकर  शिकारी  एक  पेड़  पर  चढ़  गया  l  उसी  वृक्ष  पर  एक  रीछ  भी  बैठा  था    बाघ  को  पेड़  पर  चढ़ना  नहीं  आता  था  , वह  भूखा  था  इसलिए  पेड़  के  नीचे  बैठकर  वह    रीछ    या  मनुष्य  के  नीचे  उतरने  का  इंतजार  करने  लगा  l   बहुत  देर  हो  गई   तब  बाघ  ने  धीरे  से  रीछ  से  कहा ---- "  यह  मनुष्य  हम  दोनों  का  शत्रु  है  l  तू  इसे  धक्का  मार  l  मैं  इसे  खाकर  चला  जाऊँगा    और  तेरा  जीवन  बच  जायेगा  l "  रीछ  ने  कहा ---- " नहीं , यह  मेरा  धर्म  नहीं  है  l  इसने  मेरा  कुछ  नहीं  बिगाड़ा ,   और  वैसे  भी  मैं  ऐसे  गिरे  हुए  कार्य  नहीं  करता  l "  अब  बाघ  ने  शिकारी  से  कहा --- " वह  रीछ  को  धक्का  मार  दे   तो  उसकी  जान  बच  जाएगी  l  "   शिकारी  बहुत  खुश  हुआ  और  अपनी  दुष्प्रवृत्ति  के  कारण  चुपचाप   रीछ  के  पीछे  जाकर   उसे  पीछे  से  धक्का  दे  दिया  l  गिरते -गिरते  पेड़  की  एक  डाल  रीछ  की  पकड़  में  आ  गई  l  अब  बाघ  ने  रीछ  से  कहा ---:देखा ,  जिस  मनुष्य  की  तूने  रक्षा  की  , वही  तुझे  मारने  को  तैयार  हो  गया  l  अब  तू  बदला  ले  और  इसे  धक्का  मार  l  :  रीछ  ने  कहा  ---- " नहीं  !   मैं  ऐसे  कायरतापूर्ण  कार्य  नहीं  करता  l  वह  भले  ही  अपने  धर्म  से  विमुख   हो  गया   हो  ,  लेकिन  मैं   ऐसा  नीचता  का  कार्य  नहीं  करूँगा  l  "  मनुष्यों  में  भी  अनेक  परोपकारी   और  भावनाशील  हैं  जिनके  जीवन  के  कुछ  सिद्धांत  है  और  वे  उन  सिद्धांतों  के  विरुद्ध   कोई  कार्य  नहीं  करते   l