' इस जगत में छोटे से छोटे काम की भी प्रतिक्रिया अवश्य होती है l तब कोई महान त्याग अथवा निस्स्वार्थ बलिदान व्यर्थ चला जाये यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध बात है l
महाराणा प्रताप ने राजा होते हुए भी देश के लिए त्यागी और तपस्वी का जीवन बिताया और दिल्ली के बादशाहत के सुख - सम्पति के भारी प्रलोभनों को ठुकरा दिया l ऐसा त्याग कभी व्यर्थ नहीं जा सकता l जनमानस पर उसका प्रभाव स्वयमेव पड़ता है और वह अज्ञात रूप से लाखों को अपना अनुयायी बना लेता है l
महाराणा प्रताप यदि चाहते तो बादशाह अकबर से साधारण संधि कर आराम की जिन्दगी बिता सकते थे पर उन्होंने अपने सुख या आराम की परवाह न कर के भारतवर्ष और राजपूत जाति के गौरव को स्थिर रखने के लिए संघर्ष के मार्ग को अपनाया l सैकड़ों वर्ष बीत जाने पर भी हम उनका गुणगान करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण करते हैं l
महाराणा प्रताप ने राजा होते हुए भी देश के लिए त्यागी और तपस्वी का जीवन बिताया और दिल्ली के बादशाहत के सुख - सम्पति के भारी प्रलोभनों को ठुकरा दिया l ऐसा त्याग कभी व्यर्थ नहीं जा सकता l जनमानस पर उसका प्रभाव स्वयमेव पड़ता है और वह अज्ञात रूप से लाखों को अपना अनुयायी बना लेता है l
महाराणा प्रताप यदि चाहते तो बादशाह अकबर से साधारण संधि कर आराम की जिन्दगी बिता सकते थे पर उन्होंने अपने सुख या आराम की परवाह न कर के भारतवर्ष और राजपूत जाति के गौरव को स्थिर रखने के लिए संघर्ष के मार्ग को अपनाया l सैकड़ों वर्ष बीत जाने पर भी हम उनका गुणगान करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण करते हैं l