9 September 2022

WISDOM ------

  श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  श्रीकृष्ण  कहते  हैं --- अहिंसा  आत्मा  का  नैसर्गिक  स्वभाव  है  l  यदि  दूसरों  को  पीड़ा  देने  का  भाव  अंत:करण  में  नहीं  है  तो  यह  अहिंसा  है  l  गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  इसी  को  धर्म  का  आधार  मानते  हुए  कहा  है  कि --- परहित  सरिस  धर्म  नहिं  भाई  l  पर  पीड़ा  सम  नहिं  अधमाई  l '  यदि  दूसरे  को  दुःख  देने  का , पीड़ा  पहुँचाने  का  भाव  हमारे  मन  से  विदा  हो  जाता  है   तो  सच्ची  अहिंसा  जन्म  लेती  है  l  संत  एकनाथ  के  जीवन  की  घटना  है --- वे  काशी  से  गंगाजल  लेकर  रामेश्वरम्  को  निकले  l  महीनों  लम्बी  यात्रा    थी  l  बीच  मार्ग  में  भगवान  शिव  एक  गधे  का  रूप  धारण  कर  आ  बैठे  l  कराहने  लगे  l  उनको  कष्ट  पाता  देखकर  एकनाथ  का  ह्रदय  करुणा  से  भर  उठा  l  अपने  साथ  कांवड़  का  जल   जो  वे  लेकर  चल  रहे  थे  .  उसे  उन्होंने  पीड़ित  गधे  के  मुख  में  डाल  दिया  l  साथ  चल  रहे  अन्य  तीर्थ  यात्री  यह  देखकर  कुपित  हो  उठे  और  बोले --- " यह  तुमने  कैसा  अपवित्र  कार्य  किया  l " एकनाथ  बोले  --- " उसका  कष्ट  मुझसे  देखा  नहीं  गया  l  यदि  कष्ट  के  समय  किसी  को  सहायता  न  कर  सके  तो  कैसा  धर्म  ? " साथ  के  लोग  यह  सुनकर  और  कुपित  हुए  l  इतनी  देर  में  गधा  फिर  पीड़ा  से  कराहने  लगा  तो  संत  एकनाथ  ने  दूसरे  कलश  का  गंगाजल  भी  उसके  मुख  में  डाल  दिया  l  साथ  के  यात्री  यह  देखकर  उन्हें  भला -बुरा  कहते  हुए  चले  गए  l  उनके  जाने  के  बाद  भगवान  शिव  जो  गधे  के  रूप  में  लेटे  हुए  थे  ,  अपने  असली  रूप  में  आ  गए   और  एकनाथ  से  बोले --- " पुत्र  !  तुमने  ही  धर्म  का  अर्थ  समझा  है  l  दूसरे  के  दुःख  को  देखकर  जिसे  स्वयं  दुःख  का  अनुभव  हो  ,  वही  सच्चा  अहिंसक  है  ,  वही  दैवी  गुणों  से  युक्त  है  l "