मन , वचन और कर्म में एकरूपता को सत्य कहते हैं l यह सत्य भी समय और परिस्थिति को देखते हुए ही बोलने का निर्देश है l देश के रक्षक यदि गोपनीय सूचनाओं को शत्रुओं के समक्ष सही प्रकट कर दें तो राष्ट्र की रक्षा के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो जायेगा l एक कथा है ----- एक बार एक कसाई अपनी बूढ़ी गाय को ढूंढते हुए एक निर्जन स्थान से गुजरा l वहां एक ब्राह्मण वेद पाठ कर रहा था l कसाई ने उससे गाय के बारे में पूछा , तो उसने वस्तुस्थिति को भांपते हुए गोलमोल उत्तर दिया , कहा --- जिसने देखा , वह बोलती नहीं और जो बोलती है उसने देखा नहीं l इससे एक साथ दो प्रयोजन सधे l गाय की प्राण रक्षा भी हो गई और मिथ्या न बोलने का संकल्प भी पूरा हो गया l ऐसे ही कठोर सत्य को न बोलने के निर्देश हैं l