पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----' मनुष्य के असंतोष का कारण ईर्ष्या है l यह मानवीय स्वभाव की विकृति है , ईर्ष्यालु व्यक्ति को दूसरे की तरक्की रास नहीं आती l " महाभारत ' ईर्ष्या का ही दुष्परिणाम था l दुर्योधन के मन में बचपन से ही पांडवों के प्रति ईर्ष्या का बीज था , वह पांडवों की योग्यता , उनकी ख़ुशी से जलता था l उसे तो हस्तिनापुर का बना - बनाया राज्य मिला , पांडवों को खांडव वन का क्षेत्र मिला , जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से इंद्रप्रस्थ बनाया l वहां का वैभव देखकर दुर्योधन जल भुन गया और शकुनि के साथ मिलकर छल - कपट , षड्यंत्र से पांडवों को वन में भेज दिया उनके हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें सुई की नोक बराबर भूमि देने से मना कर दिया l ईर्ष्या - द्वेष जैसी मानसिक विकृतियों से ग्रस्त व्यक्ति हर युग में रहे हैं l इन्हे सुधारा नहीं जा सकता क्योंकि इन्हे जो मिला है उसकी उन्हें कद्र नहीं होती और दूसरे को थोड़ी सी ख़ुशी भी मिल जाये वो उनसे सहन नहीं होती l लगभग हर व्यक्ति का अपने जीवन काल में ऐसे ईर्ष्यालु लोगों से पाला पड़ता है , ऐसे लोगों द्वारा समय - समय पर किए जाने वाले आघातों के बीच कैसे तनाव रहित रहा जाये इसके लिए ' जीवन जीने की कला ' का ज्ञान जरुरी है l
31 March 2022
30 March 2022
WISDOM -----
आज केवल भारत ही नहीं सारी दुनिया में भगवान राम के असंख्य भक्त है , यदि सब सच्चे होते तो धरती पर राम -राज्य होता लेकिन दुःख इस बात का है कि सभी धर्मों के लोग अपने धर्म ग्रंथों में लिखी हुई अच्छी बातों को अपने जीवन में नहीं अपनाते , उनमे यदि किसी ऐसे पात्र का चरित्र है जिसकी बुराई का परिणाम देखकर संभल जाना चाहिए तो संभालना तो दूर वह उस बुराई को बहुत जल्दी ग्रहण कर लेंगे जैसे रामायण में मंथरा ने महारानी कैकेयी के कान भर दिए , ऐसी बातें कहीं जिससे चारों भाइयों में फूट पड़ जाये और भगवान राम को वनवास हो जाये l मंथरा का स्वार्थ था कि महारानी कैकेयी राजमाता होंगी और वह उनकी प्रमुख दासी , तो उसका भी महत्व बढ़ेगा l उसकी ऐसी कुबुद्धि के कारण राम को वनवास तो हुआ लेकिन वह त्रेतायुग था , लोगों में धैर्य और विवेक था इसलिए चारों भाइयों में प्रेम बना रहा l मंथरा कई रूपों में आज भी इस धरती पर है l हमें रामायण से शिक्षा लेनी चाहिए कि कान के कच्चे न हो , किसी के भड़काने पर अपना मन मैला न करे l मानव जीवन बहुमूल्य है , बार - बार नहीं मिलता l अपनी ऊर्जा को व्यर्थ के मतभेदों में गँवाने के बजाय सकारात्मक कार्यों में नियोजित करें l
WISDOM -----
संसार में अशांति और तनाव तब तक बना रहेगा जब तक धन - वैभव के आधार पर व्यक्ति और किसी राष्ट्र का मूल्यांकन किया जायेगा l धन जीवन के लिए जरुरी है , लेकिन इसे ही सब कुछ समझने की भूल ने मनुष्य की बुद्धि को विपरीत कर दिया है l अब वह अपना ही दुश्मन बन गया है , अपने ही द्वारा किये गए विकास को नष्ट कर के पत्थर - युग में जाने की तैयारी कर रहा है , -- बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद की ख्याति पूरी दुनिया में फ़ैल चुकी थी l एक दिन स्वामी जी के एक अमेरिकी शिष्य ने उनसे कहा --- " मैं आपके गुरु को देखना चाहता हूँ l मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर कैसा होगा वह व्यक्ति , जिसने आप जैसे शिष्य को तैयार किया ? " स्वामी जी ने उस अमेरिकी शिष्य को रामकृष्ण परमहंस का फोटो दिखाया l स्वामी रामकृष्ण परमहंस के फोटो के देखकर वह बोला ---- " मुझे ऐसा लगता था कि आपके गुरु अत्यंत विद्वान् व सभ्य होंगे , परन्तु फोटो से मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता l " शिष्य की बात सुनकर स्वामी जी बोले ---- " तुम्हारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण दरजी करता है , जबकि हमारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण आचार - विचार करते हैं l इस कसौटी पर कसकर बताओ कि तुम्हारे मुल्क के सूट - बूटधारी जेंटलमैन सभ्य हैं या मेरे गुरु परमहंस ? " वह अमेरिकी शिष्य स्वामीजी की इस व्याख्या को सुनकर निरुत्तर हो गया और उसने स्वीकार किया कि स्वामीजी के उदाहरण से उसे व्यक्तियों को परखने की नई दृष्टि मिली l
29 March 2022
WISDOM -----
यूनान का एक वृद्ध दार्शनिक अपने मित्र से बोला ----- "मैंने लोगों को सच्चाई और सदाचार की शिक्षा देने की योजना बनाई है l विद्यालय के लिए स्थान भी चुन लिया है , पर विद्या अध्ययन के लिए विद्यार्थी नहीं मिलते l मित्र व्यंग्य करते हुए बोले ---- " तो आप कुछ भेड़ें खरीद लीजिए और अपना पाठ उन्हें ही पढ़ाया करें l तुम्हारी इस योजना के लिए आदमी मिलने मुश्किल हैं l " हुआ भी कुछ ऐसा ही , कुल दो युवक आए l जिन्हे घरवाले आधा पागल समझते थे और मुहल्ले वाले सिरदर्द l वृद्ध ने उन्ही को पढ़ाना शुरू किया l दूसरे लोग कहा करते थे --- बुड्ढे ने मन बहलाने का अच्छा साधन ढूंढा l किन्तु यही दोनों इस बूढ़े विचारक से शिक्षा प्राप्त कर के जब पहली बार घर लौटे तो उनके रहन - सहन , बोलचाल , अदब - व्यवहार ने लोगों का हृदय मोह लिया l फिर तो जो विद्यार्थियों की संख्या बढ़नी शुरू हुई कि विद्यालय पूरा विश्वविद्यालय बन गया l पहले के दोनों छात्रों में एक यूनान का प्रधान सेनापति और दूसरा मुख्य सचिव नियुक्त हुआ l ये वृद्ध सुविख्यात दार्शनिक जीनों थे और उनकी पाठशाला ने ' जीनों की पाठशाला ' के नाम से विश्व -ख्याति अर्जित की l
WISDOM -----
इस संसार में अहंकार , महत्वाकांक्षा , हुकूमत आदि अनेक कारणों से युद्ध होते रहे हैं l यह सब कारण बड़े स्पष्ट हैं l लेकिन इसे कलियुग का असर कहें या सम्पूर्ण पर्यावरण प्रदूषण है जिसके कारण लोगों की मानसिकता विकृत हो गई है , धन- संपदा का लालच बहुत बढ़ गया है और इसे पाने के लिए व्यक्ति किसी भी स्तर तक गिर सकता है l '' एक तीर से दो शिकार " की मानसिकता है l जब मानसिकता विकृत हो तो वह किसी की सुख - शांति , उनका वैभव नहीं देख सकती l परिवार केवल अपनी ही गलतियों से नहीं टूटते l विकृत मानसिकता के अनेक लोग इसी कार्य में व्यस्त रहते हैं कि परदे की आड़ में रहकर कैसे किसी के परिवार को नष्ट कर दें l देखने में ऐसा प्रतीत हो कि पारिवारिक तनाव की वजह से , या किसी दुर्घटना आदि किसी भी वजह से वह परिवार बिखर गया फिर झूठी सहानुभूति रखने वालों को बड़ी आसानी से उनकी सम्पति पर कब्ज़ा करने का सुनहरा अवसर मिल जाए l इसमें गिद्ध प्रवृति भी होती है , आखिर मदद करने वालों का भी हिस्सा देना पड़ेगा l कलियुग का असर समूची धरती पर एक जैसा होता है , बड़े स्तर पर देखें तो एक पर्दा वहां भी है ,' एक तीर से दो शिकार ' वहां भी है l धर्म और अधर्म की तो कोई लड़ाई है नहीं l मानव जीवन की कोई कीमत नहीं है केवल लोभ - लालच है , जितने ज्यादा हथियार आदि बिकेंगे उतना ही फायदा होगा l पहले महामारी आदि की घोषणा नहीं होती थी कि अब हैजा आ रहा है , अब मलेरिया , अब टाइफाइड आ रहा है , ----- विज्ञानं का अब चमत्कार है , बीमारी परेशानी किसकी और धनपति कौन ? दोष किसी एक का नहीं है , जब संसार ऐसे अंधकार में आ जाता है कि उत्पीड़ित करने वाला और उत्पीड़ित होने वाला सभी तनाव में हों तब कुछ ऐसा अवश्य होता है कि संसार को समझ में आ जाये कि ईश्वर है , उसके यहाँ देर है , अंधेर नहीं l
28 March 2022
WISDOM ------
आइंस्टीन से किसी ने पूछा ---- ' संसार में इतना दुःख और कलह क्यों है , जबकि विज्ञान ने एक - से - बढ़कर - एक सुख- साधन उत्पन्न कर दिए हैं ? ' उत्तर देते हुए उन्होंने कहा ---- " कमी बस एक ही रह गई कि अच्छे मनुष्य बनाने की कोई योजना नहीं बनी l देश , संप्रदाय के पक्षधर सभी दीखते हैं , पर ऐसे लोग नहीं दीख पड़ते , जो अच्छे इनसान बनाने की योजनाएं बनायें l
WISDOM -------
यदि मनुष्य को संसार में सुख शांति और तनाव रहित , जीवन चाहिए , तो संसार में जो समस्याएं हैं उनके समाधान पर विचार करना चाहिए l आज संसार में युद्ध , उन्माद , दंगा - फसाद , छल - कपट , षड्यंत्र , माइंड गेम , भय आदि असंख्य समस्याएं हैं जिसने मनुष्य का सुख - चैन छीन लिया है l ये समस्याएं ऐसी हैं जिनसे पीड़ित व्यक्ति तो परेशान है ही l इन समस्यायों के सूत्रधार भी चैन से सो नहीं पाते , धन - वैभव , सुरक्षा , सारे सुख - सुविधा सब के होते हुए भी हर पल भयभीत रहते हैं l यदि आयु के आधार पर वर्गीकरण किया जाये तो दस- बारह वर्ष की उम्र तक के तो बच्चे ही होते हैं , जो मन के सच्चे हैं , जिनमे छल - कपट नहीं होता l इसके बाद किशोरावस्था के हैं जो सुनहरे सपनों में खोये रहने के साथ अपना कैरियर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं l यह वर्ग सही मार्गदर्शन न मिलने पर भटक सकता है लेकिन युद्ध , दंगे जैसे बड़े - बड़े कार्यों का सूत्रधार नहीं होता l इसके बाद युवा वर्ग है - यह अपने अस्तित्व के लिए परेशान है , इसमें ऊर्जा बहुत है जो चालाक हैं वे अपने स्वार्थ के लिए विभिन्न क्षेत्रों में इनकी ऊर्जा का फायदा उठाकर इनका इस्तेमाल करते हैं l वैश्वीकरण का युग है , यह स्थिति पूरे संसार की है l अब शेष बचे 35 से 80 वर्ष की आयु के लोग l अधिकांशत: संसार में जितने भी मानवता के हित के नेक कार्य हैं और मानवता का अहित करने वाले कार्य , छल - कपट , षड्यंत्र , दंगा आदि इसी आयु वर्ग के लोग करते हैं l कलियुग में सबसे बड़े दुःख की बात यही है कि सत्कर्म करने वालों की संख्या बहुत कम है और संसार में अशांति , शोषण , अन्याय , अत्याचार , अनैतिक , आपराधिक कार्य करने वाले 35 से 80 वर्ष की आयु वर्ग के व्यक्तियों की संख्या सर्वाधिक है l इसमें महिलाएं भी होती हैं लेकिन प्रमुख सूत्रधार पुरुष ही होते हैं , महिलाएं तो उनके इशारों पर चलती हैं l कामना , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा ये व्यक्ति की मानसिक कमजोरियाँ हैं जो कभी संतुष्ट नहीं होतीं l जैसे जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती जाती है , उसे लगता है जिंदगी कब हाथ से फिसल जाये , इसलिए जितना सुख भोग लो , अपनी इच्छाओं को पूरा कर लो l बस ! इसी सोच - विचार के कारण संसार में असंख्य समस्याएं हैं l अब यदि हम संसार में शांति चाहतें हैं , अपने तनाव से मुक्त होना और पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को सुख - शांति से जीना चाहते हैं केवल बच्चों को नैतिक शिक्षा देने से काम नहीं चलेगा l बच्चे अपने परिवार के बड़ों के आचरण से सीखते हैं , उन्ही से संस्कार ग्रहण करते हैं l और एक सच यह भी है बुराई में लिप्त व्यक्ति अपने जूनियर को चाहे वह परिवार का हो या संस्था अपने गुर सीखा के जाता है ताकि बुराई साम्राज्य बना रहे l इसलिए परिपक्व आयु के व्यक्तियों के लिए नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान अनिवार्य है l
26 March 2022
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------ " ध्वंस के संरजाम तो माचिस की एक छोटी सी तीली , आग की छोटी चिन्गारी भी कर सकती है l पर निर्माण एक झोंपड़े का भी करना हो तो ढेरों साधन सामग्री और श्रमशीलों की कुशलता , तत्परता चाहिए l मनुष्य खोखला , उन्मादी और इस स्तर तक अनाचारी हो गया है कि उसे नर -पशु तक नहीं कहा जा सकता ल मरघट में प्रेत पिशाच कोलाहल करते रहते हैं l डरना और डराना ही उनका प्रधान कार्य होता है l मनुष्यों में एक बड़ी संख्या आज ऐसे ही लोगों की दीख पड़ती है l भ्रष्ट चिंतन ही दुष्ट आचरण का कारण है l " विचारों का परिष्कार जरुरी है l "
25 March 2022
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य श्री लिखते हैं --- " आज समाज में जो भी आतंकवाद , दंगे , युद्ध , खून -खराबे बढ़ रहे हैं , वे सब भाव शून्यता व संवेदनहीनता के कारण उपजे हैं और यह सब तभी समाप्त हो सकता है जब व्यक्ति के अंदर संवेदना जगे और वह प्राणिमात्र के कल्याण की बात सोचे l "------------------- अति वैभव संपन्न और शक्तिशाली होने की महत्वाकांक्षा व्यक्ति को निर्दयी बना देती है l बिना अत्याचार और शोषण के धन कमाना संभव भी नहीं है l रावण के कितने ही ऋषियों का खून बहाया , प्रजा पर अत्याचार किए तब वह सोने की लंका खड़ी कर पाया l रावण हो या सिकंदर , तैमूरलंग , हिटलर सबने अत्याचार के कीर्तिमान खड़े किये l इतिहास ऐसे क्रूर शासकों की सनक से भरा पड़ा है , किसी को हाथियों को पहाड़ से गिराकर उनकी चिंघाड़ सुनने में आनंद आता था ,, तो कोई लोगों को मारकर उनकी खोपड़ियों का पहाड़ बनाता था l सबकी प्रवृति , सबके संस्कार अलग - अलग हैं l तितली कितनी सुन्दर होती है , बाग़ में जाएगी , फूलों पर बैठेगी , उसे देखकर मन प्रसन्न होता है लेकिन गुबरैला कीड़ा उसी बाग़ में जाकर गंदगी को ढूंढेगा और उस पर बैठेगा l जिनके पास अपार धन सम्पदा है , शक्तिशाली हैं वे निस्स्वार्थ भाव से लोक कल्याण के कार्य करके , लोगों की पीड़ा दूर कर के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा सकते हैं लेकिन अपनी प्रवृति के अनुसार उन्हें अत्याचार , खून - खराबे का रास्ता ही आनंद देता है , अनेक तर्कों से वे अपने इस मार्ग को सही सिद्ध करते हैं l देवासुर संग्राम पहले मनुष्य के भीतर चलता है फिर उसे वे बाहर कार्य रूप में अंजाम देते हैं l
24 March 2022
WISDOM -----
भारतीय संस्कृति संसार की अन्य सभी संस्कृतियों से क्यों श्रेष्ठ है ? क्योंकि यह हमें सिखाती है कि कण - कण में भगवान हैं , हम सब एक माला के मोती हैं , हर मोती अपनी जगह महत्वपूर्ण है l हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि कभी किसी का घर मत तोड़ो , चिड़िया ने घोंसला बनाया है तो उसे तोड़ो नहीं , उसे भी जीने का हक है l यदि बगिया में किसी पेड़ में मधुमक्खी ने छत्ता बनाया है तो उसे तोड़ो नहीं , वह दूर - दूर से फूलों का पराग लाती है , यह घर - परिवार में खुशियों के आने का संदेश देती है l केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो बेवजह दूसरों को काटता है , सताता है l मधुमक्खी को यदि छेड़ो नहीं , तो चाहे वह अपने सिर पर भी बैठ जाये , कभी काटेगी नहीं l पता नहीं मनुष्य को सद्बुद्धि कब आएगी , मात्र अहंकार के कारण युद्ध - उन्माद से कितने लोग बेघर हो जाते हैं , शवों की तो कोई गिनती ही नहीं होगी l यह भी आश्चर्य है कि इतनी लाशों का बोझ कोई कैसे उठा पाता है l असुरता का हमेशा से ही यह प्रयास रहा है कि देवत्व को मिटा दिया जाये , इसके लिए वे साम , दाम , दंड , भेद हर नीति का सहारा लेते हैं l जब हम जागरूक होंगे , धर्म और जाति के आधार पर आपस में लड़कर अपनी ऊर्जा को व्यर्थ में बरबाद नहीं करेंगे , तभी संगठित होकर हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकेंगे l
23 March 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " बुद्धिजीवी विचारशील वर्ग पर भगवान ने संसार रूपी बगिया के माली का भार सौंपा है l यदि वह अपनी जिम्मेदारी को निभाने में प्रमाद करते हैं तो किसी न किसी समय , किसी - न -किसी तरह उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा l " आज संसार ऐसी स्थिति से गुजर रहा है कि विश्व शांति , पर्यावरण सुरक्षा , बाल - कल्याण जैसे शब्द अर्थहीन हो गए हैं असुरता तभी शक्तिशाली होती है जब देव पक्ष कमजोर होता है और कलियुग में जब स्वार्थ , लालच , अति महत्वाकांक्षा लोगों पर हावी होती है , वे या तो डरते हैं या फिर अपनी दुकान बचाने में लगे रहते हैं इसलिए संगठित होकर असुरता का सामना नहीं करते l मनुष्य के भीतर देवता और असुर दोनों हैं , अपने मन के तराजू में इन्हे तोलने की जरुरत है , कहीं उसमे असुरता का पलड़ा भारी तो नहीं हो गया ? आज तक ऐसी कोई दीवार नहीं बनी है जो मृत्यु को रोक सके l
22 March 2022
WISDOM -------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' समय पुरस्कृत करता है एवं समय ही तिरस्कृत करता है l समय का पुरस्कार उन्हें मिलता है , जिनकी सोच सकारात्मक है , जिनके श्रम की दिशा निर्धारित है l इसके विपरीत जिनकी सोच पर निराशा का अँधेरा छाया हुआ है , जिनका श्रम दिशाविहीन है , वे समय के हाथों तिरस्कृत होते रहते हैं l " जिनकी सोच नकारात्मक है , दुर्भाग्यवश जिन्हे जीवन में सही मार्गदर्शन नहीं मिल सका , ऐसे लोगों की स्थिति वक्त गुजरने के साथ दयनीय हो जाती है क्योंकि स्वार्थी और चालाक लोग ऐसे ही लोगों की तलाश में रहते हैं जिनकी मदद से वे अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें l वे लोग उन्हें तरह -तरह के लालच देकर अपना काम निकालते हैं और स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं l हमारा देश युगों तक गुलाम रहा इसका कारण यही है कि ऐसी नकारात्मक सोच के लोगों ने अपने स्वार्थ और लालचवश विदेशियों की मदद की , इसी का परिणाम हुआ कि संख्या में बहुत थोड़े विदेशी एक विशाल देश को अपना गुलाम बना पाए l गुलामी भी दो प्रकार की होती है ---प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष l प्रत्यक्ष गुलामी में हमें पता रहता है कि हम पर किसका शासन है , उससे जीतना संभव है और हम आजाद भी हुए लेकिन अप्रत्यक्ष गुलामी बेहद कष्टकारक होती है , इसमें यह स्पष्ट ही नहीं होता कि परदे के पीछे कौन है l आज के वैश्वीकरण और विज्ञान से विकसित माइंड ने परिस्थिति को बहुत जटिल बना दिया है l
WISDOM -------
संसार में जो कुछ है , वह सब ईश्वर की देन है l यदि ईश्वर पर दृढ़ विश्वास हो तो सत्य समझ में आ जाता है ---- श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य हरिप्रसन्न चटर्जी संन्यास के बाद स्वामी विज्ञानानंद नाम से प्रसिद्ध हुए l वे इंजीनियर थे , विवाह नहीं किया था l सदैव प्रसन्न रहते थे l कहते , मैं रामजी का बंदर हूँ l ठाकुर आये तो मैं भी आ गया l रामकृष्ण परमहंस को वे राम के रूप में पूजते थे l ठाकुर के जाने के बाद वे ' वाल्मीकि रामायण ' का अंग्रेजी अनुवाद करने में लग गए l सतत मन लगाकर घंटों बैठे रहते l लोग पूछते --- आप इतनी देर कैसे बैठ लेते हैं l ' वे कहते --- " यह अनुवाद नहीं है l मैं कथा में इतना रम जाता हूँ कि मेरे सामने राम , सीता , हनुमान सब आ जाते हैं l मैं अनुरक्त हो जाता हूँ l " उसी भाव प्रवाह में वे लिखते थे , क्योंकि उन्हें साक्षात् प्रभु का सान्निध्य मिलता था l
21 March 2022
WISDOM ------
आज का समाज चाहे वह किसी भी धर्म , जाति का हो , यहाँ तक कि सम्पूर्ण धरती पर ही पुरुष प्रधानता है l इसका एक नकारात्मक पक्ष यह है कि प्राचीन काल से आज तक जितने भी युद्ध हुए , दंगे - फसाद , आगजनी , गोलाबारी , हत्या , अपराध , नारी उत्पीड़न , छोटे - छोटे बच्चों को सताया जाना , अनेक ऐसे अपराध जिनका लिखना और बोलना भी अक्षम्य है ---- इन सब में भी ' पुरुष प्रधानता ' है l इस वर्ग ने अपनी प्रधानता से संसार को सुख - शांति नहीं दी , सुख - चैन छीना है l हम सब एक माला के मोती है l एक भी अनैतिक , अमर्यादित कार्य समूची मानवता और पर्यावरण के लिए घातक है l ऐसे में माला का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है l कहते हैं हर अति का अंत होता है l जब अत्याचार और अन्याय से प्रकृति भी कराह उठे , निर्दोष बच्चों के आंसुओं से ब्रह्माण्ड में भी कम्पन्न हो जाये , मानव जाति दया , करुणा , संवेदना , आत्मीयता जैसे गुणों को भुला दे , तब भगवान को आना ही पड़ता है , परिवर्तन के लिए l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते है --- ' इक्कीसवीं सदी नारी उत्कर्ष की सदी है l विधाता ने उसे समूची मानवता को विकसित - परिष्कृत करने और मुक्तिदूत बनने का गरिमापूर्ण दायित्व सौंपा है l यह अपने युग का सुनिश्चित निर्धारण है l "
20 March 2022
WISDOM ------
आज संसार में युद्ध , महामारी , प्राकृतिक आपदाएँ हैं , इन समस्याओं को पहले ही भांपते हुए , मानव की व्यथा को जानते हुए भगवान बुद्ध ने मानव जाति को चेताया था कि यदि बुद्धि को शुद्ध न किया गया तो परिणाम भयावह होंगे l उन्होंने कहा था ---- ' बुद्धि के दो ही रूप संभव हैं --- 1. कुटिल और 2. करुण l बुद्धि यदि कुसंस्कारों में लिपटी है , स्वार्थ के मोहपाश एवं अहं के उन्माद से पीड़ित है तो उससे केवल कुटिलता ही निकलेगी , परन्तु इसे यदि शुद्ध किया जा सका तो इसी कीचड़ में करुणा के फूल खिल सकते हैं l बुद्धि अपनी अशुद्ध दशा में इनसान को शैतान बनाती है तो इसकी परम पवित्र शुद्ध दशा में इनसान बुद्ध बनता है , उसमें भगवत्ता अवतरित होती है l वह संवेदनशील होता है l संवेदना की आज संसार को सबसे ज्यादा जरुरत है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- वर्तमान समाज में शैतानियत को अत्याधिक प्रतिष्ठा दी गई है l इसे स्टेटस सिंबल के रूप में परोसा जा रहा है l मन के अंदर के शैतान को उभारने एवं बढ़ाने के लिए समाज में तमाम चीजें विद्यमान हैं l विष को अमृत का सम्मान मिल गया है l शैतान साधुवेश में स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहा है l विचारों एवं भावनाओं को कलुषित कर के इसे अपराधी बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है l सिनेमा के हिंसक दृश्य अंदर के शैतान को पोषण प्रदान करते हैं और ये दृश्य कई बड़े अपराधों का कारण बनते हैं l "
19 March 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " मनुष्य मूलत: संवेदनशील प्राणी है l उसमे भाव - संवेदना लबालब भरी हुई है l यह संवेदना किसी कारणवश जब गलत दिशा में मुड़ जाती है तो मनुष्य को चोर , डाकू , लुटेरा , हत्यारा , आतंकवादी बना देती है l हीन परिस्थिति और संगति में पड़कर आदमी अपने भीतर के ईश्वरत्व के ऊपर पर्दा डाल देता है , जिसके कारण जिस मानव को ममता , करुणा , दयालुता , सेवा , सहायता का पुंज होना चाहिए , वही ईर्ष्या , द्वेष , दुर्भाव , क्रोध , असहिष्णुता जैसे आक्रामक और पशु भावों को अपनाकर पशुतुल्य प्रतीत होने लगता है l इसका मुख्य कारण परिस्थिति है l ये नकारात्मक तत्व जो मनुष्य के भीतर दिखलाई पड़ते हैं , वे वस्तुत: दमन , शोषण , उत्पीड़न और अत्याचार की प्रतिक्रियाएं हैं l " इसका एक दूसरा पक्ष भी है -- जब यह संवेदना उच्च आदर्शवादिता को अपनाती है तो संत , सत्पुरुषों और समाजसेवियों को जन्म देती है l सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध का जब दिल दहला देने वाला दृश्य देखा तो उसके भीतर की संवेदना जाग गई , उसका हृदय परिवर्तन हो गया और अब इतिहास उसे ' अशोक महान' के नाम से याद करता है l
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विश्व प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक डॉ. भाभा एक धर्म प्राण व्यक्ति थे l अपने वैज्ञानिक अध्ययन के बाद उन्हें जो भी समय मिलता था उसमें वे शास्त्रों व धर्म पुस्तकों का अध्ययन करते थे l उनके पुस्तकालय में जहाँ एक ओर विज्ञानं की पुस्तकें थीं वहीँ दूसरी ओर की अलमारी धार्मिक पुस्तकों से भरी रहती थी l डॉ. भाभा ने कहा था ----- "विज्ञानं संसार के विनाश के लिए नहीं बल्कि दुःखी एवं संतप्त मानवता के कल्याण और उसकी सेवा करने के लिए है l परमाणु शक्ति का सही उपयोग विनाशकारी बम बनाने में नहीं बल्कि संसार की सुख - संमृद्धि और मानव कल्याण के लिए होना चाहिए l
18 March 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने चेतना जगत में असंख्य प्रयोग किए और अपने निष्कर्षों को प्रकाशित - प्रतिपादित किया l वे अंतर्जगत के वैज्ञानिक हैं l अपने शिष्यों से बात करते हुए उन्होंने एक सत्य प्रतिपादित किया था ---- उनका कहना था --- ' वैज्ञानिक भी सही हैं , ज्योतिषी भी ठीक कह रहे हैं l दो देश झगड़ा करने के लिए आमने - सामने आ जाते हैं l ऐसा लगता है कि अब सब कुछ समाप्त हो जायेगा , पर अचानक ठीक समय में परिस्थितियाँ नया मोड़ ले लेती हैं और सब कुछ बदल जाता है l तमाम खतरों के बावजूद ऐसा कुछ होने वाला नहीं है l हिमालय पर निवास करने वाली महान आत्माओं का निश्चय है कि दुनिया अभी नष्ट नहीं होगी l आज के संभावित खतरे कितने ही सच क्यों न हों , पर ये मिटेंगे l अँधेरा उजाले में बदलेगा l " आचार्य श्री कहते हैं ---- " समस्त सृष्टि एक विधि - व्यवस्था के तहत चलती है , जिसे कर्मफल विधान कहते हैं l मनुष्य ने कर्म तो ऐसे कर रखे हैं कि दुनिया में अगणित बार प्रलय हो जाये l वैज्ञानिक और ज्योतिषी भी ऐसे ही संकेत कर रहे हैं l पर नहीं , भगवान की कृपा और हिमालयवासी महान आत्माओं के तप से ही परिस्थितियों में ऐसे आश्चर्यजनक और अद्भुत मोड़ आते हैं l दुनिया में सुख - शांति स्थायी रहे , आने वाला उज्जवल भविष्य टिकाऊ रहे , इसके लिए इनसान को , समाज को , देश को और समूची दुनिया को अपनी जीवन शैली बदलनी होगी l
17 March 2022
WISDOM -----
ऋषियों का वचन है ------ ' जैसे हजारों गायों के मध्य बछड़ा अपनी माँ को स्वत: ढूंढ़ निकालता है , वैसे ही आपके किए गए कर्म आपको किसी भी योनि में सहजता से ढूंढ़ निकालते हैं l इसलिए सदा शुभ कर्म ही करना चाहिए l ' कर्म करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है लेकिन उसका फल कब मिलेगा यह काल निश्चित करेगा l मनुष्य स्वयं के बुद्धिमान होने का दावा करता है और ईश्वर के इस विधान को अपने ढंग से समझ कर पाप कर्म करता रहता है कि अभी ऐशो आराम से जी लो जब सजा मिलेगी तो देखी जाएगी l कर्मफल को न समझ पाने के कारण आज संसार में इतना अत्याचार बढ़ गया है l
WISDOM -------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " कामना एक ऐसी धधकती आग है , जो कभी बुझती नहीं l नए - नए रूपों में मन में सदा प्रज्वलित रहती है l कामना की आग में मिट जाना विनाश है और इसको नियंत्रित कर लेना विवेक है तथा उसे बुझा देने का अपार दुस्साहस करना विजय है l " कामनाओं की बाधा है ---- क्रोध l क्रोध की अग्नि में सब कुछ नष्ट हो जाता है l क्रोध से ही विनाश और संघर्ष उत्पन्न होता है l कामना के संसार में कहीं भी तृप्ति नहीं है l जितना है, उससे अधिक की चाहत बनी रहती है l गांव का एक सरपंच चाहता है वो विधायक बन जाये , विधायक बनने के बाद चाहेगा कि वह मंत्री बन जाये , फिर मनमाना विभाग मिल जाये , यह सब मिल गया तो भी संतोष नहीं , अब चाहेंगे कि राष्ट्र प्रमुख बन जाये ,--- फिर अन्य देश भी उसकी हुकूमत मान लें l जब यह कामना भी पूरी हो जाती है तो व्यक्ति अपने को भगवान समझने लगता है l बस ! यही उसकी सबसे बड़ी भूल है l भगवान कृष्ण अर्जुन के सारथि बने , महाभारत हुआ तो यहाँ विनाश के साथ सृजन था , अधर्म और अन्याय का अंत और धर्म की स्थापना l लेकिन मनुष्य की कामना तृप्ति में जब बाधा से क्रोध उत्पन्न होता है , इससे उसका विवेक नष्ट हो जाता है , मतिभ्रम हो जाती है और परिणाम --विनाश ही विनाश l परिवार , समाज और राष्ट्र ऐसे ही क्रोध और मति भ्रम के कारण आपस में ही लड़ -लड़कर टूट जाते हैं , नष्ट हो जाते हैं l कितनी ही सभ्यताएं मनुष्य की विवेकहीनता के कारण काल के गाल में समां गईं l आज संसार को सद्बुद्धि की जरुरत है l सद्बुद्धि के अभाव में ही व्यक्ति आपस में लड़ कर , दंगे - फसाद , युद्ध कर , प्रकृति , पर्यावरण सबको नष्ट कर के ही अपने आप पर गर्व महसूस करता करता है
15 March 2022
WISDOM ----
विख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन बर्लिन हवाई अड्डे से हवाई जहाज में बैठे और थोड़ी देर में उन्होंने माला निकाल कर जपना शुरू कर दिया l उनके निकट बैठे युवक ने उनकी ओर देखते हुए कहा ---- ' आज का युग वैज्ञानिक युग है l आज दुनिया में आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक हैं और आप माला जपकर रूढ़िवाद को बढ़ावा दे रहे हैं l ' ऐसा कहकर उसने अपना कार्ड उनकी ओर बढ़ाया और बोला ----- " मैं अन्धविश्वास समाप्त करने वाले वैज्ञानिकों के दल का प्रमुख हूँ l कभी मिलने आइये l " उत्तर में आइंस्टीन ने अपना कार्ड निकाला और उसे दिया l उनका नाम पढ़ते ही वह युवक हक्का -बक्का रह गया l आइंस्टीन बोले ---- " दोस्त ! वैज्ञानिक होना और आध्यात्मिक होना , विरोधी बातें नहीं हैं l बिना आस्था के विज्ञानं विनाश ही पैदा करेगा , विकास नहीं l " यह सुनकर युवक के जीवन की दिशा ही बदल गई l
WISDOM ----
हमारे दोनों ही महाकाव्य ' रामायण ' और महाभारत ' मुख्य रूप से इस बात को स्पष्ट करते हैं कि अत्याचार और अन्याय का अंत हो और संसार में धर्म की स्थापना हो सुख - शांति का साम्राज्य हो l इसी बात को चित्रित करने वाले अनेक प्रसंग हैं l भगवान कभी भेदभाव नहीं करते हैं , वे अत्याचार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का अंत करने का समर्थन करते हैं l महाभारत का प्रसंग है ----- जब पांडव वनवास में थे तब वहां भीम ने हिडिंबा से विवाह किया था जो राक्षस कुल की थी , उससे उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम था ' घटोत्कच ' l यह बहुत वीर और बलशाली था और मायावी विद्या में निपुण था उसे भी महाभारत के युद्ध में अपनी वीरता दिखाने का अवसर मिला , घटोत्कच ने बहुत वीरता से युद्ध किया लेकिन क्योंकि वह मायावी विद्या जानता था इसलिए रात्रि के समय अदृश्य होकर उसने ऐसे मारक अस्त्रों का प्रयोग किया कि समूची सेना में , प्रजा में हाहाकार मच गया , वातावरण अंधकारमय और जहरीला होने लगा तब ईश्वर की ही प्रेरणा से कौरव पक्ष के महारथियों ने कर्ण से कहा कि उसके पर देवराज इंद्र की दी हुई जो अमोघ शक्ति है उससे वह घटोत्कच का वध करे l तब कर्ण ने उस दिव्य शक्ति से घटोत्कच का वध किया l अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर भीम बहुत दुःखी हुए तब भगवान ने उन्हें समझाया कि युद्ध के नियम होते हैं , जिनका पालन जरुरी है और असुरता कहीं भी हो , मानवता की रक्षा के लिए उसका अंत अनिवार्य है l
13 March 2022
WISDOM ----
प्रज्ञा पुराण में लिखा है ---- "ध्वंस सरल है l उसे छोटी चिंगारी एवं सदी कील भी कर सकती है l गौरव सृजनात्मक कार्यों में है l मनुष्य का चिंतन और प्रयास सृजनात्मक प्रयोजनों में ही निरत रहना चाहिए l " समय परिवर्तनशील है l संसार में ध्वंस और सृजन होता रहता है , इन कार्यों के लिए ईश्वर इस संसार से ही लोगों का चयन करते हैं l जिनके पास सत्कर्म की पूंजी है , सकारात्मक सोच है , जिनके हृदय में करुणा और संवेदना है , सच्चाई और ईमानदारी से कर्तव्यपालन करते हैं उनका चयन ईश्वर सृजनात्मक कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं को संपन्न कराने के लिए करते हैं l लेकिन यदि कोई व्यक्ति ऐसा है जो विद्वान् है , उसमे अनेक गुण भी हैं लेकिन वह बहुत अहंकारी है , करुणा , दया जैसी भावनाओं का अभाव है , छल - कपट है उसमे , तो ऐसे लोगों का चयन ईश्वर ध्वंस के कार्यों के लिए करता है l जैसे रावण , दुर्योधन , हिटलर , तैमूरलंग l ऐसे लोग स्वयं अमानवीय करते हैं , कराते हैं और स्वयं अपने कर्मों से इतिहास में अपना नाम ख़राब करते हैं l
12 March 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " एक विभूतिहीन व्यक्ति यदि समाज का बहुत बड़ा हित सम्पादित नहीं कर सकता है तो उससे समाज को बहुत बड़ी हानि होने की संभावना भी नहीं है l पर जो विभूतिवान हैं वह यदि स्वार्थी , संकीर्ण और पथ - भ्रमित हुआ तो समाज को अकल्पित हानि पहुंचा सकता है l इस मान्यता की पुष्टि आज के अधिकांश धनपति , कलाकार , वैज्ञानिक और साहित्यकार कर ही रहे हैं l " टालस्टाय ने लिखा है ---- " दुनिया की हर बुराई और बेइंसाफी की अधिकतम जिम्मेदारी से विद्वान् , साहित्यकार और कलाकार बच नहीं सकते l " महान इतिहासकार अर्नाल्ड टायनबी ने लिखा है ---- ' आधुनिक विज्ञानं के फलस्वरूप मनुष्य की आत्मा में आध्यात्मिक रिक्तता उत्पन्न हुई है , उसे आधुनिक मानव कैसे पूरी करेगा ? विज्ञानं ने मनुष्य को जड़ शक्ति और मानव शरीर पर नियंत्रण स्थापित करने की क्षमता प्रदान कर दी है लेकिन आत्मनियंत्रण के कार्य में वह असफल है l " आत्मनियंत्रण के अभाव में मनुष्य का मन बेलगाम घोड़े की तरह होता है l कामना , वासना और तृष्णा उस पर हावी हो जाते हैं l ऐसा व्यक्ति यदि सामान्य स्तर का है तो उसका अशांत और अनियंत्रित मन सीमित क्षेत्र में हो कोहराम मचाएगा लेकिन यदि पद बड़ा है , सामर्थ्य ज्यादा है तो ऐसे व्यक्ति का अशांत मन उतने ही बड़े क्षेत्र को अशांत कर देगा l इसलिए विज्ञानं के साथ अध्यात्म का समन्वय अनिवार्य है l महान वैज्ञानिक मैक्स प्लैंक को जब शोध कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला , उस अवसर पर उन्होंने कहा था ---- " विज्ञानं यदि मानवता के अहित की दिशा में अपने कदम बढ़ाता है तो वह विज्ञानं ही नहीं है l विज्ञानं हमेशा लोकहितकारी बना रहे इसके लिए उसे आध्यात्मिक संवेदनों से स्पंदित होना चाहिए l "
11 March 2022
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एक विद्वान् अपने कुत्ते के साथ भ्रमण कर रहे थे l सामने से एक व्यक्ति आ रहा था , उसने उन विद्वान् से प्रश्न किया --- ' कृपया बताएं , कुत्ते और मनुष्य में श्रेष्ठ कौन है l ' विद्वान् ने गंभीरता से कहा ---- " जब कोई मनुष्य इस सुर दुर्लभ मानवीय काया का सदुपयोग करते हुए श्रेष्ठ कर्म करता है तो वह मनुष्य श्रेष्ठ हुआ l मनुष्य ईश्वर की संतान है , जब वह अपने सच्चे स्वरुप का ध्यान न रखते हुए जानवरों जैसे कर्म करता है , दूसरों को सताता है तो ऐसे नर पशुओं से कुत्ता श्रेष्ठ है l " आध्यात्मिक मनोविज्ञानी कार्ल जुंग की यह दृढ मान्यता थी कि मनुष्य की धर्म , न्याय और नीति में अभिरुचि होनी चाहिए l उसके लिए वह सहज वृत्ति है l यदि इस दिशा में प्रगति न हो तो अंतत: मनुष्य टूट जाता है और उसका जीवन निस्सार हो जाता है l
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इस संसार में देवता और असुर दोनों हैं l हम मनुष्यों में ही कौन देवता है , कौन असुर है यह उसके आचरण से पता चलता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' आसुरी वृति वाले मनुष्य की जो चेतना है , वो विध्वंसक है l वो ईश्वर को नहीं मानता , प्रकृति के कर्म विधान को भी नहीं मानता l स्वयं को सर्वसमर्थ , सिद्ध , बलवान तथा सुखी मानता है l उन्हें अपने धनबल , जनबल का अहंकार होता है l उनकी चेतना मात्र कपट करना , आडम्बर करना जानती है इसलिए वे सुखी नहीं होते हैं , परन्तु सुखी होने का आडम्बर करते हैं l अपनी दीनता , अपनी हीनता को छिपाकर स्वयं को ऐश्वर्यवान , शक्तिशाली समझते हैं l ' आसुरी प्रवृति के लोगों की एक बड़ी विशेषता यह है कि ये बड़ी मजबूती से संगठित होते हैं l ये एक दूसरे की कमियों को अच्छी तरह जानते हैं , इसलिए एक ही नाव में सवार होते हैं l गीता में कहा गया है --- आसुरी प्रवृति के व्यक्तियों की कामनाएं अपरिमित होती हैं और जो भी उनकी कामना के पथ में बाधक बन कर खड़ा होता है , वह उन्हें अपना विरोधी नजर आता है l ऐसे लोगों को नष्ट करने की उनमे बड़ी तीव्र लालसा होती है l ' असुरों की इसी प्रवृति के कारण संसार में अशांति होती है l चाहे छोटी सी संस्था हो या बड़े स्तर की बात हो अपने अहंकार के कारण ही वे दूसरे को अपना गुलाम बनाना चाहते हैं , उनकी हुकूमत मानों , अन्यथा वे मिटाने में कोई कोर - कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे l और फिर एक समय ऐसा भी आता है कि उनकी यह प्रवृति ही उनके अंत का कारण बनती है क्योंकि उनके क्षेत्र में भी हर छोटा असुर अपने से बड़े की हुकूमत स्वीकार करता है ---- फिर वो अपने से बड़े की ----- फिर ---- फिर ----- उनमे आत्मिक बल नहीं होता l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' जिस प्रकार सूखे बाँस आपस की रगड़ से ही जलकर भस्म हो जाते हैं , उसी प्रकार अहंकारी व्यक्ति आपस में टकराते हैं और कलह की अग्नि में जल कर मरते हैं l "
10 March 2022
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कबीर दास जी कहते हैं ---- " बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर , पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर l " बड़प्पन खजूर जैसा वृक्ष नहीं है , जो केवल दीखने में बड़ा होता है , पर जिसकी कोई छाया नहीं होती l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' बड़प्पन एक मानवीय गुण है , और बड़ा होना सामान्य बात नहीं है l बड़प्पन किसी को सुख देने में है , लाभ देने में है , किसी को दो पल की ख़ुशी , शांति देने में है l ' आज संसार की जो परिस्थितियां हैं उसमे ' बड़प्पन ' कहीं खो गया है l प्रजा हो या राजा , सभी एक चक्रव्यूह में फँसे हैं l पहले दुनिया की विभिन्न शासकों ने यह दिखाया कि उन्हें प्रजा के जीवन की , पर्यावरण की बहुत चिंता है , सबको वैक्सीन लगे , सब गाइड लाइन का पालन हो ताकि प्रजा का जीवन सुरक्षित हो लेकिन अब बिलकुल विपरीत हो गया , युद्ध में बमों से , मिसाइल आदि घातक अस्त्रों से शहरों को तबाह कर दो , पर्यावरण प्रदूषित हो जाये l इन सबसे बेगुनाह प्रजा का जीवन और अस्तित्व खतरे में हो गया l आज मनुष्य को यह समझना होगा कि वह आखिर चाहता क्या है ? सामान्य मनुष्य की चाहत का कोई महत्व नहीं है , जो शक्तिशाली हैं उनकी मानव जाति के प्रति क्या सोच है , उसी पर मानवता का भविष्य निश्चित होगा l
8 March 2022
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पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' अहंकार मानव प्रकृति में धागे के समान गुँथा हुआ है l अहंकारी अपने अलावा किसी और को अपने से बड़ा और अच्छा देख नहीं सकता l यह भाव दूसरों को उठाने के बजाय गिराता है , सुधारने के बजाय बिगाड़ता है , मनाने की बजाय रुठाता - रुलाता है l ' अहंकार के ही कारण संसार में अशांति और तनाव है l l आचार्य श्री लिखते हैं ---- हमें अपने अहंकार के मद में अपने को झुठलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए l जो बुद्धिमान हैं , जिनमे गुणग्राहकता का गुण है , वे अहंकार के मद में स्वयं को झुठलाते नहीं है , किसी की महानता उनकी हीनतापूर्ण प्रतिक्रिया का कारण नहीं हो सकती l वे उसकी महानता को स्वीकार करते हैं , जिससे अहंकार की पीड़ा के स्थान पर गौरव - गरिमा का अनुभव होने लगता है l " ----- इन्दौर के महाराज मल्हारराव होल्कर में गुणग्राहकता थी , वे उदार गुणज्ञ थे l पूना जाते समय मार्ग में पथारी गांव के शिवालय के पास विश्राम हेतु उनका वैभवपूर्ण शिविर लगा था l इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई उस समय एक गरीब किसान की भोली - सी ग्रामीण कन्या थीं l वे नित्य उस शिव मंदिर में पूजा करने आती थीं l उस दिन भी वे निर्विकार भाव से आईं , यथावत पूजन किया और बिना किसी भय और संकोच के अलिप्त भाव से वापस चलीं गईं l यह देखकर महाराज मल्हारराव सोचने लगे कि क्या संसार में ऐसा संभव है कि महाराजा का वैभवपूर्ण शिविर लगा हो , चारों ओर ऐश्वर्य बिखरा हुआ हो और एक साधारण सी ग्रामीण लड़की आये और बिना किसी प्रभाव के तटस्थ भाव से चली जाये l अच्छे से अच्छे धैर्यवान भी विस्मय से राजवैभव को देखते हैं लेकिन यह कन्या तो ऐसे चली गई , मानों राजा तो क्या एक छोटा सा प्राणी भी न हो l अहिल्याबाई की सात्विकता और निर्भयता उनके हृदय में श्रद्धा बनकर बैठ गई l जिस राजवैभव का उन्होंने और उनके पूर्वजों ने बड़े प्रयत्न से संचय किया था , उसका अवमूल्यन हो गया l लेकिन महाराज मल्हारराव ने अहिल्याबाई की महानता , उनकी सात्विकता स्वीकार कर अपनी अशांति का चिरस्थायी हल निकाल लिया l और उन्होंने उनके पिता को बुलवाकर कहा --- ' मैं आपकी सुलक्षणा बेटी को अपनी पुत्रवधु बनाना चाहता हूँ l अहिल्या के पास और कोई वस्त्र थे नहीं , उसी सफ़ेद मोटे गाढ़े की धोती में बहुत आदर और सम्मान के साथ पालकी में बिठा दिया l इन्दौर की युवरानी बनने के बाद भी वे कभी अपने पूर्व जीवन को नहीं भूलीं l सादगी से रहीं और और जो धन , मान उन्हें मिला उसका उपयोग उन्होंने सदैव लोक कल्याण में किया l उनके गुणों और कर्तव्यनिष्ठा ने उन्हें महानता के पद पर प्रतिष्ठित किया l
7 March 2022
WISDOM
मनुष्य के अहंकार और दूसरों पर अपनी हुकूमत जताने की चरम सीमा ' युद्ध ' है l अपनी शक्ति की धाक जमाने के लिए ही युद्ध होता है l रामायण और महाभारत काल में जो अस्त्र - शस्त्र थे उन्हें मन्त्रों से सिद्ध किया जाता था l अनेक अस्त्रों के साथ यह शर्त जुड़ी थी कि किसी निर्दोष पर उनका प्रयोग न किया जाये , यदि कोई ऐसा करता है तो वह अस्त्र पलटकर प्रयोग करने वाले के ही प्राण ले लेगा l किसी भी युद्ध में निर्दोष प्राणियों , बच्चों , महिलाओं की हत्या करना और पर्यावरण को प्रदूषित करने को सहमति नहीं दी गई है l जिसने ऐसा किया उसे स्वयं भगवान ने दंड दिया l महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले ही भगवान श्रीकृष्ण ने प्रतिज्ञा की थी कि वे युद्ध में अस्त्र - शस्त्र नहीं उठाएंगे l जब युद्ध समाप्त हो गया तब रात्रि के समय जब सब शिविर में सो रहे थे तब द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने शिविर में आग लगा दी और द्रोपदी के अबोध पांच पुत्र जो निद्रा में थे उनका वध कर दिया l इतना ही नहीं उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर लक्ष्य कर के ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जिससे पांडवों का वंश ही समाप्त हो जाये l भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की लेकिन अश्वत्थामा के इस दुष्कृत्य को क्षमा नहीं किया l अश्वत्थामा के मस्तक पर मणि चमकती थी , भगवान ने भीम से कहा -- इसकी यह मणि निकाल दो l जिससे उस स्थान पर कभी न ठीक होने वाला घाव हो गया l इस घाव को लेकर जिससे मवाद रिसता था , अश्वत्थामा न जाने कितने वर्षों से भटक रहा है l यह प्रसंग उन लोगों को जागरूक करने के लिए है जो युद्ध हो या कोई अन्य परिस्थिति हो बच्चों को सताते हैं , अमानुषिक व्यवहार करते हैं l और अनेक सब जानकर भी अनजान बने रहते हैं l हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है l प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है l
6 March 2022
WISDOM--------
सच्चा मित्र कौन है ? सच्चा मित्र वो है जो आपको गलत राह पर चलने से रोके l सच्चाई और ईमानदारी से स्वयं जीवन जिए और आपको भी वैसा ही जीवन जीने की प्रेरणा दे l ---- यदि ऐसा नहीं है तब वह मित्रता स्वार्थ के लिए है l ऐसा मित्र यदि पाप के रास्ते पर चलता है और स्वार्थवश आप उसका समर्थन करते हैं तो यह उसके पाप में भागीदारी हो गई और इसके साथ ही प्रकृति के दंड से भी नहीं बच सकते l ---महाभारत का एक पात्र कर्ण का जीवन कुछ ऐसा ही था l जब सभा में उसको सूत पुत्र कहकर अपमानित किया जा रहा था , तब दुर्योधन ने उसको अंगदेश का राजा बनाकर सम्मान दिया था l इस एहसान के कारण ही कर्ण ने मित्र- धर्म निभाया l दुर्योधन अधर्म पर था l मामा शकुनि के साथ मिलकर पांडवों को हर तरह से परेशान करना l छल कपट और षड्यंत्र ही उसकी नीति थी l कर्ण में विवेक था वह जानता भी था कि दुर्योधन गलत है , लेकिन उसने कभी दुर्योधन को सही - गलत नहीं समझाया , पांडवों के प्रति किये जाने वाले उसके हर गलत कदम का समर्थन किया l उसका कहना था कि यह उसका मित्र के प्रति धर्म है l अधर्मी और अत्याचारी का साथ देने का परिणाम उसके लिए घातक हुआ l कर्ण महावीर और महादानी था , वह यह जनता था कि वह सूर्य पुत्र है लेकिन अधर्म और अन्याय का साथ देने के कारण वह पराजित हुआ l अत्याचारी और अन्यायी स्वयं तो डूबता है , अपने मित्र और कुटुम्बियों को भी संग में ले डूबता है l
WISDOM -----
संसार में आज जितनी भी समस्याएं हैं उनके लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है l जीवन का कोई भी क्षेत्र हो , यदि उसमें संतुलन न हो तो अशांति उत्पन्न होती है l जैसे किसी राज्य में सुख - शांति हो , कुशल प्रशासन हो , इसके लिए एक विशेष प्रशासनिक योग्यता की आवश्यकता होती है l इसी तरह व्यापारिक कार्यों के लिए एक अलग कुशलता की आवश्यकता होती है l ये दोनों योग्यता बिलकुल अलग है और इन दोनों के उद्देश्य भी अलग हैं l अब यदि राजनीति में व्यापारिक बुद्धि का दखल हो जायेगा , तो संतुलन भंग हो जायेगा फिर उनके गुणा - भाग , लाभ सक्रिय हो जायेंगे , इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ेगा l ' व्यापार ' यह ऐसा ही है , जिस भी क्षेत्र में घुस जाये , चाहे वह शिक्षा हो , चिकित्सा हो , सुरक्षा हो , उसी क्षेत्र का बंटाधार कर देता है l इसलिए हमारे प्राचीन ऋषियों ने हर क्षेत्र की मर्यादा निर्धारित की थी l
5 March 2022
WISDOM ----
यह एक निश्चित तथ्य है कि जो लोग छल - कपट, षड्यंत्र , अत्याचार , अन्याय , अपराध या कोई भी अनैतिक कार्य करते हैं तो इसकी शुरुआत उनके बचपन से ही हो जाती है l यदि उन्हें उसी वक्त उस गलती को करने से रोका जाये , उस गलती के लिए दंडित किया जाये तो वह बुराई आगे नहीं बढ़ेगी लेकिन जब समझदार लोग मूक दर्शक बने रहते हैं तो वह गलती आगे चलकर विकराल रूप ले लेती है महाभारत का प्रसंग है ----- कौरव , पांडव के बचपन का प्रसंग है कि वे सब नदी के किनारे खेल रहे थे तब ईर्ष्यावश दुर्योधन आदि ने भीम के भोजन में विष मिला दिया और उसे नदी में फेंक दिया l भीम की मृत्यु हो जाने से पांडव कमजोर हो जायेंगे और इस तरह उसके मार्ग की सब बाधा दूर हो जाएगी l दुर्योधन की इस गलती पर भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , धृतराष्ट्र, महात्मा विदुर ने कुछ नहीं कहा l इससे दुर्योधन की हिम्मत और बढ़ गई और उसने जीवन भर मामा शकुनि के साथ अनेक षड्यंत्र रचे जिसका परिणाम अंत में महाभारत हुआ l प्रश्न यह है कि इतने वीर , ज्ञानी और धर्मात्मा होते हुए भी वे खामोश क्यों रहे ? जब भीष्म पितामह शर शय्या पर लेटे थे और पांडवों को धर्म का , नीति का उपदेश दे रहे थे तब द्रोपदी को हँसी आ गई l युधिष्ठिर ने पूछा --- ऐसे गंभीर समय में तुम्हे हँसी कैसे आ गई ? द्रोपदी ने कहा --- पितामह के ये उपदेश और धर्म व नीति उस समय कहाँ थी जब मेरा चीर हरण हो रहा था ? तब भीष्म पितामह ने कहा --- उस समय मैं दुर्योधन का कुधान्य खाता था , अब शर शय्या पर लेटने से वह सब रक्त के साथ बह गया और मन निर्मल हो गया , इसलिए यह उपदेश देने में समर्थ हुआ l " आज संसार में इतनी अशांति , इतना तनाव इसीलिए है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए अपराधियों को संरक्षण देते हैं , उनकी सहायता से अपनी अनेक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करते हैं l कामना , वासना , तृष्णा , स्वार्थ , अहंकार ये सब मानसिक विकृतियाँ ही संसार में उत्पात मचाती हैं l
WISDOM -----
इतिहास में पढ़ते हैं कि जब भारत ज्ञान और वैभव में अपने चरम शिखर पर था , तब यूरोप में असभ्य जातियों का निवास था l इसके बाद उन अनेक देशों ने जिन्हे हम विकसित कहते हैं भौतिक प्रगति तो बहुत की , किन्तु अध्यात्म में रूचि न होने के कारण उनका यह विकास एकांगी रहा l मनुष्य के भीतर देवता और असुर दोनों होते हैं l अध्यात्म का अर्थ है --- व्यक्तित्व का परिष्कार , चिंतन और चेतना का परिष्कार l यह अध्यात्म ही है जो मनुष्य के भीतर के असुर को मार कर उसके देवत्व को जगाता है l विकसित कहे जाने वाले देशों ने विज्ञान के साथ अध्यात्म को नहीं जोड़ा , इसलिए उनके भीतर की असुरता समाप्त नहीं हुई और ज्ञान और बुद्धि के दुरूपयोग से यह असुरता एक विशालकाय असुर में तब्दील हो गई l कहावत है -' हाथ कंगन को आरसी क्या ' वे स्वयं ही संसार को अपनी असुरता का सबूत दे रहे हैं l असुरता में स्वयं ही उसके विनाश के बीज विद्यमान हैं l उन्हें तो अंधकार ही पसंद है l इसलिए प्रकृति उन्हें वापस वहीँ पहुंचा देगी l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " ऊँट को नकेल से , बैल को डंडे से , घोड़े को लगाम से और हाथी को अंकुश के सहारे वश में किया जाता है l सरकस के जानवरों को उनका शिक्षक चाबुक से डराकर इच्छित कृत्य सिखाता है और कराता है l ईश्वर विश्वास और आस्तिकता की भावना मनुष्य की उच्श्रृंखलता पर अंकुश लगाती है l व्यक्ति के जीवन क्रम और चरित्र को बनाने के लिए अध्यात्म की , ईश्वर भक्ति की आवश्यकता है ताकि मनुष्य जाति का जीवन श्रेष्ठ व समुन्नत बना रहे l "
4 March 2022
WISDOM -----
हमारी नीति कथाएं हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं l यह कथा बताती है कि अपनी कमजोरी पर नियंत्रण रखो , डरो नहीं , अन्यथा लोग उसका फायदा उठाने को तैयार रहेंगे l ----- एक लोमड़ी किसी जंगल में रहती थी l उसी क्षेत्र में गधों की भरमार थी l लोमड़ी को उनसे असुविधा होती थी l उसके खाने योग्य साधन गधों की बहुलता से अस्त - व्यस्त हो जाते थे l लोमड़ी ने एक चालाकी भरी योजना बनाई कि किसी प्रकार गधों को डरा कर भगाया जाये l वह गधों के पास पहुंची और बोली मैं तुम्हे एक गुप्त सूचना देती हूँ --- मछलियों ने मिलकर एक सेना गठित की है और वे दलबल के साथ तुम सब गधों का बंटाधार करने वाली हैं l गधों ने वास्तविकता जानने का प्रयत्न ही नहीं किया , डर से भयभीत होकर गांव की ओर भागे जहाँ उन्हें पनाह मिल सके l गाँव धोबियों का था l उन्होंने गधों की भय - व्याकुलता देखी l कारण पूछा और सहायता करने का आश्वासन दिया l गधों ने लोमड़ी से सुनी सारी बातें कह सुनाई l धोबियों ने उन्हें बचा लेने का आश्वासन दिया l साथ ही उनके गले में रस्सी बांधकर खूंटे से भी बांध दिया l गधे स्थायी रूप से उनके चंगुल में बंध गए l
WISDOM ------
एक कहावत है ---- ' खाली बैठे क्या करें , आओ पड़ोसन लड़ें l " एक सत्य घटना है --- लोगों को लड़ने का बहुत शौक होता है l झुग्गी झोंपड़ी में रहने वाली दो महिलायें बात कर रहीं थीं -- एक ने कहा --मैं बकरी खरीदूंगी l दूसरी ने कहा --- तेरी झुग्गी में जगह तो है नहीं कहाँ बांधेगी ? ' पहली स्त्री ने कहा --- ' तेरी झुग्गी में बांध दूंगी , क्या कर लेगी मेरा ! ' बस ! इसी बात पर दोनों में बहस छिड़ गई , घर के पुरुष भी इसमें सम्मिलित हो गए l अब झुग्गी में तो इतनी जगह नहीं थी , इसलिए उनकी लड़ाई सड़क पर आ गई l एक -एक कर के अन्य झुग्गी वाले भी इस लड़ाई में जुट गए , बवाल मच गया l इस बीच भयंकर आँधी चलने लगी , मूसलाधार पानी बरसने लगा , ओले भी गिरे l महिलाएं तो किसी तरह अपनी झुग्गी में चलीं गईं l लेकिन पुरुषों में तो अहंकार होता है , अपने पौरुष को सार्थक करने का कोई मौका चाहिए l वे अपने - अपने घर से छाता ले आए , जिसके पास छाता नहीं था , उसने सिर पर से बोरी ओढ़ ली और खूब लड़े l ' ------ यह हाल आजकल पूरी दुनिया का है l झुग्गी में रहने वाले , गरीब लोग , निम्न जाति के लोग , जो बदरंग हैं वे लोग और अनपढ़ आपस में लड़ें तो बात समझ में आती है लेकिन जब रंग - रूप , ज्ञान - विज्ञानं , धन - वैभव , सुख - सुविधाएँ , जाति - धर्म हर दृष्टि से स्वयं को श्रेष्ठ कहने वाले लोग ऐसी लड़ाई करें कि धरती शमशान बन जाये तो मन में एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि श्रेष्ठ कौन ? सभ्य कौन ? यह दुर्बुद्धि ही है कि सकारात्मक कोई कार्य नजर नहीं आता तो घमासान युद्ध कर के , निर्दोष प्राणियों की हत्या कर के ही लोग समझते हैं कि उनका जीवन सार्थक हो गया l ऐसी बुद्धि !