7 December 2018

WISDOM ------ ईश्वर की उपासना केवल जप , तप व ध्यान से ही नहीं होती , बल्कि सत्कर्म से भी होती है

  गेरुए  वस्त्र  धारण  करना , जप , कीर्तन आदि  बाहरी   आडम्बर  है  ,  इनकी  सार्थकता  तभी  है  जब  सेवा  और   सत्कार्यों  द्वारा   मानसिक  परिष्कार  किया  जाये   I
  महाभारत  के  युद्ध  के  दिनों में   रात्रि के समय   युधिष्ठिर  वेश  बदलकर   कहीं  जाया  करते  थे   l  एक  दिन  शेष  भाइयों  को  उत्सुकता  हुई   तो  वे  भी  उनके  पीछे  चल  दिए   l  उन्होंने  देखा  कि   युधिष्ठिर   युद्ध भूमि  में  घायल  सैनिकों  के  बीच  घूम - घूमकर   देख  रहे  हैं  कि  कहीं  कोई  भूखा - प्यासा  तो नहीं  है  l वे  चाहे  शत्रु  पक्ष  के  थे   या  स्वयं  के  पक्ष  के  थे  , उन्होंने  सभी  घायलों  की समुचित  सेवा  की   l  उनके  लौटने  पर  अर्जुन  ने  उनसे  पूछा  --- " आपको  वेश  बदलकर   यहाँ  आने की  क्या  आवश्यकता  थी  ? "
     युधिष्ठिर  बोले ---- " अर्जुन  ! इनमें  से  अनेक  कौरवों  के  पक्ष  के  हैं   l  यदि  ये  मुझे  पहचान  जाते   तो  अपनी  व्यथा  मुझसे  नहीं  कह  पाते  l "
  भीम  ने  पूछा ---- "  युद्ध  के  समय  शत्रु  की  सहायता  करना  क्या  उचित  है   ?  " 
 युधिष्ठिर  बोले ----  " भीम  !  मनुष्य  का  शत्रु  , मनुष्य  नहीं ,  बल्कि  उसके  स्वकृत  पाप  होते  हैं   l "
नकुल - सहदेव  ने  पूछा ---- " आपने  यह  समय  उपासना  के  लिए  घोषित  कर  रखा  था   l  क्या  आपको  झूठ  बोलने  का  पाप  नहीं  लगेगा  ? "
 युधिष्ठिर  बोले  ---- " नहीं  l   भगवान  की  उपासना  केवल  जप , तप , ध्यान  से  ही  नहीं  होती  ,  बल्कि  कर्म  से  भी  होती  है   l  l  "  चारों  भाई  युधिष्ठिर  की   धर्म परायणता  पर  नत - मस्तक  हो  गए   l