18 December 2020

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   एक  चोर  चोरी  करता  हुआ  पकड़ा  गया   l   राजा  ने  उसे  फाँसी   की  सजा  दे  दी  l  जब  उसकी  अंतिम  इच्छा  पूछी  गई  तो  उसने  कहा  --- 'मैं  प्रजापालक  महाराज  के  एक  बार  दर्शन  करना  चाहता  हूँ  l '  राजा  चोर  के  पास  आया   तो  चोर   ने कहा  --- " राजन  !  मुझे  मरने  का  कोई  अफ़सोस  नहीं  है  ,  पर  एक  विद्या  मेरी  मृत्यु  के  साथ  ही  इस  संसार  से  लुप्त   हो जाएगी  ,  इसी  का  अफ़सोस  है  l "  राजा  ने  पूछा  --- " कौन  सी  विद्या  ? "  चोर  बोला ---- " सोने  की  कृषि  l   मैं  खेतों  में  सोना  देने  वाले  पेड़   उगा    सकता  हूँ  l "  राजा  ने  फाँसी   की  सजा  स्थगित  कर  दी   और  चोर  के  कहने  पर  बड़ा  सा  खेत  जुतवा  दिया  l   दिन - रात  हल  चलने  लगे  ,  कोई  मिटटी  की  जांच  करता  , कोई  नमी  की  l    राजा  स्वयं  दिन  में  तीन - चार  बार  जाकर  देखता  l   जिस  दिन  बीज   बोने    का   क्रम  आया  ,  सारी   प्रजा  खेत  के  चारों  ओर   खड़ी  थी  l  चोर  आया   और  अपनी  जेब  से  काले -काले   जंगली  घास  के  से  बीज   उसने  निकाले  l   एक  ऊँची  जगह  खड़ा  होकर  वह  बोला  ----- "  यह  स्वर्णलता  के  बीज  हैं  ,  जो  मैं  शल्य  देश  से  लाया  था  ,  पर  काश  !  मैं  पहले  से  चोर   न होता  तो  खुद  ही  सोना  उगाकर  पृथ्वी  का  कुबेर  बन  जाता   l "  बात  को  समझाकर   उसने  कहा  ---- " इन  बीजों  को   वही  बो  सकता  है   जिसने  पहले  कभी  चोरी  न  की  हो  ,  कोई  अपराध  न  किया  हो  l   यदि  अपराध  किया  होगा   तो  शरीर   तुरंत  संज्ञाशून्य  होकर  गिर  जायेगा  l   आप  तो  सभी  धर्मात्मा  हैं  , आइये  l  "   यह  सुनकर   सब  धीरे - धीरे  वहां   से खसक  गए   क्योंकि  सभी  ने   कभी  न  कभी  कोई  अपराध  किया  ही  है  l   अब  राजा  भी  जाने  लगे    तो  वह  बोला  --- " महाराज   आप  तो  बो  ही   सकते  हैं  l "   महाराज   चुप रहे  वे  स्वयं  को  जानते  थे  l   तब  चोर  बोला --- " फिर  महाराज  !  मुझे  अकेले  को  फाँसी   क्यों  दे  रहे    हैं l  "   राजा  ने  उसे  क्षमा  कर  दिया  l  अपनी  चतुरता  से  आंतरिक  कमजोरियों  की  बात  कर   चोर  ने  स्वयं   को बचा  लिया   l 

WISDOM --------

   विज्ञान    आज  इतनी  ऊंचाइयों  पर  पहुँच  गया   कि   स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझकर   प्रकृति  को  चुनौती  देने  लगा  है   l   ईश्वर  ने  मनुष्य  को  जीवित  रहने  के  लिए  सब  कुछ  नि:शुल्क  दिया   और  नि:स्वार्थ  भाव  से  दिया  l   हवा , पानी , मिटटी ,  सूर्य  का  प्रकाश   -- सभी  कुछ  हमें  स्वस्थ  रहने  के  लिए  प्रकृति  ने  हमें  दिया  l  प्रकृति  की   यह  देन   शुद्ध  है , पवित्र  है   इसमें  कितनी  भी  मिलावट  हो  जाये  ,  फिर  भी  इसमें  ईश्वरीय  अंश  है  l  लेकिन  अब  मनुष्य  ईश्वर  की  देन   पर  भी   संदेह  करने  लगा  है  और  विज्ञान   की  देन   पर  विश्वास  करने  लगा  है  l   यदि  हम  अपने  खिड़की  , दरवाजे  बंद  कर  लेंगे  ,  उसमे   एक छिद्र  भी  नहीं  होगा  तो  सूर्य  का  प्रकाश  हमारे  पास  कैसे  आएगा   ?  इसकी  कमी  से   हमें  अनेक  बीमारी  होंगी  l   इसी  तरह  वृक्षों  को  देवता  कहा  जाता  है   ,  वे   हमें  प्राणवायु  देते  हैं  लेकिन  हम  क्योंकि  विज्ञान   को  मानने   लगे  हैं  ,  हम  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप   है   इसलिए   इस  प्राणवायु   पर  हम  विश्वास    नहीं करते ,  इस  पर  रूकावट  डालते  हैं      तो अंत  में  हमें  कृत्रिम  तरीके  पर  निर्भर  रहना  पड़ता  है  l   परिणाम  सबके  सामने  है  l   एक  कटु  सत्य  हमें   समझना  होगा  कि   विज्ञानं  को  इनसान   ने  बनाया  है    और  इनसान   बिना  स्वार्थ  के  किसी  को  कुछ  नहीं  देता    इसलिए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  कहा  है  ---- आज  के  युग  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  सद्बुद्धि  की  है  l   हम  नेक  रास्ते  पर  चलें  और  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  करें  l   संसार  की  सारी   समस्याओं  का  एकमात्र  हल  सद्बुद्धि  है  l