17 March 2018

WISDOM ----- बड़े आदमी बनने की अपेक्षा महान कार्य करने की कामना हजार गुनी श्रेष्ठ है l

   '  केवल  स्वार्थ  और  मिथ्याभिमान  से  प्रेरित  होकर  किया   गया  काम  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो  , वह  न  तो  उस  व्यक्ति  को  सुखी  और  संतुष्ट  कर  सकता  है   और  न  मानव  समाज  को   ही  कुछ  दे  सकता  है  l  '
  सिकन्दर   का  जीवन  इसी  सत्य  को  सिद्ध  करता  है  l   स्वयं  को  विश्व विजेता  सिद्ध  करने  के  लिए   उसने  हजारों  आदमियों  का  रक्त  बहाया था , कितनी  ही  माँगों  का   सिन्दूर  पोंछ  दिया ,  कितनी  ही  माताओं  की  गोद  सूनी  कर  दी , कितने  ही  बच्चों  को  अनाथ  कर  दिया  l  सिकन्दर  स्वयं  इन  विचारों  से  त्रस्त  हो  रहा  था  l  उनसे  मुक्त  होने  के  लिए  उसने  शराब  का  सहारा  लिया  l  भारत  से  लौटते  समय  वह  बहुत  पीने  लगा  था l  लौटते  हुए  रास्ते  में  ही  उसे  निमोनिया  हुआ  और  मर  गया  l 
  सिकन्दर  केवल  33  वर्ष  ही  जी  सका ,  उसने  केवल  13  वर्ष  राज्य  किया  l  लेकिन  विश्व विजय  का  पागलपन  मस्तिष्क  में  बैठाये  न  तो  स्वयं  चैन  से  बैठा  और  न  ही  अपने  सैनिकों  को  व  दूसरे  राजाओं  को  चैन  से  बैठने  दिया  l  क्या  इसी  का  नाम  राज्य  करना  है  ?   किसी  कवि  ने  ठीक  ही  कहा  है ----
   ' न  हुई  हद   सिकन्दरी  न  कारुं  की  चली ,  मौत  का  आ  गया  पैगाम  कि  चलते  चलते  l '
  सिकन्दर  का  यह  संकल्प   और  उसके  लिए  जुटाया  गया  साधन ,  श्रम , समय  और  जीवन  किसी  काम  नहीं  आया  l  एक  कहानी  बनकर  रह  गया   l