13 July 2022

WISDOM -------

   पुराण  की  एक  कथा  है ----- एक  बार  विधाता  ने  जय -विजय  को  आदेश  दिया  कि   धरती  पर  स्वर्ग  का  सच्चा  अधिकारी  कौन  है  ,  ढूंढकर  बताओ  l  जय - विजय   सम्पूर्ण  धरती  पर  घूमते  रहे  , उन्होंने  देखा  लोग  जहाँ -तहां   धर्म -कर्म  में  लगे  हैं  l  उन्होंने  लोगों  से  पूछा  --- "  आप  यह  क्यों  कर  रहे   हैं   ? "  उत्तर  मिला --- "  यह  संसार  नश्वर  है  l  हम  यह  भक्ति  इसलिए  कर  रहे  हैं   कि  नित्य  कुछ - न -कुछ  पापकर्म   तो  होते  ही  रहते  हैं  ,  भक्ति , पूजा  से   उनकी  शुद्धि  कर  लेते  हैं   l  "  उनके  आचरण  और  वाणी  में  कोई  सामंजस्य   न  देखकर   वे  आगे  बढ़े   l   रात्रि  हो  गई  थी  ,  उन्होंने  देखा   एक  अँधा  दीपक  जलाए  बैठा  था  l   आने  वालों  की  पदचाप  सुनकर   वह  उन्हें  राह    बताता    था  l   कीचड़  में  सने  व्यक्तियों  के   हाथ -पैर  धुलाकर   उन्हें  अपने  पास   विश्राम  के  लिए  बैठाता  था   और  भूखे -प्यासे  को  यथा संभव  खिलाता-पिलाता  था   l  दिन  होने  पर  थोड़ी  देर  विश्राम  कर   वह  बगीचे  में   काम  करने  लगा  ,  ताकि  कुछ  सब्जी  बेचकर  गुजारे  लायक   राशि   जुटा  सके   l  जय - विजय  यह  द्रश्य  देखकर  उससे  पूछ  बैठे  --- " आप  ईश्वर उपासना  नहीं  करते   l  सुबह  का  समय  तो  इसलिए  होता  है   l  "  अँधा  बोला --- " मुझे  तो  रात्रि  में   लोगों  को  राह  बताना , उनकी  सेवा  करना   और  दिन  में  श्रम  करना   ही  उपासना  का   स्वरुप  समझ  में  आया  l  इससे  अधिक  मैं  नहीं  जानता  l '  अपना  निरीक्षण  पूरा  कर  जय -विजय  लौटे   l  विधाता  ने  उनके  लिखे  विवरण  को  ध्यानपूर्वक  पढ़ा  और  बोले  --- "  तुम्हारा  विवरण  देखकर  मुझे  लगता  है   कि  वर्तमान  में   शेष  सभी  तो  आडम्बर  और  दिखावे  में  लगे  हैं  l  मात्र  यह  अँधा  ही   स्वर्ग  का  सच्चा  अधिकारी  है  l  "  जय -विजय  की  उलझन  देखकर  वे  बोले --- " तात  ! उपासना  मात्र  जप -तप  नहीं  है   वरन  जनमानस  को   सही  दिशा  देना   भी  उपासना  का  एक  स्वरुप  है   l  निर्मल  अंत:करण   में  ही  ईश्वर  निवास  करते  हैं   l  "