ऋषियों का वचन है कि अनजान व्यक्ति हो या अनजान वस्तु हो , बिना सोचे - समझे उस पर तुरंत विश्वास नहीं कर लेना चाहिए l हमेशा जागरूक रहें l एक कथा है ------ दो बन्दर एक दिन घूमते -घूमते एक गाँव के समीप पहुँच गए l उन्होंने वहां फलों से लदा पेड़ देखा l एक बन्दर ने दूसरे से चिल्लाकर कहा --- " इस पेड़ को देखो , ये फल कितने सुन्दर दिख रहे हैं l ये अवश्य ही स्वादिष्ट होंगे , चलो , हम दोनों पेड़ पर चढ़कर फल खाएं l " बंदरों के दल के मुखिया ने जब ये बात सुनी तो उसने कहा --- " नहीं , नहीं l जरा ठहरो ! यह पेड़ गाँव के समीप है और इसके फल इतने सुन्दर और पके हुए हैं , लेकिन यदि ये फल अच्छे होते तो गाँव वाले ही इन्हें तोड़ लेते , इन्हें ऐसे ही पेड़ पर नहीं लगे रहने देते l इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि किसी ने भी इन फलों को हाथ तक नहीं लगाया है l हो सकता है ये फल खाने लायक ही न हों l " मुखिया ने अपने दल के सभी सदस्यों को सावधान किया l लेकिन वह बन्दर नटखट था , उसमे धैर्य नहीं था l मुखिया से छुपकर वह जल्दी से पेड़ पर चढ़ गया और फल खाने लगा l यह फल ही उसका अंतिम भोजन बन गया क्योंकि वे फल जहरीले थे l
31 May 2022
29 May 2022
WISDOM --------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' अपनी अंतरात्मा का पूर्ण रूप से सम्मान करना सीखो , क्योंकि तुम्हारे ह्रदय के द्वारा ही वह उजाला मिलता है , जो जीवन को आलोकित कर सकता है l रोजमर्रा की जिन्दगी में यदि सबसे ज्यादा किसी की उपेक्षा होती है , तो अंतरात्मा की l इन्द्रिय लालसाओं को पूरा करने का लालच मनुष्य को उसकी अंतरात्मा से दूर कर देता है l जीवन का ढंग बदले बिना , अंतरात्मा का सम्मान किए बिना , अंतरात्मा की वाणी सुनाई नहीं देती है l "------ एक कथा है ----- सूफी दरवेश अमिरुल्लाह बड़े पहुंचे हुए फ़क़ीर थे l एक युवक उनके पास शिष्य होने की इच्छा से गया l तो उन्होंने कहा --- पहले तुम शिष्य की जिन्दगी का ढंग सीखो l युवक के जिज्ञासा करने पर उन्होंने कहा ----- ' बेटा ! शिष्य अपनी अंतरात्मा का सम्मान करना जानता है l वह इन्द्रिय लालसाओं के लिए , थोड़े से स्वार्थ के लिए या फिर अहंकार की झूठी शान के लिए अपना सौदा नहीं करता l दुनिया का आम इन्सान दुनिया के सामने झूठी , नकली जिन्दगी जीता है l वह समाज के डर की वजह से , समाज में अपने अच्छे होने का नाटक करता है , परन्तु समाज की ओट में , चोरी छिपे अनेकों बुरे काम करता है l अपने मन में बुरे खयालों और ख्वाबों में रस लेता है l जबकि खुदा का नेक बंदा कभी ऐसा नहीं करता क्योंकि वह जानता है कि खुदा सड़कों और चौराहों में भी है , कमरे की बंद दीवारों के भीतर ही है l यहाँ तक कि अंतर्मन के दायरों में भी उसकी उपस्थिति है l इसलिए सच्चा शिष्य अपने कर्म , विचार और भावनाओं में पाक -साफ होकर जीता है l ' आज के समय में जब देश में हजारों बाबा , वैरागी हैं और उनके लाखों शिष्य है तो इस कथा के आधार पर उनके सत्य को परखने की जरुरत है क्योंकि इसी में इस प्रश्न का उत्तर छिपा है कि संसार में इतनी अशांति और लोगों के जीवन में इतना तनाव क्यों है ?
28 May 2022
WISDOM -----
लघु -कथा ----- एक बार एक गरीब आदमी हजरत इब्राहीम के पास पहुंचा और कुछ आर्थिक सहायता मांगने लगा l हजरत ने कहा ---- ' तुम्हारे पास कुछ सामान हो तो मेरे पास ले आओ l गरीब आदमी के पास एक तश्तरी , लोटा और दो कम्बल थे l हजरत ने एक कम्बल छोड़कर सब सामान नीलाम करा दिया l नीलामी में प्राप्त दो दरहम उसे देते हुए कहा ---- " एक दरहम का आटा और एक दरहम की कुल्हाड़ी खरीद लो l आटे से पेट भरो और कुल्हाड़ी से लकड़ी काटकर बाजार में बेचो l " गरीब आदमी ने यही किया , पंद्रह दिन बाद लौटकर फिर आया तो उसके पास बचत के दस दरहम थे l हजरत ने कहा ---- " समझदारी का मार्ग यही है कि मनुष्य यदि समर्थ हो तो आवश्यक सहायता अपनी ही बाजुओं से मांगे l "
26 May 2022
WISDOM -------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' जिनका मन मनोग्रंथियों से घिरा होता है , वे बेचैन , अशांत और परेशान रहते हैं l ऐसे व्यक्ति चाहे पूरा विश्व भ्रमण कर लें, ढेर सारी सम्पदा एकत्र कर लें , लेकिन फिर भी वे अपने मन के अँधेरे को दूर नहीं कर पाते , जीवन में मनोग्रंथियों के कारण पनपी खाई को पाट नहीं पाते l लेकिन जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है , वे कहीं भागते नहीं , किसी को जीतते नहीं l वे स्थिर होते हैं , स्वयं को जीतते हैं और धीरे - धीरे उनका मन शांति और आनंद से भर जाता है l ---------- महान ज्ञानी अष्टावक्र जी का शरीर आठ जगह से टेढ़ा था , लोग इन्हें चिढ़ाते , इनका मजाक बनाते , लेकिन उस पर वे कभी ध्यान नहीं देते l एक बार वे राजा जनक के दरबार में विद्वानों की सभा में आमंत्रित किए गए l उस सभा में एक -से -बढ़कर -एक ज्ञानी महात्मा बैठे थे और किसी हम्भिर विषय पर चर्चा की जानी थी l जैसे ही अष्टावक्र जी ने उस राजसभा में प्रवेश किया , उनके टेढ़े -मेढ़े शरीर और अजब सी चाल को देखकर सभी उपस्थित ज्ञानी जन ठहाके लगाकर हंस पढ़े l इस पर भी अष्टावक्र जी न तो क्रोधित हुए और न ही स्वयं को अपमानित महसूस किया l बस , इतना ही बोले --- " राजन ! मैंने तो सोचा था कि मैं विद्वानों की सभा में आया हूँ , लेकिन यहाँ तो सब चर्मकार बैठे हैं l " मनोग्रंथियों से रहित व्यक्तित्व व्यक्तित्व चाहे कैसी भी परिस्थिति हो , वे अपने मन में किसी भी तरह की हीनता को प्रवेश नहीं करने देते और स्वयं से प्रेम करते हैं l जो स्वयं से प्यार करते हैं वे दूसरों पर किसी भी चीज के लिए आश्रित नहीं होते l
25 May 2022
WISDOM ---------
लघु -कथा ------ बूढ़े और अशक्त सियार का पेट भरना मुश्किल हो गया l उसे एक तरकीब सूझी l वो चूहों के बिल के समीप जाकर एक पैर के बल तपस्वी की मुद्रा बनाकर खड़ा हो गया l कंठी माला पहने आसमान की ओर मुंह फाड़े एक पैर पर बिल के द्वार पर सियार को खड़ा देखकर चूहों का मुखिया ठिठका l घबराया कि ये क्या नई मुसीबत आ गई l सोचने लगा कि अब परिवार को बचाने हेतु यहाँ से भागना पड़ेगा l फिर साहस बटोर कर चूहों का सरदार सियार के पास जाकर बोला --- " आप कौन हैं ? हवा में मुंह फैलाये एक टांग पर क्यों खड़े हैं ? " कपटी सियार मीठे स्वर में बोला ----- " शांत रहो बच्चा , तप में विध्न नहीं डालो l हम दंडक वन से आये हैं , क्षुद्र जीवों के कल्याण हेतु तप में रत हैं l देखते नहीं हमारी क्रष काया तप करते -करते सूख गई है l " चूहे ने पूछा ---- ' आसमान की ओर मुंह फाड़ने से आपका क्या प्रयोजन ? ' सियार ने उत्तर दिया --- " हम तपस्वी हैं , पौहारी हैं , भोजन नहीं करते , मात्र वायु के सहारे जीते हैं l " चूहा सरदार ने साथियों को महात्मा का मंतव्य सुनाया , सब चूहे निश्चिन्त हो गए l कुछ समय बाद चूहों की संख्या घटती देख मूषक सरदार ने पूछा क्या हमारे कुछ सदस्य बाहर चले गए हैं , पहले तो बिल में खड़े होने की जगह भी मुश्किल थी l बूढ़े का माथा ठनका , कहीं ये छद्दम वेशी महात्मा बन्ने वाला सियार ही तो हमारे सदस्यों को नहीं खा जाता ? छिपकर देखा तो ज्ञात हुआ कि प्रतिदिन लौटते झुण्ड में से अंतिम सदस्य को अँधेरे में कपटी सियार चटकर जाता है l चूहों के सरदार ने सिर पीट लिया और पछताया गलती मैंने की है l छद्दम वेश और उसकी मीठी बातों से प्रभावित होकर मैंने ही अपने परिवार का नाश कराया है l इस कथा की यही शिक्षा है कि हम जागरूक हों , कहीं ऐसे छद्दम वेशधारी लोगों की बातों में आकर हम अपना , अपने परिवार और समाज का अहित तो नहीं कर रहे ?
24 May 2022
WISDOM--------
लघु -कथा ----- एक राजा को किसी मूर्तिकार ने तीन सुंदर -सी मूर्तियाँ भेंट कीं l राजा को उन मूर्तियों से बड़ा लगाव था l एक दिन एक राजसेवक से सफाई करते -करते उनमे से एक मूर्ति अचानक टूट गई l राजा को इसकी सूचना दी गई तो राजा ने क्रोध में आकर सेवक को मृत्यु दंड की सजा सुना दी l सजा सुनते ही सेवक ने बाकी दो मूर्तियाँ भी तोड़ डालीं l जब यह बात राजा को बताई गई तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ l उसने सेवक को बुलाकर उससे ऐसा करने का कारण पूछा , तो सेवक ने कहा ----- " महाराज ! मूर्तियाँ तो मिटटी की बनी थीं , उन्हें किसी न किसी दिन टूटना ही था l जिससे भी ये मूर्तियाँ टूटतीं , वो मृत्यु दंड पाता l मुझे मृत्यु दंड मिल ही चुका था तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं दूसरों का जीवन बचा लूँ , ऐसे में कम -से -कम एक ही व्यक्ति सजा पायेगा , पर दो का जीवन तो सुरक्षित रह पायेगा l यही सोचकर मैंने अन्य दोनों मूर्तियाँ भी तोड़ डालीं l " सेवक की बात सुनकर राजा की आँखें खुल गईं , उसके ह्रदय में संवेदना जाग गई l राजा ने तुरंत सेवक की सजा माफ कर उसे उच्च पद प्रदान किया l वर्तमान समय में जब चारों ओर संवेदनहीनता ही दिखाई देती है , यदि किसी भी एक वजह से लोगों के शुष्क ह्रदय में संवेदना जाग जाए तो संसार में होने वाले युद्ध , रक्तपात , दंगे -फसाद सब समाप्त हो जाएँ l
22 May 2022
WISDOM ------
लघु -कथा ----- एक जमींदार का घोड़ा बूढ़ा हो गया l एक दिन वह घास चरता हुआ दूर निकल गया और एक कुएं में जा गिरा l कुआं सूखा था , घोड़ा उसमे से बाहर निकलने का प्रयत्न करने लगा , लेकिन बाहर न निकल सका l जमींदार को पता चला तो वह उसे देखने कुएं पर गया l वहां उसने सोचा कि उस बूढ़े घोड़े को निकालने से क्या फायदा ? उसने उसे कुएं में ही दफ़नाने के लिए मजदूरों को बुलाया और उन्हें कहा कि वे घोड़े के ऊपर मिटटी डालकर उसे वहीँ मरने के लिए छोड़ दें l घोड़ा बहुत चतुर था , वह मालिक की मंशा समझ गया और उसने बचने की तरकीब ढूंढ ली l जब भी उस पर मिटटी पड़ती , वह उछल पड़ता l मिटटी उसके नीचे पहुँच जाती और वह मिटटी के ऊपर l उस पर मिटटी पड़ती रही और वह उछलकर ऊपर आता रहा l अंतत: कुआं मिटटी से भर गया और घोड़ा कुएं से बाहर निकल गया l इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों , हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए , अपना कर्तव्य करते हुए निरंतर उस प्रतिकूलता से बाहर निकलने का सही दिशा में प्रयास करते रहना चाहिए l सफलता अवश्य मिलेगी , हर समस्या का समाधान होता है l
WISDOM-------
लघु -कथा -----सज्जन होना ठीक है पर ऐसे लोगों की पहचान रखना भी उतनी ही बड़ी आवश्यकता है जो बेवजह दूसरों को कष्ट देते हैं l उनसे सतर्कता जरुरी है ------- एक हंस उड़ता हुआ अपने निवास स्थान की ओर जा रहा था l संध्या का समय था l उसने देखा एक चूहा ठंड से ठिठुरकर अर्द्धचेतन हो गया है l उसे देखकर हंस को दया आ गई l वह नीचे उतरा और अपने पंख फैलाकर चूहे को ढक लिया इससे उसकी सर्दी रुक गई और धीरे -धीरे चूहे के बदन में गर्मी आ गई l वह अपने आप को ठीक महसूस करने लगा l अब क्या था , वह अपने काम में लग गया और हंस के मुलायम परों को कुतर दिया l सबेरा हुआ , , हंस ने उड़ने की तैयारी की , किन्तु वह उड़ न सका , उसे बहुत दुःख हुआ लेकिन उसे यह समझ भी आया कि हमें हमेशा सतर्क और जागरूक रहना चाहिए l जब तक दूसरे पंख न उगे , उसे वहीँ घूम -फिर कर अपने दिन काटने पड़े l
दिशाओं में फैलने लगीं
19 May 2022
WISDOM ------
धनहीन व्यक्ति दरिद्र नहीं होता , जो ह्रदयहीन है , प्रेमविहीन है उससे बड़ा दरिद्र और कोई हो नहीं सकता l --------- कथा ---- एक महारानी ने अपनी मौत के बाद अपनी कब्र पर निम्न पंक्तियाँ लिखाने का हुक्म दिया ------ ' इस कब्र में अपार धनराशि गड़ी हुई है l जो व्यक्ति निहायत गरीब एवं एकदम असहाय हो , वह इसे खोदकर ले सकता है l ' उस कब्र के पास से हजारों दरिद्र एवं भिखमंगे निकले , लेकिन उनमे से कोई भी इतना दरिद्र एवं असहाय नहीं था , जो धन के लिए मरे हुए व्यक्ति की कब्र खोदे l एक अत्यंत बूढ़ा भिखमंगा वहां वर्षों से रह रहा था , वह हमेशा उधर से गुजरने वाले प्रत्येक दरिद्र व्यक्ति को कब्र की ओर इशारा कर देता था l आखिर वह व्यक्ति आ ही गया जिसने उस कब्र को खोद डाला l वह व्यक्ति एक सम्राट था उसने उस देश को जीता था जिसमे वह कब्र थी l उसने अपनी विजय के साथ ही उस कब्र की खुदाई शुरू करवा दी थी , पर उसे उस कब्र में एक पत्थर के सिवाय और कुछ नहीं निकला l उस पत्थर पर लिखा था ---- " मित्र , तू स्वयं से पूछ कि धन के लिए कब्र में सोये हुए मुर्दों को परेशान करने वाले क्या तुम मनुष्य हो ? " वह सम्राट जब निराश होकर कब्र के पास से वापस लौट रहा था तब लोगों ने उस बूढ़े भिखारी को जोर से हँसते हुए देखा , वह कह रहा था -- ' मेरा इंतजार पूरा हुआ , आखिर धरती का दरिद्रतम व्यक्ति आ ही गया l '
18 May 2022
WISDOM------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने लेखन से हमें जीवन जीने की कला सिखाई है l जब संसार में चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है , छल -कपट , षड्यंत्र , धोखे का बोलबाला है , संवेदनहीनता है l ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हम अपने मन को कैसे शांत रख सकते है ? इसका ज्ञान ही जीवन जीने की कला है l ------- आचार्य श्री लिखते हैं दूसरों द्वारा किए जाने वाले व्यवहार पर हमारा नियंत्रण नहीं हो सकता और न ही दूसरों के विचारों और कार्यों पर हमारा नियंत्रण हो सकता है लेकिन हम स्वयं के व्यवहार , विचार और कार्यों पर नियंत्रण जरुर ही कर सकते हैं l यदि हमारे जीवन में ऐसे लोग हैं जो हमें अच्छे नहीं लगते , उनका व्यवहार हमारे प्रति अच्छा नहीं है तो हमें इन व्यक्तियों से लड़ने के बजाय उनसे निश्चित दूरी बना बना लेनी चाहिए l l यहाँ दूरी से तात्पर्य है --हमें मन से उन सीमाओं को निश्चित करना है , जिससे हमें व्यक्ति विशेष के साथ कटु व्यवहार के लिए विवश न होना पड़े l यदि हम किसी को अपना मित्र नहीं बना सकते तो उसे अपना शत्रु भी नहीं बनाना चाहिए l किसी को भी अपना नजदीकी मित्र बनाने से पहले उसे कई बार परख कर निर्णय लेना चाहिए l
17 May 2022
WISDOM ----
श्रीमद भगवद्गीता में कहा गया है --- ज्ञान , कर्म और भक्ति का समुच्चय जीवन के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है l लेकिन वर्तमान समय में लोग स्वयं को धार्मिक और ईश्वर का भक्त कहलाने का केवल दिखावा करते हैं l यही कारण है कि संसार में इतनी अशांति और तनाव है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- व्यक्तित्व का और विचारों का परिष्कार अनिवार्य है l अपने अवगुणों को दूर करो और सद्गुणों को अपनाओ l बाहरी जगत में जितनी भी समस्याएं हैं उनका कारण मनुष्य के भीतर छिपे दुर्गुण ही है l
16 May 2022
WISDOM-----
जन्म और मृत्यु प्रकृति का अनिवार्य नियम है l मृत्यु कोई नहीं चाहता , सब अमर होना चाहते हैं और असुर तो अमर होने के लिए कठिन साधना और तपस्या कर लेते हैं l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' असुर ईश्वर से अमरता की याचना करते हैं और इसके न मिलने पर मृत्यु को असंभव बना देने वाले वरदान मांगते हैं l ये वरदान उन्हें मिल भी जाते हैं l फिर सही समय पर , सही स्थान में उनकी मृत्यु --उन्ही के बताये रास्ते के अनुसार उन्हें खोज लेती है l उनके वरदान के अनुसार ही प्रकृति उनकी मृत्यु का स्वरुप व स्थान तय करती है l मृत्यु से बचने का कोई प्रयास उनके काम नहीं आता l उनके द्वारा मृत्यु को असंभव बनाने के लिए किए गए सभी प्रयास ही उनकी मृत्यु को संभव बना देते हैं l ' वर्तमान युग में भी देखें तो मनुष्य की बुद्धि ने अमर होने के लिए कोई कोर - कसर नहीं छोड़ी l प्रकृति के नियम में दखल देने का परिणाम, अपने जीवन के लिए प्रकृति को नष्ट भ्रष्ट करने का प्रयास , प्रकृति को अपना रौद्र रूप दिखाने को विवश कर देता है l मृत्यु से बचने के बजाय जीवन को सार्थक करने का प्रयास करना चाहिए लेकिन यह मनुष्य की दुर्बुद्धि है कि वह स्वयं प्रकृति के हर कण को प्रदूषित करता है , अमर होना तो संभव ही नहीं है , वह तरह - तरह की बीमारियों से ग्रस्त होकर अपने जीवन को भार समझ कर ढोता है l ऐसा विकास जो विनाश कर दे -- उसे स्वीकार नहीं करने के लिए सम्पूर्ण मानव जाति को जागरूक होना पड़ेगा l
15 May 2022
WISDOM -------
लघु -कथा ------ कुशल मूर्तिकार चित्रसेन को बंदी बनाने राज्य के सैनिक जब पहुंचे , तब तक उसने अपनी ही अनेक मूर्तियाँ बना डालीं और उनके बीच स्वयं मूर्तिवत बैठ गया l पहचानना कठिन था कि असली चित्रसेन कौन है l सैनिक असमंजस में पड़ गए l कुछ विचार कर एक चतुर सैनिक ने कहा ---- " यह कितनी सुन्दर मूर्तियाँ हैं l इन्हें बनाने वाला निश्चय ही उच्च कोटि का कलाकार है l " प्रशंसा सुनकर मूर्तिवत बैठे चित्रसेन के चेहरे पर चमक आ गई l सैनिक ने मुस्करा कर कहा ---- " लेकिन अभी कुछ कमी कमी है l " यह सुनकर आवेश में आकर चित्रसेन खड़ा हो गया l सैनिक ने तुरंत उसे बंदी बना लिया और बोला -- यही एक कमी रह गई थी कि अहंकार अभी विगलित नहीं हुआ l चित्रकार अपनी नासमझी पर पछताने लगा l
न
14 May 2022
WISDOM -----
' नशा नाश की जड़ है ' यह कथन केवल इस युग में ही सत्य नहीं है , यह उस युग में भी सत्य था जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण इस धरती पर थे l महाभारत के महायुद्ध में जब कौरव वंश का अंत हो गया तब क्रोध में आकर गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को शाप दिया था कि जैसे उसके कौरव वंश का अंत हुआ वैसे ही इस महायुद्ध के छत्तीस वर्ष बाद कृष्ण के वंश का सर्वनाश हो जायेगा l माता गांधारी के शाप की अवधि निकट आ रही थी l उन दिनों द्वारका में मद्य निषेध था l नशे के विरोध में चाहे कितने ही कानून बना दो , जब इसकी लत लगती है तो लोग छिपकर पीते है l उसके दुष्परिणाम भी जानते हैं लेकिन फिर भी पीते हैं l चाहे हमारे सामने भगवान भी हों लेकिन मन पर वश नहीं , तो भगवान भी क्या करें ? भगवान श्रीकृष्ण अपने परम मित्र उद्धव जी से चर्चा करते हुए कहते हैं --- " उद्धव ! यादव सुराप्रिय हैं , स्वयं बलराम को भी यहाँ द्वारका में मद्यपान का निषेध अप्रिय है l सब चोरों की तरह छिपकर चुपचाप सुरापान करते हैं l जिस क्षण यादवों को इस बात का ज्ञान हो जायेगा कि मैं कृष्ण उनके मद्यपान के कर्म को जानता हूँ फिर भी कुछ नहीं करता , उसी क्षण मर्यादा लुप्त हो जाएगी , उसके बाद ये यादव कृष्ण के सम्मुख सुरापान करेंगे , मैं उसे अनदेखा नहीं कर सकूँगा l वह मेरे लिए बहुत भारी पड़ेगा l " उद्धव जी ने कहा --- " फिर आप उन्हें रोकते क्यों नहीं ? " कृष्ण जी ने कहा --- " अब उन्हें रोकने का प्रयत्न करना व्यर्थ है l अब इन सब यादवों को लेकर मैं तथा बड़े भैया बलराम प्रभासक्षेत्र को जायेंगे l मद्यनिषेध तो द्वारका में है , प्रभासक्षेत्र में नहीं l यहाँ की नियंत्रित वृत्तियाँ वहां अनियंत्रित हो जाएँगी l वहां उसका अमर्यादित रूप प्रकट होगा l विवेक बुद्धि खो जाएगी और बुद्धिनाश से ही माता गांधारी के वचन यथार्थ होंगे , उनका शाप फलित होगा l इस सर्वनाश को हम जानकर भी रोक नहीं पाएंगे l कृष्ण , बलराम और सब यादवों के कर्म अब समाप्त हो गए हैं l जिनके कर्म समाप्त हो गए हों उन्हें ही महाकाल छूता है l " महाभारत में वर्णन है कि किस तरह यादव नशे में आपस में लड़ पड़े , यह लड़ाई इतनी बढ़ गई कि भगवान कृष्ण के पुरे वंश का अंत हो गया l भगवान कृष्ण का राधा के नाम आखिरी संदेश कि ' अब इस धरती पर उन दोनों का मिलन संभव नहीं है ' उद्धव जी को ही गोकुल जाकर राधा को देना था l
13 May 2022
WISDOM-----
एक संत पानी के जहाज से यात्रा कर रहे थे l यात्रा लम्बी थी , यात्री उनके सत्संग का लाभ उठाते l वे सत्संग में एक बात अवश्य याद दिलाते कि --- याद रखो , संसार नश्वर है l सदैव मृत्यु को याद रखो l गलत काम नहीं बन पड़ेगा l संत का सूत्र था ---- मृत्यु का सदैव ध्यान , किन्तु मुसाफिरों को संत की बात जमी नहीं और वे अपने ढर्रे की बातों में , आदत के अनुसार निमग्न रहते l एक दिन समुद्र में भयंकर तूफान उठा l समूचे जहाज में कोहराम मच गया , सब प्राणों को बचाने की चिंता में थे l असहाय थे , सभी प्रार्थना करने लग गए l सभी ने देखा कि संत बड़े सहज भाव से शांत बैठे हैं l धीरे - धीरे समुद्र का तूफान शांत हुआ l एक यात्री ने संत से पूछा ---- " आपको मृत्यु का डर नहीं लगा ? आप बड़े शांत बैठे रहे l ' संत ने कहा ---- " मृत्यु का फंदा समुद्र में ही नहीं नहीं , पृथ्वी पर भी सदैव झूलता रहता है l फिर डरना किस बात का l अज्ञानी - अविवेकी ही मृत्यु से डरते हैं , फिर भी डरकर वे बचते नहीं l
12 May 2022
WISDOM-------
कट्टरपंथी हिन्दू और मुसलमान दोनों कबीरदास जी के विरोधी थे l एक बार दोनों मिलकर बादशाह सिकंदर लोदी के पास गए l दोनों की शिकायत यह थी कि वह हमारे धर्म में हस्तक्षेप कर रहा है l मुसलमान होकर राम -राम जपकर हमारे धर्म का अपमान कर रहा है l कट्टरपंथी हिन्दुओं ने कहा --- मुसलमानों को राम -राम नहीं कहना चाहिए l कबीरदास जी को दरबार में हाजिर किया गया l दरबार में आकर उन्होंने एक बार चारों और देखा और जोर से अट्टहास कर उठे l सभी दरबारी चौंक गए l बादशाह की आँखें क्रोध से लाल हो गईं l उन्होंने पूछा ---- ' तुम्हारे हँसने का मतलब क्या है ? ' कबीरदास जी ने कहा --- " जहाँपनाह ! मैं यही चाहता था कि हिन्दू और मुसलमानों में मेल हो l मेरे इस प्रयत्न की लोग हँसी उड़ाते उड़ाते आए हैं l आज यह संभव हो गया , लेकिन मैं इन्हें ईश्वर के दरबार में मिलाना चाहता था , मगर ये लोग जहाँपनाह के दरबार में मिल रहे हैं l बस , ठिकाना जरा गलत हो गया l इसलिए मैं हँसा था l यह सिंहासन छोटा है l मैं तो उस परमेश्वर के सिंहासन के पास इन्हें ले जाना चाहता था, जो सारी दुनिया का मालिक है l ' धर्म के नाम पर लोग युगों से लड़ते चले आ रहे हैं l पीढ़ी - दर -पीढ़ी l मामला सुलझता ही नहीं l यह भी एक प्रकार का नशा है , जो ये सब कराते हैं उन्हें इसी में आनंद आता है l यह मानव जाति का दुर्भाग्य है कि अपनी ऊर्जा को लोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में लड़ -झगड़ कर , छल -कपट , ईर्ष्या -द्वेष , लोभ -लालच में गँवा देते हैं , इसलिए चेतना के स्तर पर मनुष्य अभी भी किस स्तर पर है ? इसका चिंतन -मनन स्वयं करे l
11 May 2022
WISDOM------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचार उनका साहित्य हमें जीवन जीने की कला सिखाता है l लघु कथाओं के माध्यम से बहुत गहरी बात सिखा देते हैं l उनके विचारों को अपने आचरण में लाकर हम जीवन में सफल हो सकते हैं l एक कथा है ------ एक अत्यंत विद्वान् और सदाचारी व्यक्ति था , परन्तु उसका पुत्र विपरीत स्वभाव का था l गलत मित्रों की सांगत होने से वह बिगड़ गया था l पिता ने पुत्र को कुसंग से दूर होने के लिए कहा , पर अनेक बार समझाने का कोई लाभ नहीं हुआ l पिता ने एक युक्ति सोची, उन्होंने पुत्र को बुलाया और उसे एक हाथ में कोयला और दूसरे हाथ में चंदन लाने के लिए कहा l वह लेकर आया तो पिता ने दोनों वस्तुओं को यथा स्थान रख आने को कहा l जब पुत्र उन दोनों को रख आया तब पिता ने पुत्र से उसके दोनों हाथों को देखने के लिए कहा l उसने देखा कि उसके एक हाथ में कालिख लगी है और दूसरे हाथ से सुगंध सुगंध आ रही है l पिता ने पुत्र को समझाते समझाते हुए कहा ---- " बेटा ! सज्ज्नों का संग चंदन के जैसा होता है l उनका साथ छूट जाने पर भी उनके अच्छे विचारों की सुगंध बनी रहती है l लेकिन दुर्जनों का संग कोयले जैसा होता है , उनका साथ छूटने पर भी उनके आचरण की कालिमा हमारे जीवन को दुष्प्रभावित किए बगैर नहीं रहती l इसलिए हमें जीवन में सदैव चन्दन जैसे संस्कारी व्यक्तियों का साथ स्वीकारना चाहिए चाहिए और दुर्जनों दुर्जनों से दूर रहना चाहिए l पुत्र को पिता की बात बात समझ में आ गई l
10 May 2022
WISDOM -----
लघु -कथा ------ एक राजा को असाध्य रोग हो गया l वैद्यों ने बताया कि राजहंसों का मांस खाना चाहिए l हंस मानसरोवर पर रहते थे और साधु - संतों के ही निकट आते थे l कोई भी संत इस पापकर्म के लिए तैयार नहीं हुआ l एक बहेलिया पैसे के लालच में संत का बाना पहनकर वहां जाकर हंसों को पकड़कर लाने के लिए तैयार हो गया l मानसरोवर के हंस साधू -संतों को देखकर उड़ते नहीं थे इसलिए बहेलिये ने संत का वेश रखकर छल से उन्हें पकड़ लिया और राजा के सामने प्रस्तुत किया l राजा ह्रदय से उदार था , छल से पकड़े हुए उन हंसों को देखकर राजा को बहुत ग्लानि हुई कि वो ये कैसा भयंकर पाप करने जा रहा है l उसने तुरंत सब हंसों को मुक्त कर दिया और सोचा कि भगवान को ठीक करना होगा तो करेंगे l बहेलिये पर इस घटना का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा l उसने सोचा जिस संत वेश के लिए हंसों तक में श्रद्धा है , उसे कलंकित नहीं करना चाहिए l उसने संन्यास ले लिया और संत बन गया l उधर राजा भी चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया l आचार्य श्री लिखते हैं ---- 'वेश की जब इतनी महत्ता है , तो उस चोले को धारण करने वाले लोग भी कर्म वैसे ही करें , तो ही सार्थकता है l आज तो ऐसे वेशधारी बहेलिया बने बैठे हैं l '
9 May 2022
WISDOM-----
लघु कथा ----- रोगी ने डॉक्टर को अपनी परेशानी बताई कि जब वह रात को पलंग पर सोता है तब ऐसा लगता है जैसे उसके नीचे कोई छिपकर बैठा है l नीचे झांककर देखता हूँ तो वह गायब हो जाता है और जब पलंग के नीचे सोता हूँ तो लगता है कि ऊपर बिस्तर पर आकार बैठ गया है l कृपया मेरी हैरानी मिटाइए अन्यथा मैं पागल हो जाऊँगा l रात भर सो नहीं पाता l डॉक्टर ने कहा मामला बहुत गंभीर है , रोग पुराना है l समय और पैसा बहुत लगेगा l रोगी के पूछने पर डॉक्टर ने कहा --- दो हजार रूपये प्रति सप्ताह और इलाज लम्बा चलेगा , दो वर्ष भी लग सकते हैं l रोगी पत्नी के पास दौड़कर आया , डॉक्टर की पूरी बात बताई l पत्नी ने मन ही मन सोचा कि वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी l जरुर इन्हें किसी ठग से पाला पड़ गया l पत्नी बोली यह इलाज तो बहुत महंगा पड़ेगा , अपनी इतनी हैसियत भी नहीं है किन्तु आप निश्चिन्त रहें अब आपके पलंग के ऊपर -नीचे कोई नहीं आएगा l वह गई और पलंग के चारों पाए कटवा दिए l अब न कोई नीचे बैठा दिखाई देता न ऊपर l रोगी को वापस न आता देख डॉक्टर का फोन आया कि आप आये नहीं l रोगी ने कहा --- डॉक्टर ! घर में ही इलाज हो गया l कम समय में और बिना किसी खरच के l डॉक्टर बोला --- वह कैसे ? उसने कहा --- वहम के भूत की बैठक का स्थान ही नहीं छोड़ा पत्नी ने l पलंग के चारों पाए काट दिए पत्नी ने l अब मुझे अच्छी नींद आती है , चैन से हूँ l हम में से कितने ही लोग वहम के कारण ऐसे किसी चक्कर में फंस जाते हैं और जान - माल से हाथ धो बैठते हैं l
WISDOM -----
एक बार पत्रकारों की गोष्ठी में बापू राजनीतिक प्रसंगों पर उत्तर दे रहे थे l उसी समय हास्य - विनोद की मुद्रा में एक पत्रकार ने पूछा कि यदि आपको एक दिन के लिए भारत का डिक्टेटर बना दिया जाये तो आप क्या करेंगे ? बापू ने कहा ----- " मैं सभी विचारशील व्यक्तियों और सरकारी कर्मचारियों को सफाई में जुटा दूंगा l सफाई ही सुव्यवस्था है l इसका जब तक महत्त्व न समझा जायेगा , तब तक किसी व्यक्ति या देश की वास्तविक उन्नति होना असंभव है l "
8 May 2022
WISDOM ----
स्वामी रामकृष्ण परमहंस की माता वृद्धावस्था में कालीघाट पर रहने लगीं l रानी रासमणि के दामाद ने उनके लिए गुजारे का प्रबंध करना चाहा , तो माता ने कहा रोज सबेरे गंगा स्नान कर के काली माँ का प्रसाद लेती हूँ l मेरे लिए यही सब कुछ है l बहुत आग्रह पर उन्होंने कुल दो पैसे का एक पान मंगाकर उनका आग्रह पूरा कर दिया l यह सुन वे बोल पड़े , हाँ माँ , यदि ये त्याग न होता तो परमहंस देव कैसे जन्मते !
WISDOM -----
आनंदमयी माँ न तो पढ़ी -लिखी थी और न ही उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था , पर वे उच्च स्तर के संतों और विद्वानों के प्रश्नों का बराबर उत्तर देती थीं l एक बार ढाका में दार्शनिकों का सम्मेलन हो रहा था l प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री महेंद्र सरकार ने प्रश्न किया --- ' माँ , आपने दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया है ? ' ' क्यों ? उन्होंने पूछा l महेंद्र सरकार बोले --- " आपसे जितने सवाल किए गए और आपने जो उत्तर दिए , वे सभी दर्शनशास्त्र के अनुरूप थे l यह कैसे संभव हुआ , यह जानने की इच्छा है ? ' इस सवाल के जवाब में माँ बोलीं --- " यह समस्त अस्तित्व एक विराट ग्रन्थ है l इसकी रचना स्वयं आदिशक्ति ने की है l उनकी कृपा से जिसे इस ग्रन्थ का बोध हो जाता है , उसे फिर कुछ भी जानना शेष शेष नहीं रहता l
7 May 2022
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गुरूदेव श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर मृत्यु शैया पर अंतिम साँसे ले रहे थे l तभी एक व्यक्ति आकर बोला --धन्य हैं आप ! आपने अपना जीवन सार्थक कर लिया l छह हजार गीत रचे , आप तो तृप्त हो गए होंगे l दुनिया के लिए एक अनूठी धरोहर छोड़ी आपने l गुरुदेव श्री रवीन्द्रनाथ ने आँखें खोलीं और बड़ी नम्रता से बोले ---- " तृप्त कहाँ हुआ ? मेरा प्रत्येक गीत अधूरा ही रहा ! जो मेरे उदगार थे वो तो अभी भी अटके हुए हैं l ये तो छह हजार उस दिशा में की गईं असफल चेष्टाएँ हैं , उन उदगारों को बाहर लाने के प्रयास हैं l मैंने छह हजार बार कोशिश की किन्तु वह गीत अधूरा ही रहा जिसे गाना चाहता था l उस गीत को , उस उदगार को गाने का प्रयास करने में ही लगा था कि जब तक बुलावा आ गया l
6 May 2022
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लघु -कथा ----- एक छोटी नदी थी l पार जाने के लिए एक लम्बा लट्ठा उसके आरपार रखा था l उस पर एक के निकलने जितनी जगह थी l एक दिन दो बकरे दोनों ओर से एक ही समय चल पड़े और बीच में आकर अड़ गए l न किसी ने सोचा और न परिस्थिति की विषमता देखकर पीछे हटने का विवेक अपनाया l अड़े - सो -अड़े ! हेठी कौन कराये ? घमंड कौन छोड़े ? पीछे हटने और जान बचाने की बात कौन सोचे ? लड़ने -मरने और एक दूसरे को नीचा दिखाने के उन्माद में परस्पर टकराने लगे l आपस में टकराने से पहले छोटा बकरा गिरा उसके बाद बड़ा गिरा और उसके बाद दोनों ही नदी के प्रवाह में पड़कर मौत के मुंह में चले गए l अहंकार का उन्माद जो न कर गुजरे , सो कम ही है ल
5 May 2022
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पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- अहंकारी के लिए दूसरे क्या कहते हैं यह मूल्यवान है l प्रशंसा झूठी भी हो तो अच्छी लगती है l जो आदमी अहंकार के साथ जीता है , वह हमेशा चिंतित रहता है , उसे हमेशा परेशानी बनी रहती है कि कौन निंदा कर रहा है , कौन प्रशंसा कर रहा है l उसका व्यक्तित्व दूसरों पर निर्भर है l लेकिन जो अहंकार शून्य हैं , वे व्यक्ति हर स्थिति में शिकायत के स्थान पर समाधान निकाल लेता है l कवि पाब्लो नरूदा अपनी जीवनी जीवनी में लिखते हैं---- 'आलोचना का सामना सामना मुझे अपनी पहली ही कविता के लिए करना पड़ा , वह भी अपने माता -पिता पिता के द्वारा l पाब्लो कहते हैं कि यह कविता उन्होंने अपनी सौतेली माँ के लिए लिखी l कविता उन्होंने जब अपने माता -पिता को दिखाई तो उन्होंने छूटते ही कहा कहा --- " कहाँ से नक़ल मारी ? " पाब्लो ने अपनी इस आलोचना को सीख की तरह लिया l उनके दिमाग में यह बात बैठ गई कि ' बस काम करते जाओ , आलोचनाएँ तो होती रहेंगी l इनमें से ज्यादातर कूड़ेदान में फेंकने वाली होंगी l इनसे क्या घबराना ? '
4 May 2022
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हमारे महाकाव्य संसार को जीवन जीने की कला सिखाते हैं l उनके विभिन्न प्रसंग वर्तमान की विभिन्न समस्याओं और उनके समाधान को बताते हैं l रामायण में यदि हम सुग्रीव का प्रसंग देखें तो उस पर सबसे ज्यादा अत्याचार उसके भाई बाली ने ही किया , किसी अन्य जाति या धर्म के व्यक्ति ने नहीं किया l यही इस युग का सच है l धर्म , जाति के नाम पर दंगे , हत्या , उत्पीड़न की घटनाएँ तो बहुत हैं लेकिन इसमें सहभागिता करने वाले और इन्हें देखने - सुनने वाले यदि ईमानदारी से अपने - अपने परिवार की ओर देखें तो एक कटु सत्य समझ में आएगा कि धन -सम्पति के नाम पर भाई - भाई में झगड़े -विवाद , घरेलु हिंसा , पुत्र - पुत्री में भेद , बच्चों का शोषण , नारी उत्पीड़न ये सब परिवार के ही लोग करते हैं और बुद्धि भ्रष्ट हो जाने पर अपनों को सताने के लिए गैरों की मदद लेते हैं l दंगे - फसाद की आड़ में अपनों से ही बदला लेते हैं l धर्म के नाम पर झगड़ने से पहले इस सत्य को समझना चाहिए कि ' हम अपनों के सताए हुए हैं l ' अनीति और अत्याचार कुछ समय तक फलते - फूलते देखे जा सकते हैं लेकिन जीत अंत में सत्य की होती है l बाली ने अपने भाई सुग्रीव पर अत्याचार किया , अनीति की l सुग्रीव को पर्वत पर जाकर रहना पड़ा , अंत में भगवान के हाथों बाली का वध हुआ और सुग्रीव का राज्याभिषेक l रावण ने विभीषण को लात मारी तो रावण का अंत हुआ और विभीषण का राज्याभिषेक l ये सब कथानक हमें शिक्षा देते हैं कि मानव जीवन अनमोल है , कर्मफल से कोई भी नहीं बचा है इसलिए अहंकार के वशीभूत होकर अपनी शक्ति और बुद्धि का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए
3 May 2022
WISDOM -----
कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर है l दुर्योधन का चरित्र इस सत्य को उजागर करता है कि जीवन भर धोखा , छल -कपट , और षड्यंत्र करने का दुष्परिणाम क्या होता है l दुर्योधन के हठ और अहंकार के कारण कितने ही राजा - महाराजा , सैनिक आदि मारे गए l इन सब की मृत्यु को देखना उसके लिए बहुत सरल था लेकिन जब उसके सामने मृत्यु आई तो वीर और शक्तिशाली होते हुए भी काँप गया , उसमे जीवन की चाह पैदा हो गई और अपनी मृत्यु से बचने के लिए हस्तिनापुर का युवराज वस्त्रहीन हो गया l अपना जीवन , जीवन है और दूसरे के जीवन की कोई कीमत नहीं ! यह सत्य आज भी देखा जा सकता है l यह कथानक इस सत्य को भी बताता है कि धोखा और षड्यंत्र रचने वाले अपनी योजना को कितना ही गुप्त रख लें , उन पर ईश्वर की कृपा नहीं होती है इसलिए कोई न कोई कमी रह जाती है ताकि सच दुनिया के सामने आ सके l दुर्योधन का भी पूरा शरीर वज्र का नहीं हो सका , उसमे कमी रह गई थी l इस कमी के कारण ही उसके साथ पूरे कौरव वंश का अंत हुआ और ' महाभारत ' महाकाव्य के माध्यम से यह सत्य दुनिया के सामने आया l
2 May 2022
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श्रीमद् भगवद्गीता में अर्जुन ने भगवान से पूछा ---- मैं किस -किस भाव में आपको खोजूं ? कैसे देखूं ? तो भगवान कहते हैं --- उनके लिए कोई निकृष्ट - श्रेष्ठ नहीं , कोई छोटा - बड़ा नहीं l वह तो सभी में हैं , हर स्थान पर हैं l ' लेकिन भगवान को पहचाने कैसे ? भगवान कहते हैं -- जहाँ कोई व्यक्तित्व पूरी खिलावट में है वही ईश्वर है l ' आचार्य श्री लिखते हैं -- मान लो कहीं पर एक बीज पड़ा है , और वहीँ पास में एक फूल पड़ा है तो बीज को देखना कठिन है लेकिन फूल को पहचानना आसान है क्योंकि वहां पर व्यक्तित्व खिला हुआ है , सम्पूर्ण विकसित है l महाभारत की कथा है --- जब युद्ध में सभी योद्धा मारे गए तब अंत में दुर्योधन और भीम में द्वंद युद्ध होना था l दुर्योधन अपनी माँ गांधारी के तपोबल को जानता था l पतिव्रत धर्म से उन्होंने जो बल अर्जित किया था , उसका एक अंश वह चाहता था l गांधारी ने अनीति का कभी साथ नहीं दिया , लेकिन पुत्र प्रेमवश उन्होंने कहा --- " तू निर्वस्त्र होकर आ , मैं आँख की पट्टी थोड़ी देर के लिए खोलूंगी l तू खड़े रहना l " श्रीकृष्ण से कुछ छुपा नहीं है , जब दुर्योधन जा रहा था तो राह में उन्होंने उसे रोक लिया और कहा ---- " दुर्योधन ! तुम इस तरह वस्त्रहीन होकर कहाँ जा रहे हो ? उसने कहा -- माँ के पास l भगवान ने कहा --- थोड़ी तो शर्म करो l माँ के सामने तुम इतने बड़े वस्त्रहीन खड़े होगे , अच्छा लगेगा क्या ? लंगोटी लगा लो , पत्ता लपेट लो l " उसे सलाह समझ में आ गई दुर्योधन लंगोटी पहनकर माँ के सामने खड़ा हुआ , गांधारी ने आँखें खोली , देखा पूरा शरीर वज्र का नहीं हो पाया l वे श्रीकृष्ण की लीला को समझ गईं कि पुत्र का वध होगा और कुल का सर्वनाश l अनीति का ऐसा ही अंत होता है l भीम और दुर्योधन के द्वंद युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने भीम को इशारा किया कि गदा वहीँ मारनी है जो हिस्सा कमजोर है , जहाँ परमात्मा का प्रकाश नहीं है l दुर्योधन अनीति , अधर्म पर था इसलिए गांधारी के तप का तेज उसे पूर्ण रूप से नहीं मिल पाया l यही सत्य है कि नीति और सत्य की राह पर चलने वाले को ही परमात्मा का प्रकाश , उनकी कृपा मिल पाती है l
1 May 2022
WISDOM -----
इस संसार में सब जगह असमानता है , भेद -भाव है l व्यक्ति कितना भी पढ़ -लिख जाये लेकिन धर्म , जाति के आधार पर भेदभाव करना नहीं छोड़ता l अमीर - गरीब , ऊँच -नीच , काले -गोरे , पुत्र - पुत्री हर बिंदु पर असमानता देखने को मिलेगी l शासन भी चाहे प्रजातंत्र हो , या राजतन्त्र , साम्यवाद हो या कोई भी वाद हो , मनुष्यों द्वारा ही संचालित होता है इसलिए इन सब असमानताओं को लेकर उनमे अशांति , तनाव बना ही रहता है l श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान यमराज के शासन को श्रेष्ठतम मानते है l यम मृत्यु के देवता हैं और यम के सामने सभी समान हैं l वहां कोई भेदभाव नहीं , कोई पक्षपात नहीं l बेवजह का छल -कपट , धोखा , अहंकार कुछ नहीं l जब जिसका समय आ गया , फिर चाहे वह राजा हो या रंक , किसी भी जाति या धर्म का हो उसे जाना ही पड़ता है l इसलिए यमदेवता को भगवान अपना स्वरुप कहते हैं l
WISDOM -------
लघु - कथा ------ एक व्यापारी रेगिस्तान के रास्ते से व्यापार कर के लौट रहा था l उसने अपनी झोली में कई कीमती हीरे - जवाहरात आदि भर रखे थे l कुछ शुभ चिंतकों ने उसे समझाया कि वो अपना कुछ भार हल्का कर दे और मोतियों के बदले पानी की चिश्तियां बाँध ले l उसने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपनी यात्रा जारी रखी l दुर्योग से वो रास्ता भटक गया l साथ में लाई गई रसद व भोजन सामग्री धीरे - धीरे चुक गई l वह भूखा - प्यासा निढाल पड़ा था तब रत्नों और माणिकों के वजन को देखकर उसे अनुभव हुआ कि जीवन में जीवन से ज्यादा बहुमूल्य और कुछ भी नहीं है l हीरे - मोतियों की चमक थोड़ी देर का आकर्षण जरुर प्रस्तुत करती है , पर कठिन समय में पानी की एक बूंद के सामने कोहिनूर की कीमत भी एक पत्थर है से ज्यादा नहीं है l