26 February 2019

WISDOM ----- यदि संगठित रूप से अत्याचार - अनाचार का प्रतिरोध किया जाये तो शक्तिशाली बर्बरता को भी परास्त किया जा सकता है

 गढ़ मंडला  की  रानी  दुर्गावती  ने   अकबर  जैसे  शक्तिशाली  सम्राट  को  भी  दो  बार  पराजित  कर  के  पीछे खदेड़  दिया    l  क्षत्रियों  ने  युद्धों  में  जैसी  वीरता  दिखाई , उसकी  प्रशंसा  इतिहास  के  पन्ने - पन्ने  में  लिखी  हुई  मिलती  है  ,  पर  साथ  ही  अवसर  के  अनुकूल  कार्यप्रणाली  न  अपनाकर  ,  और  केवल  परम्पराओं  के  पीछे  ही  लगे  रहकर   उन्होंने  जो  बहुत  बड़ी  भूल  की  उसकी  अबुद्धिमत्ता  की  आलोचना  भी  अनेक  विद्वानों  ने  की  है  ----- पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   वाड्मय ' मरकर  भी  जो  अमर  हो  गए '  में   पृष्ठ   1.7  पर  लिखा  है -----  दो  आक्रमणों  में  रानी  दुर्गावती  ने  शत्रु  को  अच्छी  तरह  हरा  दिया  ,  पर  न  मालूम  किस  कारण  उसकी  सेना  ने  शत्रु  की   भागती  हुई  सेना  का  पीछा  नहीं  किया    ?
   शत्रु    को   आधा  कुचल  कर  छोड़  देने  से   वह  प्राय:  प्रतिशोध  की  ताक  में  रहता  है   और  फिर  से  तैयार  होकर  आक्रमण  कर  सकता  है   l  गढ़ मंडला  के  सेनाध्यक्षों   से  यही  भूल  हुई    जिसके  फलस्वरूप   मुगल  सेना  एक  के  बाद  एक  तीन  आक्रमण  कर  सकी   और  अंत  में  सुयोग  मिल  जाने  से   उसने  सफलता  प्राप्त  कर  ली   l  "  
उन्होंने  आगे  लिखा  है  '  महाराज  पृथ्वीराज  ने  प्रथम  बार  के  आक्रमण  में    मुहम्मद  गौरी  को  हराकर  पकड़  लिया  था    लेकिन  बाद  में  कुछ  लोगों  की  चिकनी - चुपड़ी  बातों  में  आकर   मुहम्मद  गौरी  के  क्षमा  प्रार्थना  करने  पर  उसे  छोड़  दिया  l  परिणाम  यह  हुआ  कि   उसने  फिर  अधिक  तैयारी  के   साथ  आक्रमण  किया  और  विजय  मिलने  पर  पृथ्वीराज  को  मरवा   ही   डाला  l  '
  हमारे  नीतिकारों  ने  भी  यही  कहा  है  --- दुष्ट  शत्रु  पर  दया  दिखाना   अपना  और  दूसरों  का  अहित  करना  है  l   आजकल  के  व्यवहार शास्त्र  का  स्पष्ट  नियम  नही  कि    दूसरों  को  सताने  वाले   दुष्टजन  पर  दया  करना  ,  सज्जनों  को  दंड  देने  के  समान  है   क्योंकि  दुष्ट  तो  अपनी  स्वभावगत   क्रूरता   और  नीचता   को  छोड़  नहीं  सकता    l  जब  तक  उसमे  शक्ति  रहेगी  ,  वह  निर्दोष  व्यक्तियों  को  सब  तरह  से  दुःख  और  कष्ट  ही   देगा   l   
बर्नार्ड शा  ने  भी  एक  लेख  में  लिखा  है --- स्वभाव  से  ही  दुष्ट  और  आततायी  व्यक्तियों   को  समाज  में  रहने  का   अधिकार  नहीं  है  l  उनका  अंत  उसी  प्रकार  कर  देना  चाहिए  जिस  प्रकार  हम  सर्प  और  भेड़िया  आदि  अकारण  आक्रमणकारी    और  घात  में  लगे  रहने  वाले  जीवों  का  कर  देते  हैं   l