जीवन -प्रसंग ---- राजा शर्याति अपने परिवार समेत वन विहार को निकले l एक सुरम्य सरोवर के निकट पड़ाव डाला गया l बच्चे इधर -उधर खेल -कूद करते घूमने लगे l मिटटी के ढेर के नीचे से दो तेजस्वी मणियाँ जैसी चमकती दिखीं तो राजकुमारी सुकन्या को कुतूहल हुआ l उसने लकड़ी के सहारे उन मणियों को निकालने का प्रयास किया किन्तु उन चमकीली वस्तुओं को कुरेदने पर उनसे रक्त की धारा बह निकली l सुकन्या को दुःख भी हुआ और आश्चर्य भी l वह घटना का कारण जानने के लिए पिता के पास पहुंची l राजा शर्याति ने सुना तो वे स्तब्ध रह गए l उन्हें ज्ञात था कि समीप के एक टीले के नीचे च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे हैं l राजा को लगा कि हो -न -हो , पुत्री से उन्ही की आँखें फूट गईं हैं l वे सपरिवार घटना स्थल पर पहुंचे तो देखा कि वहां च्यवन ऋषि नेत्रहीन होकर कराह रहे हैं l राजा को महसूस हुआ कि उनकी पुत्री से अनजाने में पाप हो गया , उन्होंने इसके लिए ऋषि से क्षमा मांगी l ऐसे में राजकुमारी सुकन्या ने अभूतपूर्व साहस दिखाया l वह बोली --- " पिताजी ! पाप का प्रायश्चित कर्ता को स्वयं ही करना चाहिए l मैं आजीवन नेत्रहीन ऋषि च्यवन की पत्नी बनकर उनकी सेवा करुँगी l यही मेरे कर्मों का प्रायश्चित होगा l " आत्म त्याग का इतना बड़ा साहस रखने वाली आत्मा महान होगी , ऐसा विचार कर अनेक देवता उसे प्रणाम करने पहुंचे l l विवाह की परंपरा पूर्ण की गई l सुकन्या अंधे और वृद्ध पति को देवता मानकर प्रसन्न मन से धैर्य पूर्वक उनकी सेवा करने लगी l देवता उसकी साधना से प्रभावित हुए और अश्विनीकुमारों ने च्यवन ऋषि की वृद्धता और अन्धता को दूर कर दिया l उन्ही के नाम पर च्यवनप्राश प्रसिद्द है l सुकन्या का जीवन सार्थक हो गया l