14 June 2019

WISDOM ------ चिन्तन को परिष्कृत करने के लिए सत्साहित्य का अध्ययन - मनन अनिवार्य है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  लिखा  है ---- ' चिन्तन  परिक्षेत्र बंजर  हो  जाने  के  कारण   कार्य  भी  नागफनी  और  बबूल  जैसे  हो  रहे  हैं  l  इससे  मानवता  का  कष्ट पीड़ित  होना  स्वाभाविक  है  l  '
 विषैले    साहित्य  के  कारण  लोगों  का  नैतिक  चरित्र  तेजी  से  गिरता  जा  रहा  है  l   इस  गिरावट  को  तभी   रोका    जा  सकता  है  जब  श्रेष्ठ  और  नैतिक  साहित्य   से  लोग  सद्विचार  ग्रहण  करें  और  सन्मार्ग  पर  चलें  l
 रोम्यां रोलां  ने  एक  बार  अपने  भाषण  में  कहा  था --- " किसी  राष्ट्र  का  लोकतंत्रात्मक   जीवन   विघटित  और  विश्रंखलित  हो  जाता  है , तो  उसे   सभ्य  और  सुसंस्कृत   बनाने  के  लिए   मूक  विचार  क्रांति  की  जरुरत  होती  है   l '  
इस  मूक  विचार  क्रांति  से  क्या  मतलब  ? 
उन्होंने  जवाब  दिया  था --- " पुस्तकालय  l  पुस्तकों  से  भरे  घरेलू  पुस्तकालय . सार्वजनिक  पुस्तकालय  l  ऐसे  पुस्तकालय  जो  सद्ज्ञान  के  माध्यम  से   हमारे  सामाजिक  जीवन  में  व्याप्त  बुराइयों , कमजोरियों और  अंधविश्वासों  को  दूर  करने  में  योगदान  दे  सकते  हैं  l  पुस्तकालय  छोटे - बड़े   के  भेदभाव  से  परे   एक  ऐसी  दिव्य  संस्था  है  , जिसमे  प्रत्येक  व्यक्ति  अपनी  ज्ञान - शक्ति  और  क्षमताओं  का  विकास  कर  सकता  है  l  " 
रूस  की  सामाजिक  चेतना  के  विकास  में  पुस्तकालयों  ने  असाधारण  रूप  से  काम  किया  है  l  किवदंती है  कि  रूस  के  पुस्तकालयों  में   लगी  हुई  अलमारियां  एक  पंक्ति  में  लगाई  जाएँ  ,  तो  मास्को  और  रोम  को  जोड़ा  जा  सकता  है  l 
प्रसिद्ध  विद्वान्  डॉ.  रंगनाथन   ने  एक  बार  जापान  की  यात्रा  की   l  ओसाका  में  उन्होंने  एक  स्थान  पर  कतार  में  खड़े  लोगों  को  पुस्तकें  पढ़ते  देखा  l  उन्हें  आश्चर्य  हुआ  l  वहां  जाकर  पता  लगाया  तो  मालूम  हुआ  कि  यह  एक  पुस्तकालय  है  जहाँ  प्रतिदिन  भारी  संख्या  में  लोग  पुस्तकें  पढ़ने  आते  हैं  l  वहां  के  अध्यक्ष  ने  बताया  कि यह  पुस्तकालय  30  वर्ष  पहले  बना  था , तब  कम  लोगों  के  आने  का  अनुमान  था  लेकिन  अब  बहुत  अधिक  लोग  आते  हैं , इसलिए  सीट  रिजर्व  कर  दी  गई  है  l  जिनका  नंबर  नहीं  आता  , वे  लोग  अपनी  अध्ययन  की  आकांक्षा  को  तृप्त  करने  के  लिए  बाहर  खड़े  होकर  पढ़ते  हैं  l  जापानी  लोगों  की  इस  स्वाध्याय  वृत्ति  के  कारण  ही  जापान  एशिया  के  विकसित  देशों  में  अपना  प्रथम  स्थान  रखता  है  l    

WISDOM ----- धर्म की सार्थकता

 खलील  जिब्रान  का  जन्म  लेबनान  में  अत्यंत  धन - संपन्न  परिवार   में  1883   में  हुआ  था  l  दस  वर्ष  की  अल्पायु  में  ही  उन्होंने  अपने  पिता  के  साथ  विश्व  के  कई  देशों  का भ्रमण  किया  था , इससे  उनका बौद्धिक ज्ञान  अत्यंत  विस्तृत  हो  गया  था  l
  तत्कालीन  समाज  में  फैली  हुई   रूढ़िवादिता ,  धार्मिक  और  सामाजिक  कुरीतियों   को  देखकर   खलील  जिब्रान  ने  विचार  किया  कि  जब  तक  इन्हें  दूर  नहीं  किया  जायेगा  , तब  तक  जीवन  में  विकृतियों  की  भरमार  रहेगी  और  समाज  स्वस्थ  वायु  में  सांस  नहीं  ले  सकेगा   l  वे  कहते  थे  कि  धर्म  की  सार्थकता  इसी  में  है   कि   वह  उन्नत  और  सदाचारी  जीवन  जीने  की  पद्धति  को  दर्शा  सके   l  ऐसा  धर्म  जो  गरीब  और  असहाय  लोगों  का  गला  काटता  है --- धर्म  नहीं  कुधर्म  है , उसका  परित्याग  करना  ही  उचित  है  l  गरीब  तथा  समाज  के  पीड़ित  शोषित  वर्ग  के  पक्ष  में  बोलने  तथा  उनमे  अपने  मानवीय  अधिकारों  की चेतना जाग्रत  करने के  फलस्वरूप   जागीरदारों  और  धर्म  के  ठेकेदारों  ने  देश  से  निष्कासित  कर  दिया  l  उस  समय  उन्होंने  कहा  था ---- "लोग  मुझे  पागल  समझते  हैं  कि  मैं  अपने  जीवन  को   उनके  सोने - चांदी  के  टुकड़ों  के  बदले  नहीं  बेचता   l  और  मैं  इन्हें  पागल  समझता  हूँ   कि  वे  मेरे  जीवन  को  बिक्री  की  एक  वस्तु  समझते  हैं   l  "
 उनके  भाषणों  और  पुस्तकों  ने  दलित वर्ग  में  ऐसी  चेतना  भरी  कि  वह  अपने  हनन  किये  अधिकारों  को  पुनः  प्राप्त  करने  के  लिए  सक्रिय  हो  उठा  l  खलील  जिब्रान  की  पुस्तकें  आज  भी  समस्त  विश्व  के  लिए  प्रेरणा  दीप  बनी  हुई  हैं   l    

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