23 November 2023

WISDOM ----

   यह  संसार  एक  रंगमंच  है  यहाँ  हम  सभी  अपनी -अपनी  भूमिका  निभाने  आते  हैं  l   ईश्वर  ने  धरती  पर  जन्म  लेकर  हमें  सिखाया  कि   काम  कोई  भी  छोटा -बड़ा  नहीं  होता  ,  हमें  जो  भी  कार्य  मिला  है  ,  जो  भूमिका  हमें  मिली  है   उसे  अहंकार रहित  होकर  समर्पण  भाव  से  निभाएं  l  महाभारत  का  प्रसंग  है  ----  भगवान  श्रीकृष्ण  तो  सर्वशक्तिमान  थे   लेकिन  उन्होंने  स्वयं   महाभारत  युद्ध  में  सारथी  की  भूमिका  चयन  की  थी   और  इस  भूमिका  को  बखूबी  निभाया  l   एक  सारथी  की  तरह  वे   सर्वप्रथम    अर्जुन  को   ससम्मान  रथ  में  चढ़ाते  और  उसके  बाद  स्वयं  आरूढ़  होते    और  अर्जुन  के  आदेश  की  प्रतीक्षा  करते  l  फिर  संध्या  के  समय  जब  युद्ध  बंद  हो  जाता   तब  वे  पहले    उतरकर  फिर  अर्जुन  को  बड़ी  आवभगत  के  साथ  उतारते  l     भगवान  श्रीकृष्ण  अपने  इस  अभिनय   को     सम्पूर्ण  समर्पण  के  साथ   निभा  रहे  थे   l   युद्ध  का  अंतिम  दिन  ,  युद्ध  समाप्त  हुआ  ,  अब  भगवान  कृष्ण  सदा  की  तरह   अर्जुन  से  पहले  नहीं  उतरे   और  अर्जुन  को  संबोधित  करते  हुए  बोले  --"पार्थ  !  आज  तुम  रथ  से   पहले  उतर  जाओ   l  तुम  उतर  जाओगे  तब  मैं  उतरता  हूँ  l  अर्जुन  को   आश्चर्य  हुआ  लेकिन  कहना  मान  कर  वे  पहले  उतर  गए  l  अर्जुन  के  उतरने  के  बाद  भगवान  कृष्ण  धीरे  से  उतरे  और  अर्जुन  के  कंधे  पर  हाथ  रखकर  उन्हें  रथ  से  दूर  ले  गए  , उसके  बाद  एक  भयानक  विस्फोट  के  साथ  रथ  जलकर  ख़ाक  हो  गया  l  अर्जुन  ने  आश्चर्य  से  पूछा  --- " हे  कान्हा  !  आपके  उतरते  ही  पल  भर  में  यह  रथ  भस्मीभूत  हो  गया  , ये  क्या  रहस्य  है   ? "  भगवान  ने  कहा ---- "  हे   पार्थ  !  यह  रथ  तो  पितामह  भीष्म  के  दिव्यास्त्रों   के  प्रहार  से  मृत्यु  का   वरण   कर  चुका  था  , इस  दिव्य  रथ  की  आयु  समाप्त  हो  चुकी  थी  लेकिन   आयु  समाप्ति  के  बाद  भी  इसकी  उपयोगिता  वांछित  थी  इसलिए  यह  मेरे  संकल्प  बल  से  चल  रहा  था  l   भगवान  का  संकल्प  अटूट   और  अटल  होता  है  l  यह  संकल्प  सम्पूर्ण  स्रष्टि  में  जहाँ  भी  लग  जाता  है  वहीँ  अपना  प्रभाव   दिखाता  है   और  संकल्प  के  पूर्ण  होते  ही  यह  शक्ति  पुन:  भगवान  के  पास  चली  जाती  है , उसके  बाद  जो  हुआ  वो  तुमने  देखा  l  अर्जुन  ने  अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथ  में  सौंप  दी  थी  , भगवान  ने  उसे  हर  मुसीबत  से  बचाया  l  यदि  हम  भी  अर्जुन  की  तरह  अपना  कर्तव्यपालन  करते  हुए   अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथ  में  सौंप  दे , स्वयं  को  ईश्वर  के  चरणों  में  समर्पित  करें    तो  जीवन  से  भय  समाप्त  हो  जाये   और  सुख -शांति  से  तनाव रहित  जिन्दगी  जी  सकें  l