21 January 2024

WISDOM ------

    पं . श्रीराम  शर्मा जी  के  विचार ----- " मन  की  वृत्तियों  का  स्वार्थ  प्रधान  हो  जाना ही  पाप  है   l  आपत्तियों  का  कारण  अधर्म  है  l --- जब  मनुष्य  के  मन  में  सद्वृत्तियाँ  रहती  हैं  , तो  उनकी  सुगंध  से  दिव्यलोक  भरा -पूरा  रहता  है   और  जैसे  यज्ञ   की  सुगंध  से   अच्छी  वर्षा , अच्छी  अन्नोत्पत्ति  होती  है  , वैसे  ही  जनता  की  सद्भावनाओं  के  फलस्वरूप  ईश्वरीय  कृपा  की  , सुख -शांति  की  वर्षा  होती  है  l  यदि  लोगों  के  ह्रदय  छल , कपट , द्वेष , पाखंड   आदि  दुर्भावों  से  भरे  रहें  ,  तो  उससे  अद्रश्य लोक   एक  प्रकार  से  आध्यात्मिक  दुर्गन्ध  से  भर  जाते  हैं  l  जैसे  वायु  के  दूषित  , दुर्गंधित   होने  से  हैजा  आदि  बीमारियाँ  फैलती  हैं  ,  वैसे  ही  पाप वृत्तियों  के  कारण   सूक्ष्म  लोकों  का  वातावरण  गन्दा  हो  जाने  से   युद्ध  , महामारी , दरिद्रता , अर्थ संकट , दैवी  प्रकोप  आदि  उपद्रवों  का  आविर्भाव  होता  है   l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- " यदि  मनुष्य  की  भावनाएं  परिष्कृत  हो  जाएँ   तो  '  मारो  और  मरो  '  की  रट  लगाने  वाला  मनुष्य  ' जियो  और  जीने  दो  '   की  सोच  सकता  है   और  तभी  लग   पाएगा  उसकी  कुत्सित   एवं  कलुषित  लालसाओं  पर  अंकुश  ,  जो  प्रकृति  को  कुपित  एवं  क्षुब्ध  किए  हैं    l   भावनाओं  का  परिष्कार   भक्ति  के  बिना  संभव  नहीं  है   l  भक्ति  के  बिना   शक्ति  के  सदुपयोग  की  कोई  संभावना  नहीं  है  l  भक्ति  न  हो  तो   बुद्धि  विवेकरहित  होती  है   और  बल  निरंकुश  व  दिशाहीन   l  भक्ति  के  बिना  सृजनात्मक   सरंजाम  भी  संहारक  हो  जाते  हैं  l  "