30 April 2020

WISDOM ------

  कहते  हैं  जो     व्यक्ति   अनीति    और  अधर्म  की  राह  पर  चलता  है     ,  समाज  को  उत्पीड़ित   करता  है    , वह  अंदर  से  बहुत  कमजोर  होता  है  l   बाहर  से  वह  कितना  ही  ताकतवर  हो  ,  लेकिन  उसकी  आत्मा  उसे  सदा  कचोटती  रहती  है   इसलिए  उसका  मनोबल  गिरा  हुआ  होता  है  l   ऐसे  में    यदि    सन्मार्ग  पर  चलने  वाले  लोग  संगठित  होकर  उसका  विरोध  करें   तो  उसे  पस्त   होते  देर  न  लगेगी   l
               ऐसा  ही  एक  उदाहरण   रावण  का  है   ,   अनीति  और  अधर्म  की  राह  पर  चलने  के  कारण  उसका  मनोबल  बहुत  कमजोर  हो  गया  था   l   इतना  विद्वान् , शक्तिशाली ,  लंकापति  रावण  जब  सीताजी  का   हरण  करने  चला    तो    उसने     भिखारी    का  रूप  बना  लिया ,  उसकी  दशा  बहुत  दयनीय  थी   l   भिखारी  का  वेश  धरने  पर  इधर - उधर  देख  रहा  था   कि   कहीं  कोई  उसे  देख  न  ले   l    गलत  राह  पर  चलने  वाले  व्यक्ति  का  तेज , बल  , बुद्धि  -- सारे  सद्गुण     नष्ट  हो  जाते  हैं  l 

29 April 2020

WISDOM ------- स्वाभिमान जरुरी है l

    अहंकार  के  वशीभूत  होकर   जिसने  भी  स्वयं  को   भगवान   मानने   का  प्रयास  किया  उसका  अंत   होता  है   l   अहंकारी  अपनी  महत्वाकांक्षा  हेतु  अनीति  और  अधर्म  का  सहारा  लेता  है   l   प्राचीन  से  लेकर  आधुनिक  समय  तक    चाहे    रावण  हों ,  हिरण्यकश्यप  हों  ,, अथवा  सिकंदर , हिटलर , मुसोलिनी   कोई  भी  हों  ,  इन  सब  को  अपनी  शक्ति  का  बहुत  अहंकार  था   जिसका  उन्होंने  दुरूपयोग  किया  ,  उनका  अंत  हुआ  l
   अहंकार  का  सबसे  बड़ा  कारण  है --- धन  और  शक्ति    का  प्राप्त  होना  l   जिसके  पास  ये  दोनों  है  वह  सबसे  बड़ा  अहंकारी  हो  जाता  है  ,  फिर  अपनी  शक्ति  को  निरंतर  बढ़ाते  हुए   वह   पूरे   संसार  को  अपनी  मर्जी  से  चलाना   चाहता  है  l   जो  उसके  इस  अहंकार  के  आगे  सिर   न  झुकाए    ,  उसे  वह  बर्दाश्त  नहीं  करता  है  l
  रामचरितमानस  में    विभीषण  का  चरित्र   आज  के  युग  में  हमें   स्वाभिमान  से  जीने  की  प्रेरणा  देता  है   l   विभीषण  ने    रावण  के  अहंकार  के  आगे  अपना  सिर   नहीं  झुकाया  l   विभीषण  जानता   था  कि   रावण  ने  अनीति  और  अधर्म    से   सोने  की  लंका  खड़ी  की  है   और  अपनी  शक्ति  के  बल  पर  वह  राक्षसों  को   ,  अपने  एजेंटों  को  भेजकर  ऋषियों  पर  और  निर्दोष  जनता  पर  अत्याचार  करता  है  l   अत्याचार  की  अति  तो  तब  हो  गई  जब  उसने  नारी  पर  अत्याचार  किया  ,  माँ  सीता  का  अपहरण  किया  l   विभीषण  ने  यही  कहा  कि   ---'- इस  अधर्म  के  मार्ग  को  छोड़ो ,  यदि   अनीति  , अत्याचार   की  नीति   को  नहीं  छोड़ना  है   तो  तुम्हारी  लंका  तुम्हे  मुबारक  l   हम  वनवासी  राम  के  साथ  कष्ट  सहकर  रह  लेंगे   l '
विभीषण  ने  रावण  का  सारा  वैभव    छोड़  दिया  ,  सारे  सुखों  को  तिलांजलि  देकर   वह   वनवासी  राम  के  पास  आ  गया  l   सत्य  और  धर्म  के  साथ  चलकर  थोड़ा - बहुत  कष्ट  भी  हो  तो  वह  स्वीकार  है  l
     आज  संसार  में   चारों   ओर    धन  का  बोलबाला  है  l     अहंकार  उनका  दुर्गुण  है ,  लेकिन  हम  अपनी  जरूरतों  के  लिए  उनके  आगे   सिर   झुककर   उनके  अहंकार  को  पोषित  करते  हैं  ,  इसलिए  उनका  अहंकार  बढ़ता  जाता  है  l
व्यक्ति  हो  या  कोई  देश    यदि  अपने  साधनों  में  संतुष्ट  रहे   ,  जो  कुछ  अपने  पास  है   उसी  का  सर्वोत्तम  उपयोग  कर  के  अपनी  तरक्की  का  प्रयास  करे     तो  सुख - शांति  से  जीवन  जी  सकता  है   और  अहंकारियों  द्वारा  किए   जाने  वाले  उत्पात  से  भी  बच  सकता  है  l 

WISDOM ------

  प्राचीन  काल  में   जो  राजा  बहुत  वीर , शक्तिशाली  और  प्रजापालक  होते  थे   ,  वे  संसार  के  विभिन्न  राजाओं  को  अपने  आधीन  कर  ' चक्रवर्ती  सम्राट '  कहलाते  थे  l   विभिन्न  देशों  व  क्षेत्रों  में    वहां  के  कार्य  संचालन   के  लिए  राजा  तो  होते  थे    लेकिन  वे ' चक्रवर्ती   सम्राट '  के  ध्वज  तले   ही  काम  करते  थे  ,  उन्ही  के  आदेशानुसार  ,  उन्ही  की  नीतियों  के  अनुसार  राज - काज  होता  था  l   ये  सम्राट  प्रजापालक  थे  ,  इनका  उद्देश्य  संसार  में  सुख - शांति  स्थापित  करना   और  कला , साहित्य  आदि  हर  क्षेत्र  में  विकास  करना  था  l  ऐसे  प्रजापालक  सम्राटों  का  युग  इतिहास   में  ' स्वर्ण  युग ' कहलाता  है   l
                धीरे - धीरे  वक्त  बदला  ,   धन - सम्पदा   को  बहुत  अधिक  महत्व   दिया  जाने  लगा   l   फिर    शासन  व्यवस्था  चाहे  जो  हो  ,  जिसके  पास  भी  शक्ति  हो  ,  जनता  का  शोषण  कर  धन  संग्रह  करना   जीवन  का  प्रमुख  लक्ष्य  हो  गया  l ' चक्रवर्ती  सम्राट'  के  भी    मायने  बदल  गए  l   अब  वीरता  और  प्रशासनिक  कुशलता  और  प्रजापालक    की  जरुरत  नहीं  रह  गई    l   जिसके  पास  धन  है ,  पूंजी  है  वह  व्यक्ति  हो  या  संगठन    संसार  को  अपने   हिसाब  से  चला  सकता  है   l  वही  चक्रवर्ती  सम्राट  है  l   तुलसीदास जी  ने  कहा  भी  है  ----'  समरथ    को  नहि   दोष    गुसाईं  l  '

28 April 2020

WISDOM -----

 हमारे  महाकाव्य   हमें  जीवन  जीना   सिखाते  हैं   l  ईश्वर  ने  धरती  पर  जन्म  लेकर  अपने  कार्यों  से ,  आचरण  से  संसार  को  शिक्षण  दिया  l  एक  ही  शिक्षण  को  आसुरी  प्रवृति  के  लोग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल  करते  हैं  ,  लेकिन  सन्मार्ग  पर  चलने  वाले   उसी  शिक्षण  से  अपनी  रक्षा  करते  हुए  जीवन - पथ  पर  आगे  बढ़ते  हैं  l   एक  प्रसंग  है  ----
  महाभारत  के  युद्ध  में    आचार्य  द्रोण   सेनापति  बने   l   जब  तक  उनके  हाथ  में  शस्त्र   है , तब  तक  उन्हें  हराना  असंभव  था  l   अर्जुन  आदि  सभी  उनके  शिष्य  थे  ,  उन्हें  कैसे   पराजित  कर  पाते  l   किन्तु  द्रोणाचार्य  अधर्म  के  साथ  थे  इसलिए  उन्हें  पराजित  तो  होना  ही  था  l   भगवान   कृष्ण  के  निर्देशन   में  सब  पता  किया  गया  तो  ज्ञात  हुआ  कि   यदि   द्रोणाचार्य  को  यह  कह  दिया  जाये  कि   उनका  पुत्र  अश्वत्थामा  मारा  गया   तो  वे  निराश  होकर  अपने  हथियार  रख  देंगे   , तब   पांडव  पक्ष  का  सेनापति  धृष्टद्द्युम्न   उनका  वध   कर देगा  ( धृष्टद्दुम्न  का  जन्म  ही  द्रोणाचार्य  के  वध  के  लिए  हुआ  था  l ) 
     इस  के  लिए  यह  योजना  बनाई  गई  की  कि  कौरव  पक्ष  में  अश्वत्थामा  नामक  एक  हाथी   है ,  उसका  वध  कर  के   यह  अफवाह  फैला  देंगे  कि   ' अश्वत्थामा  मारा  गया  l '   द्रोणाचार्य  शस्त्र  और  शास्त्र  दोनों  के  ज्ञाता  हैं ,  वे  इस  बात  का  विश्वास  नहीं  करेंगे   और  निश्चित  रूप  से  सत्यवादी  धर्मराज  युधिष्ठिर  से  अवश्य  सत्य  जानना  चाहेंगे   l   शेष  पांडवों  और  कृष्ण  ने   युधिष्ठिर  को  बहुत  समझाया  कि    द्रोणचार्य  के  पूछने  पर  वे  झूठ  बोल  दें  कि  ' हाँ , अश्वत्थामा  मारा  गया '     लेकिन  युधिष्ठिर  किसी  तरह  राजी  नहीं  हुए  l  तब  यह  तय  हुआ  कि  धर्मराज  युधिष्ठिर  इस  तरह  कहेंगे -- ' अश्वत्थामा  हतो  , नरो  व  कुंजरो '   ( अश्वत्थामा  मारा  गया , मनुष्य  नहीं ,  हाथी ) आगे  जो  होगा  पांडव  संभल  लेंगे  l
               अगले  दिन  युद्ध  शुरू  हुआ  ,  भीम  ने  अश्वत्थामा  नामक  हाथी   को  मार  दिया  ,  और  घंटे - घड़ियाल  के  साथ   सब  तरफ  यह  शोर  मचा  दिया ,  अफवाह  फैला  दी  कि  ' अश्वत्थामा  मारा  गया  " l   कौरव  सेना  में  भगदड़  मच  गई  कि  अश्वत्थामा  मारा  गया ,  अब  क्या  होगा  ?  कितने  सैनिक  तो  उस  भगदड़  में  दबकर  मर  गए  l   यह  अफवाह  द्रोणाचार्य  के  कानों  तक  पहुंची  ,  उनको  विश्वास  नहीं  हुआ  l   अफवाह  इतनी  तेजी  से  फैलती  है  कि   सामान्य जन  असलियत  जानने  की  कोशिश  ही  नहीं  करता  ,  उस  पर  विश्वास  कर  लेता  है   l   द्रोणाचार्य  जिससे  भी  पूछें ,  सब  यही  कहें  कि  ' हाँ , अश्वत्थामा  मारा  गया  l  अब  उन्होंने  सारथि  से  कहा  --- रथ  युधिष्ठिर  के  सामने  ले  चलो ,  वे  सत्यवादी हैं , धर्मराज  हैं , वही  सत्य  बताएँगे  l
गुरु  द्रोण   ने  युधिष्ठिर  से  पूछा  --- " युधिष्ठिर  !  तुम  सत्यवादी  हो , तुम  बताओ ,  क्या  मेरा  पुत्र  अश्वत्थामा  मारा  गया   ? "
युधिष्ठिर  पर  जैसा   दबाव  था ,  उन्होंने  कहा ---' अश्वत्थामा  हतो ---    युधिष्ठिर  के  इतना  बोलते  ही   भीम  आदि  पांडवों  ने  शंख , घंटे - घड़ियाल  सहित   इतना   शोर  किया   कि   आगे  का  शब्द ----' मनुष्य  नहीं  हाथी '   द्रोणाचार्य   को    सुनाई  ही  नहीं  दिया  ,  वे  अपने  पुत्र  से  बहुत  स्नेह  करते  थे ,  एकदम  निराश  हो  गए  ,  उनका  आत्मबल  गिर  गया ,  उन्होंने  अपने  अस्त्र - शस्त्र  सब  रख  दिए  ,  उसी  समय  उनके  जन्मजात  शत्रु   धृष्टद्दुम्न   ने  उनका  वध  कर  दिया  ,  चारों  तरफ  अफरा - तफरी  मच  गई  ,  कितने  ही  सैनिक  उसमे  मर  गए   l
  कहते  हैं   युधिष्ठिर  सत्यवादी  थे  ,  उनका  रथ  जमीन   से  ढाई  अंगुल  ऊपर  चलता  था  ,  यह  उनके  सत्य  की , धर्माचरण  की  शक्ति  थी   लेकिन    न  चाहते  हुए  भी   इस  झूठ  की  वजह  से  उनका  रथ  इस  पृथ्वी  से   स्पर्श  कर  चलने  लगा   और  मृत्यु  के  बाद  इस  एक  झूठ  की  वजह  से  उन्हें  एक  पल  का  नरक  भोगना  पड़ा   l
 महाभारत   का  यह  प्रसंग  हमें  इस  सत्य  को  बताता  है    कि   ंजन सामान्य   एक  साधारण  व्यक्ति  की  बात  का  विश्वास  नहीं  करता  ,  लेकिन   यदि  कोई  उच्च  पद  पर  प्रतिष्ठित  व्यक्ति    चाहे  किसी  के  दबाव  में  ही  झूठ  बोल  दे ,  किसी  अफवाह  पर  अपनी  मोहर   लगा  दे   तो  सामान्य  जन    उसे  सच  मानकर   उसका  विश्वास  कर  लेता  है  l   इसलिए  ऋषियों  ने  कहा  है  कि   उच्च  पद  पर  बैठे  व्यक्तियों  को   अपना  प्रत्येक  कदम  बहुत  सोच -  विचारकर  उठाना  चाहिए   
   

27 April 2020

WISDOM ------

  समय  परिवर्तनशील  है    l   एक  समय  था   जब  वर्ण  व्यवस्था  थी  ,   यह  एक  प्रकार  का  श्रम  विभाजन  था  ,  उस  समय  समाज  के  धन - संपन्न  वर्ग     राज  कार्य  में  सहयोग  के  लिए   धन  देते  थे  ,  सामाजिक  कार्यों  में  भी  सहयोग  देते  थे   l   इसके  पीछे  उनमे  लोक कल्याण  का  भाव  था  l   वे  जो  भी  दान - पुण्य  करते  थे   वह  परोपकार  के  लिए  करते  थे  ,  शासन  की  नीतियों  में  उनका  कोई  हस्तक्षेप  नहीं  होता  था  l
   भौतिक  प्रगति  के   साथ   धन  का   महत्व     बढ़ता  गया  l   जो  ंजितना  धनी   है  उसे  उतना  ही  सम्मान   मिलने  लगा   l   महत्वाकांक्षा  बढ़ती  गई  ,  धीरे - धीरे  उन्होंने  शासन  की  नीतियों   में     हस्तक्षेप  शुरू  कर  दिया  l   अहंकार  भी  आ  गया  कि   जब  हम  इतना  सहयोग  करते  हैं   तो  नीतियां  भी   हमारे  हित    की  होनी  चाहिए  l   तभी  से  राजनीति   व्यवसाय  बन  गई  l   इसी  का  परिणाम  हुआ  कि   अमीर  और  अधिक  अमीर  होते  गए  l   वे  चाहते  भी  नहीं  हैं  कि  गरीबों  के  जीवन  में  कोई  सुधार  हो  ,  उनके  प्रयास  तो  गरीबों  का  शोषण  कर  के   उन्हें  दीन - हीन    बनाये  रखने  के  ही  हैं  l   इस  निर्धन  और  शोषित  वर्ग  को  स्वयं  जागना  होगा   l 

WISDOM ------

  महाभारत  में  विभिन्न  प्रसंगों  के  माध्यम  से     संसार  को  शिक्षण  दिया  गया  है   जो  प्रत्येक  युग  में  और  प्रत्येक  व्यक्ति  के  लिए  उपयोगी  है   l   एक  प्रसंग  है  ----   अर्जुन  को  किसी  अन्य  राजा  के  साथ  युद्ध  में  उलझकर  द्रोणाचार्य  ने  चक्रव्यूह  की  रचना  की  l   पांडव  पक्ष  में  केवल  अभिमन्यु  ही  चक्रव्यूह  भेदना   जानता    था  l   चक्रव्यूह  में  सात  दरवाजे    थे  , अत:  यह  निश्चय  किया  गया  कि   प्रथम  द्वार  में  जैसे  ही  अभिमन्यु   प्रवेश  करेगा  ,  वैसे  ही  चारों  पांडव  भी  उसके  पीछे  उसमे  प्रवेश  कर  लेंगे  l
  प्रथम  द्वार  पर  जयद्रथ  था  ,  अभिमन्यु   ने  उसे  परास्त  कर   चक्रव्यूह  में  प्रवेश  कर  लिया  l   जयद्रथ  बहुत  वीर  था  और  उसे  वरदान  भी  प्राप्त  था  कि  अर्जुन  को  छोड़कर  वह  शेष  चार  पांडवों  को  एक  साथ  पराजित  कर  सकता  है  l   अत:  उसने  चारों  पांडवों  को  द्वार  पर  ही  रोक  दिया  , अंदर  नहीं  जाने  दिया  l   अभिमन्यु  अकेला  रह  गया  ,  जहाँ  अंत  में  सात  महारथियों  ने  मिलकर  उसे  मार  दिया  l
   अर्जुन  जब  सांयकाल  युद्ध  से  लौटा   और  ये  दुःखद   समाचार  सुना    तो  उसने  मालूम  किया   कि    उसके  पुत्र  की  हत्या  का  वास्तविक  जिम्मेदार  कौन  है  l
   तब  ज्ञात  हुआ  कि   प्रथम  द्वार  पर  जयद्रथ  था   जिसकी  वजह  से  चारों  पांडव  चक्रव्यूह   प्रवेश  नहीं  कर  सके  l   तब  अर्जुन  ने  प्रतिज्ञा  की  कि  '  यदि  कल  के  युद्ध  में  सूर्यास्त   से  पहले     वह  जयद्रथ  का  वध  नहीं  कर  सका   तो  स्वयं  को  अग्नि  में  समर्पित  कर  देगा , आत्मदाह  कर  लेगा  l '
   ' जयद्रथ  वध '  प्रसंग  के  माध्यम  से   इस  बात  को   स्पष्ट  किया  गया  है  कि   आसुरी  प्रवृति  के  लोग   अपने  ऊपर  मुसीबत  आने  पर  या  मुसीबत  आने  की  संभावना  होने  पर  छुप  जाते  हैं   लेकिन   प्रतिपक्षी  को  परेशान     देखकर  ,  जन - साधारण  को  भी  मुसीबत   में  झोंककर   उन्हें  बड़ा  सुकून  मिलता  है  ,  अपनी  ख़ुशी  छुपा  नहीं  पाते  और  सामने  आ  जाते  हैं  ,  तभी  हम  उन्हें  आसानी  से  पहचान  सकते  हैं  
   आज  के  युग  में   जब  सब  तरह  के  अपराधी  जमानत  लेकर  समाज  में  घुल-मिलकर  रहते  हैं  ,  न्याय   की  प्रक्रिया  है  ,  तब  हम  आसुरी  प्रवृति  के  लोगों  को  पहचानकर  सतर्क  होकर  रह  सकते  हैं   l
             अगले    दिन   युद्ध  शुरू  हुआ   l   दुर्योधन  ने  जयद्रथ  को  ऐसे  छुपा  दिया  कि   पूरा  दिन  बीत  गया  ,  लेकिन  अर्जुन ,    जयद्रथ  को  नहीं    ढूंढ   पाया  l   सूर्यास्त  हो  गया   l  प्रतिज्ञा   के  अनुसार      अब  चिता   सजाई  जाने  लगी  ,  अर्जुन  आत्मदाह  से   पूर्व  सबसे  विदा  लेने  लगा   l   यह  सब  देखकर  दुर्योधन  आदि  कौरव  बहुत  प्रसन्न  हुए   और  जयद्रथ  से  कहने  लगे  ---  चलो  ,  अर्जुन  चिता    में  समाने  जा  रहा  है  ,  ऐसा  सुन्दर  दृश्य  फिर  देखने  को  मिले , न  मिले  l   अब  सूर्यास्त  हो  गया   l ( उस  समय  सूर्यास्त  के  बाद  युद्ध  नहीं  होता  था  )    जयद्रथ  बहुत  प्रसन्न  था  ,  दुर्योधन  आदि  के  साथ  वहां  आ  गया  जहाँ  अर्जुन  आत्मदाह  की   तैयारी    में  था  l   जयद्रथ  अपनी  ख़ुशी  रोक  नहीं  पा  रहा  था  ,  उसने  कृष्ण  से  कहा ----( कवि   के  शब्दों  में )  --- गोविन्द  अब  क्या  देर  है  ,  प्रण   का  समय  जाता  टला    l 
  शुभ  कार्य  जितना  शीघ्र  हो ,  है  नित्य  उतना  ही  भला  l 
कौरव  चाहते  थे   अर्जुन  जल्दी  से  चिता     में  समा   जाये  जिससे   वे   बहुत  ख़ुशी  मना  सकें   l
     सुनकर  जयद्रथ  का  कथन  हरि   को  हंसी  कुछ  आ  गई ,  गंभीर  श्यामल  मेघ  में  विद्दुत  छटा  सी   छा   गई  l  भगवान   कृष्ण  ने  अर्जुन  से  कहा -- हे  पार्थ  ! प्रण   पालन  करो ,  देखो  अभी  दिन  शेष  है  l "
  दूसरों  का  विनाश  देखने  की  ख़ुशी  में  जयद्रथ  सामने  आ  गया  l   अर्जुन  के  साथ  स्वयं  भगवान   थे  ,  उसकी  चेतना  जाग्रत  थी  ,  उसने  उस  पल  का  उपयोग  करते  हुए  जयद्रथ  का  वध  कर    अपना  प्रण   पूरा  किया   l 

26 April 2020

WISDOM ---- मन: शक्ति का दुरूपयोग न होने पाए --- जनवरी २००८ में अखण्ड ज्योति में प्रकाशित एक लेख का अंश

'  योगशास्त्र  के  ज्ञाता  तपस्वीजन  अपनी  मन: शक्ति  का  उपयोग  आत्मचेतना  के  परिष्कार  में  करते  हैं  l   इससे  निजी  जीवन  में  पवित्रता , प्रखरता  और  ऋद्धि - सिद्धियों  के  अनुदान - वरदान  तो  मिलते  ही  हैं  , सामाजिक  जीवन  में  भी   उसके  सुखद  परिणाम  सामने  आते  हैं  l ---- विगत  कुछ  वर्षों  से  परामनोविज्ञानियों  ने   मानवीय  मन: शक्ति  पर  गहन  अनुसन्धान  किये  हैं   और  अब  उसका  उपयोग 
 ' साइकिक  वेपन्स '--- मानसिक  अस्त्र  के  रूप  में  करने  की  योजनाएं   बना  रहे  हैं  l   रूस , चीन  व  अमेरिका   जैसे  संपन्न  राष्ट्र   इस  दिशा  में  सर्वाधिक  अग्रणी  माने  जाते  हैं   l   स्टार  वार  से  भी   आगे  बढ़कर   ' मांइड  वार '  की  इस  युद्ध  योजना  को   अधिक  प्रभावी  एवं   अचूक  अस्त्र  माना  जा  रहा  है   l   इसके  द्वारा  शत्रु  पक्ष  के   सभी  आयुधों   एवं   रणनीति  को   विफल  किया  जा  सकेगा   l   मानसिक  तरंगों  के  माध्यम  से   विपक्ष  की  गुप्त  योजनाएं   जान  लेने   और  उन्हें  असफल  बना  देने  की   तैयारियां   मूर्धन्य  वैज्ञानिकों   के  निर्देशन  में   क्रियान्वित  हो  रही  हैं   l -------
  रामायण  और  महाभारत  काल  में  कितने  ही  अस्त्र - शस्त्र  मन  की  गति  से  संचालित  होते  थे   और  शत्रु  पक्ष  का  विनाश  कर  के  प्रयोक्ता  के  पास  वापस  लौट   आते  थे  l   ' अप्वा ' नामक  अस्त्र  की   शक्ति  के  प्रयोग  से   दुश्मन  के  तत्काल  मूर्छित  होने  के  प्रमाण  भी  मिलते  हैं  l  यह  एक  प्रकार  से  भय   की  व्याधि  है   ,  जिससे  व्यक्ति  की  आंतरिक  सुख - शांति  सदा - सर्वदा  के  लिए    भंग   हो  जाती  है  l ---
  इस  सदी  के  युद्ध  विज्ञानी  भी   अब  ऐसे  ही  कुछ   प्रयोग - परीक्षणों  में   निरत  हैं   l 
  मानव  मन  असीम  संभावनाओं   एवं   क्षमताओं  से   परिपूर्ण  है  l   आज  के  संपन्न  व  समर्थ  कहे  जाने  वाले  राष्ट्र   मनुष्य  की  प्रकृतिदत्त   इन्ही   क्षमताओं  का  उपयोग   युद्ध  जैसे  विनाशक  प्रयोजनों  की  पूर्ति   करने  में  तत्पर  हैं   l   प्रतिवर्ष   अरबों - खरबों  डॉलर   की  विपुल  धनराशि   ' माइंड  वार '  जैसी   योजनाओं  में  खरच  की  जा  रही  है   l  मन: शक्ति  से  संचालित   युद्ध  - आयुधों  के   अनुसन्धान  एवं   प्रयोग - परीक्षणों  का   सिलसिला  बड़ी  तेजी  के  साथ  चल  रहा  है  ,  जिससे  शत्रु  पक्ष  का  विनाश   अतिशीघ्र  किया  जा  सके   l -------------- 

25 April 2020

WISDOM --- आध्यात्मिक ज्ञान का समावेश होने से ही वैज्ञानिक अविष्कार मानव के लिए उपयोगी हो सकते हैं --पं. श्रीराम शर्मा आचार्य l

   प्राचीन  समय  में  मनुष्य   विज्ञान   के  अविष्कार  सृजन  के  लिए  करते  थे  ,  विध्वंस  के  लिए  नहीं  l   उस  समय  की  विशेषता  थी  कि   गुरु  विद्दा  देते  समय   वचन   लेते    थे  कि   इनका  दुरूपयोग  मत  करना   l   महाभारत  में  ' पाशुपत  अस्त्र ' का  वर्णन  आता  है   l   अर्जुन  ने  शिवजी  की  तपस्या  कर   यह  अस्त्र  प्राप्त  किया  ,  भगवान   शिव  ने  चलाने  और  लौटाने   की  विधि  भी  सिखाई  ,  और  साथ  ही  यह  आदेश  भी  दिया   था  कि   इस  अस्त्र  को  केवल   राक्षस  या  राक्षस  वृत्ति  वाले  लोगों  पर  ही  चलाना   अन्यथा  यह  तुम्हारा  ही  विनाश  करेगा  l   इसी  प्रकार  ' नारायण  अस्त्र '  द्रोणाचार्य  के  पास  था  l   इस  हथियार  के  चलते  ही   सब  शस्त्र   व्यर्थ  हो  जाते  थे  l   जब  आचार्य  द्रोण   ने  यह  अस्त्र  चलाया   तो  भगवन  कृष्ण  ने  कहा  --- " तुम  सब  अपने  हथियार  फेंककर   सिर    झुका  दो ,  यही  इस  अस्त्र  से  बचने  का   उपाय  है  l  "
 भारतीय  योगी  और  सिद्ध  संत   अपनी  आत्मशक्ति  और  क्षमताओं  का  प्रयोग   चमत्कार  दिखाने   और  दूसरों  का  अहित  करने  में  नहीं  करते  थे  ,  वे  ब्रह्मास्त्र  आदि  को  मन्त्र  शक्ति  से  छोड़ना  और  वापिस  बुलाना  भी  जानते  थे  l   लेकिन  आज  मनुष्य  के  लिए  अपनी  स्वार्थपूर्ति  ही  सब  कुछ  है  l   अब  मनुष्य  की  इन  प्रकृतिदत्त  क्षमताओं  का   उपयोग  संपन्न  राष्ट्र    शत्रु  पक्ष  का  विनाश  करने  के  लिए  और  संसार  के  लोगों  के ' माइंड ' पर    नियंत्रण  करने    के  लिए     करते  हैं  l
  शत्रु  अदृश्य  हो  तो   प्रतिपक्षी  के  समस्त  युद्ध  आयुध , बम  और  रणनीति  विफल  हो  जाती  है   और  आक्रमणकारी    अपना  प्रभुत्व  ज़माने  के  साथ - साथ   लोगों  के  मन  पर  ,  उनके  व्यक्तिगत  जीवन  के  क्रियाकलाप  पर  भी  नियंत्रण  करने  में  सफल  हो  जाता  है  l   विज्ञानं  ने  मानव  को  सब  भौतिक  सुख - सुविधाएँ  तो   दीं   पर  साथ  ही  यह  रिफाइंड  गुलामी  भी  दे  दी   l 

WISDOM ------ मनुष्य जन्म से नहीं , कर्म से अच्छा या बुरा होता है

 कहते  हैं   महाभारत   में  कौरव  वंश  में    दुर्योधन ,  दु:शासन    का  नाम  सुयोधन  और  सुशासन  था  l   वे  एक  उच्च  कुल  में  पैदा  हुए  ,  भीष्म  पितामह  के  संरक्षण  में  रहे ,  आचार्य  द्रोण   ने  उन्हें  शिक्षा  दी   लेकिन  अधर्म  पर  चलने  के  कारण  वे   पूरे   कौरव  वंश  के   अंत  के  लिए  उत्तरदायी   बने   l
           जन्म  से  वे  बुरे  नहीं  थे  ,  लेकिन  उन्हें   मामा   शकुनि  का  साथ  मिला   जिसने  दिन - रात   छल - प्रपंच ,  षड्यंत्र   की  बात  कर  के  दुर्योधन   के  सोचने - समझने  की  शक्ति  को   क्षीण  कर  दिया  l   जिसे  आज  की  भाषा  में  कहते  हैं  ' माइंड  वाश '  कर  दिया   l   दुर्योधन  जिद्दी  और  अहंकारी  बन  गया  ,  उसने  पितामह  भीष्म ,  आचार्य  द्रोण   भगवान   कृष्ण  की  बात  को  भी  नहीं  माना   और  महाभारत  में  भीषण  नर  संहार  करा  के   सुयोधन  से  दुर्योधन  कहलाया   l
 महाभारत  में    शकुनि  के  माध्यम  से   संसार  को  यही  शिक्षा  दी  गई  है   कि   शकुनि  जैसी  मनोवृति  के  लोगों  से  दूर  रहे  ,  ऐसे  लोग  जहाँ   भी  रहेंगे  , अपने  विनाश  के  साथ - साथ   अपने  संपर्क  में  आने  वालों  को  भी  पतन  के  गर्त  में   डाल   देते  हैं   l 

24 April 2020

WISDOM -----

  विवेक  के  अभाव  में  व्यक्ति  भेड़  चाल  चलता  है  l   एक  भेड़   सबसे  आगे  चलते - चलते  कुएं  में  गिर  जाती  है   तो  सब  भेड़ें  उसके  पीछे  कुएं  में  गिर  जाती  हैं  l   इसी  तरह  मनुष्य  कितना  ही  पढ़ा - लिखा  हो  ,  विद्वान्  हो  लेकिन  यदि  उसका  विवेक  जाग्रत  नहीं  है  ,  चेतना  परिष्कृत  नहीं  है   तो  वह  किसी  भी  बात  की  तह  में   जा  कर  सच्चाई  को  परखने  की  कोशिश    ही  नहीं  करता   l  बिना  सोचे  समझे  बस ,  अंधानुकरण  करता  है  l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  कहा  है  -- भौतिक  प्रगति  के  साथ  जीवन  में  अध्यात्म  का  प्रवेश  जरुरी  है  l   चेतना  का  परिष्कार  ही  सच्चा  अध्यात्म  है  l '  

WISDOM ------ जीवन में सतर्कता जरुरी है

 इस  संसार  में  भिन्न - भिन्न  मनोवृतियों  के  लोग  हैं  l   अनेक  व्यक्ति  ऐसे  होते  हैं  जो  अपने  वर्तमान  में  बहुत  सफल  और  संपन्न  होते  हैं ,  बहुत  संपन्न  न  भी  हों  तो  आराम  से  जीवन  व्यतीत  करते  हैं  ,  लेकिन  फिर  भी  उनके  अंदर  एक  कुंठा  होती  है  l   उनके  पिता ,  पितामह    या   परिवार    के  साथ  कभी  किसी  ने  बुरा  व्यवहार  किया  हो  ,  और  अब  चाहे  वे  सब  जीवित  भी  न  हों ,  तब  भी  कुंठाग्रस्त  व्यक्ति   बदले  की  भावना  से  ग्रसित  रहता  है   और   और  अपनी  इस  कुत्सित  मनोवृति  को  कार्यरूप   देने  का  प्रयास  करता  रहता  है  l   इसलिए  ऋषियों  ने  संसार  में  सजग  होकर   रहने  को  कहा  है  l
       एक  प्रसंग  है  -----   गुरु   गोविन्द सिंह जी   उन  दिनों  गोदावरी  तट   पर  नगीना  नाम  का  घाट   बनवा  रहे  थे  l   दिन  बार  उस  काम  में  व्यस्त  रहकर    वे  सांयकाल  प्रार्थना  कराते  और  लोगों  को   संगठन  तथा  बलिदान  का  उपदेश  दिया  करते  l   किसी  युद्ध  में    गुरूजी  के  हाथ  से  एक  व्यक्ति  मारा  गया  था  ,  उसके   अनाथ  पुत्र  को    गुरूजी  ने  आश्रम  में  रखकर  पाल  लिया  था  ,  अन्य  सभी  शिष्यों  के  समान   वह  भी  प्रेम  से  गुरु  की  छत्रछाया  में  रहता  था  l   किन्तु  उनकी  यही  दया   और  शत्रु  के  पुत्र  के  साथ   की  गई  मानवता    उनके  अंत  का  कारण  बन  गई  l
  उस   ने  गुरूजी  के  प्रेम  को  नहीं  समझा   और  हर  समय  इस  घात  में  रहता  था   कि  कब  गुरु जी  को  अकेले  असावधान  पाए   और  मार   डाले  l   अवसर  मिलने  पर  एक  दिन  उसने  पलंग  पर  सोते  हुए  गुरूजी  की  काँख   में  छुरा  भौंक  दिया   l   गुरु  गोविन्द  सिंह जी  तत्काल  सजग  होकर  उठ  बैठे   और   वहीँ  कटार   निकालकर    भागते  हुए  विश्वास  घाती   को  फेंककर  मारी  l   वह  कटार   उसकी  पीठ  में  धंस  गई   और  वह  तुरंत  गिर  कर  ढेर  हो  गया  l
  गुरु  के  घाव  पर  टाँके  लगा  दिए  गए  l   सांयकाल  उन्होंने  प्रार्थना  सभा  में   लोगों  को  बतलाया  कि   मेरी  इस  घटना  से  शिक्षा  लेकर   हर  सज्जन  व्यक्ति  को   यह  नियम  बना  लेना  चाहिए    कि   यदि  शत्रु  पक्ष  को  ,  निराश्रय   की  स्थिति  में   सहायता   भी  करनी  हो  तो  भी  उसे   अपने  निकट   नहीं  रखना  चाहिए   और  सदा  उससे  सावधान  रहना  चाहिए   क्योंकि   कभी - कभी     असावधान    परोपकार     भी    
   अनर्थ     का  कारण     बन   जाता   है    l   

23 April 2020

WISDOM ------ प्रतिशोध

पुराणों  की  कथाएं    प्राचीन   हैं , लेकिन    वे  हर  युग   में  प्रासंगिक  हैं  l   एक  कथा  है  -----   राजा  परीक्षित  की  एक  बड़ी  गलती  की  वजह  से  ऋषि  ने  उन्हें    शाप   दिया  था  कि   उस  दिन  से  ठीक  सांतवे  दिन  उन्हें  तक्षक  नाग  डस   लेगा  l   मृत्यु  को  समीप  जानकर  उन्होंने   भागवद पुराण  सुना   और  शाप  के  अनुसार  तक्षक  नाग  द्वारा  डस   जाने  से  उनकी  मृत्यु  हो  गई  l 
  परीक्षित  के  पुत्र  जन्मेजय   को  जब  यह  पता  चला  तो  उन्हें  बहुत  क्रोध  आया   और  उनके  ह्रदय   में  बदले  की  आग  पैदा  हो  गई  l   उन्होंने  निश्चय  किया  कि   ' सर्प  यज्ञ  ' करेंगे    जिससे  संसार  में  सर्प  की  प्रजाति  ही  समाप्त  हो  जाएगी   l   संकल्प  के  अनुरूप  यज्ञ  की  व्यवस्था  हुई ,   सर्प  यज्ञ  आरम्भ  हुआ   ,  आहुतियों  के  साथ  ही    दूर - दूर  से  सर्प  आकर  उस  यज्ञ  की  प्रज्ज्वलित  अग्नि  में  गिरकर  समाप्त  होने  लगे  l   तक्षक  नाग  को  जब  इसकी  खबर  मिली  तो  वह   भाग  कर  अपने  मित्र  देवराज  इंद्र  के  पास  गया  --' त्राहिमाम '  --- रक्षा  करो  '  l   इंद्र  ने  उसकी  बात  सुनी  और  उसे  शरण  दी  l   वह  इंद्र  के  सिंहासन  से  लिपट  कर  बैठ  गया  l
  जन्मेजय  के  यज्ञ  में  तीव्र  अग्नि  प्रज्ज्वलित  थी  ,  तक्षक  नाग  के  नाम  से  आहुति  डालते  ही  तक्षक  सहित     देवराज  इंद्र   का  सिंहासन  आकाश  में  मंडराने  लगा  क्योंकि  इंद्र  सिंहासन  पर  बैठे  थे   और  उन्होंने  उसे  शरण  दी  थी  l   यह  देख  सब  देवता  आ  गए  ,  उन्होंने  जनमेजय   को  समझाया  ,  उसका  क्रोध  शांत  हुआ  ,  सर्प  यज्ञ  को  बंद  कराया  l   तक्षक  और  इंद्र  वापस  लौटे  ,  शेष  सर्पों  की  रक्षा  हुई  l
    ऋषियों  ने  समझाया  -- इस  तरह  परस्पर  बदले  की  भावना  का  कोई  अंत  नहीं  है  l   बदला  लेने  में  अपनी  शक्ति  को  गंवाने  से   अच्छा  है  उसे  लोक कल्याण  में    लगाकर  अपना  जीवन  सार्थक  करो  l   

WISDOM ------

मनुष्य  जीवन  अनेक  समस्याओं  से  घिरा  है  l   समस्याएं  सबके  जीवन  में  आती  हैं  l   ईश्वर  ने   धरती  पर  मनुष्य  के  रूप  में  अवतार  लेकर  अपने  आचरण   से   लोगों  को  समझाया   कि   कैसे  धैर्य  और  विवेक  से   समस्याओं  पर  विजय  पाई  जा  सकती  है  ---- 
  रावण   बहुत   शक्तिशाली   था ,  कूटनीतिज्ञ  था  l  उस  ने  सीता  का  हरण  किया  l   देखने  में  लगता  है  रावण  एक  था   लेकिन  उसके  दस   सिर   थे   अर्थात     दस   अलग - अलग  क्षेत्रों  के  सर्वश्रेष्ठ  बुद्धिमान  उसके  नियंत्रण  में  थे  l   उसका  स्वयं  का  परिवार  बहुत  बड़ा  था  ,   उसके  पास  राक्षसों  की  विशाल  सेना  थी   जो  सब  मायावी  विद्दा  जानते  थे   और  रावण  के  एक  आदेश  पर  अदृश्य  होकर  संसार  में  उत्पात  मचाते  थे   l   कहते  हैं   उसने    राहु , शनि  सबकी  कैद  कर  लिया  था  l   उसके  पास  अथाह  सम्पति  थी ,  सोने  की  लंका  थी  l   इन  सबके  साथ  उसके  पास  एक  अमूल्य  खजाना  था   जो  उसकी  नाभि  में  छुपा  था  ,  वह  था----  अमृत  l    रावण  स्वयं  को  अमर  समझता  था  l  इन  सब  कारणों  से  उसका  अहंकार  बहुत  बढ़ा - चढ़ा  था  l 
  रावण  एक  विचार  ,  आज  भी  व्यक्ति  शक्ति - सम्पन्नता   एकत्र   कर  स्वयं  को  अमर  समझता  है  ,  अहंकारी  हो  जाता  है   और  फिर  अपनी  ताकत  से  सबको  अपने  अधीन   कर   अपने  इशारों  पर  चलाना  चाहता  है  l   सबको  अपने   नियंत्रण  में  रखना ,  अत्याचार  करना  ,  चैन  से  जीने  न  देना  , यह  सब  मानसिक  विकृति  है  l   भगवान   राम  ने   एक - एक  कर  के   उसके  सिर   काटे  ,  उसके  मजबूत  आधार  को  समाप्त  किया   फिर  अंत  में  उसकी  नाभि  में  बाण   मार कर    उसके  अहंकार  को  मिटा  डाला  l 
   

22 April 2020

जिसके पास कुछ होता है , भयभीत भी वही होता है

 वैराग्य शतक  में  भतृहरि  ने  भय  की  स्थिति  का  सूक्ष्म  विश्लेषण  किया  है  ---   ' भोग  में  रोग  का  भय ,   सामाजिक  स्थिति    में  गिरने  का  भय ,   धन  में  चोरी   होने  का  भय  ,  सत्ता  में  शत्रुओं  का  भय ,  सौंदर्य  में  बुढ़ापे  का  भय  ,  शरीर  में  मृत्यु  का  भय  l   इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है  l '
             भोग - विलासिता   का  जीवन , स्टेट्स , धन सम्पदा ,  सत्ता  ,  सौंदर्य   यह  सब  उन्ही  के  पास  होता  है  जिनके  पास  वैभव  है   l   वे  इस  जीवन  के  आदि  हो  जाते  हैं  ,  इसलिए  उन्हें  सदैव  इसके  खोने  का  भय   सताता  रहता  है  l   निर्धन  व्यक्ति   तो  अपनी  गरीबी ,  भूख   और  अमीरों  द्वारा  किये  जाने  वाले  शोषण  से  तंग   हो  कर  ही  मरते  हैं   लेकिन  संपन्न  वर्ग  में   हम   तनाव ,  पागलपन ,  आत्महत्या  ,  राजरोग ---- आदि  से   जीवन  का  अंत  होता  देखते  हैं  l 
  यह  एक  चिंतन  का  विषय  है   कि   सब  कुछ  होने  के  बाद  भी  इस  वर्ग  को  शांति  नहीं  है  l   संसार  में  बड़े - बड़े  उत्पात, दंगे - फसाद , नर - संहार    इसी  वर्ग  के  अहंकार  और  लालच  की  वजह  से  होते  हैं  l   गरीब  तो  अपनी  रोटी - रोजी  की  समस्या  में  उलझा  हुआ  है  ,  इसी  कमजोरी  की  वजह  से  शक्तिशाली  वर्ग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इनको  इस्तेमाल  करते  हैं  l
महाभारत  काल  में  देखें  तो  दुर्योधन  के  पास  सब  कुछ  था  ,  लेकिन  उसे  सदा  अपनी  सत्ता  के  खोने  का  भय  सताता   था l   इसी  कारण  उसने  भीम  को  जहर  देकर  नदी  में  फेंक  दिया  ,  पांडवों  को  लाक्षा गृह  में  भेजा  ,  जिससे  वे  वहां  जलकर  ख़त्म  हो  जाये ,  वहां  वे  बच  गए   तो  जुए  में  चालाकी  से  हराकर  जंगल  भेज  दिया  l   आसुरी  प्रवृतियां  शुरू  से  रही  हैं  ,  बस  उनके  कार्य  करने  के  ,  अत्याचार - अन्याय  कर  दैवी  प्रवृतियों  को  कमजोर  करने  के  तरीके  युग  के  अनुसार  बदलते  रहे  हैं  l   दैवी  प्रवृतियां  जागरूक  और  संगठित  होकर  ही   इस  संग्राम  में  विजयी  हो  सकती हैं  l

अर्थ --- धरती

  यह  धरती ,  यह  मिटटी  हमें  ईश्वरीय  देन   है  ,  विज्ञान   की  कोई  भी  प्रयोगशाला  इस  मिटटी  को  बना  नहीं  सकती  ,  फिर  भी  मनुष्य   अहंकार  करता  है  l    विशाल  भूभाग   को  मनुष्य  ने  अपनी  सुविधा  के  लिए  नक़्शे  बनाकर  विभिन्न  देशों  और  विभिन्न  क्षेत्रों  में  बाँट  लिया  है  l   यह  भी  श्रम विभाजन  ही  है  जो  उचित  भी  है    लेकिन  इन  सबसे  अलग  हटकर  मनुष्य  ने    स्वार्थ  और  लालच   के  वशीभूत    होकर     इस  अर्थ  को  ' अर्थ ' ( धन )  के  अनुसार  दो  हिस्सों  में  बाँट  लिया  है  --- एक  ओर   सब  अमीर  हैं   और  दूसरी  ओर   सब  गरीब  हैं   l   यही  इस  धरती  पर  अशांति  का  सबसे  बड़ा  कारण  है  l
   अमीर  व्यक्ति  चाहे  किसी  भी  देश  के  हों ,  किसी  भी  विभाग  के  हों  ,   वे  सब  एक  हैं  ,  सब  की  एक  सी  प्रवृति  है  ,  गरीबों  और  कमजोर  का शोषण  करके  ही   कोई  इतना  अमीर  बनता  है    और  वे  सब  अपनी  इस  सम्पदा  को  दिन - प्रतिदिन  बढ़ाना  चाहते  हैं  ,  किसी  भी  कीमत  पर   इसे  खोना  नहीं  चाहते  ,  यह  खोने  का   भय   इनके  तनाव  का  सबसे  बड़ा  कारण  है  l
  यह  एक  विडम्बना  ही  है    अमीरों  की  अमीरी ,  भोग - विलास  सभी  कुछ   गरीब  और  कमजोरों  के  बिना  चल  नहीं  सकता  l    घरेलू   काम - काज  से  लेकर ,  फैक्ट्री  के  काम ,  भोजन , सफाई   आदि  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  में    वे  इन्ही  लोगों  पर  निर्भर  हैं ,  एक  प्रकार  से  परजीवी  हैं  l   'धन  बहुत  महत्वपूर्ण  है ,  लेकिन  केवल  धन  से  जीवन  नहीं  चलता   l
यही  कारण  है  कि   ये  लोग  विभिन्न  तरीकों  से  गरीबों  का  शोषण  कर  उन्हें  गरीब  ही  बनाये  रखते  हैं  ,  उन्हें  किसी  भी  तरह  आगे  बढ़ने  का , जागरूक  होने  का  मौका  नहीं  देते   l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  इसी  को  दुर्बुद्धि  कहते  हैं  l   वे  कहते  हैं  हम  सब  एक  माला  के  मोती  है ' l  अमीर  हो  या  गरीब  ,  पेड़ - पौधे , वनस्पति , पशु - पक्षी   सम्पूर्ण  पर्यावरण   ये  सब  इस  माला  के  मनके हैं , मोती  हैं,     जो   परस्पर  निर्भर  हैं   l   एक  भी  मोती  ख़राब  होगा   तो  माला  का  अस्तित्व  खतरे  में  पड़   जायेगा  l   सुख - शांति  और  तनाव रहित  जीवन  जीने  के  लिए   सबके  साथ  संतुलन  बना  कर  चलना  होगा  l  

21 April 2020

WISDOM

 कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है ,  वही  इस  धरती  पर  है  l    धर्म , जाति   -- तो  मनुष्य  ने  बनायें  हैं   वास्तव  में  केवल  दो  ही  जातियां  हैं --- एक  वे  जिनकी  सोच  सकारात्मक  है  और  दूसरी   वे   जिनकी  सोच  नकारात्मक  है   l   और   केवल  दो  ही  धर्म  हैं --- एक  देवत्व  और  दूसरा   असुरता  l
  महाभारत   ---  देवत्व  और  आसुरी  प्रवृति  के  बीच  का  युद्ध  है  l   जो  धर्म  पर  थे  , सन्मार्ग  पर  थे  उन्होंने  पांडवों  का  पक्ष  लिया   और   जो   छल - छद्द्म , षड्यंत्र , लालच , ईर्ष्या , द्वेष   आदि  आसुरी  प्रवृति  के  थे   अथवा  मौन  रहकर  इन  प्रवृतियों  का  समर्थन  करते  थे  ,   वे  कौरवों  के  साथ  थे   l
  हमारे  महाकाव्य  हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   लेकिन  मनुष्य  वही  ग्रहण  करता  है ,  वही  सीखता  है  जैसी  उसकी  प्रवृति  है , उसके  संस्कार  है  l  इस  संसार  में  जो  आसुरी  प्रवृति  के  लोग  हैं  वे  महाभारत  से  छल , छद्द्म , षड्यंत्र   सीखते  हैं ,   किस  तरह  मजबूती  से  संगठित  होकर  कायरतापूर्ण  ढंग  से   दैवी  प्रवृतियों  को   समाप्त  किया  जाये  , यह  सीखते  हैं  l
  इसका  सबसे  बड़ा  उदाहरण  है --- चक्रव्यूह  l   सारे  संसार  में  यही  चक्रव्यूह  है  l   आसुरी  प्रवृति  के  लोग  संगठित  हो  जाते  हैं  और  अपने  साम्राज्य  को  कायम  रखने  के  लिए   हर  संभव  प्रयास  करते  हैं  ,  चाहे  इसके  लिए  कितना  ही  नर संहार  क्यों  न  करना  पड़े  l
महाभारत  में   चक्रव्यूह  यही  है ---' सात  योद्धाओं  से  लड़ते  एक  बालक  की  कथा   l "   दुर्योधन  अपनी  पराजय  देख  बौखला  गया    और  चक्रव्यूह  रचकर   सात  महारथियों  ने  मिलकर   बालक  अभिमन्यु  का  वध  कर  दिया  l   महाभारत  का  यह  प्रसंग   बताता  है   कि   आसुरी  प्रवृति  के  लोग   चाहे  कितने  ही  संपन्न  हों ,  कितने  ही  संगठित  और  शक्तिशाली  हों    लेकिन  अधर्म  के  मार्ग  पर  चलने  के  कारण   वे  भीतर  से  कमजोर  होते  हैं   इसलिए  एक  बालक  की  वीरता  से  डर   गए   और  मिलकर  उसको  मार  दिया  l   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है   कि --- आसुरी  शक्तियों  के  विरुद्ध  यदि  दैवी  शक्तियां  संगठित  हो  कर   एक  कदम  भी  आगे  बढ़ें  तो  आसुरी  तत्वों  को  पराजित  होने  में  देर  न  लगेगी  l 

20 April 2020

WISDOM ------- सत्य की विजय निश्चित है

   कहते  हैं  ' ईश्वर   के घर  देर  है  , अंधेर  नहीं  l '--- इस  सम्बन्ध  में  एक  रोचक  कथा  है  -----  एक  5 - 6   वर्ष  का  बालक  था ,  उसे  समुद्र   में  सैर   करने की  बहुत  इच्छा  थी   l  माता - पिता  के  पास  इतना  पैसा  नहीं  था  कि   वे  उसके  इस  शौक  को  पूरा  कर  सकें  l  फिर  कहीं  से  पता  चला  कि    कोई  व्यवसायी  अपनी  नई  मोटर बोट    की  खुशी   में  बहुत  कम   किराये  में  लोगों  को  सैर  कराएगा  l   इस  परिवार  ने  भी  इस  अवसर  का  लाभ  लिया   और  सैर  को  चले  l  बहुत  बड़ी  बोट    थी  ,  और  बहुत  लोग  थे  उसमे  l  यह  माँ  अपने  बालक  में  अच्छे  संस्कार  डालने  और  जीवन  जीना  सिखाने  के  लिए  रामायण  और  महाभारत  की  कहानियां  सुनाया  करती  थी  l
  यह  क्रम  इस   बोट   में  सैर  के  वक्त  भी  चल  रहा  था --- माँ  समझा  रही  थी  कि   देखो   रावण  ने  वेश  बदल  कर  सीता  का  अपहरण  किया  ,  इसलिए  हमें    कोई  व्यक्ति  हो  या  वस्तु   उसकी  बाहरी  चमक  या  बाहरी  शालीनता  देखकर  विश्वास  नहीं  करना  चाहिए  l  रावण  बाहरी  रूप  में  साधु  बनकर  आया ,  लेकिन  उसके  भीतर  आसुरी  प्रवृति  थी   और  ऐसी  आसुरी  प्रवृति  के  लोगों  को  जब  कोई  पहचान  लेता  है   तो   वे  उसे  अपने  रास्ते   से  हटा  देते  हैं  जैसे  रावण  ने  जटायु  का  वध  कर  दिया  l  इसलिए   विकट   परिस्थितियों   में      धैर्य  और  विवेक  से  काम  लो ,  सत्य  की  जीत  होती  है    और  जिसके  मन  में  लोक कल्याण  की  भावना  होती  है  दैवी  शक्तियां  उसकी  मदद  करती  हैं   l    उसी  समय   विस्फोट  हुआ  और  वह   मोटर बोट  टूटकर  बिखर  गई  और  वह  बालक  भी  अपनी  माँ  की   गोद    से  छिटककर   समुद्र  में  गिरा  l   उस  बालक  को  किसी  मछुआरे  ने  बचाया  ,  उस  बालक  के  कपड़े   में  बोट   का  टुकड़ा  फंसा  था  ,  जिसे  कुछ  सोचकर  वह  वृद्ध  मछुआरा  अपने  साथ  ले  आया   l
बालक  को  होश  आने  पर   , स्वस्थ  होने  पर  मछुआरे  ने  उससे  पूछा --- तुम  सब  इतनी  पुरानी   बोट   में  सैर  को  क्यों  निकले   ? '    बालक  ने  कहा --- वह  बोट   बिलकुल  नई  थी  l  नई   बोट   में  सब  लोग  बहुत  खुश  थे  l '  मछुआरे  ने  कहा --- बेटा  ! यह  हाथ  बहुत  अनुभवी  हैं  ,  इस  टुकड़े को  छूते   ही  समझ  गए  कि   यह  बहुत  पुरानी   बोट   का  टुकड़ा  है ,  इसे  तो  टूटना  ही  था  l  खैर  ! तुम  इसे  अपने  पास  रखो   और  ज्ञान  हासिल  करो   जिससे  सत्य  को  जान  सको  l  अभी  तो  केवल  बोट   में  बैठे  लोग  ही  डूबे   हैं   यदि  ये  अपराध  विस्तृत  क्षेत्र  में  फ़ैल  गया   तो  अनर्थ  हो  जायेगा   l '
अब  उस  बालक  के  जीवन  का  एक  ही  लक्ष्य  था  ---सत्य  को  जानना  l  उसे  माँ  के  अंतिम  शब्द  याद  थे  --रावण  का  बाहरी  रूप ---- सत्य की  जीत   और  लोक कल्याण  की  भावना  हो  तो  दैवी  शक्तियां  मदद
 करती  हैं   l   मोटर बोट   का  वह  टुकड़ा   उसकी  अमूल्य  निधि  था  l    दिन - रात  अध्ययन  कर  के   वह  इस  बात  की  तह  में  पहुँच  गया  कि  मछुआरे  ने  सत्य  कहा  था  , वह  बोट    बहुत  पुरानी   थी  ,  धन  की  लालसा  ने  इतने  लोगों  की  जान  ले  ली  l   वह  बालक  जो  अब  युवा  हो  गया  था  ,  उसने   सबूत   सहित 
राजा  के  सामने  अपनी  बात   रखी  l   उस  समय  तक  वह  बोट   का  मालिक  बहुत  संपन्न  व्  शक्तिशाली  हो  गया  था  l   राजा  न्यायप्रिय  था   ,  उसने  कहा  -- अपनी  तृष्णा  के  लिए  लोगों  का  जीवन  छीनने  की  अनुमति  किसी  को  नहीं  है  l   सत्यमेव  जयते  l 

19 April 2020

WISDOM ----- अनीति ही हिंसा है

  ऋषि  का  कहना  है ----  अनीति  का  प्रतिकार  करने  के  लिए   जब  अहिंसा   समर्थ  न  हो   तो  हिंसा  भी   अपनाई  जा  सकती  है   l  अन्याय  के  विरुद्ध  क्रुद्ध  होना  मानवता  का  चिन्ह  है  l  यदि  अन्याय  को  सहन  करते    रहा  जायेगा    तो  इससे  अनीति  बढ़ेगी   और  इस  सुन्दर  संसार  में   अशान्ति   उत्पन्न  होगी   l   स्वार्थ  और  अन्याय  के  लिए  आक्रमण  वर्जित  है   लेकिन  आत्मरक्षा  और  अनाचार  की  रोकथाम  के  लिए   हिंसा  अपनानी  पड़े  तो  उसे  अनुचित  नहीं  माना  जा  सकता   l   आवश्यकता  पड़ने  पर  कांटे  से  काँटा  निकालना ,  विष  से  विष  मारने  की  नीति  उचित  कही  जाती  है  l
  सज्जनता  और  दुष्टता  की  अति  कहीं  भी  नहीं  होनी  चाहिए   l 

WISDOM -----

   इस  संसार  में  शुरू  से  ही   अंधकार  और  प्रकाश  में  संघर्ष  रहा  है    और  जब  भी  अंधकार  या  दुष्प्रवृतियों  की  अधिकता  रही  है   तब  संसार  में  अत्याचार , अन्याय  और  भीषण  नर - संहार  के  दृश्य  दिखाई  दिए  हैं  l   आदिकाल  से  देखें   तो  रावण  इतना  विद्वान्  था ,  उसकी  सोने  की  लंका  थी   लेकिन  राक्षसी  प्रवृति  की  वजह  से   वह   राक्षसों  को   विभिन्न  क्षेत्रों  में  भेजता  था  ,  जहाँ  वे  उत्पात  मचाते  थे  ,  निर्दोष  लोगों  का  वध  करते   और  ऋषियों  के  यज्ञ , हवन   आदि  को  अपवित्र  करते  थे  l   इस  कारण  सारे  धार्मिक  कृत्य  बंद  हो  गए  थे  l   राक्षसों  के  अत्याचार  इतने  बढ़  गए  थे  कि   सामान्य जन   का  जीना  मुश्किल  हो  गया  था  l
  वर्तमान  स्थिति  कुछ  इसी  तरह  है  ,  सभी  धार्मिक  स्थल  बंद  हो  गए  ,  लोग  भयभीत  हैं  ,  घरों  में  बंद  हैं  l    तब  भी  राक्षस  मायावी  थे  ,  अदृश्य  होकर   सबको  सताते  थे   और  अब  भी  अदृश्य  हैं  l    उस  समय   यह  स्पष्ट  अवश्य  था  कि   वे  राक्षस  रावण  के  भेजे  हुए  थे   लेकिन   अब  विज्ञान   ने   उसे  भी  अदृश्य  कर  दिया  l
अत्याचार  और  अन्याय  के  कारण  ही  संसार  के  विभिन्न  देशों  में  क्रान्ति   हुई ,  दो  विश्व युद्ध  हुए  l  ऐसा  लगता  है    कि    लोगों  को  शारीरिक  और  मानसिक  रूप  से  उत्पीड़ित  करना  ,  उन्हें  बेमौत  मारना   राक्षसी  प्रवृति  के  लोगों  का  मनोरंजन  का  साधन  है    क्योंकि  ये  उत्पात  कभी  खत्म   नहीं  हुए   समय - समय  पर  विभिन्न  रूपों  में   वे  अपनी  शक्ति  का   प्रद्रशन  कर  देते  हैं  l
यह  सिलसिला  तभी  थमेगा  जब  लोगों  की  चेतना  जाग्रत  होगी ,  लोग  जागरूक  होंगे  l   आज  के  समय  में   बुद्धि  और  विवेक  से  ही  दुश्मन  को  पराजित  किया  जा  सकता  है  l 

WISDOM ---- अति सर्वत्र वर्जयेत

  हमारे  आचार्य , ऋषियों  आदि  का  कहना  है   कि   किसी  भी  स्थिति  में  अति  नहीं  होनी  चाहिए  l   महात्मा  बुद्ध  ने  कहा  भी  है --- वीणा  के  तार  को  इतना  मत  कसो  कि   वह  टूट  जाए ,  और  इतना  ढीला  भी  मत  छोड़ो   कि   वह  बजना  ही  छोड़  दे   l
  अति  जहाँ  भी  है ,  वह   मनुष्य  के  लिए  मुसीबत  उत्पन्न  करती  है   l   यदि  लालच , तृष्णा   , अहंकार  अति  का  है  तो  ये  दुर्गुण   उस  व्यक्ति  के  हृदय  की  संवेदना  को  सोख  लेते  हैं   , फिर  उसके  अमानुषिक  व्यवहार  से  सारा  समाज  त्रस्त   होने  लगता  है  l
  पूंजीवादी  व्यवस्था  में  अति उत्पादन  की  समस्या  है  l   अनेक  कारण  हैं  जिनकी  वजह  से  अति  उत्पादन  हो  जाता  है  ,  इससे  एक  नई   समस्या   उत्पन्न  होती  है  कि   इसे  खपाएं  कहा  ?    उपभोग  सामग्री  का  अतिउत्पादन  हो  तो  उसे  तो   कहीं  भी  खपाया  जा  सकता  है    लेकिन  यदि    नशीले  मादक  पदार्थ ,   कीटनाशक ,  अस्त्र - शस्त्र ,  हथियार ,  विभिन्न  तरह  की  दवाएं ,  इनके  उपकरण  आदि  का  अतिउत्पादन  हो  तो  उसे    किसी  बाजार  में  खपाना , बेचना  एक  कठिन  समस्या  होती  है  l   यदि  पूंजीपति  में   मानवीयता  नहीं  है  तो  वह  साम , दाम , दंड , भेद  किसी  भी  नीति   से  अपने  माल  को  बेचकर  लाभ  कमा  लेगा  ,  उसे  केवल  अपने  लाभ  की  चिंता  है  ,  लोगों  के  हित    की  परवाह  नहीं  है   l
     इसलिए  ऋषियों  ने  मध्यम   मार्ग  पर  बल  दिया  है  l   अपना  भी  हित   हो  जाये   और  संसार  का  अहित  न  हो  l  ' अति  का  अंत  होता  है  l   इसलिए ' जियो  और  जीने  दो ' l
  व्यवस्था  चाहे  जो  हो --- पूंजीवाद , समाजवाद ,  प्रजातंत्र ,  राजतन्त्र --- यदि   इनमे  मानवता ,  संवेदना ,  करुणा , भाईचारे ,  परहित  आदि  सद्गुणों  का  समावेश  होगा   तभी  इस  धरती  पर  लोग  सुख - शांति  से  जीवन  जी  सकेंगे  l  

18 April 2020

WISDOM ---- जीवन में धन जरुरी है लेकिन धन का अहंकार अनर्थ उत्पन्न करता है

  धन  जीवन  में  जरुरी  है  ,  लेकिन  लोभ  की  कोई  सीमा  नहीं   है   l   कोई  व्यक्ति  पचास  व्यक्तियों  से  अधिक  धनी   है  तो  भी  उसके  मन  में  कसक  होगी  कि   दूसरे  पचास  व्यक्ति  उससे  कहीं  अधिक  संपन्न  हैं  l   उसे  सबसे  आगे  निकल  जाने  की  आकुलता  होती  है  ,  इसलिए  हर  उचित , अनुचित  और  अनैतिक  तरीके  से  वह  धन  - सम्पदा  एकत्र  कर  लेता  है  l
   धन - संपन्न  व्यक्ति  होने  का  अहंकार   ,  उसके  मानवीय  गुणों  को  कम  कर  देता  है   l   क्योंकि  अहंकार  सभी  जगह  पर  अपना  आधिपत्य  स्थापित  करना  चाहता  है  l
  कहते  हैं  सद्गुणों  में  विशेष  आकर्षण  होता  है  इसलिए  बुरे  से  बुरा  व्यक्ति  भी  समाज  में  स्वयं  को  बहुत  शालीन ,  समाज सेवी , परोपकारी   सिद्ध  करना  चाहता  है  l   इसलिए  ऐसे  लोगों  का  दोहरा  व्यक्तित्व  होता  है  -- एक  समाज  के  सामने  बहुत  दानी , परोपकारी ,  आदर्श  व्यक्तित्व  और  दूसरी  परदे  के  पीछे   जहाँ  अति  धन  कमाने  की  लालसा  उसे  नैतिक  और  मानवीय  मूल्यों  से  गिरा  देती  है  l   संसार  की  अधिकांश  समस्याएं  ऐसे  ही  लोगों  की  अधिकता  से  उत्पन्न  होती  हैं  l
 संपन्नता   जिस  गति  से  बढ़ती  है  ,  फिर  व्यक्ति  हो  या  संस्था   उसका  अहंकार  भी  उतना  ही  बढ़ता  जाता  है  l   धन  की  ताकत  बहुत  होती  है ,  उसके  बल  पर  वे  किसी  भी  देश  की  व्यवस्था  को  अपने  अनुरूप   नीति     बनाने  पर विवश  कर  देते  हैं  l   यही  वजह  है  आज  संसार  में  शोषण  व  अन्याय  में  वृद्धि  हुई  है   l 

WISDOM ----- मनुष्य चैन से जीना चाहता है

  मनुष्य  जीवन  अनेक   समस्याओं  से  घिरा  हुआ  है  ,  बीमारी  है ,  दुःख  है   और  सबसे  बड़ा  दुःख  है --- मृत्यु  l   शेष  सारे  दुःख  तो  उसकी  छाया    में  हैं    l    मनुष्य  अपने  मिटने  के  डर   से  भयभीत  है   l   इसलिए   प्रत्येक  सांसारिक  प्राणी   मृत्यु  को   भुलाकर   अपनी  जिंदगी  अपने  हिसाब  से  चैन  से  जीना  चाहता  है   l   मनुष्य ,   ईश्वर  की  भी  उनके  सौम्य  रूप  में ,  सुन्दर  छवि  की  उपासना   करता  है  l
        गीता  में  भगवान   ने  अर्जुन  को  अपने  विराट  रूप  के  दर्शन  दिए  --' सब  जन्म    मुझ    से  पाते  हैं   ,  फिर  लौट  मुझ    में   ही   आते  है  l '   लेकिन  परमात्मा  के  विकराल  रूप  का  कोई  ध्यान  नहीं  करना  चाहता  l
  जीवन  जीने  की  स्वतंत्रता  बहुत  बड़ी  स्वतंत्रता  है  ,  मनुष्य  हर  पल  मृत्यु  को  अपने  आसपास  देखना  नहीं  चाहता  l   इसलिए  कोई  यह  कह  कर  कि  हम  तुम्हे  मृत्यु  से  बचाएंगे ,  व्यक्ति  पर  अपना  नियंत्रण  रखना  चाहे  ,  तो     ऐसी  स्थिति  में  लोग  मानसिक  व्याधियों  से  घिरने  लगते  हैं  , आक्रामक  हो  जाते  हैं  l 

17 April 2020

WISDOM ------- भय का भूत --- भयग्रस्त व्यक्ति एक संकट से अनेक संकट स्वत: पैदा कर लेते हैं

 नीति   कहती  है --- भय   आधी  मृत्यु  है  ,  इसलिए  किसी  को  अकारण   भय    नहीं  करना  चाहिए  ,  जो  अवश्यम्भावी   उसके  लिए   तो  भय  करना  और  भी  मूर्खता  है  l   उस  परिस्थिति  के  लिए  तो  शूरवीरों  की  तरह  तैयार  रहना  चाहिए    l    इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है  -------     एक  बार  संसार  की  बिगड़ती  हुई  स्थिति  को  सुधारने  पर  विचार - विमर्श  के  लिए  विष्णु जी   को    शिवजी   ने    बुलाया  और  यमराज  को  भी  बुलाया   l    विष्णु जी  के  वाहन  गरुड़  बाहर  ही  रुके  ,  मीटिंग  देर  तक  चलती  इसलिए  वे  समय  बिताने  के  लिए    वहां  दाना  चुग  रहे  कबूतर  से  बात  करने  लगे  l
  निमंत्रण  मिलते  ही  उसी  समय  वहां  यमराज  आ  धमके  ,   कबूतर  को  वहां  देख   उन्हें  हंसी  आ  गई  और  अर्थपूर्ण  ढंग  से  मुस्कराते  हुए  वे  अंदर  चले  गए  l
 यमराज  को  देख  कबूतर  के  तो  प्राण   सूख   गए  l   उसने  गरुड़  से  कहा --- अवश्य  ही  मेरी  मृत्यु  आ  गई   है ,  इसलिए  यमराज  मुझे  देखकर   हँसे  l   तू  मुझे  किसी  सुरक्षित  स्थान  पर  पहुंचा  दो  l
  गरुड़  ने  उसे  बहुत  समझाया  ,  पर  भयभीत  कबूतर   ने  कुछ  न  सुनी   और  कहा --- ' आप  मुझे  विंध्याचल  की  नीलाद्रि  गुफा   तक  पहुंचा  दो ,  मैं  वहां  छुप  जाऊँगा  , सुरक्षित  रहूँगा  l '
गरुड़  तो  बहुत    तीव्र  गति  से  उड़ते  हैं  ,  कबूतर  को  अपनी  पीठ  पर   बैठाकर  विंध्याचल  की  नीलाद्रि  गुफा  में  छोड़  आये  l
उसी  समय  मीटिंग  खत्म   हो  गई  और  यमराज  बाहर  निकले  l   वहां  कबूतर  को  न  देखकर  उन्होंने   गरुड़  से  पूछा  कि --- तुम्हारे  साथ  जो  कबूतर  था  वह  कहाँ  गया  ?   गरुड़  ने  हंसकर  कहा --- महाराज  !  आपकी  विकराल  दाढ़ , लम्बी  मूंछ  और  भयंकर  आकृति   को  देख  वह  भयभीत  हो  गया  l   मैंने  बहुत  समझाया ,  वह  माना  नहीं  l   इसलिए  मैं  अभी - अभी  उसे  विंध्याचल  में  एक  सुरक्षित  स्थान  पर  छोड़कर  आया  हूँ  l  '  यमराज  ने  पूछा  --- वहां  आपने  किसी  और  को  तो  नहीं  देखा l
गरुड़  ने  कहा --- जिस  गुफा  में  मैं  उसे  छोड़कर  आया ,  वहां  एक  बिल्ली  के  पंजे  के  निशान  देखे  l   कोई  बात  है  क्या  l   यमराज  ने  कहा  ---- ' जब  मैं  यहाँ  से  निकला  तो  मैंने  कबूतर  के  मस्तक  पर   एक  लेख  पढ़ा ,-- लिखा  था  -- एक  घड़ी   बाद  उसे  विंध्याचल  की  बिल्ली  खा  जाएगी  l   मैंने  उसे  शिवलोक  में  देखकर   विचार  किया  कि   ब्रह्मा जी  भी  कभी - कभी  कितनी  भूल  करते  हैं   l   कहाँ  शिवलोक  और  कहा  विंध्याचल   ,  पर  अब  स्पष्ट  हो  गया  ,  वैसे  चाहे  कबूतर  बच  जाता  ,  पर  उसके   भय   ने   ब्रह्मा जी  के  लेख  को  सत्य  कर  दिया  l   कबूतर  उस  गुफा  में  भी  न  बच  सका ,  यथासमय  पर  उसे  बिल्ली  ने  खा  लिया  l
  इस  कथा  से  यही  शिक्षा  मिलती  है    कि   विपरीत  परिस्थितियों  में  हम  धैर्य  से  काम  लें  l   भयग्रस्त  न  हों  l   धैर्य , विवेक  और   आत्मविश्वास  से   समस्याओं  पर  विजय  पाई  जा  सकती  है  l

   

WISDOM ----- विज्ञान की ताकत

   मनुष्य  भौतिक  प्रगति  कितनी  भी  कर  ले  उसकी  प्रवृतियां  नहीं  बदलती  l   सबकी  प्रवृति  अलग - अलग  है   और  विज्ञानं  इन  प्रवृतियों  को   एक  सुधरे  हुए  रूप  में  प्रस्तुत  करता  है  l
  संसार  का  इतिहास  हम  उठाकर  देखें  तो  यह   भीषण  आक्रमण  और  अत्याचार  के  उदाहरण  से  भरा  पड़ा  है  l
  पहले  आततायी  आक्रमणकारी  विशाल  सेना  लेकर  किसी  देश  में  आक्रमण  करने  आते  थे   और  भयानक  लूटमार  और  नरसंहार  कर  के   उस  देश  को  रौंदते  हुए  चले  जाते  थे  l  उस  देश  की  आर्थिक  स्थिति  दयनीय  हो  जाती  थी  l   अब  वैज्ञानिक  आविष्कारों  ने   इतनी  बड़ी  सेना  और  लाव - लश्कर  एक  देश  से  दूसरे  देश  ले  जाने  की  समस्या  को  हल्का  कर  दिया  l   अब  आक्रमणकारी  अपने  स्थान  पर  बैठे  - बैठे   दुनिया  के  विभिन्न  देशों  में  एक  साथ  अदृश्य  रूप  से  आक्रमण  कर  भीषण  नरसंहार  कर  सकता  है  ,  वहां  की  आर्थिक  स्थिति  को  दयनीय  बना  सकता  है   और  उनकी  बरबादी   का  ठीकरा  उन्ही  पर  फोड़कर  ,  उनकी  सहायता  कर  यश  भी  ले  लेता  है   l
    प्राचीन  से  आधुनिक  होने   के  इस  सफर  में  यदि  कुछ  नहीं  बदला   तो  वह  है  -- मनुष्य  का  अहंकार  ,   लालच ,  लूट  में  अपना  हिस्सा  लेने  की  प्रवृति   l    लोगों  की  यह  प्रवृति  ही  आक्रमणकारी  को   मजबूत   बनाती   है   l  इन  दुष्प्रवृतियों  का  खामियाजा    जन - साधारण   भुगतता  है   ,जिनका  कोई   कुसूर   भी  नहीं  होता , जो  जैसे - तैसे   मेहनत , मजदूरी  कर  अपने  परिवार  का  भरण - पोषण  करते  हैं  l
 इसलिए  ऋषियों  ने  कहा  है  --- विज्ञानं  के  साथ  नैतिकता  और  संवेदना  की  शिक्षा  अनिवार्य  होनी  चाहिए  l   

16 April 2020

WISDOM ----- अदृश्य शत्रु

 महाभारत  में  एक  प्रसंग  है ---- घटोत्कच  वध  l   जब  पांडव  वनवास  की  अवधि  में  थे  , तब  भीम  ने  हिडिम्बा  नाम  की  एक  कन्या  से  विवाह  किया  था  ,  जो  एक  राक्षस  की  पुत्री  थी   l   उससे  उनके  एक  पुत्र  हुआ  जिसका  नाम  घटोत्कच  था  l   महारथी  भीम  का  यह  पुत्र  बहुत  वीर  था  और  मायावी  विद्दा   जानता    था   l  रात्रि  के  समय  उसकी  ये  शक्तियां  और  अधिक  प्रबल  हो  जाती  थीं  l
  महाभारत  के  युद्ध  में  पांडव  पक्ष  की  ओर   से  एक  दिन  उसे  भी   युद्ध  का  दायित्व  मिला  l
       घटोत्कच  ने  अदृश्य  होकर   कौरव  पक्ष  पर  जो  आक्रमण  किया    उससे  कौरव  सेना  में  हाहाकार  मच  गया  l   युद्ध  का  मैदान  सैनिकों  की  लाशों  से  पट  गया  l   दुर्योधन  की  सेना  में  एक  से  बढ़कर  एक  महारथी  थे    लेकिन  अदृश्य  शत्रु  जो  मायावी   हो  उसका  सामना  कैसे  करें  ?   भीष्म  पितामह  शर -शैया  पर  थे   l   आचार्य  द्रोण   भी  वीरगति  को  प्राप्त  हो  चुके  थे 
  दुर्योधन  भीष्म  पितामह  के  पास  गया   और   निवेदन  किया  कि --- पितामह ,  बताइये ,  यह  क्या  मुसीबत  है  ?  और   इस  विपत्ति  से   कैसे  छुटकारा  मिले   ? 
पितामह  ने  कहा  ----   '   यह  महारथी  भीम  का  पुत्र  घटोत्कच  है   जो  मायावी  विद्दा  जानता  है  ,  इसे  पराजित  करना  आसान  नहीं  है  l   दुर्योधन  के   बार - बार  निवेदन  करने  पर  पितामह  ने  कहा ---  '  कर्ण   के  पास  एक  दिव्य  शक्ति  है  l   जब  कर्ण   ने  देवराज  इंद्र  को  अपने   जन्मजात   कवच - कुण्डल  दान  में  दिए  थे     तब  इंद्र  ने  प्रसन्न  होकर  उसे  एक  दिव्य  शक्ति  प्रदान  की  थी   और  कहा  था  कि   शत्रु  पर  तुम  इसका  प्रयोग  जीवन  में  केवल  एक  बार  कर  सकते  हो  l    कर्ण  ने  उस  शक्ति   को  अर्जुन  पर  वार  करने  के  लिए  सुरक्षित  रखा  है   l   केवल  उसी  शक्ति  से  घटोत्कच   का  अंत  किया  जा  सकता  है  l  '
         अब  दुर्योधन  ने  कर्ण   से  कहा  --- हमारे  सैनिक  मरते  जा  रहे  हैं  ,  तुम  उस  दिव्य  शक्ति  से  इस  विपत्ति  का  अंत  करो  l   कर्ण   दुर्योधन  का  मित्र  था  ,  इनकार    कैसे  करता  l   कर्ण   ने  घटोत्कच  को  लक्ष्य  कर  के   उस  दिव्य  शक्ति  का  प्रयोग  किया   l   सारी   माया  छट   गई ,  घटोत्कच  का  अंत  हुआ  l
        कर्ण   सूर्य  पुत्र  था  l   सूर्य  से  ही  हम  सबको  प्राण - शक्ति  मिलती  है  l    आज  के  सन्दर्भ  में   इस
 कथा  से  हमें  यही  प्रेरणा  मिलती  है   कि    जब  शत्रु  अदृश्य  हो  ,  मायावी  हो  ,  सामान्य जन  समझ  न  पाए  कि   आक्रमणकारी  कौन  है     तब  हम  अपनी  प्राण - शक्ति  को  बढाकर ,  अपने  आत्मबल  को   बढ़ाकर ,  जागरूक    और  निर्भय  रहकर  ही  जीवन  संग्राम  में  विजयी  हो  सकते  हैं   l   यह  आत्मबल  ही  दिव्य शक्ति  है  l 

WISDOM ------ आशा की किरण

      संसार  में  विपत्तियां  हर  समय  किसी  न  किसी  रूप  में  आती  हैं  --- बाढ़ , भूकंप , सुनामी , अकाल ,  आंधी , तूफान ,  विभिन्न  बीमारियां  जैसे --- टी. बी.  एड्स , कैंसर , हृदय घात , महामारी   आदि  इन  सब  के  कारण  प्रतिदिन  हजारों  लोग  मृत्यु  के  मुख  में  चले  जाते  हैं  , इसके  अतिरिक्त  तनाव  आदि  विभिन्न  कारणों  से  लोग  आत्महत्या  करते   हैं  ,  क्षेत्रीय  युद्ध  और  आतंकवादी  हमलों  में  अनेक  लोग  मारे  जाते  हैं   l 
     कहने  का  तात्पर्य  है  कि   मृत्यु  के  अनेक  बहाने  हैं    लेकिन  हमेशा  मृत्यु  के  आंकड़ों  के  देखते   रहने  से  ,  चारों  ओर   मृत्यु  ,  महामारी , मंदी   और  बेरोजगारी    की  बात  होने  से  सामान्य  जन   के  मन  में  एक  अनजाना   भय   समा  जाता  है ,  जीवन  में  निराशा  आ  जाती  है   l   इस  निराशा    को  दूर  करने  के  लिए  हम  आँख  खोलकर  देखें  कहीं  न  कहीं  आशा  है  l   संसार  में  एक  ओर   यदि  मातम  है   तो  दूसरी  ओर   कुछ  व्यवसाय  बड़ी  तेजी  से  फल फूल  रहे  हैं  l   जो  कम्पनियाँ   और  संगठन  दवाएं  बनाते  हैं ,  चिकित्सा  के  विभिन्न  उपकरण  बनाते  है   उनकी  मांग  और  बिक्री  पूरे   संसार  में  इतनी  बढ़   गई  कि   वे  तो  अरबपति  और  खरबपति  बन  जायेंगे   l   इसके  अतिरिक्त  सेनेटाइजर  आदि  जिनका  प्रयोग  अभी  तक  समाज  का  एक  विशेष  वर्ग  ही  करता  था  ,  अब  साधारण  व्यक्ति  भी   इनसे  परिचित  हो  गया  l   ऐसी  ही  अनेक  वस्तुएं  हैं   जहाँ  मांग  और  बिक्री  बड़ी  तेजी  से  बढ़ी  है  l   इन  सब  क्षेत्रों  में   निश्चित  रूप  से  रोजगार  भी  बढ़ेगा  l
  कहते  हैं   भय   आधी  मृत्यु  है  l   जब  मनुष्य  भयभीत  है  तो  उसे  रस्सी  भी  सांप  नजर  आती  है  l   इसलिए  हम  भय   के  भूत  को  भगाएं  ,  इन  विपरीत  परिस्थितियों  में  भी  अपने  लिए  जो  अनुकूलतम  है   ,  उसे  खोजे  l  

15 April 2020

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ----- ' बढ़ती  हुई  भौतिक  और  वैज्ञानिक  प्रगति  के  साथ  यदि  मानवता    और  अध्यात्मवादिता  को  नहीं  अपनाया  गया  तो  ये  दुनिया    किसी  भी  दिन  विनष्ट  हो  सकती  है  l '
 बट्रेंड   रसेल  ने  कहा  है  ----' मानव  जाति   अब  तक  जीवित  रह  सकी    तो  अपने  अज्ञान  और   अक्षमता  के  कारण  ही  l   परन्तु  अगर  ज्ञान  और   क्षमता    मूर्खता  के  साथ   युक्त  हो  जाये   तो  उसके   बचे  रहने  की  कोई  संभावना  नहीं  है   l  '
  आधुनिक  विज्ञान   ने  हमारे  जीवन  को  सुख - सुविधा  और  विलासिता  की  चीजों  से  भर  दिया   और  हम  उन  चीजों  के  अभ्यस्त  हो  गए  लेकिन  इस  भौतिक  प्रगति  ने  मनुष्य  को  संवेदनहीन  बना  दिया  l
  प्राचीन  समय  में  हमारे  ऋषियों  ने  जो  अविष्कार  किये ,   उसके  पीछे   उनकी  तपस्या  और  गहन  साधना   थी    l जनकल्याण  का  भाव  था  ,  इसलिए  उनका  समाज  पर  सकारात्मक  प्रभाव  पड़ता  था  l
  अब  इस  युग  में  जो  वैज्ञानिक  अविष्कार   हुए   और   हो  रहे   हैं  उनमे  गहन  साधना ,  एकाग्रता ,  कड़ी  मेहनत  आदि   अनेक   गुणों    के    साथ ' धन '  का  प्रवेश  हो  गया  l   जो  व्यक्ति  नई  टेक्नोलॉजी  और  नए  आविष्कारों  में  धन  लगाएगा  ,  स्वाभाविक  है  वह  उनसे  लाभ  भी  कमाना   चाहेगा  l   बिना  शोषण  के  धन  कमाया  नहीं  जा  सकता   , फिर  इस  धन  को  जहाँ  भी  विनियोग  किया  जायेगा   उसके  पीछे  अधिकाधिक  लाभ  कमाने  की  भावना   होना  निश्चित  है  l   इसी  लिए  आविष्कारों  को  व्यवसाय  बनाकर  अत्यधिक  लूटपाट  की  जा  रही  है   l
   धन  का   प्रवेश  जिस  भी  क्षेत्र  में  हुआ  ,  वही  क्षेत्र  व्यवसाय  बन  गया  l   सामाजिक   जीवन    में  जो  अधिक  धनवान  है  , उसका  सम्मान  है  ,  चाहे  उसने  यह  धन  कितनो  को  लूटकर ,  भ्रष्टाचार  और  अनैतिक  तरीकों  से  जमा  किया  हो  l   धन  की  वजह  से  राजनीति    भी  व्यवसाय  बन  गई  है   l   जो  बहुत  धन  देता  है   वह  अपनी  हुकूमत  चलाता   है  l   प्रत्यक्ष  में  कोई  कुर्सी  पर  बैठे  ,  पर  चलती  उसकी  है   जिसके  पास  धन  है , कुटिलता  है   l   इस  धन  ने  भगवान   के  नाम  पर  होने  वाले  कल्याण  कार्यों  को  भी  दूषित  कर  दिया   l   दिखावे  को  लोग  बहुत  बड़ा  दान  करते  हैं  ,  फिर  उचित  मौका  देख  उससे  दस  गुना  फायदा  कमा  लेते  हैं  l       संसार  में  जब  कमजोर  पर ,  गरीबों  पर   बहुत  अत्याचार  हो   तो  उसके  पीछे  सबसे  बड़ा  कारण  यही  है   कि   जीवन  के  विभिन्न  क्षेत्रों  में  धन  ने  अपनी  सत्ता  जमा  ली  है   l   इनसान   के  मन  को  शांति  और   स्वस्थ  शरीर  का  सुख  तभी  मिलेगा  जब  वह  जागरूक  होगा  l   सारे  संसार  को  हम  नहीं  बदल  सकते  ,  चारों  ओर   कांटे  हों  ,  उनके  बीच  साफ़  रास्ता  हमें  ही  बनाना  होगा  l   सरल  और  सादगीपूर्ण  जीवन  जी  कर ,  प्रकृति  से  तालमेल  बैठकर   हम  इस  अशांत  वातावरण  में  भी  शांति  व  सुख  से  रह  सकते  हैं   l