हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं l ईश्वर ने धरती पर जन्म लेकर अपने कार्यों से , आचरण से संसार को शिक्षण दिया l एक ही शिक्षण को आसुरी प्रवृति के लोग अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं , लेकिन सन्मार्ग पर चलने वाले उसी शिक्षण से अपनी रक्षा करते हुए जीवन - पथ पर आगे बढ़ते हैं l एक प्रसंग है ----
महाभारत के युद्ध में आचार्य द्रोण सेनापति बने l जब तक उनके हाथ में शस्त्र है , तब तक उन्हें हराना असंभव था l अर्जुन आदि सभी उनके शिष्य थे , उन्हें कैसे पराजित कर पाते l किन्तु द्रोणाचार्य अधर्म के साथ थे इसलिए उन्हें पराजित तो होना ही था l भगवान कृष्ण के निर्देशन में सब पता किया गया तो ज्ञात हुआ कि यदि द्रोणाचार्य को यह कह दिया जाये कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया तो वे निराश होकर अपने हथियार रख देंगे , तब पांडव पक्ष का सेनापति धृष्टद्द्युम्न उनका वध कर देगा ( धृष्टद्दुम्न का जन्म ही द्रोणाचार्य के वध के लिए हुआ था l )
इस के लिए यह योजना बनाई गई की कि कौरव पक्ष में अश्वत्थामा नामक एक हाथी है , उसका वध कर के यह अफवाह फैला देंगे कि ' अश्वत्थामा मारा गया l ' द्रोणाचार्य शस्त्र और शास्त्र दोनों के ज्ञाता हैं , वे इस बात का विश्वास नहीं करेंगे और निश्चित रूप से सत्यवादी धर्मराज युधिष्ठिर से अवश्य सत्य जानना चाहेंगे l शेष पांडवों और कृष्ण ने युधिष्ठिर को बहुत समझाया कि द्रोणचार्य के पूछने पर वे झूठ बोल दें कि ' हाँ , अश्वत्थामा मारा गया ' लेकिन युधिष्ठिर किसी तरह राजी नहीं हुए l तब यह तय हुआ कि धर्मराज युधिष्ठिर इस तरह कहेंगे -- ' अश्वत्थामा हतो , नरो व कुंजरो ' ( अश्वत्थामा मारा गया , मनुष्य नहीं , हाथी ) आगे जो होगा पांडव संभल लेंगे l
अगले दिन युद्ध शुरू हुआ , भीम ने अश्वत्थामा नामक हाथी को मार दिया , और घंटे - घड़ियाल के साथ सब तरफ यह शोर मचा दिया , अफवाह फैला दी कि ' अश्वत्थामा मारा गया " l कौरव सेना में भगदड़ मच गई कि अश्वत्थामा मारा गया , अब क्या होगा ? कितने सैनिक तो उस भगदड़ में दबकर मर गए l यह अफवाह द्रोणाचार्य के कानों तक पहुंची , उनको विश्वास नहीं हुआ l अफवाह इतनी तेजी से फैलती है कि सामान्य जन असलियत जानने की कोशिश ही नहीं करता , उस पर विश्वास कर लेता है l द्रोणाचार्य जिससे भी पूछें , सब यही कहें कि ' हाँ , अश्वत्थामा मारा गया l अब उन्होंने सारथि से कहा --- रथ युधिष्ठिर के सामने ले चलो , वे सत्यवादी हैं , धर्मराज हैं , वही सत्य बताएँगे l
गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर से पूछा --- " युधिष्ठिर ! तुम सत्यवादी हो , तुम बताओ , क्या मेरा पुत्र अश्वत्थामा मारा गया ? "
युधिष्ठिर पर जैसा दबाव था , उन्होंने कहा ---' अश्वत्थामा हतो --- युधिष्ठिर के इतना बोलते ही भीम आदि पांडवों ने शंख , घंटे - घड़ियाल सहित इतना शोर किया कि आगे का शब्द ----' मनुष्य नहीं हाथी ' द्रोणाचार्य को सुनाई ही नहीं दिया , वे अपने पुत्र से बहुत स्नेह करते थे , एकदम निराश हो गए , उनका आत्मबल गिर गया , उन्होंने अपने अस्त्र - शस्त्र सब रख दिए , उसी समय उनके जन्मजात शत्रु धृष्टद्दुम्न ने उनका वध कर दिया , चारों तरफ अफरा - तफरी मच गई , कितने ही सैनिक उसमे मर गए l
कहते हैं युधिष्ठिर सत्यवादी थे , उनका रथ जमीन से ढाई अंगुल ऊपर चलता था , यह उनके सत्य की , धर्माचरण की शक्ति थी लेकिन न चाहते हुए भी इस झूठ की वजह से उनका रथ इस पृथ्वी से स्पर्श कर चलने लगा और मृत्यु के बाद इस एक झूठ की वजह से उन्हें एक पल का नरक भोगना पड़ा l
महाभारत का यह प्रसंग हमें इस सत्य को बताता है कि ंजन सामान्य एक साधारण व्यक्ति की बात का विश्वास नहीं करता , लेकिन यदि कोई उच्च पद पर प्रतिष्ठित व्यक्ति चाहे किसी के दबाव में ही झूठ बोल दे , किसी अफवाह पर अपनी मोहर लगा दे तो सामान्य जन उसे सच मानकर उसका विश्वास कर लेता है l इसलिए ऋषियों ने कहा है कि उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों को अपना प्रत्येक कदम बहुत सोच - विचारकर उठाना चाहिए