31 December 2019

WISDOM ------- समयानुसार कार्य करना बुद्धिमानी है

   हमारे  पुराणों  की  कथाएं  हमें   नीति   की  शिक्षा  देती  हैं ,  जीवन  जीना  सिखाती  हैं  l   एक  कथा  है -----  समुद्र  मंथन  होना  था  ,  इस  मंथन  से  अमृत  निकाल   कर  पीने  से  देवता  अमर  हो  जाते   लेकिन    यह  कार्य  अकेले  देवताओं  के  वश  का  नहीं  था   l  सब  देवता  भगवान   विष्णु  के  पास  गए   l   तब  विष्णु  भगवान   ने  देवताओं  को  समझाते   हुए  कहा --- देवताओं  !  कोई  भी  बड़ा  कार्य  करना  हो  तो   सबसे  चाहे  वे  शत्रु  ही  क्यों  न  हों , सबसे  मेल - मिलाप  कर  लेना  चाहिए  l  समाज  की  सर्वांगीण  उन्नति  तथा  सुख - शांति  ही  मुख्य  लक्ष्य  है   l  संकट  काल  को  मैत्री पूर्ण  भाव  से  व्यतीत  करना  चाहिए  
   देवताओं  ने  असुरों  के  राजा  बलि   से  मंत्रणा  की  ,   दोनों  में   समझौता  हुआ l     मंदराचल  पर्वत  की   रई   और  वासुकि  नाग  की  नेती  ( रस्सी के रूप में )   समुद्र मंथन  को  उद्दत  हुए  l  बिना  आधार  के  पर्वत  समुद्र  में  डूबने  लगा  तब  स्वयं  भगवान  ने  कच्छप  रूप  में  उसे  अपनी  पीठ  पर  धारण  किया  l
  देवता  लोग  पूँछ   की  तरफ  रहे  और  असुर  वासुकि  नाग  के  मुंह  की  और  थे  l   इस  प्रकार  सबके  मेल - जोल   से  ,  सबके  सहयोग  से  समुद्र  मंथन  होने  लगा  l   सबसे  पहले उग्र  विष  निकला   ,  उसकी  ज्वाला  से  सब  जलने  लगे   तब  देवता  और  दैत्यों  ने  शिवजी  से  प्रार्थना  की   कि   वे  इस  विष  का  पान  करें   l वे  भोले बाबा  हैं  उन्होंने   हलाहल  विष  को  अपने  कंठ  में  धारण  किया  और  नीलकंठ  कहलाए  l
  इसके  बाद  कामधेनु  निकली  जिसे  देवताओं  ने  लिया ,  उच्चै :श्रवा  घोड़ा   दैत्यराज  बलि  को  दिया  गया ,  ऐरावत  हाथी   इंद्र  ने  लिया ,   कौस्तुभ मणि  भगवान  ने ग्रहण की  l  समुद्र मंथन  में  रम्भा  अप्सरा  निकली  जो  देवलोक  चली  गई  l  फिर  लक्ष्मी जी  प्रकट  हुईं  , उन्होंने  विष्णु  भगवान   को  वरण   किया  l  चन्द्रमा , पारिजात  वृक्ष  तथा  शंख  उत्पन्न  हुआ  l   सबसे  अंत  में  धन्वन्तरि  वैद्द्य  अमृत का  घट   लिए  प्रकट  हुए  l   दैत्यों  ने  अमृत  घट   देखा  तो  उसे  झपट  कर  ले  गए  l  और  उसे  पीने  के  लिए  आपस  में  लड़ने  लगे  l
अमृत  दैत्यों  के  हाथ  में  देख  भगवान   ने  विचार  किया    असुर  तो  जन्म  से  ही  क्रूर  स्वाभाव  के  हैं ,  इन्हे  अमृत  पिलाना  सांप  को  दूध  पिलाना  है   l   दुष्टता  का  पोषण  खतरनाक  है ,  दुष्प्रवृतियां   कहीं  भी  हों   उन   को  कुचला   जाना  चाहिए  ,  यदि  ऐसा  नहीं  किया  गया  तो  हमारा  अस्तित्व  खतरे  में  पड़   जायेगा  l  सत्प्रवृत्तियाँ   अर्थात  देवत्व  ही  अमरता   का  अधिकारी  है  l   दुष्टता  का  प्रतिरोध  ईश्वरीय  कार्य  है  l 
विष्णु भगवान   ने  विश्व मोहिनी  रूप  धारण  किया  ,  दैत्य  उनके  सौंदर्य  में  मदहोश  हो  गए   और   मोहिनी   रूप    धारी   भगवान   ने  देवताओं  को  अमृत   पिला    दिया  l
देवता  और  दैत्य  दोनों  ने  ही   एक  ही  कर्म  व  एक  सा  परिश्रम  किया   लेकिन   देवताओं  में  सद्गुण  थे  ,  सद्प्रवृति  थी  इसलिए  ईश्वर  की  कृपा  उन्हें  अमृत   रूप  में  मिली  l 

30 December 2019

WISDOM ----- ' जियो और जीने दो '

  ईश्वर  चाहते  हैं  कि   हम  ' जियो  और  जीने  दो '  के  सिद्धांत  के  अनुसार  स्वयं  भी  सुख पूर्वक  जीवन  यापन  करें   और  दूसरों  को  भी  जीने  दें   l  किन्तु  जब  हम  मोह - वश  इस  व्यवस्था  को   भंग    कर   अपने  और  दूसरों  के  लिए  पतन  और  पीड़ा  का  सृजन  करते  हैं  तब  अपनी  सृष्टि  व्यवस्था  में  संतुलन  स्थापित  करने  के  लिए   प्रभु  अवतरित  होते  हैं  l
  महाभारत  में  प्रसंग  है  ---  जब  भगवान   कृष्ण  कौरव - पांडवों  में  सन्धि   के  लिए  हस्तिनापुर  पहुंचे  तो  उन्होंने  धृतराष्ट्र   से  कहा  कि  आप  पांडवों  को  उनका  न्यायोचित  अधिकार  प्रदान  कर  इस  भयंकर  युद्ध  को  टालिए   l   तब  धृतराष्ट्र  ने  कहा ---  मैंने  और  गांधारी , भीष्म , द्रोणाचार्य , विदुर  सभी  ने  उसे  बहुत  समझाया  ,  वह  बहुत  हठी व  दुष्ट  है , आप  ही  उसे  समझाने   का  प्रयास  करें  l '
   श्रीकृष्ण  ने  दुर्योधन  को  समझाया  कि   ज्यादा  लोभ  अच्छा  नहीं  है  ,  तुम्हे श्रेष्ठ  पुरुषों   जैसा आचरण  करना  चाहिए  l   दुर्योधन  ने  किसी  की  बात  नहीं  मानी  और  कहा  कि   मैं  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  पांडवों  को  नहीं  दे  सकता।  फिर  सभा  से  उठकर  चला  गया  l   तब  श्रीकृष्ण   ने    भीष्म   आदि  को  संबोधित   करते  हुए  कहा ----  दुर्योधन  किसी की  बात  मानता  ही  नहीं ,  अब  कुरुवंश  का   हित    इसी में  है  कि    इस  पर बलपूर्वक    नियंत्रण  कर   इसे  कैद  कर  लिया  जाये   तभी   यह    भयंकर  युद्ध  रुक  सकता  है  l    जिस तरह  शरीर  में  पनपने  वाले   विषैले  फोड़े  को  माँ  बेरहमी  से  निकलवा  देती  है   ,  ताकि  उसके   बच्चे  का  भविष्य  सुखमय  हो  सके    उसी प्रकार  दुष्ट  को  कुल , समाज  व  राष्ट्र  की  भलाई  के  लिए  रास्ते  से  हटा  देना  चाहिए   l   दुष्टता  का  प्रतिरोध  भी  ईश्वरीय  कार्य  का  ही  एक  अंग  है  l 
 धृतराष्ट्र   तो  मोह  में  अंधे  थे , भीष्म  प्रतिज्ञा  से  विवश  थे  ,  कुछ  न  कर  सके  l  उलटे  दुर्योधन  ही  अपने  मंत्रियों  की  सलाह  से  कृष्ण  को  बंदी  बनाने  चला  l   तब  भगवान   ने  अपना  विश्वरूप  दिखाया   l
         दुर्योधन  के  अहंकार  में  पूरा  कुरुवंश  का  अंत  हो  गया  l 

29 December 2019

WISDOM ------ अनीति करने वाले के साथ - साथ वे भी पाप के भागी होते हैं जो उसे चुपचाप देखकर चुप रह जाते हैं , उसे रोकने का प्रयास नहीं करते

     ' महाभारत  तो  होना  ही  था  ,  क्योंकि  दुर्योधन  की  अनीति  और  अन्याय  को  देखकर  उस  समय  के  शिखर  पुरुष   भीष्म  पितामह ,  द्रोणाचार्य   खामोश  रहे  l   जिस  समय  भगवान   श्रीकृष्ण  दूत  बनकर  सन्धि   करने  को  हस्तिनापुर  जा  रहे  थे  ,  द्रोपदी  ने  उन्हें  देखा  तो  कहा ---- " भैया  ! तुम  उनसे  सन्धि   करने  जा  तो  रहे  हो   किन्तु  मेरे  बालों  को  न  भूल  जाना  ,  इन्ही  बालों  को  खींचकर  उन्होंने  एक  अबला  का  अपमान  किया  था  l  "
  तब  श्रीकृष्ण  ने  उत्तर  दिया --- " हे  द्रोपदी  ! चाहे  हिमालय  पर्वत  चलने  लग  पड़े ,  पृथ्वी  सौ   टुकड़े  हो  जाये   और  आकाश  नक्षत्रों  सहित  गिर  पड़े ,  किन्तु  मेरा  वचन  असत्य  नहीं  हो  सकता ,  मैं  उन  आततायियों  से  बदला  लेकर  रहूँगा  l  "  श्रीकृष्ण  ने  जैसा  कहा  वैसा  कर  के  दिखाया   और  दुनिया  के  सामने  एक  ज्वलंत  आदर्श  रख  दिया  l   जब  युद्ध  के  मैदान  में  अपने  संबंधियों   को  देख  अर्जुन  को  मोह  हो  गया   और  वह  युद्ध  करने  से  मना  करने  लगा  तब  भगवान   ने  उसे  गीता  का  उपदेश  दिया   कि ---- हृदय  की  दुर्बलता  और  क्षुद्रता  को  छोड़कर  उठो  और  शत्रुओं  से  जाकर  लड़ो ,  यदि  तुम  क्षात्र   धर्म  का  पालन  नहीं  करोगे  तो  पातकी  कहलाओगे  l   संसार  में  प्रतिष्ठित  व्यक्ति  की  निंदा  मृत्यु  से  भी  भयंकर  है    l  "
    वर्तमान    परिस्थितियों  के  सन्दर्भ  में  पं. श्रीराम  शर्मा  वाङ्मय  ' संस्कृति - संजीवनी  श्रीमद भागवत   एवं  गीता '  में  लिखते  हैं ---- ' हिन्दुस्तान   की  वीर  जाति   का  दुर्भाग्य  है  ,  उसने  स्वदेशाभिमान  और  वीरता  में  विश्वास  के  स्थान  पर   केवल  मात्र   अपने  ही  भाइयों  का  खून  चूसकर  पूंजी  इकट्ठी  करना  सीख  लिया  है  l   ये  भावनाएं  ही  उनमे  कायरता  भर  रही  हैं  l   निरंतर  सुख  निद्रा  में  सोये  रहने  के  कारण   इनमे  देश भक्ति  और  धीरता  के  भाव  ही  जाते  रहे  हैं  l   देश  की  चिंता  के  स्थान  पर  इन्हे  अपनी  पूंजी  की  चिंता  लग  पड़ी  है  l   विपत्ति  काल  में  अपनी  अन्याय  से  कमाई  हुई  पूंजी  के  साथ   कायरों  की  तरह  लुक छिप  जाना  ही  इसने  अपना  आदर्श  समझ  लिया  है   l   इस  बुजदिली  को  जन्म  देने  वाले  अधिकांश  पूंजीपति  हैं   जिन्होंने  गीता  के  पवित्र  सिद्धांतों  को  ठुकरा  कर   समय  से  अनुचित  लाभ  उठाया  है   और  देश  को  हर  संभव   उपाय   से  चूस - चूस  कर  अस्थि  शेष  कर  डाला  है   l 
 आजकल  देश  में  जितनी   अशांति  है  उसका  मुख्य  कारण    व्यक्तियों   का  स्वार्थ  और  दुर्बलता  है    और  दूसरी  और  हमारे  ही  भाई   '  पैसा  गुरुणां   गुरु  '   वाली  कहावत  चरितार्थ  कर  रहे  हैं   l   '

28 December 2019

WISDOM ----- इस संसार में सज्जन को सज्जन तथा दुष्ट को दुष्ट सलाहकार मिल जाते हैं

  श्रीमद भागवत   कथा   शुकदेव जी  ने  राजा  परीक्षित  की  सुनाई   l   इस  कथा  में   प्रसंग  है ---  कंस  की  चचेरी  बहन  देवकी  का  विवाह ,  वसुदेव   से  हुआ  , तब  विदा  के  समय   स्नेहवश  कंस  स्वयं   रथ  हाँक  रहा  था   l  रास्ते  में  आकाशवाणी  हुई  कि   तू  जिसका  रथ  हाँक  रहा  है  ,  उसके  आठवें  पुत्र  द्वारा  ही  तेरा  वध  होगा  l   यह  सुनकर  कंस  तलवार  लेकर  देवकी  को  मारने  दौड़ा  l   तब  वसुदेव   ने  उसे  समझाया  --- मृत्यु  तो  सब  की  निश्चित  होती  है  ,  तुम  अपनी  बहन , जो  तुम्हारी  पुत्री  जैसी  है ,  उसे  मारने  का  कलंक  क्यों  अपने  ऊपर  ले  रहे  हो  l   उन्होंने  कंस  को  बहुत  समझाया  लेकिन  वह  माना  नहीं  l   नीति   कहती  है ---भाग्य  के  नाम  पर   जो  अपने , प्रयास  और  पुरुषार्थ  को  छोड़  बैठते  हैं   वे  दोष  के , पाप  के  भागी  होते  हैं ,  इसलिए  किसी  भी   परिस्थिति  में  से  मार्ग  निकालने   का  प्रयत्न  करना  चाहिए  l '    ऐसा  सोचकर   वसुदेव   ने  कहा --- आपको  देवकी  के  पुत्रों  से  खतरा  है   l  मैं  इसके  पुत्र  होते  ही  आपको  सौंप  दूंगा  l   अपने  मंत्रियों  की  सलाह  से  उसने  देवकी  और  वसुदेव   को   कैद  कर  लिया  और  उसके  सभी  पुत्रों  को  मारता  गया  l    आठवें  पुत्र  के  रूप  में  भगवान   कृष्ण  का  जन्म  हुआ  l  सब  कुछ  ईश्वर  की  लीला  थी  , वसुदेव  कृष्णजी  को  लेकर  गोकुल  गए  , वहां  यशोदा  मैया  के  पास  उन्हें  सुला  दिया  और  उनकी  नवजात  कन्या  को  लेकर  बंदीगृह  में  वापस  आ  गए   l  जब  पहरेदारों  ने  बच्चे  के  रोने  की  आवाज  सुनी  तो  कंस  को  सूचना   दी   l   कंस  भागता  हुआ  आया  (  कोई  कितना  भी  ताकतवर  हो  मृत्यु  से  डरता  है )  और  देवकी  की   गोद    से  कन्या  को  छीनकर  उसे  चट्टान  पर  पटक  दिया  l   वह  कन्या  उसके  हाथ  से  छूटकर  आकाश  में  चली  गई   और  कहा --- अरे  मूर्ख  !  तुझे  मारने  वाला  तो  कहीं  और  पैदा  हो   चुका    है   l
  अब  कंस  ने  यह  सुनकर  अपने  मंत्रियों  को  सलाह  के  लिए  बुलाया  l   शुकदेव जी  कहते  हैं ---- एक  तो  कंस  बुद्धि   स्वयं  भ्रष्ट  थी ,  फिर  उसे  मंत्री  ऐसे  मिले  जो  एक  से  बढ़कर  एक  दुष्ट  थे   l   शुकदेव जी  कहते  हैं --- यदि  हमारा  विवेक  जाग्रत  नहीं  है    तो  दूसरों  की  सलाह  हमें  भटका  सकती  है   l  
  मंत्रियों  की  सलाह  से   कंस  ने    सबने  मिलकर   निर्णय  किया  कि   जहाँ  भी  सत्प्रवृत्तियाँ  होंगी ,  अच्छे  कार्य  होंगे  उन्हें  नष्ट  कर  देंगे   और  सभी  नवजात  शिशुओं  की  हत्या  करने  की  योजना  बनाई  l
  राक्षसों  ने  उत्पात  मचाना  शुरू  कर  दिया  ,  सब  जगह  त्राहि - त्राहि  मच  गई  l
निरपराध   को  सताना   ,  श्रेष्ठता  को  मिटाना   पतन  का  कारण   है   l   कृष्णजी  के  हाथों  कंस  का  वध  हुआ  l 

27 December 2019

WISDOM -------

       महर्षि  व्यास  ने    महाभारत    जैसे  महाकाव्य  की  रचना  के  बाद  यह  अनुभव  किया  कि   यह  पर्याप्त  नहीं  है  l   ज्ञान , विज्ञान   तो  रावण  और  कंस   आदि  राक्षसों  के  पास  भी  था  ,  किन्तु  उनमे  संवेदना ,  आदर्श  परायणता  का  अभाव   होने  से   वह  लाभ  की  जगह  हानिकारक  सिद्ध  हुआ   l  इसलिए  श्री  व्यासदेव  ने   भागवत   की  रचना  की  l    श्रीकृष्ण  कथा   को  ' श्रीमद् भागवत  कथा  '    भी  कहा  जाता  है  l   श्रीकृष्ण  की  विभिन्न  लीलाओं  को  कथा  के  माध्यम  से  बताया   जिससे  लोग  ईश्वर  के  आदर्श  रूप  को  समझें    और  उसको  अपना  कर  अपने  जीवन  को  सफल  बनायें  l 
   कथा  में  बताया  गया  है  कि -----  संसार  में  धर्म  और  अधर्म   दोनों  रहते  हैं  l   कुछ  व्यक्ति  जो  अधर्म   से  ग्रस्त  हो  जाते  हैं   तो  उनके  कारण   संसार  में  दुःख   और  कष्ट  बढ़ते  हैं   l   ऐसे  ही  व्यक्तियों  को   राक्षस ,  दैत्य  और  नर - पिशाच  कहा  जाता  है   l   असुरता  आकृति  पर  नहीं  प्रकृति  पर  आधारित  है   l   निरपराध   लोगों  को  सताना   असुरता  की  पहचान  है    और  असुरता  की  वृद्धि  से  सामूहिक  चेतना  में  व्याकुलता  बढ़  जाती  है  l   भगवान   कृष्ण  के  जन्म  से  पूर्व   असुरता  बहुत  बढ़  गई  थी ,  इसे  समाप्त   करने   के  लिए  भगवान   ने  जन्म  लिया   l   धर्म  के   नाश  और  अधरम  की  वृद्धि  होने  से  सृष्टि  का  संतुलन  बिगड़ता  है    तब   भगवान   जन्म  लेकर    इस  असंतुलन  को  दूर  करते  हैं  और  धर्म  की    होती  है   l 

26 December 2019

WISDOM -----

    मर्यादा  में  रहने  पर   शक्ति , विजय ,  कीर्ति    और  विभूतियाँ  उपलब्ध  होती  हैं   l   उनसे  विचलित   होने  पर   ही  अनिष्ट  होता  है  l  मानवीय  मर्यादाओं  के  उल्लंघन  के  कारण  ही    आज  मानव  एवं   समाज   की  दुर्दशा  हुई  है   l   
  भगवान   राम   के  पास  अतुलनीय  शक्ति  थी   l   उनके  पास  ऐसे   दिव्यास्त्र  थे  कि   पल भर  में  ही  रावण  एवं   लंका  की   सभी  आसुरी  शक्ति  को  ढेर  कर  सकते  थे  , परन्तु  उन्होंने  ऐसा  नहीं  किया  l   सामान्य  रूप  से  अधिक  शक्ति  का  अर्जन  अहंकार  को  जन्म  देता  है  l   शक्ति  का  प्रदर्शन  इसी  दर्प  का  परिणाम  है  l    रावण  इसी  का  जीता  जागता  रूप  था   l   रावण  ने  शक्ति  का  अर्जन  बहुत  किया  था  ,  परन्तु  वह  उसका  लोक कल्याण    के  लिए  उपयोग  करना  भूल  गया  l  वह  अपने  अहंकार  के  प्रदर्शन  में  और  मर्यादाओं  को  छिन्न - भिन्न  करने  में  लग  गया  ,  इसलिए  उसका  अंत  मर्यादा  पुरुषोत्तम  भगवान   राम  के  हाथों  हुआ   l
  भगवान   राम  ने  शक्ति  का  उपयोग  लोकहित   में  किया  ,  नीति   की  स्थापना  के  लिए  किया   ताकि  लोग  इस  राह  पर  चलकर  स्वयं  को  धन्य  मान  सकें   l   यही  तत्व  संसार  में  यश  और  कीर्ति  बढ़ाने  वाला  होता  है   l   यही  कारण  है   भगवन  राम  आज  भी  जन  - जन  के  मन  में  बसे   हैं  l 

25 December 2019

WISDOM ------ धर्मप्राण - महामना पं. मदनमोहन मालवीय

    मालवीय  जी  एक  प्रसिद्ध   सनातन धर्मी  माने  जाते  थे  l   वे  धर्म भक्त , देशभक्त  और  समाज - भक्त  होने  के  साथ   ही  सुधारक  भी  थे  l   पर  उनके  सुधार  कार्यों  में  अन्य  लोगों  से  कुछ  अंतर  था  l  अन्य  सुधारक  जहाँ   समाज  से  विद्रोह , संघर्ष  करने  लग  जाते  हैं   वहां  मालवीय जी  समाज  से  मिलकर  चलने  के  पक्षपाती  थे  l   वे  सुधार  अवश्य  करते  थे  जैसे  उन्होंने   स्वयं  काशी   में  गंगातट  पर  बैठकर   चारों  वर्णों  के  लोगों  को  ---- यहाँ  तक  कि   चाण्डालों  को  भी   मन्त्रों  की  दीक्षा  दी  l   जब  वे  नासिक  गए  तो  गोदावरी  के  तट   पर  हरिजनों  को  दीक्षा  दी  l   -- पर  उन्होंने  यह  कार्य  लोगों  को  समझा - बुझा   कर  और  राजी  कर  के   ही   किया   l
 मालवीय जी  का  मत  था   कि  समाज  से  विद्रोह  कर  के  अथवा  उससे  पृथक  होकर  अपने  नए  रास्ते  पर  चलने  से    कोई  ठोस  कार्य  नहीं  कर  सकते   l   उस  अवस्था  में  समाज  हमारी  बात  पर  ध्यान  ही  नहीं  देगा   वरन  उल्टा  उसका  विरोध  ही  करेगा  l   जिससे  सुधार  का  उद्देश्य  कुछ  भी  पूरा  न   हो  सकेगा  l 
  यही  बात  उन्होंने  अपने   भतीजे  कृष्णकांत  मालवीय  को  लिखी  थी  ,  जब  उन्होंने  विधवाओं  की  समस्या  पर  एक  लेख  ' अभ्युदय '  में  लिखा  l   उसकी  कई  बातें  मालवीय जी  को  अपने  सिद्धांतों  के  विपरीत  जान  पड़ीं   और  उन्होंने  कृष्णकांत जी  को  एक  पत्र   द्वारा  उनकी  भर्त्सना   करते  हुए  लिखा  ----    " तुम  समाज  का  हित   करना  चाहते  हो ,  समाज  की  सेवा  करना  चाहते  हो  ,  किन्तु  समाज  कभी  तुम्हारी  सेवा  स्वीकार  नहीं  करेगा  --- तुमको  सेवा  का  अवसर  ही  नहीं  देगा  l   यदि  तुम  मर्म  की  बातों  में   समाज  की  मर्यादा  का  पालन  नहीं  करोगे   और  समाज  को  मर्मवेधी  वचन  प्रकट  रूप  में  कहकर  दुखित  और  लज्जित  करोगे  l ------ सत्कार्य  का  उत्साह  प्रशंसनीय  है  ,  किन्तु  तभी  जब  वह  मर्यादा   के  भीतर  रहे   l   यदि  उत्साह  की  बाढ़  में   विवेक  और  विचार   को  बह   जाने  दोगे   तो  समाज  का   कुछ  भी  उपकार  न  कर  सकोगे   l   "
  यही   कारण  था  कि   मालवीय  जी  ने  सुधार  के  कार्यों  में  कभी  जल्दबाजी  नहीं  की   l   उनका  कहना  था   कि   जब  हम  समाज  का  सुधार  करना  चाहते  हैं  ,  उसके  कल्याण  के  लिए  प्रयत्न  कर  रहे  हैं   तो  उसके  साथ  रहकर  ही  वैसा  किया  जा  सकता  है   l   समाज  से  लड़कर ,  उसकी  निंदा  , बुराई  कर  के   तो  और  भी  बिगाड़  होगा  ,  सुधार  की  आशा  कैसे  की  जा  सकती  है   ?  

24 December 2019

WISDOM ------- अपना उद्धार आप करें --- श्रीमद भगवद्गीता

  भगवान   ने  मनुष्यों  को  उन  सब  विशेषताओं  से  परिपूर्ण  बनाकर  इस   धरती  पर  भेजा  है   जिनके  आधार  पर  वह   अपना  उद्धार - उत्थान  बड़ी  सरलता  से  कर  सकता  है  l  लेकिन  मनुष्य  अपनी  आधी  शक्तियों  को  शरीर  यात्रा  में  लगाता   है  और   आधी  शक्ति   निरर्थक  एवं  अनर्थकारी  विचारों   एवं   कार्यों  में  नष्ट  कर  देता  है  l   सद्विचारों  और  सत्कार्यों  के  लिए  उसके  पास   समय  ही  नहीं  बचता  l  इस  प्रकार  गुजारे   के  अतिरिक्त  बचा  हुआ  समय    औसत  मनुष्य   संसार   के लिए  संकट  उत्पन्न  करने  में  ही  लगा  देता  है   l
  यदि  यह  स्थिति  बदल  जाये   और   लोग  -- राजा , प्रजा , पुलिस , फौज , कर्मचारी   आदि  सभी  लोग  अपनी  विचारणा  एवं   कार्य पद्धति    रचनात्मक  दिशा  में  लगाने  लगें   तो  कुछ  ही  समय  में   चमत्कार  हो  सकता  है   l  यदि    लोगों  की  शक्ति  शिक्षा , स्वास्थ्य , लोक निर्माण   आदि  सकारात्मक  कार्यों  में  लग  जाये  ,    हथियार  बनाने  में  लगा  हुआ  धन   ,  संसार  में  गरीबी ,  भूख  और  बेरोजगारी  दूर  करने  में  लग  जाये    तो  इस  धरती  पर  सुख - शान्ति   का  वातावरण  बनने  में  देर  नहीं  लगेगी   l
  यह  सब  तभी  संभव  है  जब  लोग  सच्चे  अर्थों  में  आस्तिक  बने   l   ' जियो  और  जीने  दो  '  के  सिद्धांत  को  स्वीकार  करें -- हम  सब  एक  ही  मोतियों  के  हार  में  गुँथे   हुए  हैं   l 

23 December 2019

WISDOM ---- देव संस्कृति हमें भाग्यवादी नहीं , कर्मवादी बनाती है l

    हम  पिछले  दो  हजार  वर्ष  से  अज्ञान  और  अंधकार  के  युग  में  रहते  चले  आये  हैं   l  हम  पर  अनेक  विदेशी  आक्रमण  हुए  l  मुट्ठीभर  अंग्रेजों  ने  भारत  जैसे  विशाल  देश  को  अपना  गुलाम  बना  लिया  l   ऐसा  कैसे  हुआ  ?  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  वाङ्मय  ' भारतीय  संस्कृति  के  आधारभूत  तत्व  '  में  लिखते  हैं ---- '  हमारा  जीवन  दर्शन  उलट  गया  , पुरुषार्थवादी  भारतीय  दर्शन  भाग्यवादी  बन  गया  l  हम  कर्मठता  को  तिलांजलि  देकर  मानसिक  दासता  के  जंजाल  में   जकड़   गए  l   संभवत:  इस  मानसिक  अध:पतन  के  पीछे   उन  लोगों   का  हाथ रहा   जो  हमें  देर   तक शोषित , पतित   और  पराधीन  देखना  चाहते  थे  l   आक्रमणकारियों  और  अत्याचारियों   ने अपने   अन्याय  से  पीड़ित  लोगों  में  प्रतिकार  और  विद्रोह  की  आग   न  भड़कने  लगे  ,  इसके  लिए  भाग्यवादी  विचारधारा  का  प्रचार  किया  ,  और   इस ' भाग्यवाद '  को  तथा कथित  पंडितों  और  विद्वानों  के  माध्यम  से   प्रचलित  कराया   ताकि  भारत  जैसे  धार्मिक  देश  की  श्रद्धालु   जनता   उसे  आसानी  से  स्वीकार  कर  ले  l  '
  इस   विचारधारा  को    तथाकथित  -----  स्वार्थी  लोगों  ने  जनता  के  मन - मस्तिष्क  में  भर  दिया  कि   जिस  पर  अत्याचार  हुआ  है   , वह  अवश्य  पूर्व  जन्म  का  पापी  है  ,  उसने  पहले  सताया  होगा ,  इसीलिए  दंड  मिल  रहा  है  l   और  जिसने  अनीति पूर्वक  सुख - साधन   जुटा   लिए  हैं  ,  दूसरों  का  शोषण  कर  के  लाभ  कमाया  है ,  वह  पूर्व  जन्म  का  पुण्यात्मा  है  ,  उसके  पुण्यों  का  उदय  हुआ  है  l   अनीति  के  प्रतिरोध  का  उपाय   वे  विद्रोह  न  बताकर  यह  कहते  थे  कि   ईश्वर  की  भक्ति  करो  ,  भजन - कीर्तन  करो  l   ऐसा  करने  से  भगवान   प्रसन्न  होंगे  और  कष्ट  कम    हो  जायेंगे  l
  जहाँ  प्रतिरोध  की  संभावना  न  हो  वहां  हर  बुराई  मनमाने  ढंग  से  फलती - फूलती  रह  सकती  है  l  जो  लोग  किसी  वर्ग  को  पिछड़ा  रखकर   उनके  शोषण  का  लाभ  उठाना  चाहते  हैं   उनके  लिए  यह  भाग्यवादी  विचारधारा   बहुत  लाभकर   सिद्ध  हो  रही   थी   और  आज  भी  हो  रही  है  l   अछूतों  का , दलितों  का ,  नारी  जाति   का   युगों  से   शोषण   इसी   भाग्यवाद   के  विचार  के  कारण    हो  रहा  है  l  
 आचार्य जी  लिखते  हैं ----- '  हमें  मानसिक  आलस्य  को  छोड़कर  वस्तु - स्थिति  को  परखना  होगा   l   पूजा - उपासना  के  अतिरिक्त   विवेकपूर्ण  सत्प्रयत्न  और  उत्साहपूर्ण  परिश्रम   से  बुरी  परिस्थितियों    को बदलकर  आशाजनक   शुभ  परिस्थितियां   उत्पन्न  की  जा  सकती  हैं  l '

22 December 2019

WISDOM ----- चाटुकारिता प्रिय इनसान में विवेक का अभाव होता है

    जब  किसी  व्यक्ति  की  प्रशंसा   अपना  स्वार्थ  साधने  के  लिए ,  अपना  काम  निकालने   के  लिए  ,  देश - काल - परिस्थितियों  का  ज्ञान  किए   बगैर  की  जाती  है  तो  उसे  चाटुकारिता  कहते  हैं  l   चाटुकारिता प्रिय  इनसान    बिना  विचारे  अपनी  प्रशंसा  करने  वाले  पर  मेहरबान  हो  जाता  है   l   राजतन्त्र  में  राजा  को  खुश  करने  के  लिए   विशेष  रूप  से  विशेषज्ञ   चाटुकारों  की  व्यवस्था  की  जाती  थी  l
  वर्तमान  समय  में   विभिन्न  संस्थाओं  में ,  आफिसों  में ,  कार्पोरेट   सेक्टर  में   और  नेताओं  को  उनसे  नीचे  ओहदे  वाले   ,  चाटुकारी  कर  के  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करते  हैं   l   मनुष्य  की  अपनी  कमजोरियां  हैं ,  वह  झूठी  प्रशंसा  सुनकर  फूला   नहीं  समाता  l
  अपने  आका  की  हाँ  में  हाँ  मिलाना  भी  चाटुकारिता  है  l   अकबर  बीरबल  का  एक  संवाद  है --- अकबर  ने  कहा ---- " बैंगन  कितना  सुन्दर  है  l  "  बीरबल  ने  कहा --- " हाँ ,  महाराज  ! देखिए ,  यह  कितना  सुन्दर  है  !  इसके  सिर   पर   मुकुट  जैसा  ताज  है  l  "
  फिर  अकबर  ने  कहा --- " बैंगन  भी  कोई  सब्जी  है  भला  ! '
 बीरबल  ने  उसी  अंदाज  में  जवाब  दिया --- " महाराज  ! बैंगन  कितना  काला - कलूटा  है  l  यह  तो  बेपेंदी  के  लोटे  के  समान   जिधर  लुढ़का  दो  ,  लुढ़क  जाता  है  l  "
   जब  व्यक्ति  में  विवेक  होगा  ,  तभी  वह   सच्चाई  को  समझ  सकेगा  l

21 December 2019

WISDOM -----

    दैवी  शक्तियों  में  आसुरी  शक्तियों  से  कहीं  ज्यादा  बल  होता  है   l  पर  उनकी  शिथिलता  एवं   अस्तव्यस्तता  ही  उनके  पिछड़  जाने  का  कारण   बनती  है  l   आसुरी  शक्तियां  वास्तव  में  बहुत  दुर्बल  हैं  ,  उनकी  सत्ता  बहुत  ही  क्षीण  है   l  पर  अपनी  चैतन्यता  और  तत्परता  के  कारण   वे  बहुत  जल्दी  बढ़  जाती  हैं   l   यही  तत्परता  जब  दैवी  शक्तियों  में   उत्पन्न  हो    जाती  है   तो  सहज  ही  इतनी  प्रबल  हो  जाती  है   कि   आसुरी  शक्तियों   को  सरलता पूर्वक  परास्त  कर  सके  l
  मनुष्य  के  भीतर  तथा  समस्त  संसार  में  दैवी  और  आसुरी  शक्तियों  की  सत्ताएं  काम  कर  रही  हैं   l   जब  कभी  असुरता  की  प्रबलता  हो  जाती  है   तो  चारों  ओर   अगणित  विपत्तियों  की  बाढ़  आ  जाती  है   l इसके  उपरांत  जब  दैवी  शक्तियां  प्रबल  होती  हैं   तो  सुख , शांति , समृद्धि , सफलता , सहयोग , सद्भावना ,  उल्लासमय  वातावरण   चारों  ओर   निखरा  पड़ा  दिखाई  देता  है  l   विवेकशील  व्यक्ति  को  यह  निश्चय  करना  चाहिए  कि   उसे  स्वर्ग  प्रिय  है  या  नरक   l   यदि  स्वर्गीय  परिस्थितियां  चाहिएं   तो  अपनी  दैवी  सम्पदाओं  को  बढ़ाना  चाहिए  l  उन्हें  इतना  समर्थ  बनाना  चाहिए  कि  आसुरी  शक्तियों  से  भली  प्रकार  टक्कर  ले  सकें   l   यदि  सौ   कौरवों  से  साधारण  श्रेणी  के  पांच  सिपाही  लड़ा  दिए  जाते    तो  वे  विजय  प्राप्त  नहीं  कर  सकते  थे   l   पांडवों  के  पास  समुचित  बल  था  ,  उसी  से  वे  उपयुक्त  टक्कर  ले  सके  और  विजयी  हुए   l    गीता  में  भगवान   ने  कहा  है   कि   अनीति  और  अत्याचार  के  विरुद्ध  पांडवों   का  कौरवों   से  युद्ध  अनिवार्य  था  l   यदि  यह  युद्ध  न  होता  तो  अनीति  और  अत्याचार  का  ही  आधिपत्य  हो  जाता   l
       रावण  सीता  का  अपहरण  कर  के  बड़ी  तीव्र  गति  से  चला  जा  रहा  था   l   सीता  हृदय विदारक  विलाप  कर  रहीं  थीं  l   यह  सब  घटना  मार्ग  में  जटायु  ने  देखीं  ,  उसका  हृदय  यह  सब  देखकर  व्याकुल  हुआ   और  वह  दुष्ट  को  दंड  देने  के  लिए  तत्पर  हो  गया   l   एक  झप्पटें   में  ही  महाबली  रावण  को  अस्त - व्यस्त  कर  दिया  ,  लेकिन  सशस्त्र  रावण  का  सामना  वह  वृद्ध  पक्षी  कहाँ  तक  करता   l   रावण  ने  अपने  खड्ग  से  जटायु  के  पर  काट  दिए  l   वृद्ध  जटायु  ने  अनीति  का  प्रतिरोध  करने  में  अपना  जीवन  मिटा  दिया  l 

19 December 2019

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा आचार्य जी ने  वाङ्मय  पृष्ठ  १. १ ४   पर  लिखा  है ---- ' हम  निश्चित  रूप  से  इन  दिनों विषम  परिस्थितियों  के  बीच  रह  रहे  हैं   l   पौराणिक  विवेचन  के  अनुसार  इसे  असुरता  के  हाथों  देवत्व  का  पराभव  होना  कहा  जा  सकता  है  l   कभी  हिरण्याक्ष , हिरण्यकश्यपु , वृत्तासुर , भस्मासुर , रावण , कंस  आदि  ने  आतंक  उत्पन्न  किये  थे  और  देवताओं  को  खदेड़  दिया  था  l   उन  दिनों  शासक  वर्ग  का  ही  आतंक  था  ,  पर  आज  तो  राजा - रंक  , धनी - निर्धन , शिक्षित - अशिक्षित  सभी  एक  राह  पर  चल  रहे  हैं  l  छद्म  और  अनाचार  ही  सबका  इष्टदेव  बन  चला  है  l   नीति   और  मर्यादा  का  पक्ष  दिनों  दिन  दुर्बल  होता  जाता  है  l   उपाय  दो  ही  हैं --- एक  यह  कि   शुतुरमुर्ग  की  तरह  आँख  बंद  कर  के   भवितव्यता  के  सामने  सिर   झुका  दिया  जाये  ,  जो  होना  है  उसे  होने  दिया  जाये  l  दूसरा  यह  कि  जो  सामर्थ्य  के  अंतर्गत  है  ,  उसे  करने  में  कुछ  न  उठा  रखा  जाये   l '

WISDOM ------

    मनुष्य  की  दिखावे  की  प्रवृति  होती  है ,  वह  स्वयं  को  दूसरों  से  श्रेष्ठ  सिद्ध  करना  चाहता  है   लेकिन  सत्य तो  सत्य  ही  होता  है -----
  एक  था  बन्दर  और  एक  था  सियार  l   दोनों  में  बड़ी  मैत्री  थी  l   एक  दिन  दोनों  वन  विहार  के  लिए  निकले l   उस  रास्ते  पर  एक  कब्रिस्तान  पड़ता  था  l   एक  कब्र  के  पास  पहुंचकर   बन्दर  ने  उसे  साष्टांग  दंडवत  प्रणाम   किया   और  आँख  मूंदकर  कुछ  स्तुति  सी  गाने  लगा  l  उसे  ख्याल  था  कि   उसे  ऐसा  करते  देख  सियार  उसकी  विद्व्ता  से  बहुत  प्रभावित  होगा  l   लेकिन  सियार  ने  कुछ  और  ही  समझा  ,  उसे  लगा  कि   बन्दर  को  कोई  बीमारी  हो  गई  l   सियार  ने  पूछा ---- ' तुम  यहाँ  खड़े - खड़े  क्या  कर  रहे  हो   ?  '  बन्दर  ने  कहा ---- ' तुझे  मालूम  नहीं  यह  समाधि   मेरे  पितामह  की  है   l   मैं  उनके  उत्कृष्ट  ज्ञान , बल - पौरुष   और  कला - कौशल  का   गुणानुवाद  कर  रहा  हूँ   जिससे  मैं  भी  वैसा  ही  बनूँ  l  '
  बन्दर  सोच  रहा  था  कि   इस  बार   सियार  उसकी  श्रद्धा , भक्ति  की  दाद  देगा  ,  पर  सियार  ने  हँसते  हुए  कहा ---- "  जो  जी  में  आये  , कहो  मित्र  !  तुम्हारे  पितामह  तो  यहाँ  कोई  बैठे  नहीं  हैं  ,  जो  सत्य - असत्य  का  निर्णय  दे  सकें  l  '
  बन्दर  को  अपने  दिखावे  पर  बड़ा  दुःख  हुआ    और  उसने  फिर  कभी   वैसा  प्रपंच  न  रचने  का  संकल्प  लिया  l   

18 December 2019

WISDOM ----- समाज या राष्ट्र व्यक्ति की नैतिक शक्तियों पर ही पनपता है ---- पं . श्रीराम शर्मा आचार्य

  मानव  में अनेक सद्गुण  जैसे सत्य,अहिंसा,अक्रोध आदि होते  हैं l   सारे सद्गुणों की शक्ति का स्रोत निर्भयता है, जिस व्यक्ति के जीवन में भय है , वह  सत्य का पालन नहीं कर सकता, न वह अहिंसा का उपासक हो सकता है , न क्रोध को वश में रख सकता है। निर्भयता वह शक्ति है  जो व्यक्ति  को  जीवन के हर क्षेत्र में नीतिमय बनाये रखने में मदद करती है  l
   आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' नैतिकता  यदि  विवेक  पर  आधारित  है   तो  वह  आत्मशक्ति  प्रेरित  नैतिकता  होगी  और  विश्व व्यापी  होगी  l  इस  नैतिकता  में  निर्भयता  होगी   l    जैसे  यदि  कोई  व्यक्ति  अन्याय  के  प्रतिकार  में   कोई  गलत  कदम  उठा  लेता  है  तो  उसकी  विवेक शक्ति इतनी  बलवान  होगी  कि   वह  अपनी  इस  गलती  को  स्वीकार  करेगा   l
  लेकिन  यदि   नैतिकता  धर्म  और  राजसत्ता  से  प्रभावित  है  तो  वह  नैतिकता  भय प्रेरित  होगी  l
 भय युक्त   नैतिकता  की  आड़  में   मनुष्य  छिपकर  अनुचित  कार्य  करता  है  ,  अनुचित  कार्य  करने  पर  वह  व्यक्ति  असत्य  का  आश्रय  लेता  है    और  जब  सारा  समाज   असत्य  की  बुनियाद  पर  नीतिमान  बनने  का  दावा  करता  है  ,  तब   अनीति    सर्वव्यापी  बन  जाती  है  ,  तब   सम्पूर्ण   समाज   में  नैतिक  पतन  का  दृश्य  दिखाई  देने  लगता  है  l '
  आचार्य श्री  का  कहना  है  --- यदि  स्वस्थ  समाज  का  नव - निर्माण  करना  है ,  तो  नैतिक  शक्ति  की  बुनियाद  पर  ही  ऐसा  हो  सकेगा   l 

17 December 2019

WISDOM ------ विभूतियों का सदुपयोग जरुरी है

  विभूति  अर्थात  विशेष  गुण  - क्षमता  से  संपन्न  व्यक्तित्व  l   विभूतियाँ  दुधारी  तलवार  की  तरह  होती  हैं   l   जहाँ  ये  सृजन  में  अपना  चमत्कार  प्रस्तुत  करती  हैं  ,  वहीँ  दिशा  भटकने  पर  भयंकर  विनाश  और  विध्वंस   के  दृश्य  भी  प्रस्तुत  करती  हैं  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- '' वर्तमान  विध्वंसकारी  प्रवाह  में  भी  विभूतियों  के  भटकाव  को  स्पष्टत:  देखा  जा  सकता  है  l   धर्म - तंत्र  की  विभूतियाँ  आज  धर्मान्धता  , विद्वेष  एवं   असहिष्णुता  का  विष  घोलने  लगी  हैं  l  साहित्य  के  नाम  पर  किस  तरह  उथला , भड़काऊ   एवं   कुत्सित  सृजन  चल  रहा  है   उसे  सब  जानते  हैं   l   मनोरंजन  के  नाम  पर   धन , स्वास्थ्य  अवं  चरित्र  को  भ्रष्ट  करने  वाली   उत्तेजक  सामग्री  को  परोसा  जा  रहा  है   l   सत्ताधारी  राजनेता  एवं   अफसरशाही  भ्रष्टाचार  एवं   अपराध  में  लिप्त  हैं  l  लक्ष्मी  के  पुजारी  दिन - रात  अपनी  तिजोरियां  भरने  के  चक्कर  में  यह  भूल  गए  कि   कितने  लोग  धन  के  अभाव   से  परेशान     हैं   l   वर्तमान  संकट  विभूतियों  के  अपने  कर्तव्य  से  विमुखता  का  संकट  है   l   यदि  विभूतियाँ   स्वार्थ  से  थोड़ा  हटकर  सृजन  की  ओर   मुड़   जाएँ  , तो  युग  का  कायाकल्प  होने  में  देर  न  लगे   l  "
   आचार्य  श्री    आगे  लिखते  हैं  --- ' विभूतियाँ  यथार्थ  में  ईश्वरीय  अनुदान  है  l  यह  एक  विडम्बना  ही  है  कि   जिन्हे  विभूतियों  के  रूप  में  सौभाग्य  प्राप्त  होता  है  ,  उनके  साथ  प्राय;  एक  दुर्भाग्य  भी  जुड़ा  होता  है   l   वे  इस  ईश्वरीय  अनुग्रह  का  कारण  नहीं  समझ  पाते   और  उससे  जुड़े  उत्तरदायित्व  का  ध्यान  नहीं  रखते  l  ईश्वरीय  सृष्टि  में   हर  कार्य  व्यवस्थापूर्वक  ही  होता  है   l  निर्वाह  की  सुविधा  हर  प्राणी  को  उपलब्ध  होती  है   l   जिसे  इससे  अधिक  उपलब्ध  हो,   उसे  समाज   की  अमानत  समझकर  , समाज  के  हित   में , लोक - मंगल    के  लिए   उपयोग   किया  जाना  चाहिए  l  '
  आचार्य जी  का  कहना  है --- "  आवश्यकता  से  अधिक  उपयोग  वासना , तृष्णा  और  अहंता  के  बहकावे  में  किया  तो   जा  सकता  है  ,  किन्तु  ऐसे  में  ईश्वर प्रदत्त  अमानत  का   दुरूपयोग  होते  ही   प्रतिक्रिया  विभिन्न  रूपों  में  सामने  आती  है   l   ऐसा  करने  वालों  को  आत्मप्रताड़ना  ,  लोक - भर्त्सना   से  लेकर   ईश्वरीय  दंडविधान  का  कोपभाजन  बनना  पड़ता  है  l 
 अत:  हर  विभूतिवान  को   अपनी  विभूति  का  सदुपयोग  करने  के  लिए  सजग  रहना  चाहिए   l  इसी  मार्ग  पर  वह  जीवन  में  अभीष्ट  यश  और  संतोष  प्राप्त  कर  सकता  है   l  "

16 December 2019

WISDOM ----

  ' पुण्यात्मा  के  संग  से  भले  ही  पापी  में  परिवर्तन  न  आये  ,  पर  पापी  की  घनिष्टता   आग  की  तरह  जलाए   बिना  नहीं  रहती  l  '
  इतिहास  में  ऐसे  अनेकों  उदाहरण  हैं   जो  यह  बताते  हैं  कि  दु;संग  होने  से  कैसे   व्यक्ति    का  पतन  हो  जाता  है   l   दुर्योधन  को  शकुनि  मामा   का  साथ  मिला  ,  पूरा  जीवन  वह  उनके  साथ  मिलकर  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  रचता  रहा  l   अंत  में  कौरव  वंश  का  सम्पूर्ण  नाश  हो  गया  l
  कर्ण    सूर्यपुत्र  था ,  जन्मसे  ही  उसके  शरीर  पर  कवच - कुण्डल  थे ,  वह  महादानी  और  महा  वीर    था  l   लेकिन  उसकी  मित्रता  दुर्योधन  से  थी  l   सत्य , नीति   और  धर्म  का  उसे  पूर्ण  ज्ञान  था  लेकिन  फिर  भी  उसने   द्रोपदी का  चीर  हरण ,  अभिमन्यु  वध  आदि  अनेक   अवसरों  पर   दुर्योधन  की  अनीति  का  साथ  दिया  l  यही  कारण   था  कि   उसे  ईश्वर  की  कृपा  नहीं  मिली  और  अर्जुन  के  हाथों  उसका  वध  हुआ  l    इसी  तरह  गंगा पुत्र  भीष्म     अनीति  व  अत्याचार  देखकर  भी  मौन  रहे  ,  उन्हें  तो  इच्छा  मृत्यु  का  वरदान  था  ,  फिर  भी  उन्हें  अर्जुन  के  हाथों  पराजित  होना  पड़ा   और  शर - शैया  पर  छह  माह  तक  लेटे    रहने  का  कष्ट  उठाना  पड़ा  l
हमारे  आचार्य ,  ऋषियों  आदि  का  कहना  है   अत्याचार  व  अनीति  देखकर  मौन  रहना  ,  अनदेखी  करना   भी  अत्याचार  ही  है  l   जिनके  भीतर  विवेक  है   वे  अत्याचारी  का  साथ  नहीं  देते  l   जैसे  विभीषण  ने  रावण  को  त्याग  दिया ,  भक्त  प्रह्लाद  ने   अनेकों  कष्ट  सहे  लेकिन  अपने  पिता  हिरण्यकशिपु  की  सत्ता  को  नहीं  स्वीकार   किया  l
हमारे  धर्म  ग्रन्थ  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं   l  हम  अर्जुन  की  तरह  बने  l   ईश्वर  की  नारायणी  सेना  चुनने  के  बजाय   ईश्वर  को  ही  चुने  l   ईश्वर  की  कृपा  से  ही  व्यक्ति  संसार  में  सफल  होता  है  l 

15 December 2019

WISDOM ----- भारतीय संस्कृति ---- वसुधैव कुटुंबकम के सारे सूत्र हैं

 भारतीय  संस्कृति  हमारी  मानव  जाति   के  विकास  का    उच्चतम  स्तर  कही  जा  सकती  है   और  मनुष्य  में   संत , सुधारक , शहीद  की  मनोभूमि  विकसित  कर   उसे  मनीषी , ऋषि ,  महामानव ,  देवदूत  स्तर  तक  विकसित  करने  की  जिम्मेदारी   भी  अपने  कंधों   पर  लेती  है   l
  महाभारत  के  शांति  पर्व  में   एक  श्लोक  है  जिसका  अनुवाद  है ---- " हमारे  जिन  कर्म  और  पौरुष  से   दूसरों  का  हित   बिगड़ता   है  ,  उन  कर्मों  और  पौरुषों  को  प्रयत्न  से  त्याग  देना  चाहिए   l  "
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  वाङ्मय  ' भारतीय  संस्कृति  के  आधारभूत  तत्व  में  लिखा  है  --- "  हमारी  एक  विशेषता   रही  है  कि  देश  में   विभिन्न  धर्म , पंथ  और  विभिन्न  विचार  रहते  हुए  भी   सब  एक  सूत्र  में  बंधे  रहे   l   न  बंधे  रहते  ,  तो  एक  सहस्त्र  वर्ष  की   भयंकर  दासता   और  विदेशियों  की  प्रभुता  का  दीर्घ  काल  ,  इसमें  यह  भारत  जीवित  ही  कैसे  रहा  ?  इस  पर  संसार  आश्चर्य  करता  है   l   वह  इस  भारतीय  संस्कृति  के  कारण   ही  जीवित  रहा  l   समस्त  देश  की  दृष्टि  से   भारतीय  संस्कृति  में  कभी  कोई  ऐसा  विधान  स्वीकार  नहीं  किया  गया    जिसके  अनुसार  एक  समुदाय  को  तो   सब  प्रकार  की   सुविधाएँ  और  सुख  मिले    और  दूसरे  को  भूखों  मरने  को  छोड़  दिया  गया  हो  l   यहाँ  की  संस्कृति  में  शोषण  का  सिद्धांत  कभी  स्वीकार  नहीं  किया  गया   l  '
  आचार्य  श्री  आगे  लिखते  हैं ---- "  इस  नए  युग  के  नए  विचारों  में     हमको  अपनी  एकता  के  लिए   नए  सूत्रों  को  टटोलने  की  आवश्यकता  नहीं  है     हम  अपनी  संस्कृति  को  सम्भाले   रहेंगे   तो  बने  रहेंगे   l   केवल  बने  ही  नहीं  रहेंगे  , बल्कि  बिगड़े  हुओं  को  सुधारेंगे  l   जो  हमारी  संस्कृति  है  ,  उसी  का   उच्छिष्ट   संसार  में  बिखरा  पड़ा  है   l  "

13 December 2019

WISDOM ----- भारतीय संस्कृति देव संस्कृति है , इसमें सर्वोच्च जीवन मूल्य ही स्वीकार किये गए हैं l

         सितम्बर  1993 :  अखण्ड   ज्योति  में  प्रकाशित  एक  लेख  का  अंश   ------------ देव  संस्कृति  में  जब  संस्कृत  का  जन - सामान्य  में  प्रचार - प्रसार  था  ,  उस  समय  भारतवर्ष  में   सर्वाधिक  प्रतिष्ठा  ऐसे  लोगों  को  प्राप्त   होती  थी  जिनके  जीवन  में  त्याग , तपस्या , निस्पृहता , आदर्शवादिता , चरित्र  निष्ठा ,  लोकसेवी  वृत्ति  और  ईश्वर- निष्ठा   की  प्रधानता  होती  थी   l
  दार्शनिक  उदारता   और  आचरण  की  मर्यादा   इस  संस्कृति  के  मूलतत्व  हैं   l   चिंतन  की  जितनी  उदारता    इस  संस्कृति  का  अंग  रही  है  ,  वैसी  विश्व  में   कहीं  भी   देखी   सुनी  नहीं  गई   l   दार्शनिक  मत विभिन्नता  होने  पर   एक  दूसरे  के  विचारों  को  चुनौती  देने  की  परंपरा  रही  है   l   परन्तु  इसके  कारण   हिंसा    या  शरीर  बल  का  प्रयोग  कभी   नहीं  हुआ  l
  इसके  विपरीत  पश्चिमी  संस्कृति  में   दार्शनिक  मत  भिन्नता  प्रकट  करने  पर   मंसूर  से  लेकर  ईसा  तक  को  फाँसी   पर  चढ़ाना  पड़ा   l
  गैलीलियो  ने   ग्रह - गति   सम्बन्धी    सिद्धांत  का  प्रतिपादन  किया  तो  उन्हें  नास्तिक  कहा  गया  और  जान  गंवानी  पड़ी  l   जबकि  भारत  में  आर्य भट्ट   और  वराह  मिहिर  दोनों  भू - भ्रमण  सिद्धांत  के  बारे  में  परस्पर  विरोधी  विचार  रखते  हुए  भी    एक  दूसरे  को  महान  गणितज्ञ  मानते  रहे   और  जनता  दोनों  का  समान  रूप  से  आदर  करती  रही  l
  देव  संस्कृति  में    श्रेष्ठ  भाव  संवेदनाओं , उत्कृष्ट  चिंतन   और  आदर्श  कर्तव्य  पर   बल  दिया  गया  है   और  सभी  धर्म  ग्रंथों  में  सत्य , धर्म  और  श्रेयस  का  जयगान  है   l   यही  तथ्य  नर  से  नारायण  बनने  की  प्रेरणा  देते  हैं   l 

12 December 2019

WISDOM ----- सफलता की कसौटी ---- मानवीय गुण

    सामान्यत:  सफलता  को  एक  मूल्यवान   उपलब्धि  माना  जाता  है   l   प्रत्येक  मनुष्य  सफल  होना  चाहता  है  l  कोई  व्यक्ति  यश  और  सम्मान  को  सफलता  का   आधार  मानता   है   l  कोई  धन  और  पद - प्रतिष्ठा  को  l
  मानवीय  गुणों  से  रहित  सफलताएं    कीर्ति  और  मनुष्य  के  रूप  में  प्रतिष्ठा  नहीं  देतीं  l      लोगों  की  दृष्टि   बाहरी  सफलताओं  पर  ही  अधिक  टिकती  है   l   जिन्हे  धनवान , प्रतिष्ठित   और  पहुँच  वाला  आदमी  मान  लिया  जाता  है  ,  लोग  उसी  के  पीछे  भागने - दौड़ने  लगते  हैं   l   उससे  लाभ  उठाने  के  लिए  प्रयत्नशील  रहते  हैं   l   ये  सभी  उपलब्धियां  मनुष्य  की  महत्वाकांक्षाओं   और  उसके  लिए  किये  जाने  वाले  प्रयासों  का  परिणाम  हैं  l
  लेकिन  महत्वाकांक्षाओं  की  पूर्ति  को  ही  सफलता  की  कसौटी   नहीं  माना  जा  सकता   और  इस  आधार  पर  किसी  को  सफल  और  विभूतिवान   प्रमाणित  नहीं  किया  जा  सकता  l
  सफलता  का  एक  दूसरा  पक्ष  भी  होता  है  कि   व्यक्ति  अपने  मानवीय  गुणों ,  सामाजिक  आदर्शों   और  अपनी  संस्कृति  के  प्रति  कितना  निष्ठावान  है   ?  सफल  तो  अनीति  पूर्वक  कमाने  वाले  ,  अत्याचारी  व  अपराधी  भी  हो  सकते  हैं   l   लेकिन  इस  आधार  पर  उन्हें  सफल  मनुष्य  नहीं  माना  जा  सकता  l
  वस्तुत:  बाहरी   सफलताओं  की  अपेक्षा   नैतिकता   और  दृष्टिकोण  की  उत्कृष्टता   के  आधार  पर  ही   मनुष्य  का  मूल्यांकन   किया  जाना  चाहिए  l
 पं. श्रीराम   शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- " सफलता  के  विभिन्न  स्वरूपों  , यश , प्रतिष्ठा  और  सम्पन्नता  की  कसौटियां  बदलनी  पड़ेंगी    तथा  सद्विचारों , सत्प्रवृत्तियों   एवं   सत्कर्मों  को  उनके  स्थान  पर  प्रतिष्ठित  करना  होगा  l   "

11 December 2019

WISDOM ------ भारतीय संस्कृति को अनेक संस्कृतियों के योग से बना हुआ मधु माना जाता है

  अखण्ड  ज्योति  जून  1992   में  प्रकाशित  एक  लेख  का  अंश ----
          भारतीय  संस्कृति  कितनी  विशाल  है , इस  महासागर  में  भिन्न - भिन्न  सभ्यताएं , संस्कृतियां  आदि  आते  और  समाते  चले  गए  l  कवीन्द्र  रविन्द्र   ने  एक  काव्य  द्वारा   इस  भाव  को  व्यक्त  करते  हुए  बंगला   कविता  लिखी  थी  ,  उसका  भावानुवाद   करते  हुए  श्री रामधारी सिंह  दिनकर  ने   अपनी  पुस्तक  ' संस्कृति  के  चार  अध्याय '  में  लिखा  है ---- " भारत  देश  महा मानवता  का  पारावार  है  l   इस  पवित्र  तीर्थ  में  ,  किसी  को  भी  ज्ञात  नहीं  कि   किसके  आव्हान  पर   मनुष्यता  की  कितनी  धाराएं   दुर्वार  वेग  से  बहती  हुईं   कहाँ - कहाँ  से  आईं  और   इस  महासमुद्र  में   मिलकर  खो  गईं  ------ समय - समय  पर   जो  लोग  रक्त  की  धारा   बहाते   हुए  एवं   उन्माद - उत्साह  में  विजय  के  गीत  गाते   हुए   रेगिस्तान  को  पार  कर  , पर्वतों  को  लांघकर  इस  देश  में  आये  थे  ,  उनमे  से  किसी  का  भी   अब  अलग  कोई  अस्तित्व  नहीं  है   l  वे  सब  मेरे  इस  विराट  शरीर  में  विद्दमान  हैं   -- l  "
  आचार्य श्री  ने  लिखा  है ---- ' आर्य ' कोई  जाति   या  नस्ल  विशेष  का  नाम  नहीं  है  l  ' आर्य ' का  अर्थ  होता  है -- श्रेष्ठ  l  भारतवर्ष  में   यह  भाव  कभी  पनपा  ही  नहीं   कि  ' रेस - थ्योरी '  के  अनुसार   कौन  हमारी  जाति   का  है , कौन  नहीं  l     जो  इस  पुण्यतोया   भगीरथी   के  प्रवाह  में  जुड़ा   वह  गन्दा  नाला  हो  या   पवित्र  यमुना  नदी ,  सभी  इसमें  आत्मसात  हो  आर्य पुरुष  कहलाये  l  '
  किसी  भी    संस्कृति , सभ्यता ,  धर्म  या  समाज  के  पतन  का  कारण   होता  है    उसमे  विकृतियों  का  प्रवेश   तथा  इस  कारण   उसकी  जीवनी  शक्ति  गिर  जाना   l   पाश्चात्य  विद्वान्  तथा  इतिहासकार  लिखते  हैं  --- हिन्दू  समाज  अच्छाइयां  छोड़ता  रहा   व  वर्ण  जातिभेद   से  लेकर   अछूत  समस्या , नारी  समस्या , शुद्धि  समस्या   जैसी  कई  समस्याओं  को  पैदा  कर के  अपने  लिए  पतन  की  राह  चुन  ली  l ----- भारतवर्ष  राजनीतिक   दृष्टि  से  ही  नहीं   सांस्कृतिक  दृष्टि  से  भी  गुलाम  होता  चला  गया  l   इसके  आध्यात्मिक  तत्वदर्शन  में   ऐसी  विकृतियां  समाहित   होती  चली  गईं  जिसने  जनमानस  को  दिग्भ्रमित  किया  l   भाग्यवाद ,  ईश्वर   दर्शन  को  अपनाने  लगे  इच्छा  सर्वोपरि , अकर्मण्यवाद ,  पलायनवाद  जैसे  तत्वों  ने  जन   मानस  को  मूर्छित    कर  दिया  है   l   कालांतर  में  अंग्रेजी  शिक्षा  के  साथ   लोग  अपने  गौरव पूर्ण  अतीत  को  भूलकर    उस  भोगपरायण   दर्शन  को  अपनाने  लगे   जिससे  आज   सारा  पश्चिम  दुखी  है   l   आचार्य  श्री  लिखते  हैं --  अनुयायिओं  की  संख्या  बढ़ाने  के  स्थान  पर  जनमानस  का  परिष्कार  अधिक  जरुरी  है   l 

WISDOM ------

   भ्रष्टाचार    और  व्यभिचार  मनुष्य  को  पाप  की  ओर   धकेलते  हैं    l  पाप  का  अर्थ  हर   वह  कर्म  ,  जो  हमारी  चेतना  को  नीचे  गिराए   और  उस  कर्म  को  करने  पर   अपार  द्वंद   एवं   बेचैनी  पैदा  हो  जाये   तथा  करने  के   पश्चात्  अपराध बोध   लगने लगे  l   व्यभिचारी  का  पाप  पूरी  पीढ़ी  को  नष्ट  करने  के  लिए  पर्याप्त  है  l   उसकी  संतान  भी  उसी  आत्मघाती  डगर  पर  बढ़ती  है   l
     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  व्यभिचार  ने  पीढ़ियों  को  इतना  खोखला  कर  दिया  है   कि   कोई  श्रेष्ठ  आत्मा   ऐसे  परिवार  में  जन्म  लेना  नहीं  चाहतीं   l   इन  पीढ़ियों  में  केवल  ऐसी  जीवात्माएं    आकृष्ट  होती  हैं  ,  जिनकी  अभिरुचि   इसी   प्रकार  की  होती  है   l   अत:  ऐसे  परिवार  में  ऐसी  जीवात्माओं  का  जमघट  लग  जाता  है  ,  जिनके  कर्म  मिलकर   न  केवल  स्वयं   एवं   परिवार  को  नष्ट  करते  हैं  ,  बल्कि  वातावरण  को  भी  दूषित  करते  हैं  l   पश्चिम  का  उन्मुक्त   एवं   उच्छृंखल   यौनाचार  हमारे  समाज  में   असाध्य  रोग  के  समान   संक्रमित  हो   चुका   है   l  "
 जरुरी  है  मनुष्य  सदाचरण  करे  l   महान  आत्माएं  पवित्र  कोख  से  जन्म  लेती  हैं    ! 

10 December 2019

WISDOM -----

 पं. श्री  राम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ---- " मैं  !  मैं  !  सारी   दुनिया  इस  मैं  के  कारण   ही  पागल  है   l   यह  ' मैं '  एक  काला  विषधर  सांप  है   l   इस  महा विषैले  सर्प  ने  जिसको  डस   लिया  उसकी  खैर  नहीं   l   अहं   का  विष  ही  सारी   पीड़ाओं  का  कारण   है   l   जितना  बड़ा  अहंकार  उतनी  बड़ी  पीड़ा  l  "
  आचार्य श्री  कहते  हैं ---- " सम्मान  , प्रसिद्धि  , यश  ,  बड़ा  आदमी  होने  का  स्वांग ,  ये   सब अहंकार  के  ही   विभिन्न  रूप  हैं    l   अहंकारी  व्यक्ति  को   सुखी  करना  असंभव  है 

9 December 2019

WISDOM ------

 असुरों  ने  अपने  बुद्धि  कौशल  से  देवताओं  को  इक्कीस  बार   पराजित  किया   और  प्रत्येक  बार  इन्द्रासन  पर  प्रतिष्ठित  हुए  ,  किन्तु  हर  बार  वे   दीर्घकाल  तक  देवलोक  के  स्वामी  न  बने  रह  सके   और  अंतत :  स्वर्ग  छोड़ने  को  विवश  हुए  l   देवर्षि  नारद  ने  प्रजापति  ब्रह्मा  से  पूछा --- " तात  !  विजयी  होने  पर  भी  असुर  इन्द्रासन  पर  अपना  अधिकार  क्यों  न  रख  सके   ?  "
  ब्रह्मा जी  ने  उत्तर  दिया --- " पुत्र  !  छल  और  छद्म  से   ऐश्वर्य  तो  प्राप्त  किया  जा  सकता  है  ,  परन्तु  उसका  उपभोग   विवेकवान  एवं   संयमी  पुरुष   ही  कर  पाते   हैं  l   संयम  की  उपेक्षा  करने  वाले    असुर  जीतने  पर  भी   इन्द्रासन  पर   एकाधिकार   कैसे  कर  सकते  थे   l 

8 December 2019

WISDOM -----

 इस  दुनिया  में  अधिकतर  क्लेश - कलह   व  झगड़ों  का  कारण   व्यक्ति  की  वाणी  है   l     कठोर  वचन   उस  पत्थर  की  तरह  कठोर  होते  हैं   जो  अपने  प्रहार  से   उनके  अंतर्मन  में  ऐसे   घाव   अवश्य  छोड़  जाते  हैं   ,  जिन्हे  भर  पाना  संभव  नहीं  होता  l
  द्रोपदी  सहज  परिहास  में  भूल  गई  कि   दुर्योधन  को   '  अंधों  के  अंधे --- '  सम्बोधन  से   अपमान  का  अनुभव  हो  सकता  है  l   दुर्योधन    द्वेष वश    नारी  के  शील  का  महत्व   भूल  गया    ,  अपनी  ही  कुलवधू  को  अपमानित  करने  लगा  l
ऋषियों  का  कहना  है  कि   हम  अपनी  वाणी  पर  संयम  रखें ,  गलती  होने  पर  क्षमा - याचना  करें  l   दुनिया  में  ऐसे  कई  लोग  हैं  जिनका  अपनी  वाणी  पर  बिलकुल  भी   संयम  नहीं  है  l   उनके  मन  में  जो  भी  आता  है  बोल  देते  हैं   l   वाणी  की  अभिव्यक्ति  होने  के  साथ - साथ  व्यवहार  का   ध्यान  रखना  भी  बहुत  जरुरी   होता  है   l   यदि  वाणी  के  कहे  अनुसार   हम  कार्य  नहीं  करते   और  उसके  अनुरूप  उचित  व्यवहार  नहीं  करते    तो  मनुष्य  की  प्रमाणिकता  पर   प्रश्न  चिन्ह  लग  जाता  है   l   इसलिए  हमारे  समाज  में  वचन , प्रतिज्ञा  व  संकल्प  का  बहुत  महत्व   है   l 

6 December 2019

WISDOM ------

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ---- ' आज  समाज  में  छाई   अनास्था   स्वयं  को  नास्तिक  कहने  वालों  की  वजह  से  नहीं  है   अपितु  उन  आस्तिकों  की  वजह  से  है   जो   बाहर  वैसा  ही  आडम्बर  रचते  हैं  ,  पर  उनके  जीवन  में   वह  कहीं  भी   लेशमात्र  भी  नजर  नहीं  आता   l  आस्तिकता  और  नैतिकता  दोनों  एक  दूसरे  से  घनिष्टता पूर्वक  सम्बंधित  हैं   l   उपासना गृहों   की  संख्या  व  उनमे  जाने  वालों  की  तादाद  बढ़ते  चले  जाने  के  बावजूद   नास्तिकता  तेजी  से  बढ़  रही  है  l   कर्मकाण्ड   के  आडम्बरों  में  उलझा  व्यक्ति  निजी  जीवन  में  अनैतिक   आचरण  करता  देखा  जाता  है  l "
 आचार्य श्री   का  कहना  है ---- ' व्यक्ति  बहिरंग  जीवन  में   धार्मिक   आचरण  करे ,  न  करे    किन्तु  उसके  मानस   का   परिष्कार  तो  होना  ही  चाहिए  l   उसे  यह  समझाना   जरुरी  है   कि   बिना  भावनात्मक    कायाकल्प  के   सारे  बाह्योपचार   निरर्थक  हैं  l  "
   शिवाजी    समर्थ  गुरु  रामदास  के  प्रिय  शिष्य  थे   l   जब  शिवाजी   ने  उनसे  गुरु  दक्षिणा  का  आदेश  देने  के  लिए  निवेदन  किया  तो  समर्थ  गुरु  रामदास  ने  कहा --- '  शिवाजी   !  तू  बल  की  उपासना  कर  ,  बुद्धि  को  पूज , संकल्पवान  बन   और  चरित्र  की  दृढ़ता  को  अपने  जीवन  में  उतार ,  यही  तेरी  ईश्वर  भक्ति  है  l   भारतवर्ष  में  बढ़  रहे  पाप , हिंसा ,  अनैतिकता   और  अनाचार   के  कुचक्र  से  लोहा  लेने   और  भगवान   की  सृष्टि  को  सुन्दर  बनाने  के  लिए  इसके  अतिरिक्त   कोई  उपाय  नहीं  है  l  "
  उन्होंने  ध्वजा  को   शिवाजी   को  थमाते   हुए  कहा  था  --- शिवा  !  इस  ध्वज  को  झुकने  न  देना  l  "
    और  छत्रपति  शिवाजी   ने     उनकी  हर  कदम  पर  उनकी  आज्ञा  का  पालन  किया  l
    जब  उनके  सहयोगी  सोनदेव  ने  कल्याण  के  किले  पर  अधिकार  कर  लिया   और  किलेदार  मुल्ला  अहमद  की    अपूर्व  सुन्दर   पुत्रवधु   गौहर  बानू  को  शिवाजी   के  सामने  दरबार  में  प्रस्तुत  किया   l   तो  शिवाजी  ने  क्रोध  से  गर्जना  करते  हुए  कहा --- "  अपनी  महान  संस्कृति  के  पवित्र  सूत्रों  को  कैसे  भूल  गए  तुम  ?     तुम  अपराधी  हो  नायक  l  "  फिर  वे  सिंहासन  से  उठकर   गौहर  बानू  के  सामने  पहुंचे  और  घुटने  मोड़कर  बैठते  हुए  हाथ  जोड़कर    कहा ---- " माँ  !  अपने  सरदार  द्वारा  किये  गए    अपराध  के  लिए   मैं  आपके  सामने  क्षमा प्रार्थी  हूँ  l    देवि  !   हमारी  देव  संस्कृति  की  पुण्य  शपथ    नारी  माँ  है   l   उसके  अक्षुण्ण   सम्मान   को  विस्मृत  करना   इस  महान  संस्कृति   की  संतति  के  लिए  आत्मघात  है    मैं  आपके  सम्मुख  बार - बार  क्षमा प्रार्थी  हूँ  l "    फिर  उन्होंने  पेशवा   से कहा --- इन्हे  सम्मान  और  सुरक्षा  के  साथ  बीजापुर  भेजने  का  प्रबंध  किया  जाये   l 
आज्ञा    देकर  भी  वे   संतुष्ट  नहीं  हुए  और  स्वयं    बाहर  खड़ी  शानदार  बग्घी   तक  उसे  छोड़ने  आये  l   बग्घी  के  साथ  पांच   सौ    मराठों   की  टुकड़ी    सुरक्षा  के  लिए  जा  रही  थी  l    शिवजी  ने  सभी  नागरिकों , सभासदों  से  कहा -- " देख  रहे  हो  किले  के   कंगूरे  पर  फहरा  रही  ध्वजा   को l     श्री  श्री समर्थ  ने  कहा  था    इस  ध्वज   को  झुकने  न  देना  l   सभी  ने  आँख  उठाकर  देखा ,  ध्वज   ऐसे  फहरा  रहा  था    जैसे    ऊपर  जाकर  सहस्रदल  कमल  खिल  गया  हो  l 

5 December 2019

WISDOM -----

  मनुष्य  के  विकास  की  सबसे  बड़ी  बाधा  उसका  अहंकार  है  l   अहंकारी  व्यक्ति  के  सामने  सब  कुछ  छोटा  होता  है  l ऐसा  व्यक्ति  अपने  प्रत्येक  कार्य  का  श्रेय  तो   स्वयं  लेता  है  ,  साथ  ही  दूसरों  के  कार्यों  का  भी  श्रेय  लेना  चाहता  है  ,  उसका  लाभ  वह  अकेले  उठाना  चाहता  है   l   दूसरे  को  हस्तक्षेप    करते  या  लाभ  उठाते  देख  वह  जल - भुन   उठता  है   और  प्रतिकार  के  लिए  तैयार  हो  जाता  है  l  उसका  यह  अहंकार  जब  पराकाष्ठा  तक  पहुँच  जाता  है    तब  सब  लोग  उसका  साथ  छोड़  देते  हैं   और  अन्तत :  उसे  हार  माननी  पड़ती  है   l   रावण , कंस , हिटलर , मुसोलिनी  सभी  को  उनका  अहंकार  खा  गया  l 

4 December 2019

  रामकृष्ण  परमहंस  कहते  हैं --- ' ईश्वर  दो  बार  हँसते  हैं  l  एक  बार  उस  समय  हँसते  हैं   जब  दो  भाई  जमीन    बांटते  हैं  और  रस्सी  से  नापकर  कहते  हैं  --- 'इस  ओर   की  जमीन    मेरी  है   और  उस  ओर   की  तुम्हारी  l "  ईश्वर  यह  सोचकर  हँसते  हैं  कि   संसार  है  तो  मेरा   और  ये  लोग   थोड़ी  सी  मिटटी  लेकर   इस  ओर   की  मेरी ,  और  उस  ओर   की  तुम्हारी   कर  रहे  हैं  l
फिर  ईश्वर  एक  बार  और  हँसते  हैं   l   बच्चे  की  बीमारी  बढ़ी  हुई  है  ,  उसकी  माँ  रो  रही  है   l वैद्द्य  आकर  कहता  है  --- " डरने  की  क्या  बात  है  , माँ  , मैं  अच्छा  कर  दूंगा  l  "  वैद्द्य  नहीं  जानता   कि   यदि  ईश्वर   मारना  चाहे   तो  किस  की  शक्ति  है  ,  जो  अच्छा  कर  सके 

WISDOM ------ सिनेमा अब जहर न उगले , लोक मंगल की जिम्मेदारी समझे ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

   आचार्य श्री  का  कहना  है --- ' फिल्मों  में  पहला  स्थान  लेखक  का , दूसरा  निर्देशक ,  तीसरा  गीतकार  और  संगीतकार ,  तब  चौथा  स्थान  कलाकार  का  है  l   यदि  लेखक  और  निर्देशक  तय  कर  लें  कि   फिल्म  से  समाज  को  सार्थक  देना  है   और  धनवान  उनकी  प्रतिभा  पर  विश्वास  करें   तो  सिनेमा  
जन क्रांति  कर  सकता  है   l  "
    आचार्य जी   ने  एक  बार  अपने  युग  की  दो  फिल्मों  की   चर्चा  की  थी  l   इनमें  पहली  फिल्म  थी
 ' महात्मा  विदुर '  जिस  पर  अंग्रेजों  ने  पाबन्दी  लगा  दी  थी  l   और  दूसरी  फिल्म  थी --- ' त्याग  भूमि '  जिसका  नायक  ब्राह्मण  होते  हुए  भी   हरिजनों  की  बस्ती   में  रहता  है  और  सादा  जीवन  व  उच्च  विचार  के  आदर्श  को  अपनाता  है  l   उन्होंने  बताया  कि   इन  फिल्मों  ने  अपने  समय   में  लोगों   को    बहुत  प्रभावित  किया  था  l
   विद्वानों  का  कहना  है --- ' सिनेमा  की  संवेदना  लोगों  के  दिलों  को  छूती  है  ,  उनकी  भावनाओं  को   इच्छित  दिशा  में  सहज  ही  मोड़  देती  है   l  सर्वेक्षण  में  पाया  यही  गया  है  कि   जिस  समय  लोग  सिनेमा  देखते  हैं  ,  उस  समय  उनकी  तर्क क्षमता ,  विश्लेषण  करने  वाली  पैनी  बुद्धि    सुप्त  सी  हो  जाती  है  l  बस  खुले  रहते  हैं  दिल  के  द्वार  ,  सिनेमा  के   प्रत्येक  दृश्य   में  होने  वाली  भावनाओं  की   कशमकश   के  साथ  वे  जीने  लगते  हैं  l   सिनेमा  देखे  जाने  के  बाद  भी  यह  स्थिति   देर  तक  बनी  रहती  है  l "
  फिल्म  निर्माण  खर्चीला  होता  है   इसलिए  फिल्म  निर्माता   लोगों  की  भावनाओं  का  शोषण  कर  अपनी  जेब  भरते  हैं   l   हमारे  धर्म  ग्रंथों  में  लिखा  है  -- समाज  को  पतन  की  राह  पर  धकेलने  से  बड़ा  कोई  पाप  नहीं  l   प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता  l 
 आचार्य  श्री  ने  लिखा  है ---  सामाजिक  परिवर्तन  में  सिनेमा  की  बड़ी  भूमिका  है   l   यह  सामाजिक  विचार   को  परिष्कृत    करने  एवं   भावनाओं  को  संवेदनशील  बनाने  का  कार्य  कर  सकता  है  l '

3 December 2019

WISDOM ----- संवेदना ही हमारी संस्कृति है

      भारतीय  संस्कृति  सनातन  और  शाश्वत  है   और  इस  संस्कृति  का  संबंध   संवेदना  से  है   l  भारत   पर  हजारों  वर्षों  से  बर्बर  एवं   भीषण  आक्रमण  होते  रहे  हैं  ,  तमाम  बर्बर  जातियों  ने  भारतीय  संस्कृति  को   मिटाकर  अपने  में  मिलाने  का  अथक  प्रयास  किया  l   अपना  देश  - हजारों  वर्षों  से  एक  के  बाद  एक  विदेशी  सत्ताओं  की  गुलामी  में  भी  रहा   परन्तु  इन  सब  के  बावजूद  भारतीय  संस्कृति   न  केवल  अक्षुण्ण  रही  ,  वरन  नित - निरंतर    प्रगति  के  नए  सोपानों  को  प्राप्त  करती  रही  l
  लेकिन  अब  इस  संस्कृति  के   मूल  तत्व  ' संवेदना '  को  ही  मिटाने   के   प्रयास  किये  जा  रहे  हैं  l  नशा ,  मांसाहार ,  अश्लील  साहित्य ,  आपराधिक  और  अश्लील  फ़िल्में --- ये  सब   हृदय  की  संवेदना  को  सोखकर   व्यक्ति  को  मनुष्य  से  पिशाच  बना  देते  हैं   l   गुलामी  के  काल  को ,  विदेशी   आक्रमणकारियों  को  वर्तमान  में  दोष  देना  व्यर्थ  है  ,  आज  नारी  जाति   पर  अत्याचार  देश  के  ही  लोग  कर  रहे  हैं  l  अत्याचार  और  अन्याय   होते  देख  मौन  रहना  ,  मूक  सहमति  है   l
  नारी  जाति   पर  ये   अमानुषिक  अत्याचार   इस  काल  में  संस्कृति  को  कलंकित  करने  वाली  अमानुषिक  घटनाएं  हैं   l   समाज  के  जिम्मेदार  नागरिकों  का  यह  कर्तव्य  है   कि   अपनी  कमजोरियों  से  ऊपर  उठकर  भारतीय  संस्कृति  को  अक्षुण्ण  रखें   l 

2 December 2019

WISDOM ------- पत्रकारिता बने एक पावन मिशन ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य  श्री  का  कहना  है ---- " आज  जो  पत्र  निकल  रहे  हैं  ,  उनमे  न  तो  मिशनरी  जोश  है   और  न  वैसा  कार्यक्रम  लेकर  चलते  हैं   l   अब  ऐसे  पत्र - पत्रिकाओं  को   बड़ी  संख्या  में  प्रकाशित  होना  चाहिए  ,  जो  पत्रकारिता  को  व्यवसाय  नहीं  ,  मिशन  समझें   और  मानव  जीवन  के  हर  पहलू   पर  प्रकाश  उत्पन्न  कर  सकें  l    सत्साहित्य  सृजन --- युग  की  महान  आवश्यकता  है  l  "
       पत्रकार  का  कार्य   लोकहित  के  मुद्दों  के  पक्ष  में   लोकमत  तैयार  करना  है   l   साथ  ही  अनीति ,  अन्याय  व  अत्याचार  के  खिलाफ  ऐसे  प्रचंड   जनाक्रोश   को  जन्म  देना  है    जिससे  प्रशासन  व  व्यवस्था  हिल  जाये   l   वे  अपने  को ,  अपनी  नीतियों  को    परिवर्तित  करने  के  लिए  विवश  हो  जाएँ   l   महान  पत्रकार  गणेशशंकर   विद्दार्थी  के  शब्द  हैं ---- "  यदि  तुम  सच्चे  पत्रकार  बनना  चाहते  हो   तो  देश  के  दुःख  से  दुःखी   होना  सीखो  l   देशवासियों  की  पीड़ा  और  प्रताड़ना   से  स्वयं  को  पीड़ित   व  प्रताड़ित  अनुभव  करो  l   यह  अनुभूति  ही  तुम्हे  सच्चा  पत्रकार  बनाएगी   l  "
  आज  की  पीढ़ी  के  अधिकांश  पत्रकार    सत्ता , सरकार   और  समर्थ  लोगों  पर  अपना  सब  कुछ    निछावर  करते  हैं   l   आचार्य  श्री  का  कहना  है --- ' पत्रकार  और  पत्रकारिता  तो  सामाजिक - राष्ट्रीय   जीवन  का  प्रकाश  है  ,  इन्हे  उत्तरोत्तर  तीव्र  और  प्रखर  होना  चाहिए  l  "

1 December 2019

WISDOM ----- विज्ञान ने मनुष्यों को एक हाथ से जो कुछ दिया , उसकी दुष्प्रवृतियों ने उसे दूसरे हाथ से छीन कर उसे घुटन भरा , तनाव पूर्ण वातावरण दिया दिया

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने    लिखा  है ---- ' आज  औसत  मनुष्य  की  ऐसी  विपन्न  परिस्थिति  है , जिसमें  जीना  और  मरना  दोनों  ही  कठिन  हो  रहा  है   l  आलस , प्रमाद , नशेबाजी , आवारागर्दी  जैसे   दुर्व्यसन    के  कारण    पशु - पिशाच  स्तर की   अवधारणा  ही  व्यवहार  में   उतरती  है  l '
  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं --- ' इन  दिनों  जिधर  नजर  डालकर  देखते  हैं   अनर्थ  का  ही  बोलबाला  दीखता  है   l   पाप  की  विजय  दुंदभी   बज  रही  है   l   कुम्भकरण  का  खुलता  हुआ  मुँह   असंख्यों  को  चबैने  की  तरह  चबाता  दीखता  है   l   पृथ्वी  को  चुरा  ले  जाने  वाले  हिरण्याक्षों   की  कमी  नहीं  l   इतने  पर  भी  कोई  अदृश्य  शक्ति  कहती  है    कि   उसकी  नियत  मर्यादाओं  का  उल्लंघन  देर  तक  नहीं  चल  सकेगा   l   अनाचार  को  एक  सीमा  से   आगे  नहीं  बढ़ने  दिया  जा  सकता   l  '  
 आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं --- 'जब  असुरता  के  शक्तिशाली  साम्राज्य  पृथ्वी  के  अधिकाश  भाग  को   शिकंजे  में  कसे   हुए  थे  ,  उसे  कुचल  देने  के  लिए   जब  मनुष्यों  ने  इनकार   कर  दिया    तो  रीछ , वानरों  की  मंडली    अपनी  अदक्षता  से  परिचित  होते  हुए  भी  मैदान  में  कूद  पड़ी   l   और  उसने  वह  कर   दिखाया  जिस  पर  सहज  विश्वास  नहीं  होता   l    समुद्र  लांघना , पर्वत  उठाना  , लंका  जलाना  ,   समुद्र  पर  पल  बनाना ,  यह  सब  कैसे  संभव  हो  सका  ?    इस  गुत्थी  के  समाधान  में  वह  विश्वास  है   कि   हर  अति  का  अंत  होता  है  ,  अनाचार  को  एक  सीमा  से  आगे  नहीं  बढ़ने  दिया  जा  सकता   l
       '  पराजितों  की  शक्ति  भी   संगठित  होकर    कभी - कभी   अपनी  समर्थता  का  अद्भुत  परिचय  देती  है  l  हारे  हुए  देवताओं  की  शक्ति   सामर्थ्य  को  संगठित  कर  के   प्रजापति  ने   देवी  दुर्गा  की  रचना  की   और  उसके  अदृश्य  हाथों  ने  दृश्यमान   महा बलशाली   मधु कैटभ , महिषासुर , शुंभ ,  निशुम्भ   जैसे  दुर्दांत  दैत्यों  को   धरती  में  मिला  दिया  l  '
 आचार्य श्री  लिखते  हैं   एक  दूसरे  को  ठगने  के  लिए   सज्जनता  का  लिबास  तो   बहुत  लोग  ओढ़ते  हैं    पर  जिनकी  कथनी  और  करनी  मानवी  मर्यादाओं  के  अनुरूप  हो   ऐसे  कहीं  कोई   विरले  ही   दीख  पड़ते  हैं  l 

29 November 2019

WISDOM -----

  जीवन  का  एक  महत्वपूर्ण  नियम  है  ---- कृतज्ञता  l   कृतज्ञता   का   अर्थ   है  -- धन्यवाद  देना  l   कृतज्ञ  होने  का  भाव  व्यक्ति  को  विनम्र  बनाता   है  l   ऐसा  व्यक्ति   अपने  उपलब्ध  साधनों  के  लिए   ईश्वर  का  कृतज्ञ  होता  है   l   इतिहास  में  बहुत  से  महान   व्यक्ति  हुए  हैं ,  जिन्होंने  जीवन  में  अकल्पनीय  उपलब्धियां  हासिल  कीं  l   परन्तु  उनका  श्रेय  स्वयं  न  लेते  हुए   परमात्मा  के  प्रति  कृतज्ञ  रहे   l   यही  गुण   उन्हें  महापुरुषों  की    श्रेणी  में  ला  कर  खड़ा  करता  है  l