24 October 2018

करुणा के महासागर ----- महर्षि वाल्मीकि

 महर्षि  वाल्मीकि  के  सन्दर्भ  में  एक  प्रसिद्ध  घटना  है  ---- एक  बार महर्षि  वाल्मीकि   तमसा  नदी  जिसे  अब  टोंक  नदी  कहते हैं  ,  के  तट  पर  अपने  शिष्य   स्नान के  लिए  गए  l   वहां  नदी  के  किनारे  पेड़  पर  क्रौंच  पक्षी  का  एक  जोड़ा   प्रेममग्न   था  l  तभी  व्याध  ने  इस  जोड़े में  से   नर  क्रौंच  पक्षी  को  अपने  बाणों  से  भेद  दिया  l  रोती  हुई  मादा  क्रौंच  भयानक  विलाप   करने  लगी   तो  करुणा  के  महासागर   महर्षि   वाल्मीकि  का  ह्रदय  इतना  द्रवित हुआ  कि  उनके  मुख  से  अचानक  यह  श्लोक  फूट  पड़ा ----
     मा  निषाद   प्रतिष्ठाम  त्वमगम:  शाश्वतीः  समा:  l
     यत  क्रौंचमिथुनादेकम वधी:  काममोहितं   l l      ( वाल्मीकि  रामायण )
 अर्थात   हे  निषाद  !  तुम  चिरस्थायी  प्रतिष्ठा  को  प्राप्त  नहीं  हो  सकोगे  ,  क्योंकि  तुमने  काममोहित   क्रौंच  का  वध  कर  दिया  l   उनकी  इस  करुणा  से  एक  महाकाव्य  ' रामायण '  का  उदय  हुआ  , जिसके  कारण  महर्षि  वाल्मीकि  विश्व  के  प्रथम  कवि     के  रूप  में  प्रतिष्ठित  हुए    l 
  रामायण  एक  अलौकिक ,  प्रेरणादायी  और  उत्कृष्ट  रचना  है  ,  जिसमें  हमें  मानवता  की  प्रतिष्ठा , दुष्टों  का  दमन , अनीति  का  प्रतिकार , नारी शोषण  का  विरोध ,  प्रकृति  चिंतन , युद्ध  कौशल  की  रणनीति ,  जीवन  प्रबंधन   और  जीवन  जीने  की  कला   व  अध्यात्म  के  गूढ़  रहस्य  आदि  के  दर्शन  होते  हैं  l 
  महर्षि  वाल्मीकि  जी  की  प्रासंगिकता  इसलिए  भी  है  कि  उन्होंने  ही  इस  धरती  से  ' वसुधैव  कुटुम्बकम '  का   उद्घोष  किया  ---
                अयं  निज:  परो  वेति  गणना  लघुचेतसाम
                उदारचरितानाम   तु  वसुधैव  कुटुम्बकम   l
 वाल्मीकि  रामायण  में  केवल  राष्ट्रहित  की  उद्घोषणा  नहीं  है  ,  बल्कि  उसमे  सम्पूर्ण  मानव  समाज   एवं   विश्व शांति  की  परिकल्पना  सन्निहित  है  l  वर्तमान  समय  में  जब  चारों  और   अशांति , असुरक्षा , भ्रष्टाचार ,  अनाचार  व  आतंकवाद  रूपी  रावण  का  आतंक  फैला  हुआ  है  ,  ऐसे  में  वाल्मीकि  रामायण  की  प्रासंगिकता  और  उपादेयता   और  भी  बढ़  जाती  है   l