महर्षि वाल्मीकि के सन्दर्भ में एक प्रसिद्ध घटना है ---- एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी जिसे अब टोंक नदी कहते हैं , के तट पर अपने शिष्य स्नान के लिए गए l वहां नदी के किनारे पेड़ पर क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा प्रेममग्न था l तभी व्याध ने इस जोड़े में से नर क्रौंच पक्षी को अपने बाणों से भेद दिया l रोती हुई मादा क्रौंच भयानक विलाप करने लगी तो करुणा के महासागर महर्षि वाल्मीकि का ह्रदय इतना द्रवित हुआ कि उनके मुख से अचानक यह श्लोक फूट पड़ा ----
मा निषाद प्रतिष्ठाम त्वमगम: शाश्वतीः समा: l
यत क्रौंचमिथुनादेकम वधी: काममोहितं l l ( वाल्मीकि रामायण )
अर्थात हे निषाद ! तुम चिरस्थायी प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं हो सकोगे , क्योंकि तुमने काममोहित क्रौंच का वध कर दिया l उनकी इस करुणा से एक महाकाव्य ' रामायण ' का उदय हुआ , जिसके कारण महर्षि वाल्मीकि विश्व के प्रथम कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए l
रामायण एक अलौकिक , प्रेरणादायी और उत्कृष्ट रचना है , जिसमें हमें मानवता की प्रतिष्ठा , दुष्टों का दमन , अनीति का प्रतिकार , नारी शोषण का विरोध , प्रकृति चिंतन , युद्ध कौशल की रणनीति , जीवन प्रबंधन और जीवन जीने की कला व अध्यात्म के गूढ़ रहस्य आदि के दर्शन होते हैं l
महर्षि वाल्मीकि जी की प्रासंगिकता इसलिए भी है कि उन्होंने ही इस धरती से ' वसुधैव कुटुम्बकम ' का उद्घोष किया ---
अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम
उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम l
वाल्मीकि रामायण में केवल राष्ट्रहित की उद्घोषणा नहीं है , बल्कि उसमे सम्पूर्ण मानव समाज एवं विश्व शांति की परिकल्पना सन्निहित है l वर्तमान समय में जब चारों और अशांति , असुरक्षा , भ्रष्टाचार , अनाचार व आतंकवाद रूपी रावण का आतंक फैला हुआ है , ऐसे में वाल्मीकि रामायण की प्रासंगिकता और उपादेयता और भी बढ़ जाती है l
मा निषाद प्रतिष्ठाम त्वमगम: शाश्वतीः समा: l
यत क्रौंचमिथुनादेकम वधी: काममोहितं l l ( वाल्मीकि रामायण )
अर्थात हे निषाद ! तुम चिरस्थायी प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं हो सकोगे , क्योंकि तुमने काममोहित क्रौंच का वध कर दिया l उनकी इस करुणा से एक महाकाव्य ' रामायण ' का उदय हुआ , जिसके कारण महर्षि वाल्मीकि विश्व के प्रथम कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए l
रामायण एक अलौकिक , प्रेरणादायी और उत्कृष्ट रचना है , जिसमें हमें मानवता की प्रतिष्ठा , दुष्टों का दमन , अनीति का प्रतिकार , नारी शोषण का विरोध , प्रकृति चिंतन , युद्ध कौशल की रणनीति , जीवन प्रबंधन और जीवन जीने की कला व अध्यात्म के गूढ़ रहस्य आदि के दर्शन होते हैं l
महर्षि वाल्मीकि जी की प्रासंगिकता इसलिए भी है कि उन्होंने ही इस धरती से ' वसुधैव कुटुम्बकम ' का उद्घोष किया ---
अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम
उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम l
वाल्मीकि रामायण में केवल राष्ट्रहित की उद्घोषणा नहीं है , बल्कि उसमे सम्पूर्ण मानव समाज एवं विश्व शांति की परिकल्पना सन्निहित है l वर्तमान समय में जब चारों और अशांति , असुरक्षा , भ्रष्टाचार , अनाचार व आतंकवाद रूपी रावण का आतंक फैला हुआ है , ऐसे में वाल्मीकि रामायण की प्रासंगिकता और उपादेयता और भी बढ़ जाती है l