भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि गुण मानवीय व्यक्तित्व का आधार है l वे कहते हैं व्यक्तियों में अंतर मात्र गुणात्मक है , उनके अंदर उपस्थित गुणों के प्रभुत्व का है l जिस गुण का प्रभाव बढ़ जाये , व्यक्ति के व्यक्तित्व की संरचना वैसी ही हो जाएगी l एक व्यक्ति जीवन भर एक ही व्यक्तित्व नहीं रहता है l तभी तो अनेक हत्याएं करने के बाद भी अंगुलिमाल भिक्षु बन जाता है और वर्षों तपस्या करने के बाद भी रावण असुर बन जाता है l भगवान कहते हैं जिस गुण का आधिक्य हुआ , वह गुण , अन्य गुणों को दबाकर आगे बढ़ता है l
24 December 2020
WISDOM ----- काल ! सर्वोपरि है
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " काल ही काली है , सबकी माता और सबका संहार करने वाली काली वह शक्ति है , जो इनसान , उसके द्वारा निर्मित समस्त संस्थानों और आंदोलनों की शाश्वत तरंग में स्वयं को अभिव्यक्त करती है l काल का प्रवाह प्रचंड होता है , इस प्रवाह के संग जो बहता है , वह विकसित होता है , परन्तु जो इसमें बाधा डालता है , वह अनंत शक्तिशाली होने के बावजूद मिट जाता है l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' इस संसार में हर व्यक्ति की अपनी भूमिका होती है l बुद्धिमत्ता तो यही है कि काम पूरा होते ही उससे विदा ले लेनी चाहिए l काम के बाद एक पल भी ठहरना अच्छा नहीं है l उन्होंने इतिहास का उदाहरण देते हुए लिखा है -- फ़्रांस की राज्य क्रांति में चार व्यक्तियों ---- मीराबो , दांते , रोब्सवियर और नेपोलियन का योगदान था l मीराबो ने फ़्रांस की राज्य क्रांति को जन्म देने में बहुत सहायता की , परन्तु वही उसका विरोधी भी था l उसने फ्रांसीसी राज्य क्रांति के पहिये को रोकने का प्रबल प्रयत्न किया किन्तु क्रांति काल की अभिव्यक्ति थी , क्रांति थी ईश्वर की इच्छा l क्रांति तो रुकी नहीं , काली ने मीराबो को नष्ट कर दिया और क्रांति जारी रही l काली ने दांते और रोब्सवियर को भी समाप्त कर दिया l लेकिन नेपोलियन ने बड़ी भारी गलती की , वह काली के निर्देश को न समझ सका l ' आचार्य श्री लिखते हैं --- ' जो अपनी महत्ता की निश्चित अवधि के बाद भी ठहरे रह जाते हैं उनका भाग्य सुखमय नहीं होता l नेपोलियन ने अनेक महान कार्य किये किन्तु उसका अवसान अत्यंत दर्दनाक हुआ l अहंकार के कारण महाप्रतापी सम्राट और महान कार्य करने वाले भी काल की गहरी खाई में जा गिरते हैं , उनकी ख्यातियों और उपलब्धियों को रौंदते हुए काली आगे बढ़ती है परन्तु जो लोग स्वयं को भगवान का यंत्र मानकर काम करते हैं , समाज में उन्ही की प्रतिष्ठा होती है l वही महाकाली का यंत्र बनता है l काली उन्ही को माध्यम बनाकर कार्य करती है l '