26 May 2013

DRINK----Drunkenness is temporary suicide

'उल्लू को दिन में नहीं दीखता और कौए को रात में नहीं लेकिन कामांध ,मदांध और स्वार्थान्ध को न दिन में दीखता है न रात को | '
              पौराणिक काल में एक राजा सर्वमित्र राज्य करते थे | वे कुशल शासक थे लेकिन उनमे मदिरा पीने का घोर व्यसन था | वह स्वयं तो सुरापान करते ही थे ,लेकिन साथ ही दूसरों को ,सेवकों को ,राजकर्मचारियों को भी पिलाते थे | इसी में उनको प्रसन्नता मिलती थी | राजा और राजकर्मचारियों के द्वारा इस तरह के मदिरापान से पूरे राज्य में अराजकता छा गई | लोग दुराचारी होने लगे ,प्रजा का उत्पीड़न होने लगा | न्याय -अन्याय ,सत्य -असत्य ,धर्म -अधर्म और प्रकाश -अंधकार का विवेक समाप्त हो गया ,परंतु दिन और रात दोनों में अंधे राजा को इसकी कोई चिंता नहीं थी |
                एक शाम जब मदिरापान का क्रम चलने वाला था ,तभी वहां पर एक ब्राह्मण आया ,उसने एक पात्र दिखाकर कहा -"इस पात्र में सुरा है | इसका मुख सुगंधित पुष्पों से ढका है ,इसे कौन खरीदेगा ?"उस ब्राह्मण की आँखों में तेज था ,मुखमंडल पर प्रकाश था | उसकी तेजस्वी व प्रकाश्पूरित देह को देख राजा ने उसका अभिवादन किया | उत्तर में उस ब्राह्मण ने राजा को मदिरापात्र दिखाते हुए कहा --"राजन !यदि तुम्हे लोक -परलोक का भय न हो ,नरक यातना की चिंता न हो तो यह मदिरा खरीद लो | "ब्राह्मण के ये शब्द सुनकर राजा सर्वमित्र बोले -"ब्राह्मण देव !आप तो विचित्र ढंग से सौदा कर रहे हैं | लोग तो अपनी वस्तु की प्रशंसा करतेहुए उसे बेचते हैं परंतु आप तो मदिरा के दोष प्रकट करते हुए उसे बेच रहे हैं | सचमुच ही आप धर्मात्मा हैं | "सर्वमित्र को इसी तरह अचरज में डालते हुए ब्राह्मण ने कहा ------
        "राजन !न तो इसमें पवित्र फूलों का मधु है ,न गंगाजल है ,न गोदुग्ध है ,इसमें तो विषमयी मदिरा है | इसे जो पीता है ,वह वश में नहीं रहता | उसका विवेक समाप्त हो जाता है | राजपथ पर लड़खड़ा कर गिर जाता है कुत्ते उसका मुख चाटते हैं | अपनी की हुई उलटी वह स्वयं चाट लेता है,| इसे खरीद लो ,यह अच्छा अवसर है | इसे पीकर बड़े -बड़े धनवान दरिद्र हो गये ,राजाओं के राज्य मिट गये | यह अभिशाप की मूर्ति है ,पाप की जननी है ,यह ऐसे नरक में ले जाती है ,जिसमे रात -दिन नरक की आग जलती रहती है | इसे खरीद लो ,पी लो | | "ब्राह्मण की इन बातों को सुनकर राजा को चेत हुआ ,वह ब्राह्मण के पैरों में गिर गया और बोला -"भगवन !आपने मेरे सोए विवेक को जगा दिया | अब से मैं कभी मदिरापान नहीं करूँगा | "
ब्राह्मण को वचन देकर राजा ने पूछा -"हे ब्राह्मण देव !आप कौन हैं ?"तब ब्राह्मण ने कहा --हे राजा !मैं ऋषि लोमश हूँ | तुम्हारा कुल राज ऋषियों का है | तुम्हारे पिता -पितामह सभी सत्कर्म करने वाले और महाज्ञानी थे | तुम्हारी यह दशा मुझसे देखी न गई और मैं चला आया | " उनका परिचय पाकर राजा को यह अनुभव हुआ कि जो सात्विक प्रवृति के हैं वे दिन और रात ,अच्छी और बुरी किसी भी परिस्थिति में अपना विवेक नहीं खोते ,उनकी विवेक -द्रष्टि सदा जाग्रत रहती है | 
नारद के परामर्श से ध्रुव भगवत प्राप्ति के लिये तपस्या करने लगे | बहुत दिन बाद नारद उधर से गुजरे और पूछा -"यदि साधना से सिद्धि न मिली तो क्या करोगे ?"
ध्रुव ने कहा -"तब मैं सोचूंगा कि इतने बड़े प्रयोजन के लिये एक जन्म जितना समय बहुत कम है | मुझे यह प्रयत्न अनेक जन्मों तक करते रहना चाहिये | "इस अविचल श्रद्धा को देखकर नारद बहुत प्रभावित हुए | ध्रुव को गले से लगाकर बोले -"इतनी प्रगाढ़ निष्ठा के रहते असफलता का कोई प्रश्न शेष नहीं रह जाता | "