11 December 2018

WISDOM ----- चरम पुरुषार्थ से नूतन भाग्य का निर्माण किया जा सकता है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  नियति  के कुछ  ऐसे   पाश  होते  हैं  ,  जिन्हें  अनिवार्य  रूप  से  भोगना  ही  पड़ता  है  l  पुरुषार्थी   नियति  के   ऐसे   पाशों  को   या  तो  उखाड़  फेंकता  है   या  फिर  इन्हें  झेलने  की   असीम सामर्थ्य  उत्पन्न  करता  है   l    सच्चा  पुरुषार्थी  अपनी  नियति  को  बदलता  है   और  दूसरों  की  नियति  को  भी  परिवर्तित  करने  की  क्षमता  रखता  है   l  उसके  पास  तपश्चर्या  की  असीम  और  अपरिमित शक्ति  होती  है   l  पुरुषार्थ  की चरम  अवस्था  ही  तपश्चर्या  है  l 
 पुरुषार्थी  के  पास  तप  की  शक्ति होती  है   l   आचार्य जी  का  स्पष्ट  मत  है  --- कर्मयोगी  बनो  l  संसार  में  रहकर   सुख - दुःख ,  मान - अपमान   को  समभाव  से  सहन  करना ,  कष्टों  को  असीम  धैर्य  से  सहन  करना   और  प्रतिशोध की  अग्नि  से  दूर  रहकर    अपने  लक्ष्य ,  अपनी मंजिल  की  ओर बढ़ना ही  तप  है  l  ऐसे  पुरुषार्थी  बनकर  ही  नवीन  भविष्य   का  निर्माण  किया  जा  सकता  है   l