7 March 2013

SUPERIOR MAN

'जीवन शास्त्र तो कर्मों के अक्षरों और भावनाओं की स्याही से लिखा जाता है | इसे जो जान लेता है ,पढ़ लेता है ,समझ लेता है ,वही पंडित है ,ज्ञानी है | '
लगभग एक सौ पचास वर्ष पूर्व की बात है | जापान के एक प्रतिष्ठित बौद्ध भिक्षुक ने पाली में प्राप्त उपदेशों को जापान में प्रचारित करने के लिए जापानी भाषा में अनुदित किया | प्रकाशन के लिए धन जरुरी था ,संघ के नियम अनुसार किसी से मांगना नियम विरुद्ध था | स्वयं को ही भिक्षा से जितना धन मिल जाये उतने से ही व्यवस्था बनानी थी | पांच वर्ष में इतना धन एकत्र हो गया कि प्रकाशन की व्यवस्था बन सके | अचानक जापान के एक क्षेत्र में ऐसा घोर दुर्भिक्ष पड़ा कि स्थिति देख| भिक्षु करुणा से भर गये ,उन्होंने सारा धन आकाल पीड़ितों की सेवा -भूखों को भोजन ,वस्त्रहीन को वस्त्र ,आदि में लगा दिया | जब दुर्भिक्ष के बादल छंट गये तब फिर धन संग्रह करना शुरू किया ,दस वर्षों में धन राशि एकत्र हुई ,प्रकाशन की व्यवस्था बनाने लगे तभी उस क्षेत्र में बाढ़ आ गई| इस बार महा भिक्षु ने एकत्र किया सारा धन बाढ़ पीड़ितों की सेवा में लगा दिया | अब उनके सभी अनुयायियों ने उनका साथ छोड़ दिया किंतु महा भिक्षु ने दान संग्रह जारी रखा | योग ऐसा रहा कि पुस्तक प्रकाशित हो गई ,उसके ऊपर लिखा था -तृतीय संस्करण | लोगों ने पूछा कि पहले दो संस्करण कौन से हैं ?महा भिक्षु बोले "वे उन्हीं को दिखायी देंगे जिनके पास सेवा और प्रेम की आँखे हैं | यह ग्रंथ अति लोकप्रिय हुआ एवं बौद्ध धर्म का आधार बनाने में सफल हुआ | 
मन:स्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है | मनुष्य जैसा सोचता है ,वैसा ही करता है और वैसा ही बन जाता है |
हमारे भले -बुरे कर्म ही संकट और सौभाग्य बनकर सामने आते हैं | इसलिए अपनी दीन -हीन ,दयनीय स्थिति के लिये किसी दूसरे को दोष देने से अच्छा है अपनी भावना मान्यता ,आकांक्षा ,विचारणा और गतिविधियों को परिष्कृत किया जाये | यदि मनुष्य अपने को सुधार ले तो अपना सुधरा प्रतिबिम्ब व्यक्तियों और परिस्थितियों में चमकता दिखायी पड़ने लगता है | 'यह संसार गुम्बद की तरह अपने ही उच्चारण को प्रतिध्वनित करता है | अपने जैसे लोगों का जमघट ही साथ में जुड़ जाता है |