ईश्वर के समक्ष अच्छे और बुरे लोगों के प्रति कोई भेदभाव नहीं है l ईश्वर यदि किसी की प्रार्थना सुनते हैं तो वह है सच्चे लोगों की l इसलिए तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है ------ ' निर्मल मन जन सो मोहि पावा , मोहि कपट छल छिद्र न भावा l ' भगवान को तो निष्कपट और सरल हृदय मनुष्य ही प्रिय हैं और इन्ही में भगवान का वास होता है l गीता में कहा है --- भगवान दुराचारी के तो हो सकते हैं पर कपटी के कभी नहीं हो सकते l श्री कृष्ण ने कुब्जा का कूबड़ तो ठीक कर दिया था क्योंकि अनन्य भाव से श्रीकृष्ण उसमे बसते थे , लेकिन कपट लेकर आई रावण की बहन सूर्पणखा जो कहती थी --- " तुम सम पुरुष न मो सम नारी " को अपनी नाक कटवा कर जाना पड़ा भगवान कभी छल - कपट पसंद नहीं करते l