2 August 2019

WISDOM ----

स्वामी  दयानन्द  सरस्वती के  जीवन  का  सर्वोपरि  उद्देश्य  हिन्दू  जाति  में  प्रचलित  हानिकारक  विश्वासों , कुरीतियों  को  मिटाना  l  अलीगढ़ में  मुसलमानों  के  सबसे  बड़े  नेता  सर  सैयद  अहमद  खां  स्वामीजी  से  भेंट  करने  कई  बार  आये  l  एक  दिन  उन्होंने  कहा ---- "  स्वामीजी, आपकी   अन्य  बातें  तो  युक्ति युक्त   जान  पड़ती हैं  ,  पर  यह  बात  कि  थोड़े  से  हवन  से   वायु  का  सुधार  हो  जाता  है  , युक्ति संगत  नहीं  जान  पड़ती  l "
 स्वामीजी  ने  पूछा --- " आपके  यहाँ  कितने  मनुष्यों  का  भोजन  बनता  है  ?
 उत्तर  मिला ---- कोई  पचास - साठ  का  l '  स्वामीजी  ने  फिर  कहा --- "  आपके  भोजन  में  दाल  कितने  सेर  पकती  होगी  ?  "   उन्होंने  कहा --- "  यही  कोई  छह - सात  सेर  l " 
स्वामीजी  ने  फिर  पूछा --- "  इतनी  दाल  में  कितनी  हींग  का  छौंक  दिया  जाता  होगा  ? " 
 उत्तर मिला  --- " माशा  भर  से  कम  तो  हींग  न  होती  होगी  l  "
 तब  स्वामीजी  ने  सर  सैयद  को  समझाया  कि  जिस  तरह  माशा  भर  हींग  पचास  आदमियों  की  दाल  को  सुगन्धित  बना  देती  है  उसी  प्रकार  थोड़ा  सा  हवन   भी   वायु  को  सुगन्धित  बना  देता  है  l  स्वामीजी  के  इस  तर्क  से  सभी  श्रोता  प्रभावित  हो  गए  और  सर  सैयद  भी  उनकी  स्तुति  करते  हुए  अपने  घर  गए   l    स्वामीजी  जो  कुछ  करते  थे  उसमे  मानव  कल्याण  की  भावना  होती  थी  l
            एक  लेख  में  उन्होंने  लिखा  था ---- " जो  सज्जन  सार्वजनिक  हित  को  लक्ष्य  में  रखकर  कार्य  में  प्रवृत  होता  है   उसका  विरोध  स्वार्थी  जन  तत्परता  से  करने  लग  जाते  हैं  l  उनके  मार्ग  में  अनेक  प्रकार  की  विध्न - बाधाएं  डालते  हैं  l  परन्तु  सत्यमेव  जयते   के  अनुसार   सदा - सर्वदा  सत्य  की  विजय  होती  है   और  असत्य  की  पराजय  होती  है  l  सत्य  से  ही  विद्वानों  का  मार्ग  विस्तृत   हो  जाता  है  l  इस  द्रढ़  निश्चय  के  अवलंबन  से   आप्त  लोग  परोपकार  करने  से  उदासीन  नहीं  होते   l