6 November 2018

WISDOM ----- जब बल - सामर्थ्य अनीति के विरुद्ध निर्बलों की सहायता के लिए प्रयुक्त होता है तो वह भगवान की विभूति है

  विनोबा  भावे  ने  एक  पुस्तक  लिखी  है  ' चिरयौवन  की  साधना '   उसमे  एक  श्लोक  की  व्याख्या  करते  हुए  वे   हनुमानजी  को  चिरयुवा  कहते  हैं   l  हनुमानजी  कभी  वृद्ध  नहीं  हुए  l   अनीति  के  विरुद्ध  संघर्ष  के  कारण  यह  संज्ञा  उनने  दी  है  l वे  कहते  हैं  कि  मात्र  हनुमानजी  चिरयुवा हैं  और कोई  नहीं   l  वे  लिखते  हैं  कि  कुम्भकरण  और  रावण  बड़े  बलशाली  थे  , पर  दोनों ने  अपने  बल  को  कामनाओं  की पूर्ति  के  लिए   प्रयुक्त  किया   l  बाली  भी   अत्यंत  बलशाली  था   उसने   रावण  तक  को  परास्त  कर  दिया  था  ,  पर   कामवासना  के  वशीभूत    हो  रावण  और  बाली  दोनों  का  ही  बल  व्यर्थ  गया   l
  हनुमानजी  ने  अपने  निष्काम बल  से  सारी  लंका  उजाड़  दी    और  सुग्रीव   की  मदद  के  लिए  श्रीराम  से  बाली  का  वध  करवाया   l  समर्पण  भाव  से ,  कामना  रहित  बल  के  प्रभाव  से  उन्होंने  लंका जला  डाली   l          कहते  हैं  यदि  आप  भगवान  श्रीराम  की कृपा  चाहते  हैं   तो   हनुमानजी  को  प्रसन्न  करो   l    उन्हें   प्रसन्न  करने  के  लिए   घंटी बजाना , कर्मकांड  करना  इतना  जरुरी  नहीं  है  l  उन्हें  प्रसन्न करना  है  तो   उनकी  तरह  अनीति , अत्याचार  के  विरुद्ध  संघर्ष  करो  l   जो  ऐसा  करता  है   उसके  भीतर  भी  हनुमानजी  का  बल  आ  जाता  है  l  द्वापरयुग  युग  में  महाभारत   के  युद्ध  में  जब    अर्जुन   अनीति  के  विरुद्ध  युद्ध  करने  को   तैयार हुआ   तब  हनुमानजी  अपने  बल  सहित   उनके  रथ  की  ध्वजा  पर  विराजमान  थे   l