विनोबा भावे ने एक पुस्तक लिखी है ' चिरयौवन की साधना ' उसमे एक श्लोक की व्याख्या करते हुए वे हनुमानजी को चिरयुवा कहते हैं l हनुमानजी कभी वृद्ध नहीं हुए l अनीति के विरुद्ध संघर्ष के कारण यह संज्ञा उनने दी है l वे कहते हैं कि मात्र हनुमानजी चिरयुवा हैं और कोई नहीं l वे लिखते हैं कि कुम्भकरण और रावण बड़े बलशाली थे , पर दोनों ने अपने बल को कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रयुक्त किया l बाली भी अत्यंत बलशाली था उसने रावण तक को परास्त कर दिया था , पर कामवासना के वशीभूत हो रावण और बाली दोनों का ही बल व्यर्थ गया l
हनुमानजी ने अपने निष्काम बल से सारी लंका उजाड़ दी और सुग्रीव की मदद के लिए श्रीराम से बाली का वध करवाया l समर्पण भाव से , कामना रहित बल के प्रभाव से उन्होंने लंका जला डाली l कहते हैं यदि आप भगवान श्रीराम की कृपा चाहते हैं तो हनुमानजी को प्रसन्न करो l उन्हें प्रसन्न करने के लिए घंटी बजाना , कर्मकांड करना इतना जरुरी नहीं है l उन्हें प्रसन्न करना है तो उनकी तरह अनीति , अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करो l जो ऐसा करता है उसके भीतर भी हनुमानजी का बल आ जाता है l द्वापरयुग युग में महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन अनीति के विरुद्ध युद्ध करने को तैयार हुआ तब हनुमानजी अपने बल सहित उनके रथ की ध्वजा पर विराजमान थे l
हनुमानजी ने अपने निष्काम बल से सारी लंका उजाड़ दी और सुग्रीव की मदद के लिए श्रीराम से बाली का वध करवाया l समर्पण भाव से , कामना रहित बल के प्रभाव से उन्होंने लंका जला डाली l कहते हैं यदि आप भगवान श्रीराम की कृपा चाहते हैं तो हनुमानजी को प्रसन्न करो l उन्हें प्रसन्न करने के लिए घंटी बजाना , कर्मकांड करना इतना जरुरी नहीं है l उन्हें प्रसन्न करना है तो उनकी तरह अनीति , अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करो l जो ऐसा करता है उसके भीतर भी हनुमानजी का बल आ जाता है l द्वापरयुग युग में महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन अनीति के विरुद्ध युद्ध करने को तैयार हुआ तब हनुमानजी अपने बल सहित उनके रथ की ध्वजा पर विराजमान थे l