ऋषियों का वचन है --- ' मनुष्य पाप कर के यह सोचता है कि उसका पाप कोई नहीं जानता , पर उसके पाप को न केवल देवता जानते हैं , बल्कि सबके ह्रदय में स्थित परम पिता भी जानते हैं l ' जब संसार में कायरता बढ़ जाती है तब व्यक्ति छल , कपट , षड्यंत्र का सहारा लेता है l प्रत्यक्ष में प्रेम और अपनत्व दिखाकर पीठ में छुरा भोंकने का कार्य करता है l ऐसा कर के वह अपने को बहुत चतुर , चालाक समझता है l अनेकों लोग जो कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान होते हैं वे पुलिस और कानून की नजरों से बच भी जाते हैं लेकिन ईश्वर से , प्रकृति से कुछ छुपा हुआ नहीं है l सत्य एक दिन सामने आ ही जाता है l ऐसे कायरतापूर्ण कार्य हर युग में हुए हैं लेकिन यदि व्यक्ति सत्य की राह पर है तो दैवी शक्तियां उसकी रक्षा करती हैं और पापियों का हर प्रयास असफल हो जाता है l महाभारत का प्रसंग है ---- दुर्योधन , शकुनि ने कुचक्र रचकर पांचों पांडवों और माता कुंती को वारणावत भेजा l प्रत्यक्ष में यह कहा गया कि वे वहां सैर करने , वहां के मेले आदि का आनंद लेने जा रहे हैं लेकिन पांडवों को समूल नष्ट करने के लिए उसने पुरोचन के भेजकर उनके लिए लाख का महल बनवा दिया l यह कार्य पांडवों की पीठ में छुरा भोंकना था l लाख के महल में सभी चीजें ऐसी रखी गईं थीं जो शीघ्र आग पकड़ती हैं l निश्चित दिन पांडवों को महल सहित जला देने की योजना थी l यह कार्य बहुत गुप्त रूप से किया गया लेकिन महात्मा विदुर को इसकी जानकारी थी l हस्तिनापुर से चलते समय उन्होंने युधिष्ठिर को गूढ़ भाषा में समझाया और कहा --- जो आग जंगल का नाश करती है , वह बिल में रहने वाले चूहे को नहीं छू सकती l सेही --जैसे जानवर सुरंग खोदकर जंगली आग से अपना बचाव कर लेते हैं l युधिष्ठिर सब कुछ समझ गए l वहां पहुंचकर सुरंग तैयार कर ली l निश्चित दिन युधिष्ठिर ने बहुत बड़े भोज का आयोजन किया , सभी कर्मचारी खा -पी कर गहरी नींद सो गए , तब भीम ने उस लाख के महल को आग लगा दी और माता कुंती समेत बाहर निकल आए l जिनकी रक्षा करने वाले स्वयं भगवान हों उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता l क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है , कर्म फल अवश्य मिलता है l दुर्योधन आदि पांडवों को उनकी माता सहित नष्ट करना चाहते थे , वे तो बच गए लेकिन महाभारत के युद्ध में पूरे कौरव वंश का अंत हो गया l जानबूझकर , सोच -समझ कर और योजना बनाकर जो अपराध किए जाते हैं , प्रकृति से उनको दंड अवश्य मिलता है l
30 November 2022
29 November 2022
WISDOM ----
लघु कथा ---- सुबह -सुबह एक लोहार घर से बाहर निकला l रास्ते में उसे लोहे के दो टुकड़े मिल गए , उसने उन्हें उठा लिया और घर लौटने पर लोहार ने एक टुकड़े से तलवार बनाई और दूसरे को ढाल बना दिया l कुछ दिनों बाद एक योद्धा आकर तलवार और ढाल खरीदकर ले गया l उस योद्धा ने कई युद्धों में उनका उपयोग किया l एक युद्ध में तलवार टूट गई लेकिन ढाल ज्यों की त्यों सलामत रही l टूटी तलवार को योद्धा घर ले आया और तलवार व ढाल दोनों को पास -पास रख दिया l रात में जब सब सो गए , तब तलवार कराहती हुई ढाल से बोली --- बहिन , देखो मेरी कैसी दुर्दशा हो गई और एक तू है जो ज्यों -की -त्यों सुरक्षित है l ढाल ने कहा ---हम दोनों में एक फर्क जो है l वह क्या ? तलवार पूछ बैठी l ढाल ने कहा --- तू सदैव किसी को मारने -काटने का काम करती रही है और मैं बचाने का l यह ख्याल रखो कि मारने वाले से बचाने वाले की आयु ज्यादा है l
28 November 2022
WISDOM ---
श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता l किसी भी स्थिति में उसका कोई अहित नहीं होता l मैं सदा उसके साथ रहता हूँ l जो सच्चे ईश्वर भक्त हैं उनके मन में सतत विश्वास रहता है कि जब प्रभु साथ हैं तो कुछ भी अन्यथा नहीं होगा l एक कथा है ---- एक सेठ जी थे , ईश्वर विश्वासी थे l ईमानदारी से व्यापार करते और और काम करने के साथ मन में निरंतर भगवान का नाम स्मरण करते l उनके रुई के कई गोदाम थे l एक दिन उनका मुनीम अचानक दौड़ता हुआ उनके कक्ष में पहुंचा और बोला --- " सेठ जी ! बड़ी बुरी खबर है l तार आया है कि हमारे गोदामों में आग लग गई , संभवतः लाखों का नुकसान हो गया हो l " यह सुनकर सेठ जी जरा भी विचलित नहीं हुए और बोले --- " जैसी प्रभु की इच्छा , वैसा ही होगा l " मुनीम को ऐसा देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ l l एक घंटे बाद मुनीम फिर से सेठजी के कमरे में दौड़ा आया और बोला --- " सेठ जी ! अभी -अभी खुशखबरी आई है l हमारे सारे गोदाम सुरक्षित हैं l पहला वाला तार हमें गलती से मिल गया था l सेठजी ने फिर वही शांत भाव से उत्तर दिया --- " जैसी प्रभु की इच्छा होती है , वैसा ही होता है l " मुनीम को समझ में आ गया जो सब कुछ ईश्वर की इच्छा मानकर उन पर छोड़ देते हैं वे मन:स्थिति में शांत रहते हैं l
27 November 2022
WISDOM ----
वस्तुओं के प्रति आकर्षण का , अतृप्त इच्छाओं का नाम तृष्णा है l तृष्णा प्राय: अपनी स्थिति से अधिक ऊँची सामर्थ्य वाली वस्तुओं के लिए हुआ करती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की सम्पदा और इंद्र की सामर्थ्य भी कम पड़ती है l तृष्णा कभी तृप्त नहीं होतीं l उन्हें व्रत , संकल्प और प्रतिरोध की छड़ी से ही काबू में लाया जा सकता है l " एक कथा है ------ एक राजा ने एक बकरी पाली और प्रजाजनों की परीक्षा लेने का निर्णय किया l यह घोषणा की गई कि जो इस बकरी को तृप्त कर देगा उसे सहस्त्र स्वर्ण मुद्राएँ उपहार में मिलेंगी l परीक्षा की अवधि पंद्रह दिन रखी गई और बकरी घर ले जाने की छूट दे दी l जो ले जाते वे पंद्रह दिन तक उसका पेट भली प्रकार भर देते l इतने पर भी जब वह दरबार में पहुँचती तो अपनी आदत के अनुरूप वहां रखे हुए हरे चारे में मुंह मारती l प्रयत्न असफल चला जाता l इस प्रकार कितनों ने ही प्रयत्न किया , पर वे सभी निराश होकर लौट गए l एक बुद्धिमान उस बकरी को ले गया , वह पीछे छुपकर बकरी को चारा डाल देता , उसका पेट भर देता लेकिन जब वह सामने से आता , उसके हाथ में चारा होता तब वह बकरी की छड़ी से अच्छी खबर लेता l उसे देखते ही बकरी खाना भूल जाती और मुंह फेर लेती l यह नया अभ्यास जब पक्का हो गया तो वह बकरी को लेकर दरबार में पहुंचा l छड़ी हाथ में थी l उसके सामने हरा चारा रखा गया तो छड़ी को ऊँची उठाते ही बकरी ने मुंह फेर लिया , राजा समझ गया कि वह पूर्ण तृप्त हो गई और उस बुद्धिमान को इनाम मिल गया l इस रहस्य का उद्घाटन करते हुए राजपुरोहित ने बताया कि तृष्णायें बकरी के सद्रश हैं l वे कभी तृप्त नहीं होतीं l उन्हें व्रत , संकल्प और प्रतिरोध की छड़ी से ही काबू में लाया जा सकता है l
25 November 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " दूसरों का सहारा लेकर बहुत ऊँचे पहुंचे हुए लोगों में वो साहस और द्रढ़ता नहीं होती जो अपने आप विकसित हुए व्यक्ति में स्थायी रूप से होती है l सफलता की मंजिल भले ही देर से मिले पर अपने पैरों की गई यात्रा -विकास यात्रा अधिक विश्वस्त होती है l संसार में कार्य करने के लिए स्वयं का विश्वासपात्र बनना आवश्यक है l आत्म शक्तियों पर जो जितना अधिक विश्वास करता है , वह उतना ही सफल और बड़ा आदमी बनता है l " एक कथा है ---- किसी चिड़िया ने चोंच में दबाकर पीपल का एक बीज नीम के खोखले तने में डाल दिया l वहां थोड़ी मिटटी , थोड़ी नमी थी l बीज उग आया और धीरे -धीरे उस वृक्ष से ही आश्रय लेकर बढ़ने लगा l सीमित साधनों में वह पीपल का पौधा थोड़ा ही बढ़कर रह गया l एक दिन उसने बड़े वृक्ष को डांटते हुए कहा ---- " दुष्ट ! तू स्वयं तो आकाश छूने जा रहा है और मुझे थोड़ा भी बढ़ने नहीं देता l अब तूने शीघ्र ही मुझे विकास के और साधन न दिए तो तेरा सत्यानाश कर दूंगा l " नीम के वृक्ष ने समझाया ----" मित्र ! औरों की दया पर पलने वाले इतना ही विकास कर सकते हैं जितना तुमने किया है l इससे अधिक करना हो तो नीचे उतरो और अपनी नींव आप बनाओ , अपने पैरों पर खड़े हो l " पौधे से वह तो नहीं बना , हाँ , वह उसे कोसने अवश्य लगा लेकिन नीम के वृक्ष को इतनी फुरसत कहाँ थी कि वह पीपल के पौधे की गाली -गलौज सुनता l एक दिन हलकी सी आंधी आई l नीम का वृक्ष थोड़ा ही हिला था , पीपल के पौधे की नींव कमजोर थी अत" वह धराशायी होकर मिटटी चाटने लगा l उधर से एक राहगीर निकला l उसने नीम के वृक्ष की ओर देखा और उसके खोखले तने से गिरे हुए पीपल के पौधे को देखा और धीरे से कहा --- " जो परावलंबी हैं , औरों के आश्रय में बढ़ने की आशा करते हैं , उनकी अंत में यही गति होती है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- "जो दूसरों के सहारे उठते हैं उन्हें बात -बात पर गिर जाने का भय बना रहता है l अपने आप बढ़ने में सच्चाई और ईमानदारी रहती है , वह घबराता नहीं , परेशान भी नहीं होता l
24 November 2022
WISDOM ----
एक कथा है ---- विधाता ने मनुष्य बनाया और उसे धरती पर भेजने लगे तो भेजते हुए बोले ---" पुत्र ! तू मानव जीवन का उपयोग आत्म कल्याण के लिए करना ताकि मृत्यु आने पर पछताना न पड़े l " मनुष्य ने कहा -- " जी प्रभु ! पर आप मृत्यु आने से पूर्व चेतावनी जरुर दे देना , ताकि मैं समय रहते संभल सकूँ l " विधाता ने हामी भरी l पृथ्वी पर आते ही मनुष्य अपने पथ से भटक गया और मात्र इन्द्रिय सुखों में रस लेने लगा l जीवन पूरा हुआ और मृत्यु के बाद वह कर्मों का लेखा -जोखा के लिए विधाता के समक्ष उपस्थित हुआ l उसने विधाता से कहा --- "आपने वचन दिया था कि आप मृत्यु आने पर चेतावनी देंगे , पर मुझे तो कोई ऐसा संदेश नहीं मिला l " विधाता बोले --- " तेरी आँखों से दीखना , कानों से सुनना कम पड़ने लगा , हाथ -पैर कम काम करने लगे पर तब भी तू उन्हें भूलकर सुखों में रस लेता रहा तो इसमें किसका दोष है l यही तो तेरे लिए चेतावनी थी l सत्य है कि परमात्मा मनुष्य को हर घड़ी चेताते हैं , पर वह ही अपना बहुमूल्य जीवन व्यर्थ गँवा देता है l
संसार में ऐसे अनेक व्यक्ति हुए जिन्होंने मृत्यु को स्वीकार किया --- जर्मनी के प्रसिद्ध नाटककार गेटे अपने लक्ष्य में आजीवन पूरे मन और निष्ठां से लगे रहे l जब उनकी मृत्यु का समय आया तब भी उन्हें नाटक ही दीख रहा था l अंतिम साँस छोड़ते हुए उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा --- " लो , अब पर्दा गिरता है , एक मजेदार नाटक का अंत होता है l "
23 November 2022
WISDOM -----
लघु कथा ---- कुछ समय पूर्व की बात है , वर्षा ऋतु थी घनघोर पानी बरस रहा था , दूर -दूर तक जल ही जल नजर आता था l ऊपर उड़ती दो बतखों की द्रष्टि एक कछुए पर पड़ी , जो एक पेड़ की टहनी मुंह से पकड़े स्वयं को बचाने में लगा था l बतखों को कछुए पर दया आ गई और उसके पास जा कर बोलीं --- " आओ कछुए भाई , तुम टहनी पकड़े रहो और हम तुम्हे उड़ाकर सूखी जमीन तक पहुंचा देते हैं l बस , किसी भी स्थिति में अपना मुंह न खोलना l " कछुए ने बिना सीख को समझे हाँ कर दी l अब कछुआ टहनी को मुंह से पकड़े हुए था और दोनों बतखों ने उसे दोनों सिरे से पकड़ रखा था और आसमान में उड़ते हुए जा रहे थे l नीचे जमीन पर खड़े कुछ बच्चों ने यह अचरज भरा द्रश्य देखा और कछुए की ओर इशारा कर के हँसने लगे l बच्चों को अपनी पर हँसते देख कछुआ क्रोध से भर उठा और पलटकर चिल्लाने लगा l मुंह खोलते ही टहनी पर उसकी पकड़ ढीली हो गई और कछुआ जमीन पर आ गिरा l इस कथा से यही शिक्षा मिलती है कि अविवेक के कारण व्यक्ति असमय मुँह खोलता है जिसका परिणाम विनाशकारी होता है l कभी मौन रहकर भी समस्या का निराकरण संभव है l
22 November 2022
WISDOM -----
हम अपने कष्टों के लिए हमेशा दूसरों को दोष देते हैं लेकिन सच ये है कि व्यक्ति की अपनी ही कमजोरियां हैं जिनकी वजह से वह कष्ट भोगता है l ' मोह ' के कारण कैसे व्यक्ति बंधनों में बंध जाता है , इसे समझाने के लिए आचार्य जी ने एक कथा कही है --- ' वैसे तो भँवरे को सभी फूलों से प्यार होता है , पराग रस के लोभ में हर बाग़ में प्रत्येक फूल पर मंडराता घूमता है l यह भंवरा सबसे अधिक कमल के फूल को प्यार करता है और अपने इस अतिमोह में कभी -कभी वह अपने प्राण ही गँवा देता है l सुबह से साँझ तक कमल के सौन्दर्य और स्वाद में खोया हुआ भँवरा साँझ होने पर भी उसके मोह से नहीं निकल पाता l साँझ होने पर सूर्य अस्त की वेला में कमल की पंखुडियां बंद होने लगती हैं , पर कमल के मोह में बंधा भंवरा वही जस -का -तस बैठा रहता है और कमल के पूरी तरह बंद होने पर वह भ्रमर उसी में कैद कैद हो जाता है l जो भ्रमर अपने पराक्रम से कठोर कष्ट को भी काटकर चूर -चूर कर देता है , वही मोह विवश होने पर कोमल पंखुड़ियों को नहीं काट पाता l उन्ही के बीच सिकुड़ा बैठा रहता है l उसे प्रतीक्षा रहती है सुबह होने की , परन्तु वह सुबह उसके जीवन में कभी नहीं आती l कमल के अन्दर प्राणवायु के अभाव में उसके प्राण निकल जाते हैं अथवा सरोवर में स्नान करने आए हाथी उस समूची कमलनाल को ही उखाड़ कर खा जाते हैं l उस भ्रमर के भाग्य में मृत्यु के अलावा और कुछ नहीं होता l इसी तरह मनुष्य मोहजाल में फंसकर अपने अस्तित्व को भुला बैठता है l
21 November 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के एक लेख का अंश ----- आचार्य जी लिखते हैं ---- "सुविचारों -सद्विचारों के खो जाने से अपराधों की प्रकृति बेतरह बढ़ रही है l अनपढ़ लोग इन्हें फूहड़ ढंग से करते हैं और चतुर लोग इन्हें चालाकी का रंग चढ़ाकर करते हैं l खाने -पीने की चीजों में मिलावट , कम तोलना , उठाईगिरी जैसे धंधे निचले लोग करते हैं l ऊँचे लोग इसमें लाभ कम और बदनामी अधिक देखते हैं , इसलिए वे ऐसे जाल बुनते हैं , जिसमे एक साथ ढेरों शिकार पकड़े जा सकें l एक -एक मछली पकड़ने के लिए धूप में बाँस की बंसी पकड़े रहना उन्हें मूर्खता पूर्ण लगता है l वे बड़े हैं , इसलिए बड़ा लाभ कमाने के लिए बड़ी दुरभिसंधि रचते हैं l आज के दौर में अपराध एक फैशन है , जिसे अपनाकर कोई लज्जित नहीं होता है बल्कि अपनी उद्दंडता की , चतुरता की प्रशंसा पाने की आशा रखता है l जो अपराध न कर सके वह बुद्धू , प्रतिगामी , डरपोक आदि न जाने क्या -क्या नाम धराता है l लोग उसे ' प्रैक्टिकल ' होने की सीख भी देते हैं l ------- आज बड़े आदमी बढ़ रहे हैं और महामानव अद्रश्य होते जा रहे हैं l अब ऐसे व्यक्तियों को ढूंढ पाना मुश्किल है जिन्हें सच्चे अर्थों में मनुष्य कहा जा सके l आकृति से तो मनुष्य सभी हैं , पर प्रकृति से मनुष्य कहीं नहीं दिखाई देते हैं l धूर्त , दुष्ट , विलासी और अपराधी प्रवृत्ति के लोग जिस समाज में भी होंगे , उसकी स्थिति कितनी दयनीय हो सकती हैं , इसे आज हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं l विज्ञानं ने हमें अगणित उपलब्धियां दिन लेकिन चेतना से स्तर पर हम आज भी पशु हैं l " आचार्य जी लिखते हैं---' सत्साहित्य के अध्ययन और विचारों में परिवर्तन , सकारात्मक सोच से ही सुधार संभव है l '
19 November 2022
WISDOM -----
सत्संग कुछ पल का ही क्यों न हो , जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है l यदि उपदेश देने वाले व्यक्ति के उपदेश और उसके आचरण में एकरूपता हो तो वे उपदेश बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं l एक कथा है ----- आचार्य धर्मघोष अपने शिष्यों सहित प्रव्रज्या पर थे , वे एक गाँव पहुंचे और वर्षा शुरू हो गई l निर्धारित नीति के अनुसार वर्षा के चार माह संन्यासी को यात्रा करना वर्जित है इसलिए उन्होंने नगरनायक क्षुद्रमति से कहा कि अब हम चार माह इसी गाँव में विश्राम करेंगे , आपको कोई कष्ट तो नहीं होगा l क्षुद्रमति ने कहा --आप जैसे त्यागी , तपस्वी से हमें क्या कष्ट होगा किन्तु एक बात आपको बताना जरुरी है कि इस गाँव के सभी लोग दस्यु कर्म करते हैं , दूसरों को लूटकर अपना जीवन चलाना ही हमारा धर्म है l आपके उपदेश से कहीं हमारे बंधू -बांधवों की मति न पलट जाये इसलिए आप वचन दें कि चार माह कोई उपदेश नहीं देंगे ल आचार्य सोच में पड़ गए कि चार माह इनके नीच साधनों की कमाई पर जीवित रहना होगा , लेकिन धार्मिक मर्यादा का पालन जरुरी है इसलिए इसे आपद्धर्म मानकर शर्त स्वीकार कर ली l चार माह बीत गए , उन्होंने कोई उपदेश नहीं दिया l आचार्य की आँखों में आंसू थे कि दस्यु कर्म में भी परिश्रम और जीवन के संकट में डालकर हुई कमाई से अपने जीवन की रक्षा की तो उनका कुछ उपकार तो करना ही चाहिए l क्षुद्रमति उन्हें गाँव की सीमा तक छोड़ने आया तब आचार्य ने कहा --- तुमने हमारी बहुत सेवा की हम प्रसन्न हैं , हमने तुम्हारे अन्न पर चार माह बिताए और उसका कुछ भी ऋण चुकाए बिना जा रहे हैं l हमारे पास धर्म शिक्षा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है l अब तो गाँव की सीमा से बाहर आ गए तुम कहो तो एक उपदेश दे दें l क्षुद्रमति ने कहा ठीक है आप एक उपदेश दें , हम उसका जीवन भर पालन करेंगे l आचार्य धर्मघोष बोले ---- " आज से तुम लोग व्रत लो कि सूर्यास्त के बाद कभी कुछ खाना मत रात्रि के समय भोजन को हिंसा कहा गया है , इससे हानि होती है , रात्रि में भोजन करना वर्जित है l अब उस गाँव के सभी निवासियों ने सूर्यास्त से पूर्व ही भोजन करने का नियम बना लिया l एक दिन उन्होंने निकट के राज्य के एक गाँव में डकैती डालने की योजना बनाई l गाँव में डकैती डालकर बहुत सा धन लेकर वे रात में लौट रहे थे l कुछ दूर बाहर आकर उन्होंने विश्राम और भोजन करने का विचार किया l दो दस्यु भोजन लेने चले गए l उनके मन में धन का लालच आ गया और उन्होंने मदिरा में विष मिला दिया और भोजन सामग्री लेकर आ गए l दूसरे दस्यु आचार्य को दिया वचन भूल गए और मदिरा पान और भोजन करने लगे l क्षुद्रमति ने आचार्य को दिए वचन का पालन किया और भोजन , मदिरा कुछ नहीं लिया l अचानक उसने देखा एक -एक कर के दस्यु मरते जा रहे हैं l उसके सामने सारी स्थिति स्पष्ट हो गई कि इसमें विष है l उसे समझ में आया कि आचार्य के एक उपदेश से ही उसके जीवन की रक्षा हो गई l उसकी चेतना जाग्रत हो गई कि जब धर्म की एक चिनगारी ही रक्षा करती है तो क्यों न धर्म के मार्ग पर , सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चला जाए और इस जीवन को सार्थक किया जाए l उसने दस्यु कर्म छोड़ दिया और गाँव में ही खेती कर के जीवनयापन करने लगा l उसके साथ सारे ग्रामवासियों का जीवन भी धन्य हो गया l
17 November 2022
WISDOM ----
अनमोल वचन ----- पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " मनुष्य का गौरव इस बात में है कि वह नेक राह पर चले और अपने पीछे ऐसी परंपरा छोड़ जाए जिसका अनुकरण करते हुए पीछे आने वाले लोग अपना रास्ता खोज सकें l हिम्मत और बहादुरी की खरी पहचान यह है कि वह कठिनाइयों और प्रलोभनों के बीच जरा भी विचलित न हो l जिसने इंसानियत के आदर्शों को छोड़ दिया , उसके पास बचा ही क्या ? "
" जिसके जीने के कारण अन्य बहुत से प्राणी जीवन पाते हैं , वही मनुष्य जीवित माना जाता है l अन्यथा कौआ भी अपनी चोंच से ही अपना पेट भर लेता है l जो अपने लिए जीता है , उसका जीवन भी कोई जीवन है l "
" अपने विचारों पर पैनी नजर रखिए क्योंकि वे कुछ ही दिनों में शब्द बनकर मुखर होने लगेंगे l अपने शब्दों पर और भी तीखी नजर रखिए क्योंकि वे धीरे -धीरे कर्म बनकर प्रकट होते हैं l अपने कर्मों का परीक्षण करते रहिए क्योंकि वे फिर आदत बनकर रहेंगे l अपनी आदतों को भुलावे में मत डालिये क्योंकि वे चरित्र बने बिना नहीं रह सकतीं l अपने चरित्र द्रष्टि रखें क्योंकि वही आपके भविष्य का जन्म दाता है l "
16 November 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " दुनिया में बुरे लोग हैं , ठीक है , पर यदि हम अपनी मनोभूमि को सहनशील , उदार और धैर्यवान बना लें तो अपनी जीवन यात्रा आनंदपूर्वक कर सकते हैं l जो उपलब्ध है उसे कम या घटिया मानकर अनेक लोग दुःखी रहते हैं l यदि हम इन लालसाओं पर नियंत्रण कर लें , अपना स्वाभाव संतोषी बना लें तो अपनी परिस्थितियों में शांति पूर्वक रह सकते हैं l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' अपने से अधिक सुखी , अधिक साधन संपन्न , अधिक ऊँची परिस्थिति के लोगों के साथ अपनी तुलना की जाए तो प्रतीत होगा कि सारा अभाव और दरिद्रता हमारे हिस्से में आई है ' परन्तु यदि उन असंख्य दीन -हीन परेशान लोगों के साथ अपनी तुलना करें तो अपने सौभाग्य की सराहना करने को जी चाहेगा l ऐसी दशा में यह स्पष्ट है की अभाव या दरिद्रता कोई मुख्य समस्या नहीं है , समस्या केवल इतनी है कि हम अपनी तुलना अपने से नीची परिस्थिति परिस्थिति के लोगों से करते हैं या ऊँची परिस्थिति के लोगों से l ' द्रष्टिकोण में परिवर्तन से हम बेवजह के तनाव से बच सकते हैं l
15 November 2022
WISDOM ---
अत्याचार , अन्याय , लोगों को उत्पीड़ित करना --यह सब अहंकारी के लक्षण हैं , ऐसा कर के उसके अहंकार को पोषण मिलता है l इसे जब तक सहन करेंगे यह बढ़ता ही जायेगा l अत्याचारी के पास धन , सत्ता आदि का बल होता है , इसलिए विवेक और आत्मविश्वास से ही उसका मुकाबला किया जा सकता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' हम में 'न ' कहने की हिम्मत होनी चाहिए l गलत का समर्थन नहीं करेंगे , उसमें सहयोग नहीं देंगे l जिसमें इतना भी साहस नहीं है उसे सच्चे अर्थों में मनुष्य नहीं माना जा सकता l चाहे कैसी भी परिस्थिति हो जूझने का साहस होना चाहिए l ------ एक राक्षस था , उसने एक आदमी को पकड़ा l उसने उसको खाया नहीं , डराया भर और बोला ---- ' मेरी मर्जी के कामों में निरंतर लगा रह , यदि ढील की तो खा जाऊँगा l वह आदमी जब तक बस चला , तब तक काम करता रहा l जब थककर चूर -चूर हो गया और काम उसकी सामर्थ्य से बाहर हो गया तो उसने सोचा कि तिल -तिलकर मरने से तो एक दिन पूरी तरह मरना अच्छा है l उसने राक्षस से कह दिया -- " जो मरजी हो सो कर , इस तरह मैं काम करते नहीं रह सकता l " राक्षस ने सोचा कि काम का आदमी है l थोडा -थोडा काम दिन भर करता रहे तो क्या बुरा है ? एक दिन खा जाने पर तो उस लाभ से हाथ धोना पड़ेगा जो उसके द्वारा मिलता है l राक्षस ने समझौता कर लिया , थोड़ा -थोड़ा काम करते रहने की बात मान ली
14 November 2022
WISDOM -----
महाभारत में अर्जुन ने अपने जीवन की डोर भगवान के हाथों में सौंप दी , भगवान श्रीकृष्ण उनके सारथी बने l यह युद्ध अधर्म के नाश के लिए था l अधर्म का अंत तो भगवान ने ही किया लेकिन इसका श्रेय उन्होंने अर्जुन को दिया l पांडव धर्म के मार्ग पर थे और अर्जुन ने भगवान के श्री चरणों में स्वयं को समर्पित किया इसलिए वह इस श्रेय का अधिकारी बना l रथ की ध्वजा पर श्री हनुमान जी आरुढ़ थे l प्रतिदिन युद्ध समाप्ति पर श्रीकृष्ण रथ से उतारकर फिर अर्जुन को बड़े सम्मान से उतारते थे l अंतिम दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ l भगवान कृष्ण सदा की तरह अर्जुन से पहले नहीं उतरे , उन्होंने अर्जुन से कहा --- " पार्थ ! आज तुम रथ से पहले उतर जाओ l तुम उतर जाओगे तब मैं उतरता हूँ l " अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ l अर्जुन के उतरने के बाद भगवान कृष्ण धीरे से उतरे और अर्जुन को रथ से दूर ले गए और तभी भयंकर विस्फोट हुआ और वह रथ जलकर ख़ाक हो गया l म आश्चर्य चकित अर्जुन ने भगवान कृष्ण से पूछा --" हे कान्हा ! आपके उतारते ही यह रथ पल भर में भस्मीभूत हो गया , यह क्या रहस्य है ? " भगवान कृष्ण अर्जुन से बोले ---- " हे पार्थ ! यह रथ तो पितामह भीष्म , द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों से पहले ही नष्ट हो चूका था , इस दिव्य रथ की आयु तो पहले ही समाप्त हो गई थी लेकिन अधर्म का अंत करने के लिए इसकी उपयोगिता थी इसलिए यह मेरे संकल्प बल से चल रहा था l भगवान का संकल्प अटूट होता है यह जहाँ भी लग जाये , वहां अपना प्रभाव दिखाता है l अर्जुन महारथी था , लेकिन युद्ध में भगवान ने उसकी हर पल रक्षा की , उसे संरक्षण दिया l यह प्रसंग हर युग में इस सत्य को स्पष्ट करता है कि जो सत्य और धर्म के मार्ग पर है और इस संसार रूपी बगिया को सुन्दर बनाने में अपना योगदान देते हैं , भगवान अपने संकल्प बल से उनकी रक्षा करते हैं , उनकी उपयोगिता के कारण उन्हें जीवनदान देते हैं l ईश्वर की ऐसी कृपा पाने के लिए जरुरी है कि व्यक्ति में कर्त्तापन का अहंकार न हो , सब कुछ भगवान ही करते हैं हम तो केवल उनके हाथ का यंत्र हैं l
13 November 2022
WISDOM ----
ऋषि दधीचि शिव जी के अनन्य भक्त थे l उनका पूरा जीवन तप , साधना , शिक्षण में बीता l जब वृत्रासुर का प्रकोप बढ़ा तो भगवान विष्णु ने कहा कि दधीचि जैसे तप साधक की अस्थियों से बना वज्र ही इंद्र की रक्षा कर सकेगा l हड्डियाँ कोई मांगने पर क्यों देगा , क्यों शरीर छोड़ेगा , इस सोच से परेशान इंद्र ने दधीचि की हत्या कर अस्थियाँ लेने की सोची l विष्णु जी ने उन्हें फटकार लगाईं और फिर स्वयं गए l प्रार्थना की कि संकट से त्राण हेतु आपकी अस्थियों की जरुरत है l तपोबल के धनि मुनि श्रेष्ठ ने योगबल से शरीर छोड़ा और अपनी अस्थियाँ दान कर दीं l उनका पुत्र बहुत छोटा था l उसकी माँ भी पति वियोग में चली गई l पुत्र पर बहुत कष्ट आए , पीपल के नीचे पीपल के फल खाकर शिव -शिव नाम जपकर वह जीवित रहा l नारद जी ने आकर उसका संस्कार किया और उसे पिप्पलाद नाम दिया l उसकी एक ही पुकार थी कि हमें इतना दुःख क्यों सहन करना पड़ा ? किसने दिया इतना दुःख ? नारद जी ने बताया कि शनि का तुम पर प्रकोप रहा है , उसी से यह स्थिति हुई है l पिप्पलाद बोले --- " यदि हमने शिव भक्ति की है तो हमारे कहने से ' शनि ' अपने गृह मंडल से नीचे गिरेगा l ऐसा ही हुआ , चारों ओर हाहाकार मच् गया l सब देवताओं ने विनती की कि स्रष्टि का संतुलन होना है , अत: उसे पुन: स्थापित करना होगा l पिप्पलाद ने कर दिया तब से पिप्प्लाद् कृत शनि स्रोत का पाठ होता है l और शनि के लिए पीपल की पूजा होती है l
12 November 2022
WISDOM ---
विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च रक्तचाप के रोगियों को किसी के प्रति वैरभाव नहीं रखना चाहिए और क्रोध करने से बचना चाहिए l जिस तरह पानी को जब गर्म किया जाता है तो थोड़ी देर में वह तेज गर्म होकर उबलने लगता है और भाप में बदलता जाता है , ठीक इसी तरह व्यक्ति क्रोध में गरम होकर उबलता है और व्यक्ति की ऊर्जा भी क्रोध के समय सर्वाधिक मात्र में व्यय होती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'क्रोध का पहला प्रहार विवेक पर और दूसरा प्रहार होश पर होता है l इसलिए कठिन कार्यों , संकट के समय और अपमान होने पर धैर्य धारण करने की सलाह दी जाती है l जो व्यक्ति अहंकारी होता है वह अधिक क्रोध करता है क्योंकि वह स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करना चाहता है जबकि यह उसकी नासमझी है l चिकित्सकों के अनुसार कैंसर , उच्च रक्तचाप , सिर दरद और मानसिक रोगों की मुख्य वजह क्रोध ही है इसलिए सर्वप्रथम अपने क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए l
11 November 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ईश्वर ने हमें जो कुछ दिया , जैसी भी परिस्थिति है , उसमें कुछ न कुछ अच्छाई ढूंढकर हम संतोष कर सकते हैं वरना असंतुष्ट रहने के अनेकों कारण हैं l एक कथा है ------- सुंदरवन में एक कौआ रहता था l उसने पहले कभी बगुले को नहीं देखा था l बरसात का मौसम आया तो दूर देश से एक बगुला उड़कर वन में आया l उसे देखकर कौए को बड़ा दुःख हुआ l उसे लगा कि उसका रंग कितना काला है , जबकि बगुला कितना गोरा है l उसने जाकर बगुले से कहा --- - " बगुले भाई ! आप तो बहुत गोरे हो , यह देखकर आपको बहुत सुख मिलता होगा l " बगुला बोला ----- " अरे , मैं तो पहले से ही दुखी हूँ ,, जरा तोते को देखो , वो कितने सुन्दर दो रंगों से रंगा है l मुझ पर तो एक ही रंग है l " अब दोनों मिलकर तोते के पास गए तो तोता बोला --- " अरे , मैं तो तुम दोनों से भी ज्यादा दु:खी हूँ , जरा मोर को देखो वो कितने सुन्दर रंगों से रंगा हुआ है l " अब सब मिलकर मोर के पास पहुंचे तो देखा कि मोर को मारने उसके पीछे शिकारी लगा हुआ है l मोर के सुरक्षित होने पर उन्होंने मोर से अपनी बात कही तो मोर बोला --- " भाइयों ! मेरा तो जीवन मेरे रंगों के कारण असुरक्षित हो गया है l ये रंग न होते तो आज मैं भी तुम लोगों की तरह चैन की बंसी बजा रहा होता l " अब सब की समझ में आया कि भगवान ने हर प्राणी को मौलिक बनाया है , सभी में कोई -न-कोई खासियत है और हमें उसी को निखारने की जरुरत है l
WISDOM ---
फूलों से लदे गुलाब के पौधे को चिंतामग्न देखकर पास में उगे आम के पौधे ने उससे इसका कारण पूछा l गुलाब ने कहा --- " आज तो मैं फूलों से लदा हूँ , पर वह पतझड़ दूर नहीं , जब मुझ पर एक भी पत्ता शेष न होगा l आज जो मेरे सौन्दर्य की प्रशंसा करते थकते नहीं , कल वे मेरी ओर देखेंगे भी नहीं l क्या यह कम चिंता की बात है ? " इतना कहकर गुलाब के पौधे ने हताशा से सिर झुका लिया l आम का पौधा बोला --- " मित्र ! कल के पतझड़ की चिंता करने के बजाय तुम उसके बाद पुन: लौटने वाले वसंत के विषय में क्यों नहीं सोचते l मुझे देखो , अभी मुझे वृक्ष बनने में वर्षों लगेंगे, पर मैं उसी आशा में निरंतर मुदित बना रहता हूँ l " हमारी सोच सकारात्मक हो l हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है l
9 November 2022
WISDOM ----
क्रोध करने से बुद्धि का नाश होता है और फिर ये दुर्बुद्धि ग्रस्त व्यक्ति जो भी काम करता है उसके परिणाम नकारात्मक ही होते हैं l क्रोध कर के व्यक्ति सबसे ज्यादा अपना ही नुकसान करता है , अपनी बहुमूल्य ऊर्जा को व्यर्थ में ही गँवा देता है l एक कथा है ---- एक सांप को बहुत गुस्सा आया , उसने गरजना और फुफकारना शुरू कर दिया और कहा --- " मेरे जितने भी शत्रु हैं , आज उन्हें खाकर ही छोडूंगा l उनमें से एक को भी जिन्दा नहीं रहने दूंगा l " मेढ़क , चूहे , केंचुए और छोटे -छोटे जानवर उसके गुस्से को देखकर डर गए और छिपकर देखने लगे कि देखें आखिर क्या होता है ? सांप दिन भर फुफकारता रहा और दुश्मनों पर हमला करने के लिए दिन भर इधर -उधर बेतहाशा भागता रहा l फुफकारते -फुफकारते उसके गले में दरद होने लगा l शत्रु तो कोई हाथ नहीं आया , पर कंकड़ -पत्थरों की खरोंचों से उसकी सारी देह जख्मी हो गई l शाम होते -होते थकान से चकनाचूर होकर एक तरफ जा बैठा l गुस्सा करने वाला शत्रुओं से पहले अपने को ही नुकसान पहुंचाता है l
8 November 2022
WISDOM ---
आज संसार में एक से बढ़कर एक अमीर हैं , अथाह सम्पदा है उनके पास l दान भी बहुत करते हैं लेकिन प्रश्न यह है कि जब संसार में इतने दान -पुण्य के कार्य होते हैं तो इतनी अशांति क्यों क्यों है ? कहीं युद्ध , कहीं आतंक , कहीं भुखमरी , बेरोजगारी ---- नकारात्मकता का अनुपात अधिक है l हमारे धर्म ग्रंथों में लिखा है कि नीति और अनीति की कमाई में अंतर होता है l नीति की कमाई का छोटा सा दान भी सुख -शांति लाता है और अनीति की कमाई चाहे जितनी बड़ी मात्रा में दान की जाये , उसका परिणाम अनीति , अशांति ही होता है l पूंजीपति कैसे पनपता है ? यह बरसों से स्पष्ट है l एक कथा है ---- एक संत थे , धार्मिक उपदेश देते थे l वे कोई भेंट , उपहार नहीं लेते थे और अपना निर्वाह टोपियाँ सीकर , बेचकर करते थे क्योंकि उन्होंने शास्त्रों में पढ़ा था कि ज्ञान दान बिना किसी लाभ के करना चाहिए तभी उसकी महत्ता है l एक सेठ जी को प्रवचन सुनकर दान करने की प्रेरणा मिली और उन्होंने धर्म खाते में कुछ रूपये डालने शुरू किए l जब पांच सौ रूपये हो गए तब वे संत के पास गए और पूछा कि धर्म खाते के पांच सौ रूपये हो गए , इनका क्या करूँ ? संत ने सहज भाव से कहा --- ' जिसे तुम दीन -हीन समझते हो उसे दान कर दो l ' सेठ जी ने देखा कि एक दुबला -पतला , भूख से पीड़ित अँधा व्यक्ति जा रहा है l उन्होंने उसे सौ रूपये देकर कहा ---" सूरदास जी ! इन रुपयों से आप भोजन , वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएं ले लेना l " अँधा आशीर्वाद देते हुए चला गया l सेठ जी को न जाने क्या सूझा वे उसके पीछे -पीछे चले l उन्होंने देखा कि उस अंधे ने उन रुपयों से खूब मांस खाया , शराब पी और जुए के अड्डे पर जाकर दाव पर बचे हुए रूपये लगा दिए l नशा चढ़ गया , वह सब रूपये हार गया तब जुए के अड्डे वालों ने उसे धक्के मारकर निकाल दिया l यह सब देख कर सेठ जी को बहुत ग्लानि हुई कि कैसे उसने बुरी आदतों में धन गँवा दिया l वह उन्ही संत के पास गए और सब किस्सा कह सुनाया l संत मन ही मन मुस्कराए और उसे अपना बचाया हुआ एक रुपया देकर कहा --- ' इसे किसी आवश्यकता वाले को दे देना और कल अपनी बात का उत्तर ले जाना l " सेठ जी ने आगे जाकर एक दीन -दरिद्र व्यक्ति को एक रुपया दे दिया और छिपकर उसके पीछे हो लिए l उन्होंने देखा कि कुछ दूर जाकर उस व्यक्ति ने अपनी झोली से एक चिड़िया को निकाल कर उड़ा दिया और कुछ पैसों के चने ख़रीदे , उन्हें खाकर , तृप्त होकर बहुत खुश हुआ और आगे चल दिया l सेठ जी ने उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया ? तब वह गरीब व्यक्ति बोला --- " मैं कई दिनों से भूखा था l कुछ न पाकर यह चिड़िया पकड़ लाया था कि भूनकर खा लूँगा l अब आपने एक रुपया दे दिया तो प्राणी की हत्या क्यों करूँ l आज इतना अन्न मिल गया , बहुत संतोष हुआ l ' सेठ जी ने यह घटना भी संत को बता दी और दोनों घटनाओं का अंतर पूछा l संत बोले ---- ' वत्स ! महत्ता देने भर की नहीं है l हमने जो धन दान में दिया , वह किन साधनों द्वारा प्राप्त किया है ? इसकी भी भावना उसके साथ जुड़ जाती है l तुम्हारा अनीति पूर्वक बिना परिश्रम के कमाया हुआ धन प्राप्त कर उसने सौ रूपये भी अनीति के कार्यों में लगाए लेकिन मेरा एक रुपया परिश्रम से कमाया हुआ था , अत: जिसके पास गया , उसके द्वारा सद्बुद्धि पूर्वक व्यय किया गया l " अब सेठ को समझ आया कि लोगों का शोषण कर के , अनीति पूर्वक कमाया हुआ धन वैसा ही नकारात्मक प्रभाव दिखाता है इसलिए अब उसने ईमानदारी के साथ व्यापार करना शुरू किया l