' जब तक जी सकते हैं शान से जियें , मनुष्य की गौरव गरिमा से जियें , अन्याय से संघर्ष कर के जियें l अन्यायी कितना ही बड़ा और शक्तिवान क्यों न हो ईश्वर उसके साथ नहीं होता अत: उसे हारना ही पड़ता है l
सौ गांवों का एक छोटा सा राज्य था --- रूपनगर l वहां दिल्ली से एक चित्र बेचने वाली आई l राजकुमारी चारुमती ने उससे वीर हिन्दू राजाओं के साथ औरंगजेब का चित्र भी खरीदा और उसी के सामने फाड़ कर फेंक दिया , उसकी सहेलियों ने उसे पांव तले रौंदा l चित्र बेचने वाली ने उस चित्र के टुकड़े औरंगजेब को दिखाए साथ ही चारुमती के सौन्दर्य वर्णन भी किया l औरंगजेब ने कहला भेजा कि राजकुमारी का विवाह उससे किया जाये अन्यथा वह रूपनगर की ईंट से ईंट बजा देगा l राजकुमारी के पिता विक्रम सिंह समर्थ नहीं थे अत: उन्होंने औरंगजेब का आदेश स्वीकार कर लिया किन्तु चारुमती ने साहस नहीं छोड़ा , उसने मेवाड़ के राणा राजसिंह से अपने उद्धार की प्रार्थना की l
अपने सरदारों से मंत्रणा के बाद उन्होंने राजकुमारी की रक्षा लिए औरंगजेब का सामना करने का निश्चय किया l बड़ी होशियारी से उनके सैनिकों ने औरंगजेब की सेना को एक संकरे स्थान पर रोक दिया और राणा स्वयं वेष बदल कर चारुमती की डोली उदयपुर ले आये और कहा -- ' आप स्वेच्छा से मेवाड़ की महारानी बनना चाहती हैं तो आपका स्वागत है l हमने कोई अहसान नहीं किया , यह तो हमारा धर्म था l " राजकुमारी ने मेवाड़ की महारानी बनना स्वीकार किया l
अपनी असफलता का समाचार सुन औरंगजेब बौखला गया और बड़ी सेना का संगठन कर अपने परिवार और बेगम सहित और खजाने सहित मेवाड़ पर आक्रमण करने चल पड़ा l विलासी और असंयमी पुरुष चाहे कितनी ही सम्पदा और शक्ति का धनी हो पर संयम का बल उसके पास नहीं होता l युद्ध क्षेत्र में भी जो विलासिता से रहे , वह भला राणा राजसिंह जैसे संयमी और चरित्रवान पुरुष से क्या जीत सकता था l
मेवाड़ राज्य के चारों ओर ऊँची पर्वत श्रेणियों परकोटा है , संकरे दर्रे हैं l राजसिंह की कुशल युद्ध नीति से औरंगजेब बुरी तरह हारा , उसे अपमानजनक सन्धि करनी पड़ी l उसकी बेगम व शहजादी जेबुन्निसा को उदयपुर में बंदिनी बन कर रहना पड़ा l उन्हें सम्मान सहित रखा गया l
औरंगजेब ने तीसरी बार भी मेवाड़ पर आक्रमण किया और उसे असफल होना पड़ा l
महाराणा राजसिंह सदा -सर्वदा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वालों को प्रेरणा प्रकाश देते रहेंगे l
सौ गांवों का एक छोटा सा राज्य था --- रूपनगर l वहां दिल्ली से एक चित्र बेचने वाली आई l राजकुमारी चारुमती ने उससे वीर हिन्दू राजाओं के साथ औरंगजेब का चित्र भी खरीदा और उसी के सामने फाड़ कर फेंक दिया , उसकी सहेलियों ने उसे पांव तले रौंदा l चित्र बेचने वाली ने उस चित्र के टुकड़े औरंगजेब को दिखाए साथ ही चारुमती के सौन्दर्य वर्णन भी किया l औरंगजेब ने कहला भेजा कि राजकुमारी का विवाह उससे किया जाये अन्यथा वह रूपनगर की ईंट से ईंट बजा देगा l राजकुमारी के पिता विक्रम सिंह समर्थ नहीं थे अत: उन्होंने औरंगजेब का आदेश स्वीकार कर लिया किन्तु चारुमती ने साहस नहीं छोड़ा , उसने मेवाड़ के राणा राजसिंह से अपने उद्धार की प्रार्थना की l
अपने सरदारों से मंत्रणा के बाद उन्होंने राजकुमारी की रक्षा लिए औरंगजेब का सामना करने का निश्चय किया l बड़ी होशियारी से उनके सैनिकों ने औरंगजेब की सेना को एक संकरे स्थान पर रोक दिया और राणा स्वयं वेष बदल कर चारुमती की डोली उदयपुर ले आये और कहा -- ' आप स्वेच्छा से मेवाड़ की महारानी बनना चाहती हैं तो आपका स्वागत है l हमने कोई अहसान नहीं किया , यह तो हमारा धर्म था l " राजकुमारी ने मेवाड़ की महारानी बनना स्वीकार किया l
अपनी असफलता का समाचार सुन औरंगजेब बौखला गया और बड़ी सेना का संगठन कर अपने परिवार और बेगम सहित और खजाने सहित मेवाड़ पर आक्रमण करने चल पड़ा l विलासी और असंयमी पुरुष चाहे कितनी ही सम्पदा और शक्ति का धनी हो पर संयम का बल उसके पास नहीं होता l युद्ध क्षेत्र में भी जो विलासिता से रहे , वह भला राणा राजसिंह जैसे संयमी और चरित्रवान पुरुष से क्या जीत सकता था l
मेवाड़ राज्य के चारों ओर ऊँची पर्वत श्रेणियों परकोटा है , संकरे दर्रे हैं l राजसिंह की कुशल युद्ध नीति से औरंगजेब बुरी तरह हारा , उसे अपमानजनक सन्धि करनी पड़ी l उसकी बेगम व शहजादी जेबुन्निसा को उदयपुर में बंदिनी बन कर रहना पड़ा l उन्हें सम्मान सहित रखा गया l
औरंगजेब ने तीसरी बार भी मेवाड़ पर आक्रमण किया और उसे असफल होना पड़ा l
महाराणा राजसिंह सदा -सर्वदा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वालों को प्रेरणा प्रकाश देते रहेंगे l