27 January 2013

जिंदगी की सार्थकता को यदि खोजना है तो वह दूसरों की भलाई करने में है ।जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं ,वे निजी जीवन में उदार बन कर जीते हैं ।दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा प्रकृति हर पल देती है ।झरना निरंतर दूसरों के लिए बहता है ।बादल बरस कर अपना कोष नहीं चुका देते ।वे बार -बार खाली होते हैं ,फिर भर जाते हैं ।नदियाँ उदारता पूर्वक समुद्र को देती हैं व समुद्र भाप बना कर उन्हें बादलों को लौटा देता है ,इस विश्वास के साथ कि यह प्रवाह चलता रहेगा ।वृक्ष प्रसन्नता पूर्वक देते हैं व सोचते हैं कि वे ठूंठ बन कर नहीं रहेंगे ।नियति का चक्र उन्हें सतत हरा -भरा बनाये रखने की व्यवस्था करता ही रहेगा ।हवा की झोली में सौरभ भरने वाले खिलते पुष्पों तथा दूध के बदले कोई प्रतिदान न मांगने वाली गायों से हम शिक्षण लें एवं उदारता को जीवित रख हँसते -हँसते जीवन जियें ।एक राजा वेश बदल कर नगर में यह जानने के लिए अक्सर निकलता था कि उसकी प्रजा सुखी है या नहीं ।एक दिन उसने देखा कि एक बहुत ही बूढ़ा आदमी एक बाग के किनारे काजू का पेड़ लगा रहा है ।राजा ने उस बूढ़े आदमी से पूछा -"बाबा !यह पेड़ तुम किसके लिए लगा रहे हो ?जब इसमें फल लगेंगे ,तब तुम इसे देखने के लिए नहीं रहोगे ।तुम्हारे जीवन के थोड़े ही दिन शेष रह गए हैं ,फिर इसे लगाने से तुम्हे क्या फायदा ?इस पर वृद्ध हँसा और सहज स्वर में उसने उत्तर दिया -"फलों के पेड़ इसलिए नहीं लगाए जाते कि हम लगाते ही उनके फल खायेंगे ।पेड़ को लगाता कोई और है ,फल कोई और खाता है ।यह दुनिया की बहुत पुरानी रीति है ।