15 May 2018

WISDOM ------ अच्छी तरह जाने बिना किसी के सम्बन्ध में कोई धारणा बना लेना बहुत बड़ा अन्याय है

 डॉ.  राजेन्द्र प्रसाद   का   सादगी  का  जीवन  था  , उन  सादे  कपड़ों  में  भी  उनके  चेहरे  पर  एक   अनोखा  तेज  था ,  आकर्षण  था ,  जो  देखता  था  उनकी  तरफ  खिंचा  जाता  था  l   जब  वे  6-7  वर्ष  के  थे   तब  उनको   पढ़ने  के  लिए  गाँव  के  ' मकतब '  में  भेजा  गया  जहाँ  एक  बुड्ढे  मौलवी  उन्हें  पढ़ाया  करते  थे  l  राजेन्द्र  बाबू  ने  अपनी  आत्मकथा  में  लिखा  है  -- " मौलवी  साहब  बहुत  अच्छे  आदमी  थे  l '  इसी  प्रकार  वकालत  की  परीक्षा  में  प्रथम  वर्ष  में  उत्तीर्ण  हो  जाने  पर   उसकी  व्यावहारिक  शिक्षा  के  लिए   वे  सैयद  शम्सुल  हुदा  के  शागिर्द  बने  और  उन्ही  के  यहाँ  रहते  थे  l   उनकी  प्रशंसा  करते  हुए  राजेन्द्र  बाबू  ने  लिखा  है ----- " एक  बार  बकरीद  के  अवसर  पर   मैं  यह  समझकर  कई  उनके  यहाँ  इस  अवसर  पर  गाय  की  कुर्बानी  होती  है  ,  अपने  गाँव  को  चला  गया   और  दो - तीन  दिन  बाद  वापस  आया  l  वकील  साहब  ने  मेरे  चले  जाने  का  कारण  पूछा   और  जब  उनको   मेरे  उत्तर  से  संतोष  नहीं  हुआ   तो  स्वयं  ही  असली  कारण  को  समझ  लिया   और  कहने  लगे  --- "  मैं  समझ  गया  कि  तुम  बकरीद  के  कारण  चले  गए  l  तुमने  सोचा  कि  यहाँ  गाय की  कुर्बानी  होगी  इसलिए  इस  समय  यहाँ  नहीं  रहना  चाहिए  l  लेकिन  ऐसा  ख्याल  कर  के  क्या  तुमने  मेरे  साथ  बेइन्साफी  नहीं  की  ?  तुमने  कैसे  समझ  लिया  कि  मैं  तुम्हारी  भावनाओं  का  आदर  नहीं  करूँगा   ?  तुम  तो  खास  आदमी  हो ,   मेरे  बगीचे  का  माली ,  गाय  की  देखरेख  करने  वाला  सब  हिन्दू  हैं   l  क्या  उनका  दिल  नहीं  दुखेगा  ?   मेरे  घर  में  कभी  गाय  की  कुर्बानी  नहीं  होती  l  "
  डॉ.  राजेन्द्र  प्रसाद  ने  अपनी  आत्मकथा  में  लिखा  है  --- "  मुझे  अपनी  गलती  पर  बहुत  दुःख  हुआ  और  शिक्षा  मिली  कि अच्छी  तरह  जाने  बिना  किसी  के  सम्बन्ध  में  कोई  धारणा  बना  लेना  बहुत  बड़ा  अन्याय  है  l   "    सज्जन  और  बुरे  लोग  हर  समाज  में  होते  हैं  l  जाति  या  धर्म  के  कारण  किसी  को  बुरा  या  भला   नहीं  समझा  जा  सकता  है   l